ब्रेन को कील की तरह मजबूत बनाकर डिप्रेशन हमेशा के लिए मिटा देगा ये वैदिक आर्टिकल !!

  • वेदमंत्राें से युक्त इस लेख को जरूर पढ़ना चाहिए। ये डिप्रेशन और दिमागी परेशानियों से मुक्ति दिलाकर भारतीय वेद, उपवेद और आयुर्वेद पर विश्वास जगाएगा।
  • Amrutam पत्रिका की यह वैदिक खोज आपके जीवन में उत्साह, उमंग का संचार कर जीवन को सात्विक बनाएगी और आप हमेशा स्वस्थ्य, प्रसन्न, खुश रहेंगे।
  • हालांकि डिप्रेशन पर लगातार शोध किया जा रहा है। अकेले अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने डिप्रेशन से बचाने और इस महा भयंकर रोग पर शोध पर 20 साल में 1 लाख 82 हजार करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं। लेकिन नतीजा शून्य निकला।
  • अब अमेरिका, यूरोपीय देश भारत के जंगलों में आदिवासियों के साथ अवसाद नाशक यदि बूटियों की खोज कर रहे हैं।
  • दुनिया के अनेक वैज्ञानिक बनारस यूनिवर्सिटी, गुजरात के जामनगर आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में अनुसंधान में जुटे हैं, ताकि डिप्रेशन से पूर्णतः मुक्ति मिल सके।

आयुर्वेद की तरफ रुख, भरोसा बढ़ा

  1. भारत की लाखों साल जड़ी बूटियों जैसे ज्योतिमति, शंखपुष्पी, चंदन, ब्राह्मी, रक्तचंदन, स्मृतिसागार रस, त्रिफला, हरड़ मुरब्बा, गुलकंद पर मस्तिष्क वैज्ञानिकों ने पुनः खोज आरंभ कर दी है।
  2. चरक संहिता, भावप्रकाध निघंटू, द्रव्यगुण विज्ञान, माधव निदान आदि हजारों आयुर्वेदिक ग्रंथों का फिर से अनुसंधान, अध्ययन किया जा रहा है।
  3. विष के वैज्ञानिक भी हैरान हैं आयुर्वेद के लाखों साल प्राचीन वेद मंत्र पढ़कर वेद का एक सूत्र में बूटियां बोलती हैं कि मैं ऋतम् हूं अर्थात अमृत हूं।
  4. मैं मानसिक, शारीरिक और भौतिक विकार का सर्वनाश कर देती हूं। हमारा जन्म शिव की जटाओं से हुआ है इसीलिए हम जटा जुट जड़ीबूटी हैं।
  5. महर्षि सुश्रुत ने एक श्लोक में कहा है कि ज्योतिष्मति, शंखपुष्पी, ब्राह्मी आदि ओषधियां बुद्धि वर्धक, तो हैं हीं।
  6. साथ यह दिमाग की सफाई कर भाग्य की तरंगे उत्पन्न करती हैं। अतः ये भाग्योदय कारक भी होती हैं, इन्हे सुबह रोज लेने से मन प्रसन्न रहता है।
  7. चक्रदत्त के अनुसार शंखपुष्पी स्मृति सागर रस के उपयोग से अहम यक्ष्मस्य यानि रोग की आत्मा उसी प्रकार (नश्यति) नष्ट होती है (यथा) जैसे मृत्यु से जी नष्ट हो जाता है।
  8. अर्थात् ओषधियाँ रोगों को इस तरह नष्ट करती हैं कि पुन: किसी भी प्रकार पनप नहीं पाते।

यस्यौषधीः प्रसर्पथाड्.गमड्ं. परुष्परुः।

ततो यक्ष्मं वि बाधध्व, उग्रो मध्यमशीरिव।।

  • हे ओषधियो । तुम (यस्य) जिसके (अड्. गमड्.गम्) अंग-अंगमें (परुष्परु:) गाँठ-गाँठ में (प्रसर्पथ) फैल जाती हो, उसके शरीर के प्रत्येक अड्ग से तथा मस्तिष्क प्रत्येक जोड़ से उसी प्रकार रोगों को दूर कर देती हो, जिस प्रकार शक्तिशाली राजा चोर को देश से बाहर निकाल देता है। अर्थात् ओषधियाँ शक्तिशाली राजा हैं और रोग चोर हैं। चोर राजा के सामने नहीं टिक सकता।
  • आयुर्वेद के इस संस्कृत श्लोक पर आधुनिक वैज्ञानिकों का बहुत भरोसा बढ़ा है।

साकं यक्ष्म प्र पत. चाषेण किकिदीविना।

साकं वातस्य ध्राज्या, साकं नश्य निहाकया।।

  • हे (यक्ष्म) रोग! तुम नीलकण्ठ, बाज, वायु और गोह के समान रोगी के शरीर से शीघ्र दूर हो जाओ।

अन्या वो अन्यामवं, त्वन्यान्यस्या उपावत।

ताः सर्वाः संविदाना, इदं मे प्रावता वचः।।

  • अर्थात हे ओषधियो! (वो-व:) तुममें से अन्य (पहली) अन्य (दूसरी) के पास, और (अन्या) दूसरी (अन्यस्याः) तीसरी के पास (उपावत) (अवतु) जावे। इस प्रकार सब ओषधियाँ (संविदाना) मिलकर (मे वच:) मेरे वचन की (प्रावता) रक्षा करें।
  • अर्थात् ओषधियों के सम्मिश्रण से मेरे मस्तिष्क, दिमाग के सभी रोग दूर हों।

याः फलिनीर्या अफला, अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः।

बृहस्पति – प्रसूतास, ता नो मुञ्चन्त्वंहसः।।

  • अर्थात (बृहस्पति-प्रसूता:) सभी ओषधियां गुरु बृहस्पति से उत्पन्न (अर्थात् बृहस्पति द्वारा खोजी गई या उगाई गई) जो ओषधियाँ फलवाली, बिना फलवाली, बिना पुष्पा वाली और जो फूलों वाली हों वे सब (नो) हमें (अहंस 🙂 रोगों से (मुञ्चन्तु) विश्व को मुक्त करें।)
  • अथैकादशो वर्गः।। मुञ्चन्तु मा शपथ्या। दथो वरुण्यादुत। अथो यमस्य पड्वीशात्, सर्वस्मादेवकिल्विंषात्।।
  • अर्थात ओषधियाँ मुझे ( या किसी भी रोगीको) (शपथ्यात्) झूठी कसम खाने के पाप से, ( उत वरुणात्) वरुण के पाश से, यम की (पड्वीशात्) बेड़ी से और (सर्वस्मात्) सभी देवों के प्रति किये जाने वाले पाप से (मुञ्चन्तु) मुक्त करो (दूर रखो)।
  • अर्थात् आयुर्वेद ओषधियाँ ऐसी भी होती हैं, जिनके उपयोग से मन का मानसिक संतुलन ठीक होता है।
  • ब्राह्मी, त्रिफला, मालकांगनी, शंखपुष्पी, हरड़ के सेवन से व्यक्ति इतना सात्विकी हो जाता है कि वह झूठी कसम नहीं खाता, जलोदर जुकाम आदि रोग नहीं होते, उसकी उम्र बढ़ जाती है और देवोंका सम्मान करने लगता है।

अवपतन्ती रवदन्, दिव ओषधयस्परि।

यं जीव-मश्नवाम है, न स रिष्याति पूरुषः।।

  • अर्थात ओषधिनों ने (दिव) स्वर्ग से नीचे (अवपतन्ती:) उतरते हुए (अवदन्) कहा था कि हम जिस जीवित व्यक्ति के अंदर (अश्नवाम है) प्रवेश कर जाती हैं, वह व्यक्ति ( न रिश्याति) नष्ट नहीं होता।
  • वेदों में औषधियों का आव्हान कर उनसे बीमारी दूर करने का निवेदन स्वयं भगवान शिव ने इस प्रकार किया है। देखें वेद की एक ऋषा

या ओषधीः सोमराज्ञीर्, बह्वीः शतविचक्षणाः।

तासां त्वमस्युत्तमारं कामाय शं हृदे।।

  • अर्थात जो ओषधियाँ सोमराज्ञी अर्थात् सोम राजा की प्रजाएँ हैं, वे अगणित है और वे (शत विचक्षणा:) सैकड़ों गुणों वाली हैं। (जो औषधि उपयोग की जानी है, उसे सर्वोत्तम स्वीकार करने की मानसिकता दृढ़ करनी होती है।
  • अतः कहो-) हे औषधि ! तुम उन सबमें सर्वोत्तम हो । तुम स्वस्थ रहने की हमारी अभिलाषाओं को पूर्ण करके मनको शान्ति दो ।

या ओषधी: सोमराज्ञीर्, विष्ठिता पृथिवीमनु।

बृहस्पति प्रसूता, अस्यै सं दत्त वीर्यम्।।

  • अर्थात जो ओषधियाँ सोमराजा की प्रजाएँ हैं, स्वर्ग से आकर पृथिवी पर फैली हैं, जो महादेव एवं बृहस्पतिसे उत्पन्न हैं, वे ओषधियाँ इस रोगी को (वीर्यम्) शक्ति दें।

मावो रिषत्खनिता, यस्मै चाहं खनामि।

वः द्विपच्चतुष्पदस्माकं सर्वमस्त्वनातुरम्।।

  • अर्थात ओषधियाँ उखाड़ या खोदकर लाने से पूर्व यह मन्त्र पढ़ने की परंपरा थी।
  • हे ओषधियो! ।।अहं वः खनिता।। अर्थात मैं तुम्हारा खोदने वाला हूँ। तुम मुझे (मारिषत्) नष्ट मत करना।
  • यस्मै अहं च वः खनामि और जिसके (जिनके) लिए तुम्हें खोदता हूँ, उन्हें भी नष्ट मत करना।
  • हमारे दो पैरों एवं चार पैरों वाले (पक्षी, पशु व मनुष्य) सभी जीव रोग रहित हों।

याश्चेद-मुपशृण्वन्ति, याश्च दूरंपरागताः।

सर्वा: संगत्य वीरुधो, ऽस्यै सं दत्त वीर्यम्।।

  • अर्थात जो ओषधियाँ मेरा यह स्तोत्र (उपशृण्वन्ति) सुन रही हैं अथवा जो दूर चली गई हैं वे सभी (संगत्य) एकत्र होकर इस रोगी को शक्ति प्रदान करें अर्थात् स्वस्थ करें।

ओषधयः सं वदन्ते, सोमेन सह राज्ञा।

यस्मै कृणोति ब्राह्मण, तं पारयामसि।।

  • हे राजन् राजा! सोमेन सह ओषधयः संवदन्ते अर्थात ओषधियाँ सोमराजा के साथ इस प्रकार बातचीत करती हैं- हे राजन् ! वैदिक स्तोत्रों का पाठ करने वाला ब्राह्मण जिसका (कृणोति) उपचार करता है हम उसीकी रक्षा करती हैं।

त्वमुत्तमास्योषघे, तव वृक्षा उपस्तयः ।

उपस्तिरस्तु सो ३ऽस्माकं, यो अस्मा अभिदासति।।

  • हे ओषधियो ! तुम सबसे श्रेष्ठ हो । सभी वृक्षों का महत्त्व तुमसे कम है। जो हमें (हमारे स्वास्थ्य को) हानि पहुँचाता है, वह हमसे निर्बल रहे, जिससे वह हमें कोई हानि न पहुँचा सके।

 

वेद मंत्र और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का सारांश:-

(१) पुरा ओषध्य: देवेभ्यः जाता:।

  1. अर्थात् परग्रहवासिनः देवाः (जाति विशेष:)
  2. अवनीमागत्य ओषधीनां बीजानि अवन्याः सप्ताधिकैकशतस्थानेषु अवपन् ।
  3. अर्थात पहले ओषधियाँ देवोंसे उत्पन्न हुईं। अर्थात् परग्रहवासी देवों (जाति विशेष) ने धरती पर आकर ओषधियों के बीज अवनी के एक सौ सात स्थानों में बोये ।

( २ ) ओषधयः मातुरिव रोगिणं पालयति।

  • अर्थात ओषधियाँ माता की तरह रोगीको पालती हैं।

( ३ ) ओषधमः पुष्पवत्यः फलवत्यश्च भवन्ति।

  • ओषधियाँ पुष्प व फलवाली होती हैं।

(४) वैद्यस्य सम्मानम् । वैद्य का सम्मान।

(५) या ओषधयः अश्वत्थे पलासे वा उद्भवन्ति

ता: निश्चिरूपेण लाभदायिकाः भवन्ति।

तासाम् उपयोग: गोदुग्धेन सह भवति।

  • अर्थात जो औषधियाँ पीपल और पलासके वृक्ष पर उत्पन्न होती हैं, वे निश्चित रूप से लाभदायिका होती हैं। उनका उपयोग गोदुग्ध के साथ होता है।

(६) तदा ब्राह्मणैव भिषजरभवन्त ब।

  • प्राचीन काल में ब्रह्मशी ऋषि मुनि ही ही चिकित्सक होते थे।

(७) तदा भिषज औषधीनाम् अस्तोमयन्।

  • तब चिकित्सक (वैद्य) औषधियों की स्तुति करते थे।

(८) ओषधयः निश्चतरूपेण सफला अभवन्।

  • ओषधियाँ निश्चित रूप से सफल होती थीं।

अब दुनिया आयुर्वेद के प्रति आकर्षित अमेरिका और पश्चिमी देशों के अलावा भारत में भी डिप्रेशन की आयुर्वेदिक दवा लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। पश्चिमी देशों में 10 से 15% लोग एंटीडिप्रेसेंट्स दवाओं का त्याग कर देशी उपचार अपना रहे हैं। USA अमेरिका में हर चौथा व्यक्ति पिछले एक दशक से एंटीडिप्रेसेंट्स दवाएं खा रहा है। ऐसी दवाएं खाने वालों की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है। इन दवाओं का असर और खतरनाक होता जाता है।

अंग्रेजी, एलोपैथिक के दुष्प्रभाव, साइड इफेक्ट

  • मानसिक रोगी, अवसाद ग्रस्त लोग और दिमागी परेशानियों के चलते जिसने भी अंग्रेजी मेडिसिन का इस्तेमाल किया, उन्हें चक्कर आना, चलते-चलते गिर जाना, अंदरूनी रक्तस्त्राव और सर्जरी के बाद खून का रिसाव जैसी समस्या एंटीडिप्रेसेंट्स दवाओं की वजह से बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं।
  • एंटीडिप्रेसेंट्स जेसी खतरनाक इन दवाओं का सेवन करने वाली केंसर, मधुमेह, थायराइड, हड्डी सुखना, नींद न आना आदि दिखते होने लगीं।
  • गर्भवती महिला के बच्चे के जन्मजात विकलांग होने की आशंका दो से तीन गुना बढ़ जाती है।
  • वैज्ञानिकों ने मना है कि अब हम पूरी तरह निष्फल होकर हताश हो चुके हैं। अब भारत का आयुर्वेद ही अंतिम सहारा है।
  • अवसाद, मस्तिष्क विकार, मानसिक अशांति, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, क्रोध, गहरी नींद न आना, अधीरता, हीनभावना, आत्मविश्वास में कमी, चिंता, भय, फिक्र, भ्रम आदि का शर्तिया इलाज केवल आयुर्वेद से ही संभव है।
  • आयुर्वेद के 5000 साल पुराने ग्रंथों का गहन अध्ययन, अनुसंधान, चिंतन करने के बाद मानसिक बीमारियों की एक हानिरहित ओषधि Amrutam , अमेजन, Amala Earth से मंगवा सकते हैं। ये
  • BRAINKEY Gold Malt और टेबलेट के नाम से दो दवाएं आती है। इन्हे कम से कम एक साल तक सेवन करने से माइंड डिटॉक्स हो जायेगा। गुगल से साभार

ब्रेन की गोल्ड के घटक द्रव्य और फायदे जाने

Brand Name Amrutam

  • Care Instruction Store in a cool and dry place and away from direct sunlight.

How To Use

Brainkey Gold Malt

  • Mix one or two (15-20 gms) tablespoons of Amrutam’s natural malt for memory in milk or warm water and then consume twice a day.
    Brainkey Gold Malt is not advisable for diabetic patients.
    Should be taken as directed by your physician.

Brainkey Tablets

  • Take one Brainkey tablet by Amrutam twice a day.

In the box Brainkey Gold Malt & Tablet

Ingredients घटक द्रव्य फार्मूला

  • Shankh pushpi 40 mg, Jatamansi 40 mg, Brahmi 20 mg, Jyotis mati 20 mg, Bach 25 mg, , Godanti bhasm 20 mg, Smrtisagar ras 10 mg, Mukta pisti 10 mg, Chandi bhasm 5 mg, Mulethi 20 mg, Tarkeshwar ras 10 mg, Swarnmakshik Bhasm 20 mg, Excipients Q.s.

Manufacturer Details

  • Amrutam Pharmaceuticals, [Purani Chawani, A.B. Road, Gwalior, Madhya Pradesh]

Package Preparation Days 2

  • Return Policy Returns/replacements are accepted for unused products only in case of defects, damages during delivery, missing, or wrong products delivered.

Shelf Life 18 Months

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