देश की आन-बान-शान……

पूर्णतः बाग रहित क्षेत्र,
किन्तु बागियों से भरा यह
स्थान देश-दुनिया भर में बहुत प्रसिध्द है  ।
यहां बाग कम, बागी ज्यादा पाए जाते हैं  ।
सदियों से डकैत और बागी
भिंड-मुरैना की पहचान है
भिण्ड जिले का हर आदमी
  भिड़ने-लड़ने  पर विश्वास करता है ।
 कभी-कभी, तो
  “आ बैल मोये मार” 
 
  वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है ।
सम्पूर्ण सृष्टि में यह अपने तरह एक
अद्भुत क्षेत्र  है ।
  फिर मुरैना ? तो बस फिर मुरैना  है  ।
  राष्ट्रीय पक्षी मोरों की भरमार से  भरपूर
  बागियों, डकैतों और लठैतों
 इस भूमिमें किसी को भी मुड़ना,
झुकना नहीं आता,
  तभी, तो कहते हैं – मुरे- ना 
अर्थात जो कभी “मुड़े- ना
  झुके- ना
  यहाँ के आदमी ने एक बार जो ठान लिया, फिर मुड़ने, झुकने का कोई काम ही नहीं है ।
  यह ठाकुर बाहुल क्षेत्र है , जिनकी कभी
  “ठाकुरजी” (भगवान)  की तरह सम्मान
  होता था । कहीँ-कहीं गहन ग्रामीण
  क्षेत्रों में आज भी यही  परम्परा  है  ।
  बात वाली बात पर यहां के ठाकुर
  बड़े से बड़े साम्राज्य को ठोकर मारते आएं ।
  मान-सम्मान, स्वाभिमान  इनके लिए
   मूल पूंजी है ।
   दाब-पुण्य, दयालुता में इनका कोई मुकाबला
   नही है । लेकिन बहुत छोटी बात पर बड़ा
   विवाद हो जाता है   ।  कहो, तो हाथी निकल जाए और पुच्छ पर झगड़ा हो जाये, फिर
   कब कितने मान्स (लोग) मरेंगे-मारेंगे
   ईश्वर को भी नहीं मालूम ।
   डोंगरबटरी,पुतलीबाई, 
मानसिंह, पानसिंघ, 
निर्भयसिंह, फूलनदेवी,
तथा मलखान सिंह जैसे बागी बहुत उदार, दयावान, तो कभी इतने
खूँखार हुए, की पृथ्वी काँप गई ।
 हर्बल्स दवाओं
की मार्केटिंग के सिलसिले
   में लगभग 25-,30 वर्षों तक हर महीने
   प्रवास के दौरान इस क्षेत्र के सभी
   छोटे-बड़े   तथा घने वन-जंगल मे स्थित
   ग्रामीण-क्षेत्रों व गांव का दौरा- प्रवास किया ।
   लेखन का शौक होने के कारण यहां की
   परम्पराओं, जीवन शैली,  का उन्हीं की भाषा मे संकलन  भी करता रहा ।
    भिण्ड-मुरैना  तथा और भी अनेक जानकारियों को प्रकाशित करने  तथा अपना शौक पूरा करने व उमड़ रहे ज्ञान को परोसने  हेतु, सन 2006 में
    “भारतीय प्रेस परिषद
    अंग्रेजी  में बताएं, तो
    Press Council of India
    एवम
    जनसम्पर्क संचालनालय
 
    मध्यप्रदेश शासन द्वारा-
    अमृतम मासिक पत्रिका
 
    प्रधान संपादक- अशोक गुप्ता
     के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त की ।
     जिसका निरन्तर प्रकाशन सन
     2006 से प्रारंभ कर दिसम्बर
     2015 तक होता रहा ।
     अमृतम मासिक पत्रिका
 हर माह करीब  50000 (पचास हजार ) पत्रिकाएं  प्रकाशित होती थी, जिन्हें पूरे भारत
     के सभी चिकित्सकों  (Doctors),
     वैधों तथा मेडिकल स्टोर्स को मुफ्त
     भेजी जाती थी ।
     फिर कुछ कठिनाइयों के कारण
     पत्रिका का व्यय (खर्चा)
     निकालना मुश्किल हो गया ।
     तब कहीं जाकर  इसका
     प्रकाशन स्थगित, बन्द  करना पड़ा ।
     फिलहाल अब,  अमृतम ने अपनी
 स्वयं की वेबसाइट बनवाकर
     ऑनलाइन  मार्केटिंग
     चालू की है । इसमे प्रतिदिन नित्य-नई
     जानकारी, नवीन लेख,  ब्लॉग के रूप में
     दिये जा रहें हैं ।  अपने जीवन के विगत
     35 वर्षों में प्रवास द्वारा  जो भी अनुभव, ज्ञान एकत्रित कर संकलन किया,
     वह सब पुनः  हमारी वेबसाइट
     amrutam.co.in

      पर बहुत ही सरलता से उपलब्ध है ।

     लगातार 25-30 सालों घूमने से
     भिण्ड- मुरैना के कल्चर को समझकर
    इनके  बारे में लोगों के
    भाव-स्वभाव को परखा, जाना
   भिण्ड- मुरैना की ठेठ व सीधी- टेडी खड़ी बोलचाल, मेरे मन को सदा लुभाती रही,
   बात-बात पर मुहावरों-कहावतों का चलन,
इनका रहन-सहन , यहाँ के खान-पान आदि
सगे -संबंधियों का मान-अपमान बहुत ही कुछ
नजदीक से देखकर लगभग
 500  (पांच सौ)  पेजों का रजिस्टरों में संकलन कर बीच-बीच मे  कुछ लेख अमृतम पत्रिका में प्रकाशित भी किये   ।
इस लेख का मुख्य विषय है, यहां की भाषा-बोलचाल में  गहन ग्रामीण, गांव के लोग
  अपने रोगों को किस तरह  बयान  हैं  ।
भिण्डमुरैना
के मरीज की बीमारी भिण्ड -मुरैना के डाक्टर के अलावा किसी और कि समझ में आ पाना कुछ उलझन भरा हो सकता है  ।
  कोई समझ ही नहीं सकता!
जैसे-
ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारियों के नाम
मरीज डॉक्टर को इस प्रकार बताता है ।
डाकदर साहब,
@  मोये तो पूरे शरीर में 8 रोज से भौत पीरा
हे रही है, मैं तो अब मरत हों ।
@  कच्ची गृहस्थी हे, डाकधर साहब,
@  छाती में आंधी सी उठत है ।
@  हाथ-गोर फड़फड़ात  हैं ।
@  आंखें गड़ति है
@  पेट में आगि पत्ति है
@  मूड़ पिरात है
@ भुंसारे पीर होत है
@  पेट भड़भड़ात है
पेट 4-6 दिना से गुम सो हे,  गयो है
@   बैर-बेर डकार आउति है
@  कान में सन्नाटो सो खिंचो है  ।
@  पेट गुड़गुड़ात है
@  माथो भन्नात है !
@  झरना झर रहो है । (दस्त लगना)
@  कम दिसतो है ।
@  कबहूँ-कबहूँ ऐसो  मूड बन जात,
 के दो- चारन कों गोरी (गोली) माद दयूं ।
@  हाथ-गोड़  झुनझुनात है  ।
@  इस चटकत है  ।
@  पेट पिरात है  । आदि
        ऐसी-ऐसी बीमारियां सुनकर
अच्छे से अच्छे एमबीबीएस डाक्टर्स को भी अपनी पढ़ाई पर शक होने लगता है कि, कहीं ये चैप्टर छूट तो नहीं गया । नए दौर के चिकित्सक , तो पूरी तरह
हड़बड़ा जायेंगे ।
भिण्डमुरैना
के विषय मे विस्तार से समझने,
जानने के लिए  एक बार लॉगिन  कर ही लीजिए । आपको ऐसी अद्भुत और दुर्लभ
रहस्यमयी जानकारी मिलेगी क़ि  इस ज्ञान से तृप्त हो जाएंगे ।
        अमृतम की हर्बल्स दवाएँ उपरोक्त
        रोगों में बहुत शीघ्र ही लाभ दायक हैं ।
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