तन मन को मजबूत बनाकर डिप्रेशन मिटाता है। करवा चौथ का व्रत !
करवा चौथ व्रत का विस्तृत विवरण वामन पुराण में पाया जाता है।
करवा चौथ, हड़ छठ, डाला छठ, ऋषि पंचमी, होई अष्टमी, संकट चौथ, भैया दौज, रक्षा बंधन, पुत्रता एकादशी, निर्जला ग्यारस आदि वर्ष में पड़ने वाले 64 व्रत ये सारे त्यौहार नारी की इसी साधना के कल्पाचारी माध्यम हैं। जिससे परिवार सुखपूर्वक जी सके।
ऋतु परिवर्तन के समय महिलाओं को अनेक विकार उत्पन्न होने लगते हैं और करवा चौथ का लंघन से वे तन मन से तंदरुस्ती का अनुभव करती हैं।
यह व्रत सौभाग्यवती (सधवा) स्त्रियाँ पूरे दिन निराहार रहकर इस व्रत में शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश जी और चन्द्रमा की पूजा कर मैन की चंचलता दूर करने की प्रार्थना करती हैं, ताकि मानसिक विकार, तनाव, चिंता और डिप्रेशन मिट सके।
सौभाग्यशाली स्त्रियां करवा चौथ की रात्रि में चन्द्रशेखर महादेव ईश्वर से अपने पति, पुत्र, पौत्र, सुख, सौभाग्य और धन-धान्य की कामना करती हैं। इस दिन चन्द्रमा की विशेष पूजा होती है।
स्त्रियाँ इस समय एक कथा भी कहती हैं। इस बात का बहुत ध्यान रखा जाता है कि जब चन्द्रमा जरा सा निकलना प्रारम्भ करता है, तो तत्काल व्रत रहने वाली स्त्रियाँ चन्द्रमा को अर्घ देती हैं। पूर्ण उदित चन्द्रमा को अर्घ देना शुभ नहीं माना जाता।
amrutam अमृतम पत्रिका अक्टूबर दीपावली महालक्ष्मी अंक 2010 से साभार
पुरुषों का पूरा वर्ष करवा ( कड़वा ) बीते, लेकिन करवा चौथ का दिन मिठास से भरा होता है ।
प्रतिवर्ष कार्तिक मास के अंधेरे पाख की चौथी तिथि (चौथ) को चन्द्रोदय की वेला में, नयी-नवेली दुल्हन की तरह सजी-बजी कुछ मुसकाती, कुछ शरमाती, मेरी एक मात्र पत्नी कमरे में प्रवेश करके कहती हैं, ‘यहाँ खड़े हो जाओ, तनिक तुम्हारे पैर छूलें।’ और पावं छूकर कुछ मीठा प्रसाद मेरे मुंह में डाल देती है, तो मैं ऊपर से नीचे तक पुलक उठता हूँ । मुझे लगा कि मेरा दाम्पत्य जीवन ताजा हो गया है ।
एक प्रकार से विचार किया जाए तो यह वार्षिक वैवाहिक वर्षगांठ है। करवा अनुष्ठान भी है, त्यौहार तथा उत्सव भी है।
प्रकृति का परम्परागत नियम भी कितना अद्भुत है। अक्सर सोचता हूँ कहां से आती है, करवा व्रती नारियों के चेहरे पर वह चमक?
दिनभर के उपवास से या उस दीपक के प्रकाश और करवा अनुष्ठान के कर्मकाण्ड से? जब पहाड़ों के पीछे से प्रकाश उभरने लगता है, तब दीपक के उस प्रकाश में एक अजीब तांत्रिक माहौल बनता है।
भारत में सर्वदा लिंग योनि की ही पूजा का महत्व प्राचीन काल से है, क्योंकि हम जिस लिंग स्वरूप शिवलिंग को पूजते है वह योनि में स्थित रहता है।
गोबर की गौरजा लिंग का ही प्रतीक मानते हैं। जिस जलहरी में शिवलिंग स्थित है। वह योनि स्वरूप है योनि लिंग का आधार है। लिंग
– योनि प्रजनन का माध्यम है। योनि जीवन धारण का आधार है। नारी उसी का प्रतीक है, जो प्रजनन को धारण करती है, वही पुरूष के दीर्घायु की कामना का कर्मकाण्ड साधने की अधिक उपयुक्त अधिकारी भी है।
चंद्रमा और माँ गौरा करवा के अनुष्ठान में चन्द्रमा और गौरा के साथसाथ पूजन का विधान क्यों? गौरा, शिव की अर्द्धांगिनी, अटल सुहाग का प्रतीक है। और चंद्र?
यदि गौरा से अटल सुहाग की कामना का भाव है तो संभवत: चंद्र से सोमरस की कमनीयता पान की कामना का भाव।
नारी ही इस कर्मकांडी कमनीयता की याचना क्यों करे? नारी से जुड़ी यह अपेक्षा कहीं उस जीवन द्वष्टि से जुड़ी जान पड़ती है, जिसमें कहा गया है
‘मर्द साठा, तबहूं पाठा ।’ अर्थात् मर्द साठ साल का होकर भी पट्ठा बना रहता है और नारी ?
सुहाग का मतलब है सौभाग्य। यदि पति नारी के सौभाग्य का आधार है, तो क्या पत्नी पति के सौभाग्य का आधार नहीं है? या, सौभाग्य में केवल एक ही हाथ से तालीं बजती है?
बात पुन: जीवन दृष्टि पर ठहर जाती है। बचपन में सतियों के किस्से सुनाकर मां यही निष्कर्ष निकालती थी, जो नारी पति के रहते मर जाए, उससे बढ़कर सुभागी कोई नहीं। कहावत भी है
‘पति मरै अभगिन का … सधवा मरै सभागिनँ ।
धर्म, अध्यात्म जीवन और भगवान प्याज के छिलकों की तरह है.. जैसे-जैसे इसकी परतें उतारेंगे आँसू आएंगे ही।
अतः भ्रमित न होकर अच्छे दिल से करवा चौथ मनाएं। इससे मन को ताकत और देह को शक्ति मिलती है।
हिंदुओं की हरेक परम्परा वैज्ञानिक है। बस खोज करना पड़ेगी।
हमें धरती पर जन्म लिया ये भी अंधविश्वास है। करवा चौथ एक स्वास्थ्य प्रेरक परम्परा है।
हिंदुओं के किसी भी पुनीत कृत्य को अंधविश्वास कहने का कोई मुख्य आधार या वैज्ञानिक वजह बताएं, तो भी ठीक है। आजकल लोगों के मुख पर कोई बंदिश नहीं है।
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