गुड़मार का स्वाद कड़वा होता है और इसके पत्ते चबाने पर मिठाई का स्वाद नहीं आता। इसी वजह से गुड़मार को मधुनाशिनी भी कहते हैं।
ज्यादा गुड़मार के सेवन से जीभ की ग्रहण शक्ति नष्ट हो जाती है।
गुड़मार को किसान लोग मेढाशिंगी कहते हैं।
- संस्कृत में-मधुनाशिनी । हिंदी में-मेढ़ासिंगी, गुडमार। बंगाली में-मेष सिंगी। मराठी में-मेढाशिगी, कावकी।
- ता०-शिरुकुरंज । ते०-पोडापत्री । ले०-Gymnema sylvestre R. Br. (जिमनेमा सिल्वेस्ट्रे) Fam. Asclepiadaceae (एस्क्लेपिएडेसी)।
- सर्वाधिक गुड़मार दक्षिण भारत के कोंकण, त्रावणकोर, गोवा, में विशेष रूप से होती है। बिहार एवं उ० प्र० में भी कहीं-कहीं मिलती है तथा बागों में लगाई हुई पाई जाती है।गुड़मार की लता-चक्रारोही, पतले काण्ड की, काष्ठमय, रोमश तथा बहुत फैली हुई होती पत्ते-अभिमुख, अण्डाकार-आयताकार या लटवाकार, कमी-कमी हृद्वत् , १-२ इञ्च लम्बे, कमी. कमी ३ इञ्च लम्बे, नोकदार एवं मृदुरोमश होते हैं । पुष्प-सूक्ष्म, पीले, समस्थ मूर्धजक्रम में निकले हुए होते हैं।
गुण और प्रयोग-इसके गुण इपिकाक तथा उतरण जैसे हैं। यह कफन तथा वामक है। इसके पत्तों के सेवन से मधुमेह में लाभ होता है।
(निघण्टु आयुर्वेद से साभार)
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