आयुर्वेद में ही आर्थराइटिस का शर्तिया इलाज है! अश्वगंधा, शिलाजीत, शतवारी, निर्गुंडी एवम गूगल आदि नाड़ियों को मुलायम कर नवीन रक्त रस का निर्माण करती हैं ||

इस शोध (रिसर्च) लेख को पढ़कर अप वातरोग यानि आर्थराइटिस को समझकर, निजात औरनिदान निकाल सकते हैं।
वात विकार से दुनिया में मचा है -हाहाकार
आने वाले समय में 50 फीसदी से भी ज्यादालोग चलने फिरने में असमर्थ होंगे। क्योंकि लाइफ स्टाइल बिगड़ने से व्यक्ति भयंकर वात व्याधि से पीड़ित हो जायेगा।
यह सब समस्या की वजह होगी, प्राणवायुका अवरोध। जिससे शरीर की नाड़ी, कोशिकाओं के संक्रमित, शिथिल तथा डेमेज होने का खतरा बढ़ जाएगा।
अब विश्व स्वास्थ्य संगठन भी भारत के आयुष मंत्रालय से वातरोग से मुक्ति के लिएदेशी दवाओं के उपयोग हेतु मार्गदर्शन ले रहा है।

वात से बिगड़ रहे हैं -हालात….
वात रोग यानि आर्थराइटिस से शरीर बेकार होने लगता है। बात बात पर गुस्सा, हाथ, लातबेहाल होकर शरीर का साथ न देना और रात को नींद न आना आदि परेशानी से दुःखी हैं।
एलोपैथी में आर्थराइटिस के लिए पेन किलर, स्टेरॉयड एवं बायलॉजिकल ड्रग्स देकर लोगों के जीवन को नर्क समान बना दिया है।
वात विकार ठीक करने वाली अंग्रेजी मेडिसिन से रोगी की हड्डियां एवं पाचनतंत्र कमजोर हो रहा है और डायबिटीज जैसे रोग पैदा हो रहे हैं।
क्या आर्थराइटिस ठीक हो सकता है?..
आज तक कभी किसी ने नहीं सुना होगा कि एलोपैथिक ड्रग्स से किसी का दर्द ठीक हुआ हो।बल्कि जोड़ों की परेशानी से राहत हेतु दवा खानेसे एक दिन घुटने बदलवाने की नौबत आ जाती है।
चरक संहिता के मुताबिक 88 प्रकार के वातरोगहोते हैं, जिसमे ग्रंथिशोथ अर्थात थायराइड भी सम्मिलित है। कमर दर्द के इलाज ने आदमी की कमर ही तोड़ दी। महीनों इलाज कराने और कंगाल होने के बाद देशी इलाज की तरफ भागता है।लेकिन तब तक बहुत बिलंब हो चुका होता है।
एलोपैथी की गर्म मेडिसिन खाने से इम्यूनिटी कमजोर होकर रक्त रस कोशिकाएं सूख जाती हैं और हड्डी कमजोर होकर टूटने, चटकने लगती हैं।
अगर आर्थराइटिस रोगी तकलीफ होते ही आयुर्वेदिक चिकित्सा करे, तो पैसे भी बचेंगे और शरीर भी बचेगा।
एलोपैथिक के साइड इफेक्ट…
# एलोपैथ के कारण शरीर का रंग फीका
पड़कर चेहरे की रौनक मिट जाती है।
# पूरे शरीर में दर्द, भारीपन रहता है।
काम करने की इच्छा नहीं होती।
# सेक्स से अरुचि होने लगती है।
# भूख पूरी तरह खत्म हो जाती है।
# एक बार में पेट साफ नहीं होता।
# शरीर कपने लगता है।
# गिरने का डर बना रहता है।
# देह में झुनझुनाहट रहती है।
# मन बैचेन रहता है।
# रात भर करवट बदलते रहते हैं।

ऐसी अनेकों बीमारियों से मरीज उलझकरअपने काम धंधे चौपट कर अंत में पछताता है।

आयुर्वेद ग्रंथ रस्तंत्र सार सिद्ध प्रयोग में
वातव्याधि नाशक और भायकर असरकारक औषधियों का वर्णन है, जिसे 5 से 7 महीने तक लेने से सभी तरह के 88 वात विकारों का नाश हो जाता है।
दशमुल क्वाथ…
लाजबाब शोथनाशक ओषधि है। दशमुल वात वाहिनियों की शिथिलता दूर कर ह्रदय हार्ट में बल देकर शरीर की सूजन का शमन करता है।
शुद्ध शिलाजीत….
यह वातरोग नाशक कारगर ओषधि है। यह अंदरूनी शक्ति, ताकत में वृद्धि कर हड्डियों को मजबूत और कमर व जोड़ों के दर्द से राहत दे, शरीर फुर्तीला बनाता है।सेक्स पावर बढ़ाकर उनके यौन स्वास्थ्य में सुधार करता है। मूत्र एवम मधुमेह संबंधित समस्याएं मिटाता है। दिमाग को तेज रखता है।
शुद्ध शिलाजीत के अन्य फायदे जानने के लिए अमृतमपत्रिका amrutampatrika सर्च करें ||
शुद्ध गूगल के लाभ...
जोड़ों एवं देह में चिकनाहट या लुब्रिकेंट पैदा कर नवीन रस, रक्त, मज्ज़ा बढ़ाकर कम्पन, सूजन को  दूर करता है।
अतिरिक्त चर्बी घटाता है।
स्वर्ण भस्म के फायदे...
स्‍वर्ण भस्‍म शरीर तथा मस्तिष्‍क की सूजन, शिथिलता, कमजोरी नाशक चमत्कारी ओषधि है। तन मन में ऊर्जा (एनर्जी) एवम नवयोवन प्रदान करना
इसका मुख्य गुण है।
बुढ़ापा रोकने में विशेष उपयोगी होने से इसे सर्वश्रेष्ठउम्ररोधी (एंटीएजिंग) दवा बताया है।
95 से ज्यादा रोगों में लाभकारी...
स्वर्ण भस्म याददाश्त, स्‍मृति, एकाग्रता, समन्‍वय और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार करती है। भूलने की आदत से छुटकारा दिलाती है।
स्‍वर्ण भस्‍म को अवसाद यानि डिप्रेशन और मधुमेह के कारण न्‍यूरोपैथी जैसी स्थितियों के विरुद्ध भी उपयोग किया जाता है।
शिरःशूल अति त्रासदायक होता है। उस समय अत्यन्त व्याकुलता और शरीर में कील गाड़ने सदृश भयंकर वेदना होती है।
रोगी अपनी गर्दन (गला) इधर-उधर फिराता है और बेचैनी बढ़ती जाती है। इसमें स्वर्ण भस्म असरदयक है।

स्वर्ण भस्म खासतौर पर स्त्री के पीसीओडी, सोमरोग से मुक्त करती है। पुरुषों के सेक्सविकार ठीक करके यौन स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने के लिए

स्वर्ण भस्म का उपयोग ज्यादातर राजा,रहीस व प्रसिद्ध लोग करते हैं। 
योगेंद्र रस (स्वर्ण युक्त) के कार्य व फायदे….
यह गृध्रसी, पक्षाघात, लकवा, कम्पन, हाथ पैर रह जाना, मुख टेड़ा होना, अर्दित, मन्यास्तम्भ, हनुग्रह, शरीरेन्द्रियों की दुर्बलता
आदि के लिये बड़ी अच्छी दवा है || 22 तरह के वात विकारों में इससे आश्चर्यजनक लाभ होते देखा है।
एक दवा -100 दर्द दफा….
योगेन्द्र रस के सेवन से मस्तिष्क की बीमारियां, तनाव उन्माद, मूर्च्छा, हिस्टीरिया, भूलना, याददाश्त की कमी, क्रोध,अनिद्रा तथा
वातज-पित्तज रोग दूर होते हैं।
निरर्थक विचार आना विशेषतः मस्तिष्क के दायें पार्श्व में अतिशय पीड़ा आदि लक्षण होते हैं, यहाँ तक कि पीड़ा के मारे रोगी सिर पीटता, रोता-चिल्लाता है।
योगेंद्र रस के सेवन से सिरदर्द स्वयमेव कम होकर वेदना का वेग सहन करने लायक होजाता है।
इससे शिरःशूल के समान कुक्षिशूल, उरःशूल, पार्श्वशूल दूर होता है।
आयुर्वेद सार संग्रह योगानुसार स्वर्ण भस्म, कान्त लोह, मोतीभस्म, बंग, अभ्रक आदि उत्तम धातु भस्मों के योग मिश्रण से बना हुआ यह रसायन हृदय रोग, प्रमेह, शूल,

अम्लपित्त और राजयक्ष्मा के लिये बहुत उपकारी है।

देह को ताकतवर बनाता है...
हृदय रोग रक्षक, योगेन्द्र रस …बल, वीर्य स्मृतिवर्द्धक तथा अनेक रोगनाशक है। किसी भी बीमारी के बाद की कमजोरी और साधारण कमजोरी को दूर कर
बल बढ़ाने के लिये इस रसायन का उपयोग अधिकतर किया जाता है।
योगेन्द्र रस स्वर्णयुक्त, शुद्ध कुचला, पारा, शिलाजीत, गुगल योग से बनी इसका असर वातवाहिनी नाड़ियों, मन, मस्तिष्क और
रक्तवाहिनी नाड़ियों पर विशेष रूप से होता है। यह प्रकुपित वात को शान्त करके मूत्रपिण्ड पर भी इसका प्रभाव होता है। पित्त-प्रकोप
जन्य दाह, बेचैनी, अनिद्रा आदि को भी यह दूर करता है।
योगेंद्र रस… रस-रक्तादि धातुओं पुष्ट कर शरीर को बलवान बनाता है। आर्थराइटिस से उत्पन्न बीमारी जैसे वीर्यदोष, स्वप्नदोष,
वीर्य का पतलापन, नपुंसकता, शीघ्रपतन इंद्रियों का ढीलापन, नाड़ी शिथिलता आदि दोषों को दूर कर सेक्स शक्ति बढ़ाता है।
पाचकपित्त को उत्तेजित कर पाचनक्रिया को सुधारता है।
योगेंद्र रस…वात-पित्त प्रधान पक्षाघात रोग के लिये यह सर्वोत्तम दवा है।
लकवा रोग वातवाहिनी और रक्तवाहिनी शिराओं की विकृति से होता है। वात रोग पुराना हो अथवा नया योगेंद्र रस के
उपयोग से बहुत शीघ्र फायदा होता है।
आर्थराइटिस के साथ मधुमेह भी मिटाता है
योगेंद्र रस सभी प्रकार के प्रमेह का उपचार
न करने पर पुराने होकर मधुमेह के रूप में परिणत हो जाते हैं। मधुमेह पुराना हो जाने परधातुओं की निर्बलता
होकर वायु का प्रकोप, गृध्रसी, पक्षाघात, दण्डापतानक, अपतानक, अन्तरायाम, वाहिरायाम आदि कई कठिन वातरोग हो जाते हैं।
ऐसी स्थिति में योगेंद्र रस स्वर्ण युक्तइस रसायन को 3-4 महीने लगातार सेवन करने से जबरदस्त फायदा होता है।
वृहत वात चिंतामणि रस चमत्कारी है….
भैषज्य रत्नावली शास्त्रानुसार आयुर्वेद में वात रोग के लिए इस औषधि की प्रशंसा है। इसके सेवन से 45 प्रकार के वात और पित्त-सम्बन्धी रोग जड़-मूल से नष्ट हो जाते हैं।
इसे योगेंद्र रस के साथ मिलाकर लेने से अनेक वातरोग दूर होते हैं। जैसे – नींद न आना, मस्तिष्क की ज्ञानवाहिनी नाड़ियों के दोष से उत्पन्न होनेवाली बीमारी और हिस्टीरिया आदि में इसके सेवन से बड़ा लाभ होता है।
वृहत वात चिंतामणि रस...
स्वर्ण भस्म, चाँदी, अभ्रक, मोती, प्रवाल, लौह भस्म तथा रससिन्दूर मिलाकर ग्वारपाठे (एलोवेरा) के रस में मर्दन द्वारा 3 महीने में तैयार होता है।
यह रस हृदय रोग, वात-कफ नाशक व वाजीकरण है। सब प्रकार के वात रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है।
वातवाहिनियों के क्षोभ में उपयोगी होने से अपतानक, अपतन्त्रक, आक्षेपक और तीव्र वेगवाले आशुकारी पक्षाघात में वात वृद्धि के
लक्षण अधिक होने पर वृहत वात चिंतामणि रस...
रसायन के सेवन से वात प्रकोप का शमन होकर वात साम्य स्थापित होता है।
जवाहर मोहरा (स्वर्ण युक्त)…
गुण-लाभ
नवरत्नों तथा बहुमूल्य धातुओं के मिश्रण से निर्मित यह ओषधि दिल की घबराहट, हृदय की धड़कन, दिल की दुर्बलता के कारण थोड़ा भी चलने पर दम भर जाना
आदि में इससे बहुत फायदा होता है ।माधव निदान एवं चरक संहिता के मुताबिक सारी बीमारी की वजह मानव मस्तिष्क ही है। कोई भी रोग सर्वप्रथम
दिमाग पर असर कर तंतु नाड़ी, कोशिका को शिथिलता लाता है। जवाहर मोहरा का प्रभाव स्नायु मंडल को सकारात्मक बनाने में अधिक होता है।
जवाहर मोहरा द्वारा दिमाग की कमजोरी से होने वाले भ्रम, विस्मृति आदि लक्षणों में इस औषधि के सेवन से अतीव उत्कृष्ट लाभ होता है।
जब महाधमनी या हृदय की धमनी की रक्ताभिसरण क्रिया में प्रतिबन्ध होने पर हृदय में शूल (दर्द) उत्पन्न होने के कारण
अत्यंन्त व्याकुल हो जाता है, तब सर्वप्रथम शूल को शमन करके, पश्चात् हृदय को सबल बनाने और
भावी आक्रमण की उत्पत्ति को रोकने एवम नाड़ी की क्षीणता और अनियमितता,
स्वेद यानि पसीना अधिक आना आदि अंदरूनी विकारों के लिये जवाहर मोहरा (स्वर्णयुक्त) का सेवन उत्कृष्ट गुणकारी है।
महावातविध्वंसन रस …..गुण और लाभ…
(एक असारदायक शूल, दर्द नाशक ओषधि)
अभ्रक भस्म, चित्रक, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, नाग भस्म, बंग भस्म, लौह भस्म, ताम्र भस्म, छोटी पीपल, शुद्ध टंकण, सोंठ, कालीमिर्च, कूठ,त्रिफला क्वाथ, भंगरा,  निर्गुंडी –
ये द्रव्य मिलाकर महावातविध्वंसन रस तैयार होता है।
इसके सेवन से कठिन व पुराने वात रोग नष्ट होते हैं और शूल, प्रकोप जनित रोग, ग्रहणी, सन्निपात, अपस्मार, मन्दाग्नि, शरीर का स्पर्श शीतल होना, प्लीहावृद्धि, कुष्ठ,
अर्श स्त्रियों के गर्भाशय -विकृति जन्य रोग, वातरोग की तीव्रावस्था में सूतिका रोग – इन सबको शीघ्र नष्ट करता है।वात-वृद्धि और वातवाहिनियों के
क्षोभ का शमन करने वाली है। – (रस समुच्चय) केवल वात प्रधान विकार होने पर इस रसायन से अच्छा उपकार होता है।
एकांग वीर रस
भैषज्य रत्नाकर के मुताबिक वातवाहिनियों के कार्य में किसी कारण से रुकावट होने पर
जब वात क्षोभ, शूल, दर्द उत्पन्न होता है और आमवात और सन्धिवात की जीर्णावस्था में
इसे देते हैं। इससे वात प्रकोप नष्ट होकर साम्य – भाव स्थापित होता है।
दर्द से जब अंग -अंग भंग होने लगे...
जब अंगों में बिच्छू के दंश के समान अत्यन्त तीव्र वेदना, विशेषतः शोथ स्थान में भयंकर वेदना, शूल, बेचैनी, प्रलाप आदि
लक्षण हों तब आमशोषक और वेदना शामक ये दोनों कार्य इस रसायन के प्रयोग करने से सरलतापूर्वक उत्तम प्रकार से हो जाते हैं।
रोगी को थोड़े ही समय में बहुत लाभ हो जाता है। आमवात रोग की तीव्रावस्था की यह अप्रतिम औषधि है।
स्मृति सागर रस बेहतरीन दवा
कभी-कभी मानसिक रोगों से भी वात क्षोभ होकर वेदना होती है। अपस्मार, उन्माद, मनोव्याघात आदि विकारों में होने वाली
वेदना में यह हितकारी है।
वातक्षोभजन्य छाती या पीठ के शूल में महावातविध्वंसन रस का सेवन विशेष गुणकारी है। इसी प्रकार फुफ्फुस प्रदाह के प्रारम्भ में छाती में शूल चलता हो और
वात क्षोभ से वेदना होती हो तथा वेदना के साथ मर्यादित ज्वर एवं शोथ होने की दशा में इस रस का सेवन उत्कृष्ट लाभकारी है।
हरड़ मुरब्बा के फायदे….
वातक्षोभजन्य उदरपीड़ा विकार, वायुप्रकोप, दर्द, शूल में हरड़  उपयोगी है। पेट के भीतर विविध अवयव, उनकी क्रिया और उनमें उत्पन्न
विकार, तीनों का सम्बन्ध रहता है, अतः इस कारण से रोग निर्णय में कठिनाई होती है। उदर की परीक्षा करने पर पचनेन्द्रिय के
विकार, मूत्रपिण्ड, मूत्रमार्ग या मूत्राशय के विकार, अन्य विकृति और उनमें शल्य तथा सर्व कोष्ठ में व्यापक वात नाड़ियों में हरड़
विकृति मिटाता है।
सर्व दर्द की दवा है -आर्थो की गोल्ड…
महर्षि चरक ने ८८ तरह के वात विकारों के बारे में बताया है। Orthokey इन्हें जड़ से ठीक करने में कामयाब है।
आन्त्रिक सन्निपात ( मधुरा), ग्रान्थिक सन्निपात (प्लेग) और सान्धिक सन्निपात में बेहोशी,
कण्ठ चलते रहना, प्रलाप, चित्त विभ्रम, नेत्र भरे से ज्ञात होना, जिह्वा शुष्क, कभी काली भी हो जाती है),
जिह्वा पर कार्ट, गंदगी इस प्रकार की वात-क्षोभयुक्त दशा में आर्थो की गोल्ड माल्ट और कैप्सूल का सेवन सर्वप्रसिद्ध अपूर्व
लाभकारी निर्भय औषधि है।
महिलाओं के लिए हितकारी...
प्रसूता स्त्रियों को ज्वर न होने पर भी मक्कल शूल होता है, जिसमें भयंकर शिरःशूल, बस्ति कोष्ठ और गर्भाशय में
अति तीव्र शूल या आक्षेप के समान वेदनागर्भाशय से निकलकर बस्ति और उदर में फैल जाना आदि लक्षणों में आर्थो की का
सेवन अत्यन्त लाभकारी है।
आर्थोकी गोल्ड माल्ट एवम कैप्सूल का कार्य वातवाहिनियों, वातवह मण्डलों पर वातसंस्थानों पर क्षोभ नाशक होता है।स्वर्ण भस्म वात दोष तथा मांस और अस्थि इन दूष्यों पर लाभ पहुँचाती है।

Orthokey Pain Oil, Balm & Gold Capsules Combo

MRP ₹ 2,097 ₹ 1,872

This combo contains

Orthokey Gold Capsules,

Orthokey Pain Oil and

Orthokey Pain Balm.

Amrutam’s Orthokey Gold Capsules are a rich source of calcium and other minerals that treat orthopedic disorders. These Ayurvedic capsules for muscle and joint pain contain Swarn Bhasm, Yogendra Ras and Vraht Vat Chintamani Ras. Ayurvedic Orthokey Gold Capsules are effective in treating arthritis, fibrositis, lumbar spinal stenosis and frozen shoulder. It also aids in the treatment of the thyroid because of its Vata balancing properties.

Amrutam’s Orthokey Pain Oil is effective in providing instant relief from any type of bodily discomfort. This Ayurvedic oil for muscle health contains Gandhpura, Ajwain Sat, Kapoor, Pudina Sat and Lahsun. These Ayurvedic ingredients have the ability to treat joint pain or muscle pain associated with arthritis, lumbago, sciatica, backache, muscle sprain and spasm. Massaging regularly using Ayurvedic oil for body pain by Amrutam can help relieve pain. All of your orthopedic needs may be met by buying traditional ayurvedic oil for therapy.

Amrutam’s Orthokey Pain Balm is an instant pain-relief Ayurvedic balm for all types of body pain. This Ayurvedic pain relief balm contains Gandhpura (Wintergreen), Ajawain Sat (Trachsypermum ammi), Pudina Sat (Mentha piperata), Zinger Oil (Zingiber ocinale), Dachini Oil (Cinnamomum zeylanicum), Nilgiri (Eucalyptus globules) and Vaseline Balm Base. This Ayurvedic joint or muscle pain balm shows the best result when used with Orthokey Gold Capsules and Orthokey Gold Malt.

  • https://www.amrutam.co.in/shop/orthokey-combo/
Orthokey मे कज्जली कीटाणुनाशकऔर योगवाही है। नाग, बंग, लौह, शक्तिवर्द्धक और बल्यत्व के कारण वातशामक है।
ताम्र आक्षेपनाशक और वातशामक है। अभ्रक भस्म वातवाहिनियों पर बल्य और शामक प्रभाव करती है।
सुहागा कीटाणुनाशक और शामक है तथा वत्सनाभ रसादक, क्षोभनाशक और  शूलघ्न  है।
आर्थराटीसको पाश्चात्य चिकित्सा जगत में वातनाड़ी शूल के अन्तर्गत माना जाता है। प्रारम्भ में बेचैनी, पैरों में झनझनाहट,
जंघा के सामने या पीछे या बाहर शूल उत्पन्न होता है। नाड़ियों का खिंचाव आदि लक्षण होते हैं वे सब ORTHOKEY के सेवन से मिट जाते हैं।
उपरोक्त सभी औषधियों के अलावा एलोवेरा, गिलोय, अश्वगंध, शतावर, जटामांसी और प्राकृतिक/विटामिन डी, बी12, कैल्शियम युक्त आदि से निर्मित आर्थो की गोल्ड कैप्सूल आर्थराइटिस एवं एलोपैथी के दुष्प्रभाव को राहत देता है। शरीर के समस्त दर्द, थायराइड, ग्रंथिशोथ, अकड़न, जकड़न, गठिया,  सर्वाइकल, एकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस जैसे वात रोगों से हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है।

दोष व रोगशामक क्रम से औषधि श्रेणी विभाजन वातदोषघ्न –
(वातसंशमन वर्ग – देवदारु, कूठ, हल्दी, वरुण, काकड़ासिंगी, वला, अतिबला, आर्तगल (कुपिया), कौंचबीज, शल्लकी, पाटला, वीरतरु, कटसरैया, अग्निमंथ, गिलोय, एरंड, पाषाणभेद, अर्कश्वेत, अर्करक्त, शतावरी, पुनर्नवा, मंदार, अपामार्ग, धतूरा, भारंगी, वनकपास, वृश्चिकाली (बिच्छूबूटी) पतंग, बेर, जौ, कुलत्थ इत्यादि तथा विदारि गंधादि गण वातशामक वर्ग है ।
– विदारिगंधादि गण – शालिपर्णी, विदारीकंद, सहदेवी, गंगेरन, गोखरू, पश्निपर्णी, शतावरी, सारिवाश्वेत, सारिवाश्याम, जीवक, ऋषभक, माषपर्णी, मुद्गपर्णी, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, पुनर्नवा, एरण्ड, हंसपदी, वृश्चिकाली, कौंच, यह ३० औषधियाँ हैं जो वातपित्तशामक हैं । वात- विगुणता से उत्पन्न शोष, गुल्म, अंगमर्द, ऊर्ध्वश्वास व कास की शामक हैं ।
अन्य औषधियाँ – स्वर्णभस्म, रौप्यभस्म, पुष्पराग, माणिक्य, सोमल (संखिया), शिलाजीत, दशमूल, ब्राह्मी, रास्ना, गूगल, जटामांसी, भिलावा, लोहवान, एरण्ड तैल, रसोत, वच, वच्छनाग, बादाम, पिस्ता, पिप्पलामूल, कायफल, खुरासानी अजवायन, गोरखमुण्डी, संखाहुली, घी, उड़द, नारियल, मालकांगनी, रुद्राक्ष, हालों प्रसारणी, विधारा, कुचला, तार्पीन तेल इत्यादि भी वातसंशमन में प्रधान भाग लेती हैं । 1
नोट – वातदोषघ्न वर्ग में, नाड़ीबल्य (Nerve Tonic ), नाड़ी उत्तेजक ( Stimulent ) एवं नाड़ीशामक ( N. Sedetives ) यह सब शामिल हैं । आक्षेपहर, वेदना निवारक, चेतनाहर औषधियों का समावेश इनमें हो सकता है। इनको संक्षिप्तरूप में आगे दे रहे हैं । यथा-
(२) वाताक्षेपघ्न — ( Antispasmodics or antispastics or Anti Convulsives)
वायु की क्रिया से जो आक्षेप व संकोच होने लगता है निम्नलिखित औषधियाँ उसे दूर कर देती हैं ।
हींग, कस्तूरी, जटामांसी, एरण्ड तैल, कर्पूर, गाँजा की पत्ती, पद्माख, तम्बाकू, कुटकी, देवदारु, हुलहुल, अडूसा, रोहिश तैल, सोहागा, धतूरा, अफीम का प्रयोग ऐच्छिक व अनैच्छिक मांसपेशियों के अनुचित आकुंचन को दूर करता है।
चाहे यह आक्षेप वातवहा नाड़ियों की दुर्बलता से क्रिया न होने से हो या वातवहा नाड़ियों की उग्रता के हेतु क्रियावैषम्य होकर होता हो, अवसादक क्रिया करके आक्षेपनिवारक होता है।
 तीव्र सार्वाङ्गिक आक्षेप जैसे हिस्टीरिया में उपयोगी – हींग, कस्तूरी, जटामाँसी; सार्वांगिक अवसादक-वत्सनाभ, तम्बाकू, पद्मकाष्ठ, कुटकी, देवदारु; बालकों के स्वरयंत्र आक्षेप या धनुर्वात में — सोमल, ब्राह्मी, कूठ, सोहागा, प्याज, रौप्य, लवण आदि । कम्पवात ( Choria ) – संखिया, गाँजा, यशद क्षार व ताम्रप्रधान औषधियाँ ।

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *