- 12 काम की बातें आपका मनोबल तथा आत्मविश्वास बढ़ाएंगी…
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- भगवान सूर्य की उपासना से आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सकता है।
- सूर्य अखण्ड प्रकाश पुंजों से ब्रह्मण्ड को आलोकित करता है।
- सूर्य जगत की आत्मा है और हमारी भी। इन्हें जगदीश भी कहते हैं क्योंकि ये जगत को दिखाई पड़ते हैं।
- सूर्य की असीम ऊर्जा से ही सृष्टि संचालित होती है। वे जगत के संचालनकर्ता हैं। अगर वे एक पल भी न रहें तो संसार समाप्त हो जाएगा। इनकी ऊर्जा से ही जगत ऊर्जावान होता है और विश्व का कल्याण होता है।
- सूर्य की किरणों से जगत के सभी पद्धार्थो में रस और शक्ति प्रदान करती हैं।
- आकाश में सूर्य के विराजमान होने से ही अग्नि, वायु एवं जल अपनी-अपनी शक्ति का सही तरीके से प्रदर्शन कर पाते हैं।
- सौरमंडल ही वह केन्द्र है, जो अपने आकर्षण से देवलोक एवं पितृलोक आदि का समन्वित कार्य संभाल रहा है।
- हर धर्म ग्रंथ में सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है।
- देवम् भुत्वा देवम् यजेत्। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि देवता की तरह बनकर ही देवताओं की पूजा करनी चाहिए। हमारे यहां पूजा करने से पहले स्नान करना अनिवार्य है।
- चराचर जगत के लिए सूर्य द्वारा किए गए परोपकार के कृतज्ञता स्वरूप छठ महाव्रत किया जाता है।
- कृतज्ञता का ज्ञापन हमेशा काम के बाद होता है, इसलिए दिन ढलने के बाद अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य दिया जाता है।
- वहीं उगते हुए सूर्य की पूजा सभी जगह होती है। हमारे यहां भी सप्तमी को उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है।
- रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा अर्चना की जाती है। भविष्यपुराण के अनुसार रविवार के दिन सूर्य देव को समर्पित कुछ विशेष मंत्रों के जाप से व्यक्ति के जीवन की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा जपा गया आदित्य ह्रदय स्तोत्र का नियमित जप करें यह भोलेनाथ ने प्रदान किया था।
राहस्योउपनिषद में बताया है कि सूर्य महादेव के नेत्र हैं। रविवार को दूध में केशर मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करने से भी आत्मविश्वास बढ़ता है।
– !!श्रीगणेशाय नमः!! –
भगवान भास्कर को प्रसन्न करने के लिए सूर्य कवच का पथ सूर्योदय से पहले करें। इससे मन को शांति मिलेगी। मनोबल एवं आत्मविश्वास बढ़ेगा। डिप्रेशन दूर होगा।
श्री ब्रह्मयामलमें (यामल-तन्त्र ग्रन्थ) त्रैलोक्यमङ्गलम् नामक श्री सूर्यकवच है। त्रैलोक्यमङ्गलम् का अर्थ है= तीनों लोकों का कल्याण करने वाला कवच।
श्रीसूर्य उवाच- आदित्य सूर्य-ने कहा-
साम्ब साम्ब महाबाहो, शृणु मे कवचं शुभम्। त्रैलोक्यमङ्गलं नाम, कवचं परमाद्भुतम्।।१।।
हे लम्बी भुजाओं वाले साम्ब! मेरा शुभ कवच सुनो। यह कवच तीनों लोकों का हित करने वाला बहुत अद्भुत है।
यज्ज्ञात्वा मन्त्रवित्सम्यक्, फलं प्राप्नोति निश्चितम्। यज्ज्ञात्वा च महादेवो,गणानामधिपोऽभवत्।।२।।
अर्थात – भली प्रकारसे जो मन्त्र का ज्ञाता होता है, वह निश्चय ही इसका श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करता है। और जिसे जान कर महादेव भी अपने गणों के अधिपति हो गये हैं।
पठनाद्धारणाद्-विष्णुः सर्वेषां पालकः सदा। एवमिन्द्रादयः सर्वे, सर्वैश्वर्यमवाप्नुयुः।।३।।
अर्थात- इस श्री सूर्य कवच को पढ़ने से और धारण करने से श्री विष्णु भगवान सदा के लिए सबका पालन करने लगे। इसी प्रकार इन्द्र आदि सभी देवोंने सब प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त किया।
दाहिनी हथेली में जल लेकर विनियोग करें…
कवचस्य ऋषिर्ब्रह्मा, छन्दोनुष्टुबुदाहृतः।
श्रीसूर्यो देवता चात्र, सर्वदेवनमंस्कृतः।।४।।
कवच के ऋषि “ब्रह्मा”, इसका छन्द “अनुष्टुप कहा गया और सभी देवता जिसे नमस्कार करते हैं, वे सूर्य ही इस कवच के देवता हैं।
यश-आरोग्य-मोक्षेषु, विनियोगः प्रकीर्तितः। ” –
यश, आरोग्य और मोक्षमें यह विनियोग है। (हथेली का जल अपने समक्ष धरती पर छोड़ दें)
हृदयादिन्यासः- हृदय आदि में मन्त्रों व देवों को स्थान देना (स्थापित करना) न्यास कहलाता है। (न्यास-धरोहर निक्षेप, अमानत)
ॐ प्रणवः मे शिरः पातु- दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से शिर स्पर्श करें। (अँगुलियाँ बँधी रहें, अलग अलग न हों)
ॐ घृणि मे पातु भालकम्।।५।।
दाहिने हाथवकी पाँचों अँगुलियोंसे मस्तक छुएँ।
ॐ सूर्योऽव्यान्नयनद्वयम्+ दाहिने हाथ की तर्जनी (अंगूठेके पासकी) अँगुलीसे दाहिना नेत्र, बीचकी अँगुलीसे दोनों भौहों के मध्य और उसके पास वाली तर्जनी अंगुली से बाँए नेत्रका स्पर्श करें।
ॐ आदित्यः कर्णयुग्मकम्। पाँचों बँधी अँगुलियों पहले दाहिने और फिर बाँए कानका स्पर्श करें।
ॐ हीं दिवाकराय नमः।
- क्रमशः आठ बार मन्त्र पढ़ते हुए अपने दोनों हाथोंकी हथेलियों से शिरसे पैर तक आठ बार हथेलियाँ फेरिये। खड़े होने कीआवश्यकता नहीं, बैठे रहें। महत्ता
अयम् अष्टाक्षरो महामन्त्रः सर्वाभीष्टफलप्रदः!६!
यह अष्टाक्षर मन्त्र सभी कामनाओंकी पूर्ति करता है।
ह्रीं बीजं मे मुखं पातु, हृदयं भुवनेश्वरी।
चन्द्रबिम्बं विंशदाद्यं, पातु मे गुह्यदेशकम्।।७।।
- विशेष- (मन में भावना कीजिए-) ही बीज मन्त्र मेरे मुरु को, भुवनेश्वरी मेरे हृदयको और चन्द्रबिम्ब अपनी सम्पू कलाओं के साथ हमारे (गुह्य) शरीर के गुप्त भाग को पवित्र करे।
महत्त्व…
अक्षरोऽसौ महामन्त्रः, सर्वतन्त्रेषु गोपितः।
शिवो वह्नि मायुक्तो, वामाक्षी- बिन्दुभूषितः ।।८।।
- सभी-तन्त्रों में एक अक्षरका यह महामन्त्र बहुत गुप्त है। यह बाईं आँख-के बिन्दु की तरह शोभित होने वाला (वहनि) ज्ञानके प्रकाशसे युक्त सबका (शिव) कल्याण करने वाला है।
एकाक्षरो महामन्त्रः, श्रीसूर्यस्य प्रकीर्तितः। गुयाद्गुह्यतरो मन्त्रो, वाञ्छा चिन्तामणिः स्मृतः।।९।।
- भगवान् श्रीसूर्य का यह एक अक्षरवाला महामन्त्र कहा गया है। यह महामन्त्र गुप्त से भी अधिक गुप्त है।
- इच्छाओं को पूर्ण करने वाला चिन्तामणिके रूप में यह महामन्त्र स्मरण किया जाता है।
शीर्षादिपाद-पर्यन्तं, सदा पातु मनूत्तमः।
इति ते कथितं दिव्यं, त्रिषु लोकेषुदुर्लभम् ।।१०।।
- मन को सदा पवित्र रखने वाला यह मन्त्र शिर से लेकर पैर तक हमें पवित्र रखे। (श्रीसूर्यने साम्बसे कहा मैंने) तुम्हें तीनों लोको में यह दुर्लभ और दिव्य मन्त्र बताया है।
श्रीप्रदं कान्तिदं नित्यं, धनारोग्य-विवर्धनम्।कुष्ठादिरोगशमनं, महाव्याधिविनाशनमम्।।११।।
- अर्थात- यह महामन्त्र नित्य गौरव और शोभा देने वाला, धन और स्वास्थ्य बढ़ाने वाला,तथा बड़े बड़े रोगों;का विनाशक है।
त्रिसन्ध्यं यःपठेन्नित्य- मरोगी बलवान्भवेत्।
- जो तीनों सन्ध्याओं (प्रातः, दोपहर, सायंकाल) को नित्य इसका पाठ करता है।
बहुना किमिहोक्तेन, यद्यन्मनसि वर्तते।।२।। तत्तत्सर्वं भेवत्तस्य, कवचस्य च धारणात्। 1
- यहाँ इस विषयमें अधिक कहने से क्या? इस कवचको धारण करनेसे मनमें जो-जो कामनाएँ हों, वे सभी पूर्ण हो जाती हैं।
भूतप्रेत-पिशाचाश्च, यक्षगन्धर्वराक्षसाः।।१३।। ब्रह्मराक्षसवेताला, न दृष्टुमपितं क्षमाः।
दूरादेव-पलायन्ते, तस्य संकीर्तनादपि।।१४।।
- भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, राक्षस ब्रह्मराक्षस, वेताल आदि द्वारासतानेकी कौन कहे, ये उसको देखने में भी समर्थ नहीं है, क्योंकि इस कवचको कह देने मात्र से ये सारे दुष्ट जीव दूर भाग जाते हैं।
भूर्जपत्रे समालिख्य,रोचनागुरुकुङ्कुमैः।
रविवारे च सङ्क्रान्त्या, सप्तम्यां च विशेषतः !१५।
- रविवार, संक्रान्ति और विशेषकर सप्तमी (किसी भी पक्ष की) को भोजपत्र पर रचना,सुगन्धि चन्दनऔर रोली से इस कवचको लिखकर
धारयेत् साधक श्रेष्ठः, श्रीसूर्यस्य प्रियो भवेत्।
त्रिलोहमध्यमं कृत्वा, धारयेद्दक्षिणेकरे।।१६।।
- (त्रिलोह) लोहा, ताबा और चाँदीके ताबीज में बन्द करके श्रेष्ठ साधक दाहिने हाथ में बाँधे। वह साधक भगवान सूर्य का बड़ा प्रिय होता है।
शिखायामथवा कण्ठे, सोऽपि सूर्यो न संशयः।
इति ते कथितं साम्ब, त्रैलोक्यमङ्गलाभिधम्।।१७।।
- अथवा शिखा से स्पर्श करके कण्ठ में बाँध ले। हे साम्ब। मैंने यह जो सूर्य कवच की महत्ता अज्ञैर नियम बताया, उसमें कोई शंका नहीं है कि इससे तीनों लोकोंका कल्याण होगा।
कवचं दुर्लभ लोके,तव स्नेहात्प्रकाशितम्।
अज्ञात्वा कवचं दिव्यं, यो जपेत्सूर्यमुत्तमम्।।१८।।
- श्रीकृष्णने कहा- हे साम्ब । तुम्हारे स्नेहसे संसार में अज्ञात यह दुर्लभ दिव्य कवच तुम्हें बताया। जो इसे जपता है सूर्य भगवान् उसे उत्तम गति प्रदान करते हैं। सिद्धिर्न जायते तस्य, कल्पकोटिशतैरपि।।१९।।
सैकड़ों करोड़ कल्प में भी इसकी सिद्धि समाप्त नहीं होती।
।। इति श्रीब्रह्मयामले त्रैलोक्य- मङ्गलं नाम श्री सूर्यकवचं सम्पूर्णम्।। ।। इसप्रकार श्री ब्रह्मयामलमें त्रैलोक्य मंगल नाम का श्री सूर्यकवच सम्पूर्ण हुआ।
संस्कृत की ऋतम् नामक पत्रिका में सूर्याष्टकम् भी प्रकाशित हुआ था। यह अत्यंत लाभकारी है। इससे मानसिक क्लेश सन्ताप मिटता है।
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