छोटी दीपावली एवं शिव जी का सिरदर्द

छोटी दीपावली की रात शिवरात्रि होती है। इसे कैसे मनाएं और उसका महत्व।

एक औघड़दानी शिवभक्त ने भगवान शिव की उपासना इस प्रकार भाव्य-विभोर होकर की है।

विशेष जानकारी…
छोटी दीपावली की रात मास शिवरात्रि
भी होती है। इसी दिन हनुमान जयंती भी
होती है। इसे नरक चौदस भी कहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने छोटी दीपावली
के दिन नरकासुर दैत्य का वध कर
16000 गोपिकाओं को मुक्त कराया था।
इस दिन का बहुत विशेष महत्व है। यह दिन
माँ महालक्ष्मी की बड़ी बहिन ज्येष्ठा यानि
दरिद्रा का उदभव दिवस भी है।
शिवपुराण के अनुसार इस दिन अमृतम द्वारा निर्मित “राहुकी तेल” के 27
नक्षत्र के सत्ताईस
दीपक शिवमंदिर में जलाने से उसके घर में एक वर्ष तक दरिद्रता या
दुर्भाग्य प्रवेश नहीं कर सकता क्यों कि
भोलेनाथ महा दरिद्रा ज्येष्ठा अपने पास रोके रखते हैं।
दीपावली की बहुत ही गूढ़ रहस्य की
बातें आगे दी जा रही हैं।
अमृतम पत्रिका पढ़ते रहें।

नटराज के नाटक….

धेला है न पल्ले,
खर्चीला है कुबेर ज्यों।
ऐसा गिरी मेला देव,
शम्भू अलबेला है।
माँगत भीख महेश फिरें,
घर में नहीं एकहु अन्न-अघेला है।
जो मुख एक तो पूर पड़े,
घर में मुख ही मुख माहीं झमेला है।
पंचानन आप, षडानन पुत्र,
शीश में चन्द्र दशानन चेला है।

अघोर सन्त द्वारा रचित शिव को समर्पित
यह रचना का अर्थ है-
भोलेनाथ तेरे पास चवन्नी या एक पैसा भी
नहीं है फिर भी, तुम कुबेर जैसा खर्चा क्यों करते हो। वाकई तुम गिरी साधु की तरह अलबेला हो।
जिसके घर में न अन्न है, न चूल्हा है, छत है उस महेश भोले से क्या मांगना, जो सब प्रकार से नँगा है। फिर नंगो से खुद भी हारा है।
महादेव वैसे ही बहुत परेशान है-
जिनके परिवार में खुद के 5 मुख हैं।
शिवपुत्र भगवान कार्तिकेय के 6 मुंह हैं।
सिर पर चन्द्र बैठे हैं और परम शिव भक्त
रावण भी इनका सबसे प्रिय गण है, जिसके 10 मुख है।
कहने का तात्पर्य यही है कि शिव स्वयं
ही बहुत उलझा हुआ है। इसलिए
उसे परेशान मत करो।

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