- आयुर्वेदिक निघंटू के अनुसार आंवला, हरड़, त्रिफला, अमृता, गिलोय, दशमूल, विभितकी आदि जड़ी बूटियां रोगप्रतिरोधक क्षमता यानि इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग करने में कारगर है।
- आयुर्वेद की इन्हीं लाखों साल पुराने फार्मूले के आधार पर महर्षि चरक ने च्यवनप्राश बनाया था। इनका एक नाम च्यवन ऋषि भी है।
- मान्यता है कि च्यवनप्राश घरेलू वैद्य है। जिसके घर में ये रहता है और परिवार के सभी सदस्य इसका उपयोग करते हैं उन्हें कभी कोई बीमारी नहीं होती। यौवन बना रहता है।
स्पेशल च्यवनप्राश से होने वाले लाभ
- कच्चे आंवले से निर्मित स्पेशल च्यवनप्राश के चमत्कारी फायदे जानकर हैरान हो जाएंगे। लगभग 31 ग्रंथ इसकी प्रशंसा से भरे पड़े हैं। इसे बचपन से 55 की उम्र तक खा सकते हैं।
- अष्टवर्ग युक्त च्यवनप्राश केवल कांच की शीशी में हो, उसे पूरे साल दूध के साथ सुबह खाली पेट दूध के साथ लेने से बुढ़ापा ठहर जाता है। जल्दी नहीं आता।
- महर्षि च्यवन ने चिवनप्रास का सेवन कर अपने बुढ़ापे से मुक्ति पाई थी। ये पेट की सभी गंदगी बाहर निकाल कर पाचन रस का बनाकर, नवीन रस, रक्त, रज, वीर्य का निर्माण करता है।
- च्यवनप्राश का इस्तेमाल करने वाले लोगों को कभी चिकित्सक के यहां जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
- अष्टवर्ग च्यवनप्राश स्पेशल च्यवनप्राश की लागत 3000 से 3500/ प्रतिकिलो आती आती है। इसे घर में भी बना सकते हैं।
आयुर्वेद-सारसंग्रह ग्रंथ के अनुसार फार्मूला
घर में बनाएं स्पेशल च्यवनप्राश
- प्रथम क्वाथ बेल की छाल, अरणीमूल, सोनापाठा (अरलू ), छाल, खम्भारी छाल, पाटला- छाल, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, शालिपर्णी, पृश्निपर्णी, पीपल, गोखरू, छोटी-बड़ी कटेरी, काकड़ासिंगी, भुई आँवला, मनुक्का, जीवन्ती, पुष्करमूल (कूठ), अगर, गिलोय, बड़ी हर्रे, खरेंटी (पंचांग), ऋद्धि-वृद्धि (दोनों के अभाव में बाराहीकन्द), जीवक, ऋषभक, ( दोनों के अभाव में विदारीकन्द ), कचूर, नागरमोथा, पुनर्नवा, मेदा, महामेदा (दोनों के अभाव में शतावरी), इलायची, कमल का फूल, सफेदचन्दन, विदारीकन्द, अडूसा की जड़, काकोली, क्षीरकाकोली ( दोनों के अभाव में असगन्ध), काकनासा – प्रत्येक ५-५ तोला लेकर जौकुट करके यह क्वाथ तथा ताजा हरा पुष्ट आँवला ७ सेर लेवें।
- द्रव्य-चूर्ण को १६ सेर जल में ताँबे की कलईदार अथवा स्टेनलेस स्टील की कड़ाही में पका लें, चतुर्थांश जल शेष रहने पर क्वाथ को कपड़े से छान कर रख लें।
- कड़ाही को साफ करके उसमें उक्त ७ || सेर आँवला को ८ सेर जल में पकावें । आँवला पककर हाथ से दबाने पर कली अलग होने लग जाय, तब उतार कर जल से अलग निलकर किसी बाँस या बेंत की टोकरी में रख लें।
- फिर, एक कलईदार तांबे या पीतल के भगोने (पात्र) के मुंह पर लोहे के कलईदार तारों की जाली की छलनी रखकर उस पर आँवले डालते जायें और उस पर हाथों से रगड़ (मसल-मसल) कर सारे आँवलों को छान, पिट्ठी बना लें। गुठली और रेशा जो छलनी पर बाकी बचे, उसे फेंक दें।
च्यवनप्राश के वैदिक फायदे
कांच की शीशी में ही क्यों खरीदे च्यवनप्राश
- इसका मुख्य घटक कच्चा आंवला, हरितकी, त्रिफला, अष्टवर्ग है। प्लास्टिक की बोतल में पेकिंग वाला च्यवनप्राश एसिड और रसायनिक रिएक्शन करता है। जिससे पेट फूलना, पेट में जलन, एसिडिटी, कब्ज आदि गंभीर समस्या होने लगती हैं।
अवलेह-पाक-प्रकरण के मुताबिक
- च्यवनप्राशावलेह उक्त गुणविशिष्ट आयुर्वेदीय उत्तम औषध है। इसमें लगभग ५४ द्रव्यों का संकलन है, जिनमें प्रमुख द्रव्य आँवला है, जो शारीरिक धातुओं को स्वच्छ कर उनकी विदग्धता को दूर करता है और परिणाम में अभिसरण एवं उत्पादन क्रिया की वृद्धि कर धातु पुष्टि करता है!
- आँवला के इसी गुण के सहायक द्रव्य च्यवनप्राश में मिलाये जाते हैं। इसीलिए च्यवनप्राश को कांच के जार में रखने की सलाह दी जाती है।
च्यवनप्राश की मात्रा और सेवन विधि
- अतः कांच की शीशी वाला इस एक ही औषध से क्षय की प्रारम्भिकावस्था में उत्तम लाभ होता है । यदि सिर्फ च्यवनप्राश ही देना हो, तो 1 से 2 तोले की मात्रा में दें।
- च्यवनप्राश सारकगुण होने से जिनका कोठा मुलायम है, उन्हें इसके प्रयोग से २-३ दस्त हो जाते हैं, किन्तु इससे कोई हानि नहीं होती। कुछ दिनों के बाद ज्यादा दस्त लगना अपने आप ही बन्द हो जाता है। जिनका कोठा सख्त हो या जिन्हें मलावरोध की शिकायत हो, उन्हें चाहिए कि दिन में च्यवनप्राश की मात्रा कम लें और रात्रि में अधिक लें, इससे प्रातः खुलकर दस्त आता है।
- उक्त अवस्था में यदि अजीर्ण, आध्मान आदि विकार हों, तो उनके विनाशार्थ भोजनोत्तर २॥ तोला द्राक्षासव बराबर जल मिलाकर सेवन करें।
स्पेशल च्यवनप्राश के फायदे
- शारीरिक धातुओं एवं इन्द्रियों की शक्ति घट जाने से उसी प्रमाण में पचनेन्द्रियों की शक्ति का भी ह्रास होता है, और ठीक समय पर आहार न पचना, खट्टी डकारें आना, कण्ठ में जलन, दाह होना, मुँह में कफ लिपा-सा मालूम होना, प्यास, जी मिचलाना इत्यादि लक्षण उपस्थित होते हैं। इस अवस्था में प्रातः सायं च्यवनप्राश तथा भोजनोत्तर द्राक्षासव के सेवन से बहुत लाभ होता है। इससे आभ्यन्तरिक धातु-पोषणकार्य को भी मदद मिलती है ।
- क्षय की इसी प्रारम्भिक अवस्था में च्यवनप्राश के साथ मुक्ताभस्म, प्रवाल भस्म तथा मृगशृङ्ग आदि भस्मों का भी उपयोग किया जाता है।
- इन भस्मों का मुख्य गुण अन्न पचन करना तथा पचनेन्द्रियों और रस-रक्तादि धातुओं की अस्वाभाविक विकारी अम्लता तथा विषमता एवं क्षीणता को नष्ट करना है।
- मौक्तिक और प्रवाल में ये गुण विशेष पाये जाते हैं। परन्तु ध्यान रहे, पाचन क्रिया को सुधारने के लिए मौक्तिक भस्म, शंख भस्म या कपर्दक भस्म का प्रयोग करना विशेष हितकर है और विदाहावस्था के प्रतीकारार्थ मौक्तिक या प्रवाल भस्म का प्रयोग लाभदायक है।
- धातुओं की विषमता एवं क्षीणता को नष्ट करने के लिये भी मौक्तिक, प्रवाल, अभ्रक भस्म विशेष उपयोगी है।
- मृङ्गश्शृङ्ग भस्म का सामान्य स्वरूप यद्यपि उपर्युक्त प्रवालादि भस्मों जैसा ही है, तथापि इसका कार्यं कुछ भिन्न प्रकार का होता है।
- मौक्तिक, प्रवाल, शंख या शुक्ति में जितना पाचक और विदाहशामक गुण है, उतना इसमें नहीं । परन्तु शरीरान्तर्गत अस्थिमय द्रव्यों का पोषण कार्य ‘मृगश्शृङ्ग’ भस्म के द्वारा उत्तम होता है।
- वृद्धा वस्था में तरुणास्थि या हड्डियों की संधियों में जो मृदु अवयव या भाग होता है, वह जब निःसत्त्व हो जाता है, मृगशृङ्ग भस्म का प्रयोग विशेष लाभदायक है।
- धातु-क्षीणा प्रवाल, मौक्तिक या मृगशृङ्ग भस्म इनमें से जिसका प्रयोग करना अभीष्ट हो, उसे च्यवनप्राश के साथ निम्न प्रकार से दें।
- प्रातः-सायं च्यवनप्राश २ से ३ तोला तक ( अनुपान दूध या जल) तथा दोपहर और रात्रि में भोजनोपरान्त द्राक्षासव १ से २ तोला तक चौगुने जल से मिला कर दें।
- मृगशृङ्ग भस्म देना हो तो प्रातः सायं च्यवनप्राश में मिला कर दें और प्रवाल या मौक्तिक पिष्टी देनी हो तो द्राक्षारिष्ट में मिला कर सेवन करायें।
- अवलेह-पाक-प्रकरण भाग दो के अनुसार – शुद्ध, ओरिजनल च्यवनप्राश का स्वाद भी हर बार बदल जाता है। सेवन करने वाले प्रायः इसकी शिकायत करते हैं। अतः एक आँवले का वजन एक तोला मान कर ५०० आँवला की बजाय वजन से ७ सेर १३ छटाक आँवला लेना ज्यादा अच्छा है। इस योग को कितनी ही बार बना कर हमने अनुभव किया है कि इसमें घी का परिमाण कम होने से आँवला पिट्ठी की सिकाई ठीक नहीं हो पाती है और इसीलिए चरक में घी मिलाकर १२ पल ( छटाँक ) देने का उल्लेख है।
- महान महर्षियों का मन – किन्तु आचार्य शार्ङ्गधर लिखते हैं कि अतः घृत को ही दुगने परिमाण में अर्थात् १४ पल (छटाँक) मिलाकर आंवले की पिट्ठी को कम आंच में 8 से 10 दिन दिन सिकाई करना चाहिए और कांच के मर्तवान में रखना श्रेष्ठ है।
-
- कम शक्कर या चीनी वाला च्यवनप्राश नुकसानदेह
-
- इसी प्रकार चीनी का परिमाण भी कम होने के कारण स्वाद में अम्लता एवं तीक्ष्णता अधिक रहती है। इससे पेट में जलन होती है।अम्ल बनता है। भूख खत्म हो जाती है और कमजोरी आने लगती है। चीनी आंवले को पचने में सहायक है।
- च्यवनप्राश में चीनी का परिमाण भी दुगना या अढ़ाई गुना करके बनाया जाये, तो उत्तम तथा स्वादिष्ट बन जाता है।
- पेट की अम्लता और तीक्ष्णता भी काफी कम हो जाती है। प्राय: पुराने वैद्य दुगुनी या अढ़ाई गुनी चीनी डाल कर भी बनाते थे। बल्कि कुछ वैद्य लोग तो अढ़ाई या तीन गुना चीनी डाल कर भी बनाते हैं।
- शहद अच्छा नहीं मिल पाता है। अतः बाजारू, रद्दी और खराब शहद डालने की अपेक्षा शहद के स्थान पर भी चीनी ही डालना उत्तम है।
- शुद्ध कच्चे आंवला द्वाराआयुर्वेदिक तरीके से निर्मित च्यवनप्राश का स्वाद बिल्कुल भी अच्छा नहीं होता।
- आजकल ज्यादातर कंपनियां शकरकंदी, आलू आदि का स्वादिष्ट च्यवनप्राश बनाकर बहुत सस्ते दामों बेच रही हैं, जो हानिकर है।
- कुछ आधुनिक लोग स्वाद बहुत अच्छा न होनेके कारण लोग व्यवहार करने में हिचकिचाते हैं।
- मात्रा और अनुपान — १ से २ तोला प्रातः समय गाय या बकरी के दूध के साथ सेवन करें ।
- स्पेशल च्यवनप्राश के गुण और उपयोग – – अग्नि और बल का विचार कर क्षीण पुरुष को इस रसायन का सेवन करना चाहिए।
- बालक, वृद्ध, क्षत- क्षीण, स्त्री संभोग से क्षीण, रोगी, हृदय के रोगी और क्षीण स्वरवाले को इसके सेवन से काफी लाभ होता है।
- शरंगधर संहिता के मुताबिक स्पेशल च्यवनप्राश के सेवन से खाँसी, श्वास, प्यास, वातरक्त, छाती का जकड़ना, वातरोग, पित्तरोग, शुक्रदोष और मूत्रदोष नष्ट हो जाते हैं।
- स्पेशल च्यवनप्राश वृद्धि और स्मरण शक्तिवर्द्धक तथा मैथुन में आनन्द देने वाला है। इससे कान्ति, वर्ण और प्रसन्नता प्राप्त होती है तथा मनुष्य बुढ़ापा से रहित हो जाता है! ( -शा. सं.)
- स्पेशल च्यवनप्राश के इस्तेमाल से च्यवन ऋषि इसे खाकर बूढ़े से जवान हो गए थे, अतः इसका नाम च्यवनप्राश हुआ।
- स्पेशल च्यवनप्राश फेफड़े को मजबूत करता है, दिल को ताकत देता है, पुरानी खाँसी और दमा में बहुत फायदा करता तथा दस्त साफ लाता है।
- अम्लपित्त में यह बड़ा फायदेमन्द है, वीर्यविकार और स्वप्नदोष नष्ट करता है, राजयक्ष्मा में लाभकारी है एवं बल, वीर्य, कान्ति, शक्ति और बुद्धि को बढ़ाता है।
- बच्चों के अंगों-प्रत्यंगों को बढ़ाता है । दुबले और कमजोर बच्चों को हृष्ट-पुष्ट एवं मोटा-ताजा बना देता है, उनका वजन भी बढ़ा देता है।
- खट्टे उत्तम च्यवनप्राश देखने में गहरे लाल रंग का सुगन्धित, मीठा और आँवले के मीठे स्वाद से पूर्ण होता है तथा दाँतों में वंशलोचन की किरकिराहट या जलांध की गन्ध मुँह में नहीं आती है।
- स्पेशल च्यवनप्राश केवल बीमारों की ही दवा नहीं है, बल्कि स्वस्थ मनुष्यों के लिए उत्तम खाद्य भी है । जवानों की अपेक्षा वृद्ध इसका उपयोग अधिक करते हैं। ऐसा करने से उनका पेट साफ रहता है तथा भूख लगती है।
- आयुर्वेद चिकित्सा सार ग्रंथ के अनुसार स्पेशल च्यवनप्राश लेने से ‘रस – रक्तादि धातुएँ पुष्ट होने से शरीर में शक्ति का संचय होता है।
- स्मरणशक्ति तथा शरीर में स्फूर्ति की वृद्धि होती है। तनाव मिटता है और बार बार रोग नहीं सताते।
- रोगप्रतिरोधक क्षमता यानि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए स्पेशल च्यवनप्राश से बेहतरीन दूसरा कोई टॉनिक नहीं है। जवानी बरकरार रहती है।
- किसी-किसी की धारणा है कि च्यवनप्राश शीत ऋतु में ही सेवन इसका सेवन सब ऋतुओं में किया जा सकता है। परन्तु यह सर्वथा भ्रान्त है। ग्रीष्म ऋतु में गरम नहीं करता, क्योंकि इसका प्रधान द्रव्य आँवला है, जो शीतवीर्य होने से पित्त को संतुलित करता है।
- आयुर्वेद – सारसंग्रह शास्त्र में कहा गया है कि सिर्फ आँवले का ताजा फल प्यास को शान्त करनेवाला, पेशाब खुलकर लानेवाला तथा अनुलोमक है। इसलिए च्यवनप्राश रोज लेने से गुर्दा संबंधी विकार नहीं सताते।
- बाहरी और भीतरी प्रयोग में शीतल होने से आँवला पित्त को शान्त करता है।
- गरमी या पित्त प्रकोप से यदि हृदय में धड़कन और शूल हो तो च्यवनप्राश का सेवन करावें।
- पित्त या पैत्तिक विकारों में इसे धारोष्ण या गरम करके ठण्डा किए हुए दूध के साथ दें।
- महिलाओं में रक्त प्रदर, लिकोरिया, श्वेत प्रदर, सफेद पानी, अनियमित मासिक धर्म आदि नारी विकारों के लिए च्यवनप्राश एक उत्तम ओषधि है।
- स्पेशल च्यवनप्राश खूनी बवासीर, नक्सीर फूटना, पेशाब के रास्ते खून और पीब जाना आदि पित्त-प्रकोप जन्य रोगों को शान्त करने के लिए इसका सेवन किया जाता है।
- ग्रीष्म ऋतु में गरमी से बचने के लिए च्यवनप्राश का सेवन करना अच्छा है।
- पुराने रोगियों या रोग छूटने के बाद रोगियों की निर्बलता दूर करने के लिए स्पेशल च्यवनप्राश का प्रयोग बहुत लाभप्रद है ।
- आँवले में जितनी अधिक मात्रा में खाद्योज (विटामिन) “सी” रहता है उतना सम्भवतः किसी दूसरे फल में नहीं होता और सूखने के बाद भी जमीन नहीं आती
- ताजे आँवले के रस में नारंगी के रस की अपेक्षा बीस गुना अधिक विटामिन “सी’ रहता है। एक आँवले में डेढ़-दो सन्तरों के बराबर विटामिन “सी” रहता है।
- आंवले के अलावा अन्य फल और सब्जियों को गरम करने, पकाने या सुखाने से उनके खाद्योज नष्ट हो जा हैं। परन्तु आँवला इस विषय का अपवाद है। पकाने या सुखाने पर भी इसका खाद्योज नष्ट नहीं होता।
- यही कारण है कि जो ताजे आँवले का च्यवनप्राश नहीं बना सकते, वे सूखे आँवले को भिगो कर च्यवनप्राश बना, अपने मरीजों को देते हैं।
- यद्यपि ताजे आँवले की अपेक्षा यह गुण और स्वाद में कुछ न्यून अवश्य होता है, परन्तु तात्कालिक अभाव- पूर्ति के लिए उत्तम है।
- अतः जहाँ तक सम्भव हो ताजे आँवले से बने च्यवनप्राश का उपयोग करना चाहिए ।
- विटामिन “सी” ज्यादा होने से ही इसका प्रभाव पाचन संस्थान पर स्थायी रूप से पड़ता है, महास्रोत की प्राचीरों में बल आता है।
- पाचक रसों की उत्पत्ति पर्याप्त मात्रा में होती है। अन्नों द्वारा पाचन, शोषण और मलों का निर्हरण नियमित रूप से होता रहता है।
- फेफड़े (फुफ्फुस) पर भी इसका प्रभाव बहुत पड़ता है । अतएव खाँसी, श्वास, राजयक्ष्मा, उर:क्षत आदि में इससे काफी लाभ होता है।
- हृदय और रक्तवह संस्थान पर भी इसका असर होता है । अतएव हृदय की धड़कन, हृदय निर्बल हो जाना, रक्त संचार में बाधा पड़ना, रक्त-संवहन क्रिया ठीक-ठीक न होना आदि विकारों में इससे लाभ होता है।
- स्पेशल च्यवनप्राश एक आयुर्वेदिक रसायन है, अतएव शुक्रजनित विकारों में तथा दुर्बल और वृद्ध मनुष्य के लिए अमृत-तुल्य कार्य करता है।
- क्षय की प्रथमावस्था में यदि केवल धातुक्षीणता ही उसका प्रधान स्वरूप हो एवं क्षय के अन्यान्य लक्षण उत्पन्न नहीं हुए हों, साधारण कृशता, कमजोरी एवं कभी-कभी ज्वर का होना, थोड़े ही परिश्रम से ज्वर का बढ़ जाना या शैथिल्य-विशेष की प्रतीति होना आदि दशा में जो औषध धातु को पुष्ट करे, वही लाभदायक होती है।
- परन्तु इस औषध में विशेष उत्तेजक गुण नहीं होना चाहिए । हाँ, धातुओं को निर्मल करने का गुण अवश्य होना चाहिए, क्योंकि क्षीण हुए निःसत्त्व धातु-घटकों के शरीर में वैसे ही बने रहने से भविष्य में राजयक्ष्मा की विशेष संभावना रहती है।
- अतः धातु-घटकों को निर्मल कर उनमें उत्पादन शक्ति की वृद्धि करने वाली रासायनिक औषधें इस अवस्था में विशेष लाभ करती हैं।
- चिकित्सा चंद्रोदय एवम आयुर्वेद – सारसंग्रह सिर्फ आँवले का ताजा फल प्यास को शान्त करनेवाला, पेशाब खुलकर लानेवाला तथा अनुलोमक है।
- बाहरी और भीतरी प्रयोग में शीतल होने से आँवला पित्त को शान्त करता है। गरमी या पित्त प्रकोप से यदि हृदय में धड़कन और शूल हो तो च्यवनप्राश का सेवन करावें।
- पैत्तिक विकारों में इसे धारोष्ण या गरम करके ठण्डा किए हुए दूध के साथ दें।
- रक्त प्रदर, खूनी बवासीर, नक्सीर फूटना, पेशाब के रास्ते खून और पीब जाना आदि पित्त-प्रकोप जन्य रोगों को शान्त करने के लिए इसका सेवन किया जाता है।
- ग्रीष्म ऋतु में गरमी से बचने के लिए च्यवनप्राश का सेवन करना अच्छा है।
- पुराने रोगियों या रोग छूटने के बाद रोगियों की निर्बलता दूर करने के लिए इसका प्रयोग बहुत लाभप्रद है।
- विटामिन “सी” ज्यादा होने से ही इसका प्रभाव पाचन संस्थान पर स्थायी रूप से पड़ता है, महास्रोत की प्राचीरों में बल आता है, पाचक रसों की उत्पत्ति पर्याप्त मात्रा में होती है । अन्नों द्वारा पाचन, शोषण और मलों का निर्हरण नियमित रूप से होता रहता है।
- फेफड़े (फुफ्फुस) पर भी इसका प्रभाव बहुत पड़ता है । अतएव खाँसी, श्वास, राजयक्ष्मा, उर:क्षत आदि में इससे काफी लाभ होता है।
- हृदय और रक्तवह संस्थान पर भी इसका असर होता है । अतएव हृदय की धड़कन, हृदय निर्बल हो जाना, रक्त संचार में बाधा पड़ना, रक्त-संवहन क्रिया ठीक-ठीक न होना आदि विकारों में इससे लाभ होता है।
- यह रसायन है, अतएव शुक्रजनित विकारों में तथा दुर्बल और वृद्ध मनुष्य के लिए अमृत-तुल्य कार्य करता है।
Leave a Reply