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दीपावली पर विशेष जानकारी
अमृतम पत्रिका से साभार।
जाने – लक्ष्मी के लक्षण…..
मां नर्मदा नदी की परिक्रमा के दौरान
बहुत ही सिद्ध सन्त-साधु, नागा-अघोरियों
के दर्शन हो जाते हैं।
लगभग 1312 km लंबी इस नदी की परिक्रमा में 3 साल 3 महीने 13 दिन का समय लगता है। नर्मदा नदी दुनिया की एक मात्र नदी है, जिसकी परिक्रमा लगाने की प्राचीन परंपरा है। यात्रा मार्ग में बेहतरीन मठ-आश्रम हैं, जहाँ सिद्ध सरल सन्त और हजारों शिंवलिंग के दर्शन सहज हो जाते हैं।
कवि कालिदास के रघुवंश एवं मेघदूत में
मां नर्मदा का सुंदर वर्णन है। जीवन में एक बार यहाँ जरूर जाएं।
जब लक्ष्मी और महालक्ष्मी के बारे में पता लगा कि दोनों अलग-अलग हैं..
माँ नर्मदा की परिक्रमा चैत गुढी पड़वा तिथि
को अमरकण्टक से आरम्भ होती है। इस दिन यहाँ हजारों साधु एकत्रित होते हैं। यह परिक्रमा पैदल और वाहन द्वारा भी टुकड़ों में भी लगाई जा सकती है।
नर्मदा परिक्रमा के दौरान अनेकों दुर्लभ तीर्थों पर जाने का सौभाग्य मिला है।
विगत 35-40 वर्षों में प्रवास के दौरान
मेंरे द्वारा कई बार इस पवित्र मार्ग में जाने का मौका मिला। इसी समय असंख्य साधु-संतों
से अदभुत ज्ञान भी मिला। ऐसे ही एक यात्रा
के समय बाबा परमहंस जो खरगोन के पास
सहस्त्रधारा के नजदीक तपस्या तल्लीन थे और नागा साधु सत्यानन्द जी के अनुसार
लक्ष्मीजी विष्णुजी की पत्नी हैं, अक्सर कहा जाता है कि धन के रूप में लक्ष्मी चंचल हैं।
लक्ष्मी कभी रुकती नहीं है….
इसलिए इसे चंचल कहते हैं।
लक्ष्मीजी की चंचलता का आशय यह है कि
व्यक्ति प्रतिदिन या हर महीने जो भी कमाता है और खर्च कर देता है। पैसे का निरन्तर
आवागमन होते रहना यानी रुपए-पैसे रुक नही पाना यह लक्ष्मीजी का स्वभाव है।
चंचलता से मतलब —
धन एकत्रित या जुड़ नहीं पाना, आना और जाना आय-व्यय बराबर होना अर्थात जितना कमाया उतना खर्च कर देना यह सब लक्ष्मी का ही स्वरूप है।
जो चंचल स्वभाव की होने के कारण लक्ष्मी
कभी किसी के यहां स्थायी रूप से नहीं ठहरती है।
माँ महालक्ष्मी कौन है जाने….
श्रीयंत्र रहस्य, त्रिपुरा सुंदरी रहस्य और हिरण्यकेशिनी सहिंता
आदि दुर्लभ शास्त्रों में भगवान शिव की
शक्ति या पत्नी को महालक्ष्मी बताया है।
लिखा है कि
यही जगत्जननी, जगतअम्बे, माँ गौरी-दुर्गा
है। यह जिस पर एक बार प्रसन्न हो जाये, तो
महासम्पदा का स्वामी बनाकर स्थाई रूप से वास करती है।
माँ महालक्ष्मी सदैव ६४ योगिनी, षोडस मातृकाओं, दश महाविद्या, नवदुर्गा, अष्टसिद्धि और सप्तघृत मातृमातृकाओं आदि आठ तरह के ऐश्वर्य के साथ ही प्रकट होती है।
इसीलिए लिंगाष्टक में आदि शंकराचार्य ने
कहा है
“अष्टदरिद्र विनाशन लिंगम”
अर्थात आठ प्रकार के दरिद्रों का नाश
शिंवलिंग की पूजा से निश्चित ही हो जाता है।
पुराणों में उल्लेख है कि कैसी भी गरीबी हो,
शिंवलिंग के रुद्राभिषेक से मिट जाती है।
इसके अलग-अलग विधान हैं जिसे अगले लेख में बताया जाएगा।
श्रीयन्त्र में स्थित बिन्दु शिंवलिंग का प्रतीक है। इसकी रक्षा महालक्ष्मी और उनकी सभी
शक्तियां करती हैं।
महालक्ष्मी का श्रंगाररूप त्रिपुरा सुंदरी है।
दतिया मप्र के एक मुस्लिम कवि ने शक्ति चालीसा में लिखा है कि-
करे जो रुद्राभिषेक शिव का,
दुःख सागर से पर हो जावे।
हृदय में जगे भक्ति हो,
बेकार भी रोजगार पा जावे।
यश, उच्चपद, भूखण्ड,
पाकर धनवान हो जावे।
करे जो भक्ति शिव की,
वही बलवान हो जावे।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
अतः स्थाई सम्पत्ति के लिए
छोटी दीपावली की रात में गन्ने के रस से या
अमृतम मधु पंचामृत द्वारा शिंवलिंग का रुद्राभिषेक करावें तथा 27 दीपक
अमृतम राहुकी तेल के जरूर जलावें।
अगला वर्ष धन-धान्य से निश्चित लबालब
हो जाएगा। एक बार यह प्रयास अवश्य करें।
अभी दीपावली के बारे में बहुत सी अनछुई
जानकारी देना शेष है।
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