श्रंगार के प्रेरक कामदेव के कारण स्त्रियों को सजने संवरने की इच्छा रहती है। लेकिन याद रखें स्वास्थ्य ही सुंदरता है… amrutam

सुंदरता, खूबसूरती की चिन्ता को मिटाएगा यह लेख
प्राचीन भारतीय परिवेश में युवतियां ‘उबटन (उद्धर्वन) का महत्त्व भली-भांति जानती थीं, फलस्वरूप वे ‘तन्वंगी’ हुआ करती थीं। आयुर्वेद महर्षि शांगर्धर ने योग रत्नाकर ग्रंथ में सुंदरता वृद्धि के लिए उबटन और कुमकुमादि तेलम की महिमा इस प्रकार बतलायी है
‘उद्धर्तनं कफहरं भेदसः प्रविलायनम्। स्थिरीकरणमंगानां त्वक्प्रसादकरं परम्॥
अर्थात उबटन कफ को हरता है, मेद (मोटापन) को घटाता है, अंगों को स्थिर (सबल) बनाता है और त्वचा को अत्यंत कांतियुक्त खूबसूरत बनाता है।
नारी नर्क की तरफ जा रही है
वर्तमान दूषित युग के वातावरण में यूं तो सौंदर्य की दौड़ में आज की नारी प्राचीन भारतीय नारी से तथाकथित रूप में आगे है, मगर सचाई तो यह है कि अब वह आत्मघाती-सौंदर्य की उपासना में बेतहाशा दौड़ रही है।  विविध रसायनिक परफ्यूम, पाउडर, केमिकल से निर्मित लिपस्टिक, बेतरतीब ढंग से की गयी डाइटिंग, नींबू-पानी, योग, लाइट सूप एवं सलाद के अभिनव प्रयोगों से क्या वह नैसर्गिक एवं संतुलित सौंदर्याभिवर्धन करने में समर्थ हो रही है। नैसर्गिक सौंदर्य प्रसाधनों से निरंतर बढ़ती हुई दूरियों के कारण उसका स्वास्थ्य एवं सौंदर्य दोनों चरमरा रहे हैं। भारतीय परिवेश में हल्दी, चंदन, गुलाब जल, केवड़ा-जल, मेंहदी का महत्त्व नकार पाना कदाचित असंभव ही है। आयुर्वेद के सिद्ध ऋषि-महर्षियों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व प्रणीत हमारी स्वदेशी चिकित्सा पद्धति ‘आयुर्वेद’ के ग्रंथों में भी सौंदर्य प्रसाधनों का यत्र-तत्र उल्लेख मिलता है।  प्राचीन भारत में चेहरे का सौंदर्य बरकरार रखने तथा उत्पन्न हुई विकृतियों को दूर करने के लिए चिकित्सा व्यवस्था भी सुलभ थी।
चेहरे को चमकाने वाले प्राकृतिक घटक द्रव्य
 युवतियां चेहरे की झाइयों को दूर करने के लिए सरसों, वच, लोध व सैंधा नमक का लेप तथा सफेद घोड़े के खुर की भस्म, आक का दूध, हल्दी तथा मक्खन का लेप किया करती थी।
मुंहासे मिटाने का घरेलू तरीका
मुंहासों के निवारणार्थ लोध, धनिया, वच, गोरोचन तथा मरिच का लेप प्रचलित था। प्राचीन भारतीय रूपसियों के सौंदर्य प्रसाधन अनूठे रहे हैं; इस आधार पर उनके अप्रतिम सौंदर्य की कल्पना की जा सकती है।  प्रसंगवश यहां पर यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि हमारे पूर्वजों और महिलाओं को सौंदर्य प्रसाधनों का सांगोपांग महत्त्व ज्ञात था। पुष्पों, वस्त्रों व रत्नों को धारण करने से जीवाणुओं का संक्रमण न होने का तथ्य आयुर्वेदाचार्य वाग्भट ने प्रतिपादित किया था।  ‘चंदन‘ का अंगराग बनाते समय उसमें सुगंध के लिए अन्यान्य द्रव्य भी मिलाये जाते थे । आज के सौंदर्य प्रसाधनों के प्रति हमारी ज्ञान-शून्यता जैसी स्थिति, प्राचीन भारतीय परिवेश में नहीं थी। नैसर्गिक प्रसाधनों से लाभ ही लाभ मिलते थे, इतने दुष्प्रभाव भी नहीं होते थे। क्योंकि उस काल में सारी सौंदर्य चिकित्सा मानवता आधारित थी।
 
क्रीड़ा करती युवतियों के श्रृंगार
सुंदर दिखने का मोह किसे नहीं है? श्रृंगार के प्रेरक कामदेव की कामवासना के प्रभाव से स्त्री -पुरुष, तो क्या, प्रकृति भी नहीं बच पाती?  वह भी समय-समय पर रंग-बिरंगे पुष्पों से अपना श्रृंगार करती है। श्रृंगार के लिए आवश्यकता होती है, प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य-प्रसाधनों की।  यूं तो आज तरह-तरह के क्रीम-पाउडर, फेस-पेक, लिपस्टिक, गजरे इत्यादि अन्यान्य सौंदर्य प्रसाधक सामग्री से दुनिया का बाजार भरा है। ऑनलाइन ब्रांडों की भरमार है। लेकिन चेहरा पोतने से महंगी क्रीम लगाने से खूबसूरती नहीं बढ़ने वाली महिलाओं को अंदरूनी इलाज भी जरूरी हैं। क्योंकि आज सोम रोग यानि पीसीओडी अथवा पीसीओएस, श्वेत, रक्त प्रदर और लिकोरिया जैसे गुप्त रोग से 10 में से 5 महिला जूझ रही हैं।
यह रखें सुंदरता ऊपर से नहीं अंदरूनी अंगों के स्वस्थ्य रहने से आयेगी।
प्राचीन काल में प्रत्येक नारी अपने घर में दशमूल क्वाथ, अशोक छाल का काढ़ा, शतावर, अश्वगंधा, त्रिफला चूर्ण आदि हमेशा रखती थी और सप्ताह में 2 से 3 बार उपयोग कर 60 साल की आयु तक स्वस्थ्य रहती थी। स्मरण होगा पूर्व समय में 50 वर्ष की आयु तक की महिलाएं गर्भवती हो जाती थी और 60 से पहले मासिक धर्म या माहवारी नहीं रुकती थी। ये सब खानपान के ज्ञान के कारण संभव था।
आज मार्केट में उपलब्ध सभी सौंदर्य उत्पाद खतरनाक रसायनिक विधि से निर्मित हो रहे हैं, जो शुरू में, तो सुंदरता का सुरूर चढ़ा देते हैं और बाद में
चेहरा बर्बाद कर हीनभावना ग्रस्त कर देते हैं।
प्राचीन भारत में भी सौंदर्य प्रसाधनों की कोई कमी नहीं थी और हमारा प्राचीन सौंदर्य प्रसाधनों का ज्ञान आज से कहीं अधिक पल्लवित पुष्पित था।
महाकवि कालिदास के ‘मेघदूत’ में वर्णित सौंदर्य प्रसाधन विशेष उल्लेखनीय हैं। कालिदास काल में स्त्री व पुरुषों का श्रृंगार पुष्पों के बिना पूर्णता प्राप्त नहीं करता था। स्त्रियां रंग-बिरंगे पुष्पों व पत्तों के दलों, महावर इत्यादि प्रसाधन द्रव्यों का उपयोग किया करती थीं। कुंवारी युवतियां भी अपनी सजावट में फूलों का उपयोग करती थीं। ‘
मेघदूत‘ में अलकानगरी की स्त्रियों को हाथ में कमल लिये, शिरीष के पुष्प को कर्णाभूषण बनाये और बालों के बीच में नीप या कदंब पुष्पों को लगाये हुए, वर्णित किया गया है कि अलकापुरी की नारियों के सिंगार अनंत हैं।
नारियां बदलती ऋतुओं के फूलों से अपना श्रृंगार करती हैं। हाथ में वे लीला कमल डंडी के साथ खिला या संपुट कमल धारण करती हैं।
घुंघराले पतले बालों में सफेद जूही के फूल गूंथती हैं। आलता लगे लाल ओष्ठों एवं गालों पर लोध का चूर्ण मलकर वे उन्हें पीताभ कर लेती हैं। जूड़े के फंदे में वे नये कुरबक के फूल पहनती हैं। कानों में सुंदर सिरस के फूल धारण करती हैं और वर्षागम पर वे अपनी मांग कदंबपुष्पों से सजाती हैं ।
कालिदास ने अंग-राग एवं लेपनों का वर्णन भी किया है । ‘मेघदूत‘ का यक्ष मेघ से कहता है कि वह उज्जयिनी में महाकाल शिवजी के मंदिर में जाए, जहां पर कमलों के मकरंद से सुरभित गंधवती नदी में क्रीड़ा करती युवतियों के अंग से धुल-घुलकर छूटे अंगरागादि विलेपनों से बसी गीली हवा उस पवित्र धाम के उपवन को झकझोर देती होगी।
केशों में धूप
नारियां केश-वासने के लिए सुगंधित धूप के धुएं का प्रयोग किया करती थीं। उल्लेख है कि उज्जयिनी में सुख के साधन अनेक हैं। वहां अटारियों की खिड़कियों की जालियों से निकलता नारियों के केश वासनेवाले धूप का धुंआ तुम्हारे श्यामल शरीर को पुष्ट करेगा ।
साहित्य में सुंदरता 
प्राचीन भारतीय सौंदर्य प्रसाधनों का प्रसंग बाणभट्ट की ‘कादम्बरी‘ व ‘हर्षचरित‘ के संदर्भों के उल्लेख के बिना भी अधूरा ही जान पड़ता है। ‘
बाण‘ के काल में स्त्रियां व पुरुष दोनों ही सौंदर्य-प्रसाधनों के रूप में पुष्पों को धारण करते थे। युवतियां कानों में, केशपाश में तथा सिर पर विविध पुष्प, मंजरी, पंखुड़ी तथा पल्लव धारण करती थीं । ‘हर्षचरित‘ में शिरीष-पुष्प के गुच्छों से ‘कर्णपूर’ बनाये जाने का उल्लेख मिलता है । कानों में उत्पल पहनना भी स्त्रियों को प्रिय था।
स्त्रियां कान में कमल या कुमुद की पंखुड़ियां भी धारण करती थीं, इसका स्पष्ट उल्लेख राजा ‘कादम्बरी‘ के श्रीमंडप में स्थित कन्याओं ने कानों में अशोक के पल्लव धारण किये थे। –
प्रसाधन‘ में अनेकानेक वानस्पतिक द्रव्यों का प्रयोग होता था, जैसे चंदन, अगरु, कुंकम, कर्पूर। प्रत्येक अवसर पर, चाहे वह मांगलिक हो या सुरत क्रीड़ा, चंदन का अंगराग लगाया जाता था। स्त्री व पुरुष दोनों को ही अंगराग लगाना पसंद था। ‘कादम्बरी’ में स्पष्ट वर्णन मिलता है कि पंपा-सरोवर के किनारे पर वनराज पुलिंद की सुंदर नारियां, सरोवर के जल को चंदन- चर्चित देहों से मलिन कर रही थीं।
आज के सौंदर्य प्रसाधनों के प्रति हमारी ज्ञान-शून्यता जैसी स्थिति प्राचीन भारतीय परिवेश में नहीं थी । नैसर्गिक प्रसाधनों से लाभ ही लाभ मिलते थे। तारापीड के जल-क्रीड़ा वर्णन में मिलता है कि ‘उस दीर्घिका में रमणियों द्वारा कान में धारण किये गये नील कुमुद के दल तैर रहे थे। युवतियां केशपाश में भी पुष्प तथा पल्लव लगाती थीं । सिद्धों की स्त्रियां बंधे हुए केशपाश में ‘मल्लिका’ के पुष्प लगाती थीं। बंधे हुए केशपाश में तमाल के पल्लव लगाये जाने का भी उल्लेख है। स्थाणीश्वर की स्त्रियां भी कानों में तमालपत्रों के अवतंस धारण करती थीं ।
‘कादम्बरी‘ में वर्णन आता है कि कुछ वृक्षों के पल्लव भी कर्णाभूषणों के रूप में प्रयुक्त होते । इनमें प्रमुख थे— अशोक और तमाल ।
स्तनों में लगती थी चंदन का लेप
उस समय स्तनों पर चंदन का विलेपन करके, उस पर कर्पूर की धूलि छिड़कने का भी प्रचलन था। स्तनों पर भी कृष्णागुरु से पत्र- भंग बनाये जाते थे। चंदन के अतिरिक्त स्त्रियां कुंकुम का अंगराग भी लगाती थीं। युवतियां सजावट के लिए कपोलों पर कुंकुम से पत्रलता या पत्रभंग भी बनाती थीं। इस कार्य के लिए कुंकुम के अतिरिक्त ‘कृष्णागुरु’ का प्रयोग होने का भी उल्लेख मिलता है।
युवतियां ललाट पर चंदन तिलक लगाती थीं। कपोलों पर विशेषक बनाने के लिए भी चंदन का प्रयोग किया जाता था। विवाह के अवसर पर उबटन लगाने का भी प्रचलन था। राज्यश्री के विवाह के अवसर पर ‘बलाशना’ औषधियों को गाय के घी में पकाकर, और उसे पीसे हुए कुंकुम में मिलाकर उबटन व सुंदरता बढ़ानेवाला मुखालेपन त्वरित उबटन तैयार किया जाता था।
क्या आज के समय में यह सब संभव है –
भारत की लाखों वर्ष प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों में सौंदर्य निखार घरेलू प्रयोगों का वर्णन है। लेकिन जड़ी बूटियों की शुद्धता, उसकी पहचान और परख के बिना वे लाभकारी सिद्ध नहीं हो सकतीं। अतः अमृतम ने अति प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन, अनुसंधान कर अनेक असर्दायक उत्पादों का निर्माण किया है। इसमें नारी सौंदर्य माल्ट और कैप्सूल अंदरूनी तकलीफों से निजात दिलाता है।
किसी भी तरह के स्त्री रोगों में यह विशेष कारगर ओषधि है।
Amrutam Kumkumadi oil चेहरा के सभी दाग धब्बे, मुंहासे आदि साफ कर मुख की आभा निखरता है।
कुंतल केयर हर्बल हेयर स्पा, hemp Spa, कुंतल केयर माल्ट, शैम्पू, हेयर ऑयल ये हेयर बास्केट सभी केश विकारों को जड़ से मिटाने की सर्वश्रेष्ठ ओषधि है।
अमृतम द्वारा लगभग 225 आयुर्वेदिक ओषधियां का निर्माण किया है, जिसमें 35 के करीब केवल महिलाएं से संबंधित हैं।
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