हताश मत हो हताश निराश होते ही हमारे ऊर्जा क्षमता का सत्यानाश हो जाता है!
असफलता का मुख्य कारण ही हताशा है….
हमारे शरीर पांच कर्म इंद्रियों एवं पांच ज्ञानेंद्रियों पंच तत्व एवं आत्मा और जीव अर्थात 17 शक्तियों का तालमेल है!
17 ताश के पत्तों की तरह है ब्लाइंड पत्तों को खोलते ही जीतने की आशा नजर आने लगती है!
और जीत के बाद ही दुनिया जय जयकार लगाती है…..
बस ताश के पत्तों को खोलने की प्रक्रिया नहीं आती हमें जो लोग पत्ते लगाना सीख जाते हैं!
वह कभी नहीं आते इसके लिए पत्ते लगाने वाले अनुभवी लोगों से सीखना पड़ता है….
जीवन एक जुआ है हर जगह जुआ खेला जा रहा है!
जीत ते वे ही जुआरी है….
जो बार-बार हार कर भी खेलते रहते हैं ….
और अनुभवी बन जाते हैं क्योंकि पत्तों की पकड़ सीख जाते हैं…
हार हार कर जीतना ही तो जीवन है…
जो लोग पत्ते लगाने में माहिर हो जाते हैं …
वह फिर कभी नहीं हारते चाहे मामला जीवन का हो या व्यापार का घर हो या रिश्तेदार का उद्योग हो या भोग का रोग हो या निरोग का सबसे अधिक जगह वह हारते हैं !
जो थक जाते हैं निराशा से भर कर हताश हो जाते हैं…
इसलिए उठो चलो दौड़ो भागो भागने से सब दुख भाग जाएगा क्योंकि
जीवन है!
चलने का नाम चलते रहो सुबह शाम..!
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