ज्वर का ईलाज ?

नीलकंठ का नित्य पाठ करने से अकाल मृत्यु, सभी प्रकार के ज्वर, मृत्यु भय, कुष्ठ रोग, भूत-प्रेतडाकिनी-शाकिनी- ब्रह्मराक्षस आदि बाधाएँ, मिर्गी रोग, सन्निपात, हिक्का (हिचकी रोग), कफ, श्वास, कास आदि रोग, सर्प भय तथा सर्प विष आदि के कष्ट दूर होते हैं। यदि किसी ने आप पर

  1. स्तम्भन (विकास की गति को रोक देना),
  2. मोहन (मोह में डालकर मन चाहा काम करवा लेना),
  3. वशीकरण ( अपनी ओर खींचना या अपने वश में करना),
  4. उच्चाटन यानि मन को विचलित कर देना
  5. कीलन अर्थात आपकी पूजा, साधना और मन्त्र के प्रभाव को नष्ट कर देने का प्रयास करना) और
  6. उवासन अर्थात जहां आप स्थायी रूप से रह रहे हैं, वहाँ से उखाड़ देना। इन छः कर्मों का उपयोग किया है या कर रहा है, तो नीलकण्ठ स्तोत्रम् का पाठ से आप जिंदगी भर सुरक्षित रहेंगे और विकारों की गंदगी निकल जायेगी।
  • ब्रह्माण्ड का एक मात्र स्तोत्र जिसकी रचना महाकाल ने स्वयं ही की, ताकि भोले से सरल भक्त दुखों से मुक्ति पा सकें।
  • ग्रह क्लेश शांति के लिए प्राचीन काल के महर्षि रूपी मस्तिष्क वैज्ञानिकों ने काफी खोजबीन करने के बाद शिव सहस्त्र नाम, स्तुति, कवच, मंत्र, तंत्र और स्तोत्र की रचना की जिसका पाठ करने से दूषित संताप का नाश होता है। इस लेख में नीलकंठ स्तोत्र के बारे में बता रहे हैं।
  • कालसर्प, पितृदोष, वास्तु दोष, राहु-केतु एवं शनि से पीड़ितों हेतु विशेष उपयोगी श्री नीलकण्ठ स्तोत्रम् का नियमित एक से 5 पाठ करने से जीवन चमत्कारों से भर जायेगा। 2 दीपक Raahukey ऑयल के जलाकर स्तोत्र पढ़ना प्रारंभ करें।
  • पुरषोत्तम मास युक्त सावन के महीने में अमृतम भक्तों द्वारा दो तक निरंतर शिवा विल्वाभिष पूजन। लिंक क्लिक कर देखें।

स्तोत्राणि ध्यान श्री नीलकण्ठ महादेव

बालार्कायुत तेजसं, धृतजटा, जूटेन्दु खण्डोज्ज्वलं।

नागेन्द्रैः कृत भूषणं जपवटी, धत्ते कपालं करैः।।

खट्वाङ्गं दधतं त्रिनेत्र विलसत्, पञ्चाननं सुन्दरं व्याघ्रत्वक्परिधानमब्जनिलयं, श्री नीलकण्ठंभजे॥

श्री नीलकण्ठ स्तोत्रम् आरंभ

  • सीधे हाथ में जल लेकर नीचे लिखा विनियोग बोलकर जल पृथ्वी पर गिरकर तीन बार प्रणाम करें
  • नीलकण्ठस्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिरनुष्टुप् छन्दः, श्री नीलकण्ठ सदाशिवो देवता, ब्रह्मबीजं, पार्वती शक्तिः, शिव इति कीलकं, मम काय- जीव-रक्षणार्थे, भुक्ति मुक्ति सिद्ध्यर्थे, चतुर्विध पुरुषार्थसिद्ध्यर्थे, सकलारिष्ट विनाशार्थे श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे च पाठे विनियोगः।

ॐ नमो नीलकण्ठाय श्वेत शरीराय नमः।

नागमाला अऽलंकृत भूषणाय नमः।

भुजंग परिकराय नागयज्ञोपवीताय नमः।

अनेक काल मृत्यु विनाशनाय नमः।

युग युगान्त काल प्रलय प्रचण्डाय नमः।

ज्वलन्मुखाय नमः। दंष्ट्रा कराल घोररूपाय नमः।

हुं हुं फट् स्वाहा ।

ज्वालामुख मन्त्र करालाय नमः।

प्रचण्डार्क सहस्रांशु प्रचण्डायनमः।

कर्पूरामोदपरिमलाङ्ग सुगन्धिताय नमः।

इन्द्रनील महानील वज्रवैदूर्य।

मणि माणिक्य मुकुट भूषणाय नमः।

श्री अघोरास्त्रमूलमंत्राय नमः।

ॐ ह्रां स्फुर स्फुर। ॐ ह्रीं स्फुर स्फुर। ॐ हूं स्फुर स्फुर।

अघोर घोरतररूपाय नमः।

रथ रथ तत्र तत्र चट चट कह कह मद मद मदनदहनाय नमः।

श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्राय नमः।

ज्वलन मरणभय क्षय हुँ फट् स्वाहा।

अनन्तघोर ज्वर मरणभय कुष्ठ व्याधि विनाशनाय नमः।

शाकिनी डाकिनी ब्रहाराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय नमः।

अपस्मार भूत वेताल कूष्माण्ड सर्वग्रह विनाशनाय नमः।

मन्त्रकोष्ठ करालाय नमः।

सर्वापद् विच्छेदाय नम:।

हुं हुं फट् स्वाहा।

आत्म मंत्र सुरक्षणाय नमः।

ॐ ह्रां ह्रीं हूं नमो भूत डामर ज्वाला वश भूतानां।

द्वादश भूतानां त्रयोदश भूतानां पञ्चदशडाकिनीनां।

हन हन दह हद नाशय नाशय।

एकाहिक द्वयाहिक चतुराहिक पञ्चाहिक व्याप्ताय नमः।

आपादानत सन्निपात वातादि हिक्का।

कफादि कास श्वासादिक दह दह छिन्धि छिन्धि।

श्री महादेव निर्मित स्तम्भन मोहन।

वश्याकर्षणोच्चाटन कीलन उद्वासन।

इति षट्कर्म विनाशनाय नमः।

अनन्त वासुविक तक्षक कर्कोटक शंखपा।

विजय पद्म महापद्म एलापत्र नाना नागानां।

कुलकादि विषं छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि।

प्रवेशय प्रवेशय शीघ्रं शीघ्रं हुं हुं फट् स्वाहा।

वात ज्वर मरण भय छिन्न छिन्न हन हन भूतज्वर।

प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीत ज्वर।

सन्निपातज्वर बालज्वर ग्रहज्वर कुमारज्वर।

ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर महेशज्वर

तापज्वर आवश्यकज्वर कामाग्नि।

विषमज्वर मरीचिज्वरादि प्रथम दण्डधराय नमः।

परमेश्वराय नमः।

आवेशय आवेशय शीघ्रं शीघ्रं हुं हुं फट् स्वाहा।

चौर मृत्युग्रह व्याघ्र सर्पादि विषभय विनाशनाय नमः।

मोहन मन्त्राणामाकर्षण मन्त्राणां।

पर विद्या छेदन मन्त्राणाम्।

ॐ ह्रां ह्रीं हूं कुलि लीं लीं हुं क्षं कुँ कुँ हु हुं फट् स्वाहा।

नमो नीलकण्ठाय नमः। दक्षाध्वर हराय नमः।

श्री नीलकण्ठाय नमः।

  • विशेष – एक बैठक में इसका एक, पाँच या सात बार पाठ करना विशेष सफलता दिलाता है।
  • भगवान शिव को समर्पित श्री नीलकण्ठ स्तोत्रम् समस्त संसार के व्यक्ति के लिए अति लाभकारी है।
  • महाकाल का ध्यान और विनियोग करके इसका पाठ किसी शिव मंदिर, बिल्व (बेल) वृक्ष के नीचे अथवा अपने घर पर ही करें।
  • करीब 37 साल पहले उज्जैन स्थित अघोरियों की समाधि विक्रम घाट के एक तांत्रिक अघोरी ने इस नीलकंठ स्तोत्र को मुझे आशीर्वाद स्वरूप दिया था।
  • नीलकंठ के पाठ असाध्य और कष्टदायक जीवन फूल की तरह हल्का होकर निकल गया। उस समय एक आयुर्वेदिक कंपनी में बतौर सेल्स मैन की हैसियत से 300/- माह के वेतन पर नोकरी करता था।
  • आज इसी नीलकंठ स्तोत्र के सहारे नैया पार हुई और amrutam जैसा इंटरनेशनल स्तर का ऑनलाइन ब्रांड स्थाई बन सका।
  • अमृतम दवाएं दुनिया की लगभग 71 देशों में निर्यात की जा रही हैं।
  • काफी समय से नीलकंठ स्तोत्र के बारे में बताने की प्रेरणा मिल रही थी। अब समय भी कम है। भविष्य में दिन दुखियों, रोगियों को ये निश्चित रूप से मदद करेगा।
  • सन 2002 में कालसर्प विशेषांक में नीलकंठ स्तोत्र प्रकाशित किया था। ये कहीं भी नहीं मिलेगा। इसका प्रिंट आउट निकलवा कर घर में भी लगाएं। लाभ होगा।
  • नीलकंठ स्तोत्र का पाठ करने के पहले और बाद में ।।ॐ शम्भूतेजसे नमः शिवाय।। का जप अवश्य करें, ताकि तत्काल फायदा मिले।
  • नव ग्रहों में कुछ जातक की मानसिकता खराब कर देते हैं। परिणाम स्वरूप स्वभाव चिड़चिड़ा, क्रोधित हो जाता है।

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