अनार के फायदे और छिलके का उपयोग !

अनार के गुण और प्रयोग –

  • अनार हृथ, ग्राही, रोचक, रक्तशोषक एवं शीतल है । इसकी छाल अत्यन्त ग्राही एवं कृमिघ्न होती है। यह विशेष रूप से स्फीत कृमि ( Tape worm ) में लाम दायक होती है।
  • कृमि के लिए १ छटाक ताजी छाल को २० छटाक जल में उबाल कर, आधा शेष रहने पर, छानकर १, १ छटाक प्रत्येक आधे घंटे पर, ४ बार खाली पेट पिलावें तथा बाद में एरंडतेल दें।
  • अतिसार तथा संग्रहणी में भी छाक का उपयोग किया जाता है।
  • अनार फल का छिलका अत्यन्त ग्राही होने से, अतिसार प्रवाहिका में इसका क्वाथ पिलाते हैं।
  • अनार के संपूर्ण फल को जरा भूनकर, कूटकर, रस निकाल उसका भी उपयोग इनमें करते हैं ।
  • अनारदाना अनेक आयुर्वेदिक औषधियों में इस्तेमाल होता है। विशेषकर पेट साफ करने वाली दवाइयों में।
  • आयुर्वेद के सबसे बहुमूल्य महंगे फेस ऑयल KumKumadi oil में अनार के छिलके का मिश्रण किया जाता है।
  • केशर को कुमकुम कहते हैं। इसी से ही कुमकुमादि फेस तेल बनाया जाता है।
  • एक महीने के इस्तेमाल से यह चेहरे के कील मुहांसे, दाग धब्बे, काले निशान, झुर्रिया को जड़ से मिटा देता है।
  • अधेड़ होने वाली महिलाओं को कुमकुमादी तेल से प्रत्येक शनिवार मालिश करने से उनका यौन पुनः खिल उठता है। ऐसा महर्षि अंगारक ने योग रत्नाकर ग्रंथ में लिखा है।
  • इस 25 ML तेल की कीमत 3249/ है। इसे केवल
  • दुनिया के सारे फलों में अनार ही एक ऐसा फल है, जो कभी भी कोई नुकसान नहीं करता।
  • बच्चों से लेकर बुद्धों तक, स्त्री, पुरुष सबके लिए हितकारी ही नही, चमत्कारी भी है।
  • अनार के दाने रात को भी खा सकते हैं। लेकिन द्रव्यगुण विज्ञान के मुताबिक रात को अनार का जूस हानिप्रद होता है।
  • अनार के छिलके चेहरा साफ करने में उपयोगी हैं।
  • अनार पेट के कीड़े भी मरता है अगर अनार के लाल ताजी दाने के साथ सेंधा नमक और काली।ई का पाउडर मिलाकर खिलाएं।
  • अनार हीमोग्लोबिन बढ़ाने में भी उपयोगी है।
  • अनार का जूस आंतों की सफाई करने में कारगर है और मधुमेह रोगियों इसका सेवन सुबह खाली पेट करना चाहिए।
  • आयुर्वेद के बहुत प्राचीन शास्त्र भावप्राकाश निघंटू, आयुर्वेदिक रहस्य, फलों का इतिहास आदि किताबों में अनार दाड़म के नाम से मिलता है।
  • अनार के बारे में ५००० साल पुरानी एक हस्तलिखित पांडुलिपि में संस्कृत का श्लोक पठनीय है। अनार वृक्ष का चित्र, जो हमारे बगीचे में लगा है।

अथ तत्फलभेदानां गुणानाह

तत् स्वादु त्रिदोषघ्नं वृड्दाहज्वरनाशनम्॥

हृत्कण्ठमुखगन्धनं तर्पणं शुक्रलं लघु।

कषायानुरसं ग्राहि स्निग्धं मेघाबलावहम्॥

स्वाइग्लं दीपनं रुच्यं किञ्चिपित्तकरं लघु।

अम्लन्तु पित्तजनकमामं वातकफापहम्॥

  • अर्थात मीठे अनार – आरम्भ में मीठे अन्त में कसैले, सन्तर्पण करने वाले, शुक्रजनक, लघु, ग्राही, स्निग्ध, मेधा तथा बलवर्धक एवम् – त्रिदोष, तृषा, दाह, ज्वर, हृदय तथा कण्ठ-सम्बन्धी रोग, और मुख के दुर्गन्ध को दूर करने वाले होते हैं ।
  • कुछ मीठे कुछ खटटे अनार – अग्निदीपक, रुचिजनक, लघु तथा किंचित् वित्तकारक होते हैं | खट्टे अनार-अम्ल रसयुक्त, पित्तजनक एवम्-आम, वात तथा कफ के नाशक होते हैं।

अथ दाडिमः ( अनार ) । तस्य नामानि तत्फलमैदाँयाह

दाडिमः करक, दन्तबीजो लोहितपुष्पकः।

तत्फलं त्रिविधं स्वादु स्वाद्वम्लं केवलाम्लकम्॥ –

अनार के संस्कृत नाम – दाडिम, करक, दन्तबीज तथा लोहितपुष्पक ये सब हैं।

  • अनार फल के भेद–अनार के फल स्वाद में तीन प्रकार के होते हैं। ( १ ) कोई मधुर रसयुक्त, ( २ ) कोई मधुर तथा अम्ल रसयुक्त ( ३ ) और कोई केवल अम्ल ही होते हैं ॥

अनार के विभिन्न भाषाओं में क्या नाम हैं?

  • हिंदी में – अनार, दाड़िम।
  • बंगाली में – दाडिम, डालिम गाछ।
  • मराठी में – डाळिम्ब।
  • गुकराती में – दाड़म | कन्नड़ में दालिम्ब।
  • तेलगु–दालिम्बकाया। ता० – मादलै, मडलै, मडलम | अं० – Pomegranate (पोमैग्रेनेट् ) । ले०-Punica granatum Linn. ( युनिका ग्रॅनेटम् ) | Fam. Punicaceae ( प्युनिकेसी)।
  • अनार प्रायः सब प्रान्त की वाटिकाओं में अनार के वृक्ष लगाये जाते हैं।
  • अनार यह हिमालय में ३ से ६ हजार फीट तक तथा अफगानिस्तान एवं फारस में बन्य रूप में पाया जाता है।
  • अनार का वृक्ष छोटा अनेक शाखा प्रशाखा करके झाड़दार होता है।
  • अनार के पत्ते – विपरीत या न्यूनाधिक त्रिपरीत या समूहबद्ध, अस्यन्त सूक्ष्म पारभासक छौंटों से युक्त, १-२॥ इञ्च लम्बे, आयताकार या अभिलट्वाकार, चिकने एवं आधार की तरफ छोटे वृन्त से युक्त रहते हैं।
  • अनार के फूल-अश्यन्त लाल रङ्ग के होते हैं । ल-गोल और छिलका मोटा होता है। फलों में सफेदीयुक्त लाल अथवा गुलाबी रङ्ग के अगणित नोकदार दाने होते हैं।
  • अनार फल सूखने पर वह अनारदाना कहलाता है।
  • अनार के संपूर्ण फल, जड़ या कांड की छाल, फल की छाल एवं स्वरस आदि का उपयोग किया जाता है।
  • अनार का रासायनिक संगठन – फल के छिलके में पीतरंजक पदार्थ एवं गॅलोटॅनिक अम्ल ( Gallow tannic acid 28% ) रहता है । मूल की छाल में ००५ ०.९% तथा काण्डत्वक में ०५% क्षाराभ पाये जाते हैं जिनमें पेलेटीराइन ( Pelletierine ) मुख्य हैं। इनमें गॅलोटॅनिक अम्ल २२% होता है।
  •  राजा, महाराजा, रानी, फिल्म कलाकार और बहुत ही उच्च दर्ज के धनवान लोग उपयोग करते हैं।

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