वात के असन्तुलन से होता है-
थायराइड अर्थात ग्रंथिशोथ, जो कि
महिलाओं को ज्यादा होता है।
कैसे निर्मित होता है-थायराइड वातरोग…
पृथ्वी और पानी मिल कर कफ बनाते हैं।
तेज से पित्त बनता है। वायु और आकाश
से वात-विकार उत्पन्न होने लगता है।
थायराइड के 13 लक्षण और पहचान…
【1】हाइपरथायरायडिज्म होने पर
शरीर में सूजन सी रहती है।
【2】हमेशा आलस्य बना रहता है।
【3】चक्कर से आते हैं।
【4】कभी-कभी किसी का वजन
बहुत तीव्र गति से घटने लगता है।
【5】ज्यादा गर्मी या सर्दी लगती है।
गर्मी/सर्दी अधिक झेल नहीं पाती।
【6】ठीक से गहरी नींद न आना।
【7】प्यास ज्यादा और बार-बार लगना।
【8】अत्यधिक पसीना आना।
【9】हाथ -पैर कांपना।
【10】दिल तेजी से धड़कना।
【11】भूख एवं रक्त की कमी होना।
【12】कमजोरी, चिंता, तनाव और
अनिद्रा शामिल हैं.
【13】सुस्ती, थकान, कब्ज,
【14】धीमी हृदय गति,
【15】ठंड, सूखी त्वचा,
【16】बालों में रूखापन, झड़ना, टूटना
【17】अनियमित मासिकचक्र और इन्फर्टिलिटी के लक्षण भी दिखाई देते हैं।
【18】थायराइड किसी भी उम्र की महिलाओं को कभी भी हो सकता है।
वात विकार से पीड़ित रोगी में इन में से
कोई न कोई लक्षण जरूर मिलता है।
जैसे –
★~ दिनों-दिन वजन घटना,
★~ त्वचा या हाथ पैर का क्षरण होना,
★~ क्रोध, चिड़चिड़ापन के दौरे पड़ना,
★~ रोगों में अचानक वृद्धि होते जाना और ★~ बीमारियों का बढ़ते जाना या बिगड़ना
★~ शरीर में भारीपन होना
★~ समय पर नींद न आना एवं
★~ पूरे बदन में दर्द सा बने रहना।
कैसे बढ़ता है-थायराइड….
कड़वे चरपरे, कसैले पदार्थ वायु को
बढ़ाने वाले हैं जैसे नीम, करेला आदि।
मीठे, खट्टे, नमकीन रस, कफ को बढ़ाते हैं।
वे ही रस वायु को शान्त भी करते हैं।
वात-ग्रीष्म ऋतु में संचित होता है।
वर्षा ऋतु में कुपित रहता है और
शरद ऋतु में शान्त रहता है।
किस आयु में ज्यादा सताता है-
थायराइड/,ग्रंथिशोथ वात रोग –
वृद्धावस्था में वात का प्रकोप अधिक
होता है। इसी प्रकार दिन के प्रथम प्रहर
में वात का प्रकोप ज्यादा होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
के एक सर्वे के अनुसार पुरुषों की
तुलना में महिलाओं में थायराइड यानि ग्रंथिशोथ विकार दस गुना अधिक होता है।
आयुर्वेद में 88 तरह के वात-विकारों
का उल्लेख है, जिसमें सबसे खतरनाक
वात रोग थायराइड है। पुराने चिकित्सा शास्त्रों में इसे ग्रंथिशोथ बताया है।
इस बीमारी में शरीर की ग्रंथियों,
नाड़ियों में शोथ यानि सूजन आने
लगती है, जिससे रक्त का संचार
सही तरीके से नहीं हो पाता।
थायरॉइड का महिलाओं पर दुष्प्रभाव…
भारत में थायराइड से महिलाएं सर्वाधिक पीड़ित हैं। इसका दुष्प्रभाव यह भी होता
है कि- स्त्रियों का मासिक धर्म अनियमित होकर बिगड़ जाता है और वे अस्वस्थ्य
रहते हुए अपनी सुंदरता, खूबसूरती से
हाथ धो बैठती हैं, जो बाद में अवसाद
अर्थात डिप्रेशन का कारण बनता है।
आयुर्वेद या नेचुरल चिकित्सा के अलावा अन्य किसी पेथी में इसका कोई कारगर
उपचार या स्थाई इलाज नहीं है।
थायराइड का स्थाई इलाज न होने
की वजह से उनका मानसिक संतुलन भी बिगड़ जाता है।
धीरे-धीरे याददास्त कमजोर हो जाती है। महिलाएं चिड़चिड़ी होने लगती हैं।
थायराइड का शर्तिया उपाय आयुर्वेद
द्वारा 100 फीसदी सम्भव है…
हमारे इम्युन सिस्टम को ठीक रखने
में सबसे बड़ी बाधा है-वात-पित्त-कफ
का असन्तुलन अर्थात देह में त्रिदोष।
किसी भी बीमारी से युद्ध के दौरान
हमारे शरीर का इम्युन सिस्टम प्रतिपिंड
यानि एंटीबॉडीज बनाता है। चिकित्सा
विज्ञान की भाषा में इसे आईजी (iG)
इम्युनोग्लोबुलिन (immunoglobulins),
कहते हैं। वैट-पित्त-कफ का संतुलन
अर्थात बेलेंस होने से यही प्रतिपिंड
हमें रोगों से बचाता है।
क्या होता है त्रिदोष –
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ ‘त्रिदोष-सिद्धांत’
के अनुसार शरीर में जब वात, पित्त और
कफ संतुलित या सम अवस्था (बेलेंस)
में होते हैं, तब शरीर का अंग-अंग,
मन-मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। इसके
विपरीत जब ये तीनो प्रकुपित होकर असन्तुलित या विषम हो जाते हैं, तो
तन अस्वस्थ होने लग जाता है।
आयुर्वेद में “वात-पित्त-कफ”
तीनों में समरसता न होना या विषमता
होना ही त्रिदोष कहलाता है। इसके
दूषित होने से भूत-भविष्य-वर्तमान
अर्थात ‘त्रिकाल’ तक अधिभौतिक,
आधिदैविक तथा आध्यात्मिक यानि
त्रिशूल-त्रिपात, द्रवित, पीड़ित
कर शरीर स्वाहा कर देते हैं।
(स्वर्ण भस्म युक्त)
【4】ऑर्थोकी पेन बाम
त्रिदोष तथा वातनाशक ओषधि है।
तीनों ही आयुर्वेदिक ओषधियाँ यदि
3 महीने नियमित सेवन करें, तो
88 तरह के वात-विकार,
जोड़ों एवं कमर का दर्द और
ग्रन्थिशोथ/थायराइड को जड़ से
दूर करने में सहायक है। आयुर्वेद की
यह अदभुत असरकारी ओषधि का
फार्मूला ●”योग रत्नाकर ग्रन्थ”
● भावप्रकाश, ● आयुर्वेद सार संग्रह,
● रस-तंत्रसार, ● भेषजयरत्नाकर
● चरक सहिंता, ● द्रव्यगुण विज्ञान
आदि 5000 वर्ष पुरानी वात उपचार
ग्रँथों से लिया गया है।
थायराइड अर्थात ग्रन्थिशोथ से पीड़ित
वात रोगियों की पहचान, आदतें....
■ जिन लोगों के शरीर में वात की
अधिकता या वात-विकार सबसे
प्रबल होता है, वे हर-नारी पतले,
हल्के, फुर्तीले होते हैं।
■ वात प्रकृति वाले व्यक्ति की त्वचा
रूखी-सूखी फटी सी होती है।
■ वात के मरीज अक्सर बेचैन रहते हैं।
■ वात पीड़ित की भूख बदलती रहती है।
■ वात रोगी ज़्यादा आसानी से बार-बार
बीमार पड़ जाते हैं।
■ वात से प्रभावित लोगों का अक्सर
■ पेट खराब रहता है।
■ पेट साफ नहीं रहता।
■ हमेशा कब्ज़ बहुत होता है।
■ उदर में गैस बहुत बनती है, पर बाहर
नहीं निकलती या Pass नहीं होती।
■ ह्रदय तेजी से धड़कता है।
■ थायराइड रोगी की देह में सूजन होती है।
■ शरीर ढुलमुल हो जाता है।
■ कम्पन्न, डर बना रहता है।
वात रोगियों का खानपान, आदतें...
@ ऐसे लोग गर्म खाना पसन्द करते हैं
और ठण्डी चीज़ें सख्त नापसन्द करते हैं।
@ सर्दियों में इन्हें ठंड बहुत सताती है।
थायराइड रोगी हमेशा गर्म ऊनी कपड़े पहनना पसन्द करते हैं।
@ थायराइड रोगियों में त्वचा की ऊपरी शिराएँ काफी प्रबल होती है।
@ शरीर का मॉंसल भाग भी मुलायम होने की जगह सख्त होता है।
थायराइड वात उत्पन्न करते हैं आहार –
# अरहर, तुअर या पीली दाल और
दलहन वात उत्पन्न करने में विशेष
सहायक होती हैं।
# रात में दही का सेवन बहुत नुकसान
दायक होता है।
# वात प्रकृति वाले लोग मटर का
सेवन भी कम करें, तो ठीक रहता है,
क्यों कि मटर भी वात पैदा करती है।
# जिन फलों में से काटने पर पानी
निकलता है (जैसे कि मीठा कद्दू) उनसे
भी ग्रन्थिशोथ वात होता है।
# कड़वी, तीखी और ठंडी चीज़ें भी
वात पैदा करती हैं।
# वात पैदा करने वाली खाने की चीज़ें
आमतौर पर कफ पैदा करने वाली
चीज़ों के मुकाबले कम पोषक होती हैं।
वातनाशक चीजे खाने से हानि...
◆ वात पैदा करने वाले पदार्थों के उपयोग
से मल सूख हो जाता है।
◆ मल सूखने से कब्ज़ हो जाता है।
◆ मीठी चीज़ें, वसा और तेल, नमक
और आसानी से पचने वाली चीज़ें,
गेहूँ, मूंग की दाल, तिल्ली से बनी
वस्तुएं और काले चने आदि के सेवन
से तथा तेल की नियमित मालिश से
थायराइड जैसे वात रोग शान्त होते है।
अमृतम आयुर्वेद के महर्षियों के अनुसार जिस घर में जननी स्वस्थ्य नहीं है,
उस घर में कभी बरक्कत नहीं होती।
संस्कृत के एक प्राचीन श्लोक में कहा है
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी!
अर्थात- जन्म देने वाली, जननी नारी
काहिन्दू परम्परा में-देवताओं से भी
ऊंचा स्थान है और जन्मभूमि स्वर्ग
से भी बढ़कर है।
सृष्टि की शक्ति है स्त्री…
शास्त्रों में स्त्री को शक्ति कहा गया है।
जिस घर में नारी निरोग नहीं है, वह
घर नरक हो जाता है। घर की देखभाल स्त्रियां ही भलीभांति कर पाती हैं।
वर्तमान समय में तनांव, डर, चिन्ता,
बच्चों का भविष्य और रोजगार को
लेकर अधिकांश महिलाओं का स्वास्थ्य
ठीक नहीं रहता।
इसलिए इन्हें लगातार तीन माह तक
★ ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
★ ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल
★ऑर्थोकी पेन ऑयल
स्थाई लाभ हेतु 3 महीने
इन तीनों दवाओं तक सेवन करना
चाहिए। यह पूर्णतः हानिरहित
आयुर्वेदिक औषधि है, जो धीरे-धीरे
शरीर को क्रियाशील बनाकर
88 प्रकार के सभी वात-व्याधि और
थायराइड की तकलीफों को दूर करने सहायक है।
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सम्पूर्ण जानकारी अमृतम्बकी वेबसाइट
पर उपलब्ध है।
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