वर्तमान में अधिकांश लोग मानसिक रूप से प्रसन्न नहीं हैं। हर किसी को कोई न कोई आधि व्याधि ने पीड़ित कर रखा है।
प्राचीनकएल में प्रत्येक घर में ग्रह नक्षत्र संबंधित
पेड़ पुष्पों का लगाना अनिवार्य था। आज फ्लैट सिस्टम ने सब कुछ तबाह कर दिया।
धनदाता ग्रह नक्षत्र वाटिकाओं को लगाएं...
हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रत्येक ग्रह एवं नक्षत्र
से संबंधित पौधों के के बारे में जानकारी एकत्र
कर नवग्रह एवं नक्षत्र वाटिकाएं स्थापित की थीं।
पौराणिक नारद पुराण के अनुसार
सदैव से यह मान्यता रही है कि ग्रह- -नक्षत्रों के कुप्रभावों को वृक्ष एवं वनस्पतियां समाप्त या कम कर सकती हैं।
भारतीय मान्यता में सूर्यमंडल के समस्त सदस्यों
व उपसदस्यों (जिसमें सूर्य व चंद्रमा भी शामिल हैं)
को ग्रह कहा गया है। ग्रह धरती के करीब होने से इनकी स्थिति रोज बदलती रहती है।
नक्षत्र धरती से अत्यंत दूर होने से स्थान बदलते नहीं प्रतीत होते अतः स्थिर अर्थात नक्षत्र कहे गये।
भारतीय मनीषियों ने आसमान में चंद्रमा के यात्रा – पथ को २७ भागों में बांटा तथा हर २७वें भाग में पड़नेवाले तारामंडल के बीच कुछ विशिष्ट तारों की पहचान कर उन्हें एक नाम दिया जिन्हें नक्षत्र कहा गया।
ज्योतिष में इस प्रकार नवग्रहों तथा २७ नक्षत्रों की पहचान की गयी।
किसी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा धरती से जिस नक्षत्र की सीध में रहता है, वह उस व्यक्ति का जन्म नक्षत्र कहलाता है।
ज्योतिष, आयुर्वेदिक, तांत्रिक व अन्य ग्रंथों में मिलता है, इनमें से प्रमुख ग्रंथ हैं :
नारद संहिता
नारद पुराण
वृक्ष ज्योतिष ग्रंथ
प्राकृतिक आयुर्वेदिक ग्रंथ
तांत्रिक ग्रंथ राज निघंटु वृहत्थुश्रुत,
नारायणी संहिता,
शारदातिलक,
मंत्रमहार्णव,
श्री विद्यार्णव तंत्र
आन्दाश्रम प्रकाशन, वनस्पति –
अध्यात्म, नक्षत्र-वृक्ष आदि।
सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद विभिन्न ग्रहों एवं नक्षत्रों के लिए जिन पौधों के नाम निष्कर्ष में आये हैं।
ग्रह का नाम
१. रवि मदार
२. सोम पलाश
३. मंगल खैर
४. बुध अपामार्ग
५. बृहस्पति पीपल
६. शुक्र गूलर
७. शनि शमी
८. राहु डूब
९. केतु कुश
पातकनाशन एवं शारीरिक कष्ट निवारण हेतु ग्रहों के अनुसार रत्नों के धारण करने का ज्योतिष शास्त्र में प्रावधान है।
उसी प्रकार ग्रहों एवं नक्षत्रों से संबंधित पौधों को उगाने से भी लोगों को मनोवांछित फल मिल सकता है।
महर्षि चरक के अनुसार धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त करने हेतु अरोग्य रहना आवश्यक है।
स्वस्थ्य शरीर एवं दीर्घजीवन प्राप्त करने के लिए भोजन, शुद्धि, वायु, जल तथा प्रदूषण रहित पर्यावरण आवश्यक है । महात्मा तुलसीदास ने लिखा है :
गगन समीर अनल जल धरनी।
इनकी नाथ सहज जड़ करनी॥
इन्हें मर्यादित करने में वृक्षों/ वनस्पतियों की अहम भूमिका सदैव से रही है। लगभग सभी कालों में ‘वन, वाग, उपवन, वाटिका सर कूप वासी सोहहीं’ की प्रथा रही है। आज भी हरियाली तथा शुद्ध पर्यावरण के प्रति हम जागरूक हैं।
ग्रहों की शांति हेतु पूजा-पाठ, यक्ष हवन में विशेष प्रजाति के पल्लव, पुष्प, फल, काष्ठ की आवश्यकता पड़ती है जो कि नवग्रह एवं नक्षत्रों से संबंधित पौधे ही दे सकते हैं।
पुराणों के अनुसार जिस नक्षत्र में ग्रह विद्यमान हो उस समय उस नक्षत्र संबंधी पौधे का यत्नपूर्वक संरक्षण तथा पूजन से ग्रह की शांति होती है तथा जातक को मनोवांछित फल मिलता है।
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