- राधे राधे का अर्थ है कि राह दे, राह दे। राधा के बारे में शास्त्र पुराणों में सब गोल मोल बाते लिखी हैं। पढ़कर कुछ भ्रम भी होने लगता है।
- राधा नाम जपने से जीवन सीधा साधा और मन का भार आधा जरूर हो जाता है। ऐसा अनुभव अनेकों बार लिया। मथुरा वृंदावन के साधकों के मुख से गेट सुना है कि
- अगर राधा नाम न होतो, तो सारो जगत भी रोतो। है जातो बंटाधार, जपे जा राधे राधे।
- राधे के बारे में आप कितना ही जान लो। हमेशा आधे ही रहोगे।
- महर्षि मार्केडेय द्वारा भोलेनाथ के आदेश पर रचित दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय की रचना की ओर इसमें एक अध्याय में कृष्ण को महाशक्ति गौरी, महाकाली के रूप में दर्शाया है। श्रीकृष्ण और मां काली का बीज मंत्र एक सा ही है।
- लेकिन राधा का जिक्र नहीं मिलता। बस इतना ही कहेंगे कि
ये शिव शम्भू की लीला, नहीं जाने गुरु और चेला।
- शिव कल्याणेश्वर मंदिर, फालका बाजार, ग्वालियर में एकादश वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा एकादशनी रुद्राभिषेक।
- भक्ति में समर्पण देखा जाता है। दिमाग लगाने वाले कुंठा की आग में जलते हुए ईश्वर से दूर ही रहते हैं। प्रेम से आप राधे राधे कही या राधा राधा कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
- हिंदी व्याकरण की शरण में जाकर देखें, तो राधे राधे का मतलब ये भी है कि हे भोलेनाथ हमें राह दे, राह दे।
- राधे पुरुष लिंग शब्द है और राधा स्त्री लिंग। लेकिन वेद में लिंग भेद का वर्णन नहीं मिलता। केवल ईश्वर ही सब कुछ है। शिव ही अर्धनारीश्वर रूप में आधे पुरुष और आधे स्त्री हैं।
- दुर्गा सप्तशती के अनुसार राधा कृष्ण का जन्म सृष्टि या दुनिया का पहला लिंग परिवर्तन प्रयोग था। काली तंत्र रहस्य ग्रंथ के मुताबिक भगवान शिव राधा रूप में और देवी शक्ति श्रीकृष्ण रूप में अवतरित हुई।
प्रेम से धारा बने राधा
- धारा को उलट दो, राधा बन जाएगी। पर क्या यह इतना सरल है। शायद नहीं, क्योंकि धारा तो सतत् प्रवाहमान रहती है।
- धारा के संग बहना सरल है। उसके विपरीत बहना कठिन है। धारा यानी भक्ति की धारा। ज्ञान गंगा भी कह सकते है।
- गंगावतरण भगीरथ प्रयास से ही संभव हुआ था। भक्ति धारा का अवतरण भी चित्त वृत्ति को निर्मल करने के बाद ही होता है।
- मन चंगा होगा तभी, तो कठौती में गंगा के दर्शन होंगे। गंगा नीर के समान मन निर्मल होना चाहिए।
- भक्ति की धारा यानी मानस गंगा का प्रवाह कल-कल, छल-छल गति से, सभी बाधाओं को पार कर परम आत्मा से मिल जाता है। आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है।
- भोलेनाथ को जलधारा अतिप्रिय है। धारा को राधा बनाने के लिए प्रेम आवश्यक है। ऐसा प्रेम जो अनंत हो। रोम-रोम को संत बना दे। ऐसा प्रेम जो दिव्य हो, अलौकिक हो।
- हम प्रेम तो करते हैं, पर उसे निभा नहीं पाते हैं। आज प्रेम किया, विवाह भी कर लिया पर कल विवाद हो गया।
- मनभेद हो गया। संबंध समाप्त। तुम तुम्हारे, हम हमारे इस तर्ज पर प्रेम समाप्त हो जाता है। यह सांसारिक प्रेम है।
- स्वार्थ आधारित है। टिक नहीं सकता । प्रेम वह होता है, जो जन्म-जन्मान्तर तक साथ न छोड़े। हम भगवान से प्रेम करते हैं उसमें भी स्वार्थ रहता हैं।
- मनोकामना पूरी हो। सुख-शांति बनी रहे, सुख-संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का। हम प्रार्थना करते हैं – मेरा दोष क्षण में दूर हो।
- यह कैसा प्रेम है। इस प्रेम में याचना ही याचना है। भगवान जिससे प्रेम करते हैं उसका साथ कभी नहीं छोड़ते है। भक्त जैसा नचाए वैसा नाचते हैं। कोई भेदभाव नहीं करते। प्रेम अलौकिक होना चाहिए।
- धारा को राधा बनाने के लिए प्रेम के साथ समर्पण भी आवश्यक है। ऐसा समर्पण जो तन-मन का हो। हम कहते तो हैं – तन-मन-धन सब कुछ तेरा पर मानते अपना है।
- कौन अपना धन किसी को देना चाहेगा। दान देते है। पर चाहते हैं उसका प्रचार हो। गुप्तदान देने में क्या मजा। जंगल में मोर नाचा किसने देखा। पर भगवान जो देते है छप्पर फाड़ के देते हैं इतना कि आंचल में ही न समाए। झोली छोटी पड़ जाती है।
- बिन मांगे मोती मिलते हैं। यह तब संभव होता है, जब निष्काम भाव से भक्ति की जाए। संपूर्ण समर्पण- ऐसा कि अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।
- वैसा जैसा नदी का सागर से मिलने पर होता है। प्रेम दीवानी मीरा का समर्पण भाव ऐसा कि मेरे तो गिरधर गोपाल दूजा न कोई।
- क्या सही में “पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी” तो क्या किस्सा है? के लिए Ashok Gupta का जवाब क्या सही में “पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी” तो क्या किस्सा है? के लिए Ashok Gupta का जवाब
- राधा का समर्पण ऐसा कि कृष्णमय हो गई। भक्ति का, धारा का लक्ष्य राधा बनने में ही निहित है। ऐसी राधा जिसके नाम स्मरण से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बृहस्पति (गुरु) ग्रह के बारे में कुछ रोचक तथ्य क्या हैं? के लिए Ashok Gupta का जवाब बृहस्पति (गुरु) ग्रह के बारे में कुछ रोचक तथ्य क्या हैं? के लिए Ashok Gupta का जवाब
-
- कृष्ण की कहानी में राधा और मेरा दोनो ही दिलवर जानी है। एक प्रेम दिवानी है, दूसरी कृष्ण दीवानी। दोनो ने कृष्ण को चाहा। अब, बताओ भक्ति में क्या अंतर रह गया।
- भक्ति में समर्पण देखा जाता है। दिल लगाएं। दिमाग लगाने वाले कुंठा की आग में जलते हुए ईश्वर से दूर ही रहते हैं।
- प्रेम से आप राधे राधे कही या राधा राधा कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वैसे राधे का संधि विच्छेद राह -दे होता है और राधा जपने से जीवन का दुःख आधा हो जाता है। आप भी आजमा सकते हैं।
- हिंदी व्याकरण की शरण में जाकर देखें, तो राधे राधे का मतलब ये भी है कि हे भोलेनाथ हमें राह दे, राह दे।
- राधे पुरुष लिंग शब्द है और राधा स्त्री लिंग। लेकिन वेद में लिंग भेद का वर्णन नहीं मिलता। केवल ईश्वर ही सब कुछ है। शिव ही अर्धनारीश्वर रूप में आधे पुरुष और आधे स्त्री हैं।
- दुर्गा सप्तशती के अनुसार राधा कृष्ण का जन्म सृष्टि या दुनिया का पहला लिंग परिवर्तन प्रयोग था।
- काली तंत्र रहस्य ग्रंथ के मुताबिक भगवान शिव राधा रूप में और देवी शक्ति श्रीकृष्ण रूप में अवतरित हुई।
प्रेम से धारा बने राधा
- धारा को उलट दो, राधा बन जाएगी। पर क्या यह इतना सरल है। शायद नहीं, क्योंकि धारा तो सतत् प्रवाहमान रहती है।
- धारा के संग बहना सरल है। उसके विपरीत बहना कठिन है। धारा यानी भक्ति की धारा। ज्ञान गंगा भी कह सकते है।
- गंगावतरण भगीरथ प्रयास से ही संभव हुआ था। भक्ति धारा का अवतरण भी चित्त वृत्ति को निर्मल करने के बाद ही होता है।
- मन चंगा होगा तभी, तो कठौती में गंगा के दर्शन होंगे। गंगा नीर के समान मन निर्मल होना चाहिए।
- भक्ति की धारा यानी मानस गंगा का प्रवाह कल-कल, छल-छल गति से, सभी बाधाओं को पार कर परम आत्मा से मिल जाता है। आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है।
- भोलेनाथ को जलधारा अतिप्रिय है। धारा को राधा बनाने के लिए प्रेम आवश्यक है। ऐसा प्रेम जो अनंत हो। रोम-रोम को संत बना दे। ऐसा प्रेम जो दिव्य हो, अलौकिक हो।
- हम प्रेम तो करते हैं, पर उसे निभा नहीं पाते हैं। आज प्रेम किया, विवाह भी कर लिया पर कल विवाद हो गया।
- मनभेद हो गया। संबंध समाप्त। तुम तुम्हारे, हम हमारे इस तर्ज पर प्रेम समाप्त हो जाता है। यह सांसारिक प्रेम है।
- स्वार्थ आधारित है। टिक नहीं सकता । प्रेम वह होता है, जो जन्म-जन्मान्तर तक साथ न छोड़े। हम भगवान से प्रेम करते हैं उसमें भी स्वार्थ रहता हैं।
- मनोकामना पूरी हो। सुख-शांति बनी रहे, सुख-संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का। हम प्रार्थना करते हैं – मेरा दोष क्षण में दूर हो।
- यह कैसा प्रेम है। इस प्रेम में याचना ही याचना है। भगवान जिससे प्रेम करते हैं उसका साथ कभी नहीं छोड़ते है। भक्त जैसा नचाए वैसा नाचते हैं। कोई भेदभाव नहीं करते। प्रेम अलौकिक होना चाहिए।
- धारा को राधा बनाने के लिए प्रेम के साथ समर्पण भी आवश्यक है। ऐसा समर्पण जो तन-मन का हो। हम कहते तो हैं – तन-मन-धन सब कुछ तेरा पर मानते अपना है।
- कौन अपना धन किसी को देना चाहेगा। दान देते है। पर चाहते हैं उसका प्रचार हो। गुप्तदान देने में क्या मजा। जंगल में मोर नाचा किसने देखा। पर भगवान जो देते है छप्पर फाड़ के देते हैं इतना कि आंचल में ही न समाए। झोली छोटी पड़ जाती है।
- बिन मांगे मोती मिलते हैं। यह तब संभव होता है, जब निष्काम भाव से भक्ति की जाए। संपूर्ण समर्पण- ऐसा कि अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।
- वैसा जैसा नदी का सागर से मिलने पर होता है। प्रेम दीवानी मीरा का समर्पण भाव ऐसा कि मेरे तो गिरधर गोपाल दूजा न कोई।
- क्या सही में “पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी” तो क्या किस्सा है? के लिए Ashok Gupta का जवाब क्या सही में “पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी” तो क्या किस्सा है? के लिए Ashok Gupta का जवाब
- राधा का समर्पण ऐसा कि कृष्णमय हो गई। भक्ति का, धारा का लक्ष्य राधा बनने में ही निहित है। ऐसी राधा जिसके नाम स्मरण से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बृहस्पति (गुरु) ग्रह के बारे में कुछ रोचक तथ्य क्या हैं? के लिए Ashok Gupta का जवाब बृहस्पति (गुरु) ग्रह के बारे में कुछ रोचक तथ्य क्या हैं? के लिए Ashok Gupta का जवाब
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- कृष्ण की कहानी में राधा और मेरा दोनो ही दिलवर जानी है। एक प्रेम दिवानी है, दूसरी कृष्ण दीवानी। दोनो ने कृष्ण को चाहा। अब, बताओ भक्ति में क्या अंतर रह गया।
- शिव कल्याणेश्वर मंदिर, फालका बाजार, ग्वालियर में एकादश वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा एकादशनी रुद्राभिषेक।
- भक्ति में समर्पण देखा जाता है। दिमाग लगाने वाले कुंठा की आग में जलते हुए ईश्वर से दूर ही रहते हैं। प्रेम से आप राधे राधे कही या राधा राधा कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
हिंदी व्याकरण की शरण में जाकर देखें, तो राधे राधे का मतलब ये भी है कि हे भोलेनाथ हमें राह दे, राह दे।
राधे पुरुष लिंग शब्द है और राधा स्त्री लिंग। लेकिन वेद में लिंग भेद का वर्णन नहीं मिलता। केवल ईश्वर ही सब कुछ है। शिव ही अर्धनारीश्वर रूप में आधे पुरुष और आधे स्त्री हैं।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार राधा कृष्ण का जन्म सृष्टि या दुनिया का पहला लिंग परिवर्तन प्रयोग था। काली तंत्र रहस्य ग्रंथ के मुताबिक भगवान शिव राधा रूप में और देवी शक्ति श्रीकृष्ण रूप में अवतरित हुई।
प्रेम से धारा बने राधा
- धारा को उलट दो, राधा बन जाएगी। पर क्या यह इतना सरल है। शायद नहीं, क्योंकि धारा तो सतत् प्रवाहमान रहती है।
- धारा के संग बहना सरल है। उसके विपरीत बहना कठिन है। धारा यानी भक्ति की धारा। ज्ञान गंगा भी कह सकते है।
- गंगावतरण भगीरथ प्रयास से ही संभव हुआ था। भक्ति धारा का अवतरण भी चित्त वृत्ति को निर्मल करने के बाद ही होता है।
- मन चंगा होगा तभी, तो कठौती में गंगा के दर्शन होंगे। गंगा नीर के समान मन निर्मल होना चाहिए।
- भक्ति की धारा यानी मानस गंगा का प्रवाह कल-कल, छल-छल गति से, सभी बाधाओं को पार कर परम आत्मा से मिल जाता है। आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है।
- भोलेनाथ को जलधारा अतिप्रिय है। धारा को राधा बनाने के लिए प्रेम आवश्यक है। ऐसा प्रेम जो अनंत हो। रोम-रोम को संत बना दे। ऐसा प्रेम जो दिव्य हो, अलौकिक हो।
- हम प्रेम तो करते हैं, पर उसे निभा नहीं पाते हैं। आज प्रेम किया, विवाह भी कर लिया पर कल विवाद हो गया।
- मनभेद हो गया। संबंध समाप्त। तुम तुम्हारे, हम हमारे इस तर्ज पर प्रेम समाप्त हो जाता है। यह सांसारिक प्रेम है।
- स्वार्थ आधारित है। टिक नहीं सकता । प्रेम वह होता है, जो जन्म-जन्मान्तर तक साथ न छोड़े। हम भगवान से प्रेम करते हैं उसमें भी स्वार्थ रहता हैं।
- मनोकामना पूरी हो। सुख-शांति बनी रहे, सुख-संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का। हम प्रार्थना करते हैं – मेरा दोष क्षण में दूर हो।
- यह कैसा प्रेम है। इस प्रेम में याचना ही याचना है। भगवान जिससे प्रेम करते हैं उसका साथ कभी नहीं छोड़ते है। भक्त जैसा नचाए वैसा नाचते हैं। कोई भेदभाव नहीं करते। प्रेम अलौकिक होना चाहिए।
- धारा को राधा बनाने के लिए प्रेम के साथ समर्पण भी आवश्यक है। ऐसा समर्पण जो तन-मन का हो। हम कहते तो हैं – तन-मन-धन सब कुछ तेरा पर मानते अपना है।
- कौन अपना धन किसी को देना चाहेगा। दान देते है। पर चाहते हैं उसका प्रचार हो। गुप्तदान देने में क्या मजा। जंगल में मोर नाचा किसने देखा। पर भगवान जो देते है छप्पर फाड़ के देते हैं इतना कि आंचल में ही न समाए। झोली छोटी पड़ जाती है।
- बिन मांगे मोती मिलते हैं। यह तब संभव होता है, जब निष्काम भाव से भक्ति की जाए। संपूर्ण समर्पण- ऐसा कि अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।
- वैसा जैसा नदी का सागर से मिलने पर होता है। प्रेम दीवानी मीरा का समर्पण भाव ऐसा कि मेरे तो गिरधर गोपाल दूजा न कोई।
- क्या सही में “पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी” तो क्या किस्सा है? के लिए Ashok Gupta का जवाब क्या सही में “पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी” तो क्या किस्सा है? के लिए Ashok Gupta का जवाब
- राधा का समर्पण ऐसा कि कृष्णमय हो गई। भक्ति का, धारा का लक्ष्य राधा बनने में ही निहित है। ऐसी राधा जिसके नाम स्मरण से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बृहस्पति (गुरु) ग्रह के बारे में कुछ रोचक तथ्य क्या हैं? के लिए Ashok Gupta का जवाब बृहस्पति (गुरु) ग्रह के बारे में कुछ रोचक तथ्य क्या हैं? के लिए Ashok Gupta का जवाब
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- कृष्ण की कहानी में राधा और मेरा दोनो ही दिलवर जानी है। एक प्रेम दिवानी है, दूसरी कृष्ण दीवानी। दोनो ने कृष्ण को चाहा। अब, बताओ भक्ति में क्या अंतर रह गया।
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