पूरे साल केतु की कृपा पाने के लिए
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सदियों से नये सम्वत्सर का शुरुआत
अधिकांश केतु के अश्वनी नक्षत्र में होती
आ रही है। अश्वनी नक्षत्र की राशि मेष
है। यह 12 राशियों में पहली राशि है।
केतु अश्वनी, मघा और मूल इन तीन
नक्षत्रों का स्वामी है। केतु के इन नक्षत्रों
में उत्पन्न जातक के जन्म के समय मूल
पड़ते हैं।
क्या होते हैं मूल-
जातक-परिजात, ज्योतिष रत्नाकर,
रावण सहिंता, भृगु सहिंता आदि अनेक ग्रंथो
में मूल में जन्मे जातक के बारे में बताया है
की ऐसे लोग अलग-अलग योनियों में
अच्छे कर्मों के कारण बहुत सी योगनियाँ
नहीं भोगनी पड़ती, अतः इन्हें जल्दी
मानव योनि प्राप्त हो जाती है।
इसे मूल पड़ना कहते हैं।
जैसे जेल में किसी कैदी के अच्छे
व्यवहार के कारण जल्दी रिहा
कर दिया जाता है।
परिवार के ही पितृ या पूर्वज होते हैं
मूल में जन्मे लोग–
यह लोग परिवार के पूर्वज या पितृ
भी होते हैं। इनका उसी परिवार में पुनर्जन्म होता है। यह परिवार का कर्जा, ऋण या जिम्मेदारी पूरी करने के लिए जन्म लेते हैं।
यदि केतु के तीनों में से किसी भी नक्षत्रों के चतुर्थ चरण में कोई बच्चा जन्म लेता है, तो गरीब से गरीब परिवार को पैसे वाले बना देता है। उस परिवार की गरीबी मिट जाती है।
अचानक हानि, दुर्घटना का कारक है केतु
दुनिया या घर-परिवार, समाज में जितनी भी अचानक या अकस्मात दुर्घटना होती उन सबका कारण केतु होते है। मस्तिष्क हैं केतु
व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट कर देता है।
अचानक एक्सीडेंट, गोली लगना, मृत्यु,
अग्निकांड,यह सब कार्य केतु के
अधीन होते हैं।
खराब केतु आत्महत्या के लिए उकसाता है।
प्रेम-प्रसंग या अनैतिक सम्बन्धो के कारण
जीवन लीला समाप्त कराना केतु के काम हैं।
जन्म पत्रिका में केतु के कमजोर होने जीवन
में कई बार धोखा होता है। लोग बार-बार विश्वास घात करते हैं।
केतु की प्रसन्नता और शांति के उपाय
ज्योतिष ग्रंथों में ज्यादा उपलब्ध नहीं हैं।
रावण रचित एक दुर्लभ ग्रन्थ मन्त्रमहोदधि
एवं स्कन्द पुराण में कुछ उपाय बताए गए हैं।
क्या करें केतु की प्रसन्नता के लिए
केतु की शांति और प्रसन्नता के लिए
नव संवत्सर का पहला दिन यानि गुड़ी पड़वा
को बहुत महत्पूर्ण बताया गया है। इस दिन केतु का नक्षत्र भी है।
केतु आकाश का कारक ग्रह है। अतः 6 अप्रैल को करें ये पूजा-प्रार्थना और उपाय, तो वर्ष
भर केतु की कृपा तथा धन की बहुत आमद होती है।
【1】अपने घर की छत और किसी शिवालय
में ध्वजारोहण [झंडा] अवश्य लगाएं।
【2】केतु की जड़ीबूटियों के काढ़े से शिंवलिंग का रुद्राभिषेक करें।
केतु की जड़ीबूटी
■ सप्तधान्य, ■ अपामार्ग या चिड़चिड़ा,
■ नागरमोथा, ■ दूर्वा, ■अश्वगंधा,
■ शतावर, ■ बरगद की छाल
औऱ ■ सेमल की छाल
सभी 20-20 ग्राम
लेकर 5 से 7 लीटर पानी में 24 घंटे के लिए
गलावे। फिर इसका काढ़ा बनाने के
लिए आग पर इतना उबालें कि करीब
छनककर 2 लीटर रह जाये।
तत्पश्चात इस काढ़े में 2 नारियल का जल,
हल्का सा सेंधा नमक मिलाकर
शिंवलिंग पर किसी वैदिक ब्राह्मण द्वारा रुद्राभिषेक करावे।
रुद्राभिषेक कराते समय 5 दीपक
राहुकी तेल के और 5 दीपक देशी घी
के जलावें।
केतु की पूजा के 10 चमत्कारी फायदे
[1] इस तरह के प्रयोग और पूजा से पूरे वर्ष
किसी तरह की अनहोनी नहीं होती।
[2] भय-भ्रम तथा अनेक असाध्य रोगों
से बचाव रहता है।
[3] धन की हानि नहीं होती।
[4] पूरे साल परिवार में किसी की
[5] आकस्मिक मौत नहीं होती।
[6] व्यापार में बहुत लाभ होता है।
[7] पैसे की बढ़ोतरी होती है।
[8] तन्त्र-टोटके, जादू-टोने का प्रभाव नहीं होता।
[9] वैवाहिक आफ मंगल कार्य तुरन्त होते हैं।
[10] किसी वाद-विवाद नहीं होता।
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