रामचरितमानस के लुप्त और दुर्लभ
दोहे, जिसे ज्यादातर बताया नहीं जाता। सन्त श्री तुलसीदास के अनुसार इस कलियुग में ज्ञानी, वक्ता, उपदेशक, कथावाचक और नेता…
कैसे तथा कौन होंगे?
वर्तमान स्थिति को पूर्व में भांपते हुए गोस्वामी तुलसी दास कई वर्ष पूर्व लिख गए थे। आप खुद आंकलन करें यह दोहे कितने सटीक हैं…….
【१】दोहा –
कलिमल ग्रसे धर्म सब
लुप्त भए सदग्रंथ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि
करि प्रगट किए बहु पंथ॥
अर्थात-
कलियुग में पाप सब धर्मों को ग्रस लेगा
यानि धर्म एक छलावा बनकर रह जाएगा। सद्ग्रंथ लुप्त हो जाएंगे, दंभियों (अभिमानी)
धर्म उपदेशक, कथावाचक अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत-से पंथ-धर्म प्रकट
कर देंगे।
【2 】दोहा
मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा।
पंडित सोइ जो गाल बजावा॥
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई।
ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥
अर्थात-
जिसको जो अच्छा लगेगा, वही धर्म का मार्ग
बन जाएगा। जो डींग मारेगा वही पंडित या
विद्वान कहलायेगा। जो मिथ्या, झूठा, फरेबी, धोखेबाज एवं लालची होगा या आडंबर रचेगा, और जो दंभ अहंकार में रत होगा, उसी को सब कोई संत कहेंगे।
【3】दोहा
सोइ सयान जो परधन हारी।
जो कर दंभ सो बड़ आचारी॥
जो कह झूँठ मसखरी जाना।
कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना॥
अर्थात-
जो किसी भी प्रकार से, मीठी वाणी से,
अपनापन दिखाकर, जिस किसी प्रकार से भी दूसरे का धन हरण कर लेंगे, वही बुद्धिमान कहलायेंगे। जो जितना अहंकार से भर होगा, वही बड़ा आचारी होगा। अनंत श्री, महामंडलेश्वर की उपाधि से विभूषित होगा। जो झूठ हमेशा
भगवान के नाम पर झूठ बोलेगा और हँसी-दिल्लगी करना जानता होगा कलियुग में वही गुणवान कहा जाएगा।
【4】दोहा
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी।
कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी॥
जाकें नख अरु जटा बिसाला।
सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥
अर्थात-.
धर्म के ठेकेदार आचारहीन, चरित्रहीन होगा और वेदमार्ग को छोड़ेकर भेड़ मार्ग अपनाने लगेंगे। कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैराग्यवान
होगा, जिसके बड़े-बड़े नाखून और लंबी-लंबी जटाएँ हैं। कलियुग में लोग उसे ही प्रसिद्ध तपस्वी मानकर पूजेंगे।
सोरठा-
जे अपकारी चार तिन्ह
कर गौरव मान्य तेइ।
मन क्रम बचन लबार तेइ
बकता कलिकाल महुँ॥
अर्थात-
जिनके आचरण दूसरों का अपकार (अहित) करनेवाले होंगे, उन्हीं का बड़ा गौरव होगा।
नाम, यश-कीर्ति होगी और वे ही सम्मान के योग्य होंगे, जो मन, वचन और कर्म से लबार (झूठ बकने वाले) हैं, वे ही कलियुग में ज्ञानी तथा
बेहतरीन वक्ता माने जाएंगे।
छन्द-
बहु दाम सँवारहिं धाम जती।
बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती॥
तपसी धनवंत दरिद्र गृही।
कलि कौतुक तात न जात कही॥
अर्थात-
संन्यासी बहुत धन लगाकर घर यानि
आश्रम सजा कर रखेंगे। अपने भक्तों को बहुत सुख-सुविधा देंगे। उनमें वैराग्य नहीं रहेगा।
सन्त-महात्मा विषयों में लिप्त हो जाएंगे।
तपस्वी धनवान होकर, गृहस्थ दरिद्र बन जाएंगे।
चेले हमेशा भ्रमित रहेंगे।
हे तात! कलियुग की लीला कुछ कही नहीं जाती।
नर पीड़ित रोग न भोग कहीं।
अभिमान बिरोध अकारन हीं॥
लघु जीवन संबदु पंच दसा।
कलपांत न नास गुमानु असा॥
अर्थात-
मनुष्य असाध्य रोगों से पीड़ित हो जाएगा।
भोग (सुख) कहीं नहीं बचेगा।
बिना किसी कारण के ही
अभिमान और विरोध करेंगे। दस-पाँच वर्ष का थोड़ा-सा जीवन बचेगा। परंतु घमंड ऐसा हो जाएगा, मानो कल्पांत (प्रलय) होने पर भी उनका नाश नहीं होगा।
कृपया अपनी आत्मा को ध्यान का जल देकर
वृक्ष की भांति सींचे। ज्यादा चमत्कार के चक्कर न पड़े। केवल महादेव की शरण में जाकर किसी भी पुराने शिवालय का जीर्णोद्वार कराएं।
शिव मन्दिर की साफ-सफाई करें।
प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठकर, स्नान-ध्यान के पश्चात राहुकी तेल के 2 दीपक जलाकर
!!ॐ नमः शिवाय!!
मन्त्र की कम से कम 2 माला जाप करें।
यदि किसी तरह का डर, भय,
भ्रम तनांव रहता हो, तो
5 दीपक राहुकी तेल के जलाकर
!!ॐ शम्भूतेजसे नमः शिवाय!
की 5 माला 5 दिन तक नियमित करें।
यह विधान सभी रुकावट दूर करता है।
शरीर कमजोर हो, नींद नहीं आती,
मन उचित जाता हो, तनांव रहता हो, मानसिक अशांति
बनी रहती हो, तो
3 महीने दिन में 2 से 3 बार दूध के साथ लेवें।
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