कवच मुख्यतः सात प्रकार के हुआ करते हैं।
पहला कवच है, जिसे धारण करके राजा को युद्ध में घाव नहीं लगता था।
द्वितीय प्रकार का कवच है-ताबीज।
तृतीय प्रकार का कवच है-भाग्यवर्धक रत्न।
चतुर्थ प्रकार का कवच है-इष्ट, गुरु या शिव की कृपा।
पंचम प्रकार का कवच है-साधु-सन्त का आशीर्वाद। षष्ठम् प्रकार का कवच है-मन्त्रानुष्ठान।
सप्तम् प्रकार का कवच है-कवच पाठ।
सनातन धर्म में कवच का अत्यधिक महत्व है। कवच का उपयोग राजा लोग करते थे। राजाओं के युद्ध इतिहास की घटनायें हैं परन्तु कवच का प्रयोग तो आज भी होता है।
यह कवच कोई भी हो अर्थात लौकिक या पारलौकिक हो सभी विशेष कारगर होते हैं।
एक दुर्लभ ग्रंथ ‘उत्तर तन्त्र’ में शिवजी, भगवती के द्वारा पूछे जाने पर बताते हैं.
नामाः शत गुणं स्तोत्रं ध्यान तस्माच्छताधिकं । तस्माच्छताधिको मन्त्रः कवचं तच्छताधिकम्॥
अर्थात नाम से स्तोत्र सौ गुणा, स्तोत्र से अधिक ध्यान फलदायक होता है। ध्यान से सौ गुणा अधिक मन्त्र लाभ देते हैं और मन्त्र से भी सौ गुणा अधिक लाभ कवच दिया करते हैं
हमारी उपासना पद्धति में प्रायः स्तोत्र, कवच, शतनाम, सहस्रनाम, पद्धति, पटल व सम्बन्धित देवता का उपनिषद पढ़ा जाता है।
उत्तर तन्त्र में शिवजी ने समझाया है।
शतनाम या सहस्रनाम यदि सौ गुणा लाभ देता है, तो स्तोत्र १०० गुना, – शतनाम १० हजार गुना,
ध्यान १,००००० (एक लाख) गुना और कवच
१०,०००००० एक करोड़ गुना कवच का पाठ करने से प्राप्त होता है। गुरुमंत्र या गायत्री के जाप से एक अरब का फल मिलता है।
अतः एक और रहस्य समझना अनिवार्य है कि रात्रि काल में तीन प्रकार के प्रमुख लोग ही जागा करते हैं । यह तीन लोग हैं- रोगी, भोगी एवं योगी। रोगी रोग से पीड़ित होकर जागता है तो भोगी भोग की प्राप्ति के लिये जागता है परन्तु योगी का ध्येय पारलौकिक हुआ करता है।
अत: यह समय किसी भी प्रकार की ध्यान सिद्धि, ज्ञान सिद्धि, मन्त्र सिद्धि, यन्त्र सिद्धि, आत्म सिद्धि, देव व आसुरी सिद्धि, आदिक अनेक प्रकार की सिद्धियों के निमित्त रात्रि काल ही प्रमुख है जिसमें से सर्वसाधारण तो जानते व मानते ही हैं कि होली व दीपावली की रात्रि परम सिद्धि का दान दिया करती है।
आपको जब काली कवच सिद्ध करना हो, तो रात्रि काल के शान्त वातावरण में एक देशी घी का दीपक
जलाकर करें।
कवच का पाठ करने से पहले कुछ और भी आवश्यक तथ्य आपके जानने योग्य हैं, जिन्हें कि आप समझ लें
१. प्रातः काल के समय पूर्व दिशा की तरफ व संध्या या रात्रि के समय उत्तर दिशा की तरफ मुख करके पाठादि करने चाहिये।
२. सर्वप्रथम आसन बिछाना होगा। इसके लिए कम्बल का आसन प्रशस्त है। कुश का आसन भी प्रयोग किया जाता है।
३. आसन पर बैठकर अपने दाहिने गुरू की पूजा करें यदि आपने गुरु धारण या स्वीकार न किया हो तो शिवजी की पूजा करें। पूजा का तात्पर्य इतना है कि अपने दाहिने “ॐ गुरुवे नमः” से प्रणाम करें।
४. अपनी बाँई तरफ प्रातः काल के समय गणेश की व संध्या के समय क्षेत्रपाल की पूजा करें। कवच पाठ क्रिया से पूर्व निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें
सदा भवानी दाहिने, सन्मुख रहें गणेश।
पाँचों देव रक्षा करें। ब्रह्मा विष्णु महेश॥
इसके बाद अपने हृदय में मां महाकाली एंव अपने सदगुरु का ध्यान करें।
अब शिरोमण्डल में गुरु का ध्यान करें। हृदय में देवता का ध्यान करें। जिह्वा पर सरस्वती का ध्यान करें सात बार प्रणव यानि ॐ का उच्चारण करें। अपने शिरोमण्डल पर ‘ह्रीं’ के दस जप कर पाठ का शुभारम्भ करें। हथवमें जेल लेकर विनियोग करें –
॥विनियोग मन्त्र॥ ॐ अस्त्र श्री काली कवचस्य भैरव ऋषिर्गायत्री छंदः, श्री काली देवता सद्यः शत्रु हननार्थे पाठे विनियोगः।
अर्थात – मैं मां काली कवच का पाठ अपने शत्रु का हनन यानि श्त्रुनाश के लिए कर रहा हूं । इस कवच के भैरव ऋषि हैं। गायत्री छन्द है एवं इसके देवता स्वयं महाकाली जी हैं।
॥काली ध्यानम्॥ मां काली का ध्यान करें….
ध्यात्वा काली महामाया त्रिनेत्रां बहुरूपिणीम्,
चतुर्भुजां लोलजिह्वां पूर्ण चन्द्र निभाननाम्।१।
अर्थात जिन मां महाकाली के तीन नेत्र हैं, जिनके अनगिनत रूप हैं, जिनकी चार भुजाएँ हैं, लाल जीभ हैं तथा जो पूर्ण चंद्र के समान कांतिमान हैं। मैं ऐसा ध्यान करता हूं।
नीलोत्पलदलश्यामां शत्रुसंघ विदारिणीम्।
नरमुण्डं तथा खड़गं कमलं वरदं तथा। २।
अर्थात वो नील कमल के सदृश श्यामावर्णा हैं। शत्रु के समूह नाश करने वाली हैं। इन्होंने खड़ग, कमल, नरमुण्ड तथा वरदान देने के निमित्त हस्त मुद्रा धारण की हुई है।
विभ्राणां रक्तवसनां घोरदंस्ट्रा स्वरूपिणीम्। अट्टाहासनिरतां सर्वदा च दिगम्बराम्। ३।
अर्थात लाल वस्त्र धारण किए, भयंकर दाँतों वाली जो कि बड़े जोर से अट्टाहास करती हैं एवं जो सदा नग्न रहती हैं।
शवासनस्थितां देवी मुण्डमाला विभूिषिताम्।
इति ध्यात्वा महादेवीं ततस्तु कवचं पठेत्। ४।
अर्थात मां काली शव को आसन बना कर बैठती है तथा जो मुण्डों की माला धारण करती हैं। (इस प्रकार से ध्यान करके महादेवी का कवच पढ़ना आरम्भ करें
॥शिव उवाचः॥ रावण के द्वारा पूछे जाने पर यह कवच शिवजी ने रावण को गया था।
ॐ कालिका घोर रूपाढ्या सर्वकाम प्रदा शुभा,
सर्वं देव स्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु मे। १।
अर्थात हे घोर रूप को धारण करने वाली, सर्व कामनाओं को देने सदा शुभ करने वाली एवं समस्त देवों के द्वारा स्तुति किए जाने वाली कालिका देवी मेरे शत्रुओं का नाश करो।
ह्रीं ह्रीं स्वरूपिणी चैव ह्रीं ह्रीं सं हं गिनी तथा,
ह्रीं ह्रीं क्षै क्षौं स्वरूपा सा सर्वदा शत्रु नाशिनी।२।
अर्थात ह्रीं ह्रीं स्वरूप वाली, ह्रीं ह्रीं सं हं बीज रूपा तथा ह्रीं ह्रीं क्षै क्षी स्वरूप वाली माता सर्वदा ही शत्रुओं का नाश करती रहें।
श्रीं ह्रीं ऐं रूपिणी देवी भव बन्ध विमोचिनी,
यथा शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुरः।३।
श्री अर्थात लक्ष्मी, ह्रीं अर्थात शक्ति, ऐं अर्थात सरस्वती रूपिणी देवी जो भव बन्धनों से स्वतन्त्र कर देती हैं। आपने जिस भाँति से शुम्भ निशुम्भ का वध किया था।
बैरिनाशाय वन्दे ताँ कालिकाँशंकर प्रियाम्।
ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही.नारसिंहिका।४।
अर्थात गायत्री रूपी, पार्वती रूपी, लक्ष्मी रूपी, वाराही व नारसिंही आदिक अनेक रूप धारण करने वाली शिवजी को प्रिय लगने वाली कालिके! मैं आपको नमस्कार करता हूं। आप मेरे शत्रुओं का नाश कीजिये।
कौमारी श्रीश्चचामुण्डाखाद्ययन्तु मम द्विषान्।
सुरेश्वरी घोररूपा चण्ड मुण्ड विनाशिनी। ५।
अर्थात कुमारी, लक्ष्मी (कमला), चामुण्डा मुझसे द्वेष करने वालों का भक्षण करो। इन्द्राणी, घोर रूपा चण्ड मुण्ड का विनाश करने वाली।
मुण्डमाला वृतांगी च सर्वतः पातु माँ सदा,
ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंष्टे रुधिर प्रिये।६।
अर्थात ह्रीं ह्रीं अर्थात बारम्बार शक्ति प्रदान करने वाली, विकराल दांतों वाली, रुधिर पान से प्रसन्न होने वाली मुण्डमाला को पहनने वाली कालिके माता सदा सर्वदा मेरी रक्षा करो।
॥ माला मन्त्र॥ बहुत ही ध्यानपूर्वक पढ़े …
ॐ रुधिर पूर्ण वक्त्रे च रुधिरावितास्तिनी मम शत्रुन खाद्य खाद्य, हिंसय हिंसय, मारय मारय, भिन्धि भिन्धि छिन्धि छिन्धि, उच्चाटय उच्चाटय, द्रावय द्रावय, शोषय, शोषय यातुधानिके चामुंडे ह्रीं ह्रीं वाँ वीं कालिकायै सर्व शत्रून समर्पयामि स्वाहा,
ॐ जहि जहि, किटि किटि, किरि किरि, कटु कटु मर्दय मर्दय, य मोहय, हर हर मम् रिपुन् ध्वंसय, भक्षय भक्षय, त्रोटय त्रोटय मातु धानिका चामुण्डायै सर्व जनान, राज पुरुषान, राज श्रियं देहि देहि, नूतनं नूतनं धान्य जक्षय जक्षय क्षाँ क्षी हूं क्षौं क्षः स्वाहा।
॥फल श्रुति॥ काली कवच के पाठ से होंगे ये लाभ..
इत्येतत् कवचं दिव्यं कथितं तव रावणः, ये पठन्ति सदा भक्तया तेषाँ नश्यन्ति शत्रुवः। ७।
वैरिणः प्रलयं यान्ति व्याधिताशय भवन्ति हि, धनहीनः पुत्रहीनः पुत्रहीनः शत्रुदस्तय सर्वदा। ८।
सहस्त्र पठनात् सिद्धिः कवचस्य भवेत्तदा, ततः कार्याणि सिद्धयंति नान्यथा मम् भाषितम्।९।
अर्थात हे रावण! मैंने इस दिव्य कवच को तुम्हारे समक्ष कहा है। जो भी इस कवच का पाठ भक्ति पूर्वक नित्य करेगा, उसके शत्रुओं का नाश होगा। उसके शत्रु रोग से पीड़ित होंगे तथा धन पुत्रादि सुखों से वह हीन हो जायेंगे।
कलीक्वच एक हजार बार पढ़ने से सिद्धि हो जाता है। सिद्ध हो जाने पर मारण प्रयोग में सफलता मिलती है।
निवेदन-इसके पश्चात् सात श्लोक और भी हैं परन्तु उन्हें यहाँ नहीं दिया जा रहा क्योंकि वह पाठात्मक श्लोक न होकर शत्रु को मारने की प्रक्रिया बताने वाले श्लोक हैं। उनका पाठ करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अधिक जानकारी के लिए उड्डीश तन्त्र काली कवचम्
देखें।
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