पहले कहते थे कि जब कर नहीं, तो डर काहे का। व्यापारी को सरकार के कर का डर लगा रहता है। नारी को बीमारी का भय रहता है कि कहीं सुंदरता न नष्ट हो जाए।
कुंवारी को धोखेबाज प्रेमी से डर लगता है। चरित्रहीन नर को नारी से डर लगता है।
लेकिन एक दार ऐसा भी है जो महिलाओं को खूबसूरत बनाता है। उसका नाम पाउडर है।
अय्याश को बीमारी का डर होता है।
राजा को अय्यारी से डर बना रहता है।
सवारी को लापरवाह ड्राइवर से डर लगता है।
जीवन में डर ही डर हैं। भोलेनाथ का ध्यान कर निडर होकर जीने का अभ्यास करो।
प्राचीन धर्म शास्त्रों में ५०० प्रकार के डर, भय का विवरण है। डर कई प्रकार के होते हैं। मुख्य भय केवल पाँच हैं, जिनमें से हमारे लगभग सभी तथाकथित भय निर्मित होते हैं। इनमें विलुप्त होने, उत्परिवर्तन, स्वायत्तता की हानि, अलगाव और अहंकार की मृत्यु शामिल है।
जैसे बदलाव का भय, मारने का डर। सार्वजनिक रूप से बोलने का डर। बीमारियों का डर। ब्रेकअप का भय। अकेलेपन का भय, विफलता का भय, समाज का भय, पोल खुलने का भय।
किसी को आग से जलने का डर, किसी को ऊंचाई से गिरने का डर, किसी को परीक्षा में फैल होने का डर, किसी को इंजेक्शन से डर ,किसी को जहरीले नाग से डर, किसी को छिपकली कांक्रोच का डर, डरने के कई प्रकार हैं।
डर मस्तिष्क के उस हिस्से में शुरू होता है जिसे अमिगडाला कहा जाता है।
डर से मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय अध्ययन है। ज्यादा वीडियो, यूट्यूब चैनल देखकर आपकी मानसिकता गुलामी की जंजीरों में जकड़ने लगती है। जो आप हैं वही बने रहने के लिए किताबे अवश्य पढ़ें अन्यथा क्योरा पर भी बहुत जानकारी मिल सकती है।
हो सके, तो श्रीमद भागवत गीता के 18 अध्ययन में से रोज एक का पाठ करें। आपको जीवन का अर्थ समझ आएगा और डर हमेशा के लिए निकल जायेगा।
ईश्वर यानि महाकाल ऊर्जा का आपार भंडार है। !!ॐ शम्भूतेजसे नमः शिवाय।। मंत्र का कम से कम एक माला जाप करके, तो देखो। डर, किधर चला गया मालूम ही नहीं पड़ेगा।
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