- प्राचीनकाल में कुछ शिव भक्त साधक निशुल्क ही अनेक रोगों का इलाज झाड़, फूंक, मंत्र द्वारा ही कर देते थे और आराम मिलने पर कन्या भोज या किसी शिव मंदिर के जीर्णोद्वार या नैवेद्य अर्पित करने का बोल देते थे।
- आज से 40/50 साल पहले ज्योतिषी भी निस्वार्थ भाव से जन्मपत्रिका देखकर आगे का शुभ अशुभ फलादेश कर कुछ जरूरी ग्रह शांति, उपाय बताकर सबका मंगल करते थे।
- मेरा भी इन सबमें बचपन से रुचि रही और साधकों के पास बैठकर तंत्र मंत्र झाड़ फूंक की गहराई को जाना। शिव भक्त कुशवाह जी ने कुछ ज्ञान दिया वह प्रस्तुत है।
दीठि नाशक प्रयोग मन्त्रः
- ॐ क्लीं कल्मत काली कंकाली विकट कला काँ काँ कपाली ॐ क्लीं। मंत्र को 21 हजार जपकर सिद्ध करें।
- सूर्यवार या भोमवार को संध्या के समय पाँच भिलावे लेकर रोगी के ऊपर से 21 बार मन्त्र पढ़ करके उतारा करें और इन भिलावों को एक ही झटके में जलते हुये चूल्हे में डाल दें, तो कैसी भी दृष्टि का दोष हो, समाप्त हो जाता है।
फूला नाशक प्रयोग मन्त्रः
- ॐ हज्जार ज्वाला उज्जहार धः धः।।
- जप संख्या 14 हजार
- नेत्रों में एक रोग हो जाता है जिसे फूला कहते हैं। ऐसे रोगी को ठीक करने के लिये इस मन्त्र का प्रयोग करें।
- रोगी को समक्ष बैठा करके यह मन्त्र पढ़ते हुये धरती पर चाकू से लकीरें खींचता रहा। इस भाँति से तीन बार झाड़ा करें। आवश्यकता हो, तो पाँच या सात बार भी झाड़ा किया जा सकता है।
अष्ट जिद्दी ज्वर नाशक प्रयोग मन्त्रः
“ॐ हैं: हँ: उँ ठँ ठँ हँ लुँ ठः ठः।।
जेपी संख्या 9000 बार
- बाद में कभी भी इस मन्त्र को 108 बार जपने से आठों भाँति के ज्वर शाँत होकर देह स्वस्थ, तंदरुस्त हो जाती है।
तपेदिक नाशक प्रयोग मन्त्रः
- ॐ नमो अजय पाल की दुहाई जो तपेदिक सम्बन्धी ज्वर ऐदी पिण्ड़ रहे तो महादेव की दुहाई। मेरी भक्ति। गुरु की शक्ति। फुरो मन्त्र ईश्वरोवाच।।
- सर्वप्रथम किसी भोमवार या शनिवार के दिन इस मन्त्र को 108 बार जप कर अपने अनुकूल कर लें। इसके बाद जब भी किसी तपेदिक वाले रोगी का झाड़ा करना हो, तो सात कोरी सींक लेकर इस मन्त्र को पढ़ते हुये सात बार झाड़ा करें तो तपेदिक ठीक हो जाती है।
सर्प विष नाशक प्रयोग
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- ॐ हु हुङ्कार। थु थुङ्कार। थुक्ङ्कार नहीं। विष नहीं सार सार सार सार। नेतो धोपा। नीर वर। यह बात मिथ्या हो, तो काली के पैरों शिव पड़े। कुँ कुँ फूः। मेरी भक्ति। गुरू की शक्ति। फुरो मन्त्र ईश्वरोवाच।।
- जब किसी को जहरीला नाग काट ले, तो इस मन्त्र को तीन बार पढ़ करके दंशित स्थान पर अपामार्ग के झाड़े से तीन बार ‘थू थू’ करें तो विष ठीक हो जाता है।
सर्व ज्वर नाशक प्रयोग मन्त्रः
- ॐ भैरव भूतनाथे विकराल काये अग्नि वर्ण धाये। सर्व ज्वर बन्ध बन्ध मोचय मोचय त्र्यम्बकेति हुँ।।
- जेपी संख्या 31000
- यूँ तो सहदेइया की जड़ को कान में धारण करने से ही समस्त ज्वरादि शाँत हो जाते हैं फिर भी यदि समय हो तो यह प्रयोग भी कर लेना चाहिये।
- सहदेइया की जड़ को इस मन्त्र से सात बार शक्तिकृत करके भुजा में धारण करवाने से सभी भाँति के ज्वर शाँत होकर रोगी निरोग हो जाता
- सहदेइया दो भाँति की मुख्यतः पाई जाती है और इसकी पहचान पुष्प से की जाती है। बैंगनी पुष्प वाली सहदेइया से ज्वर नाश होते हैं और पीत पुष्प वाली से लकवा, वाय का दर्द मिटता है।
कूकुर विष नाशक प्रयोग मन्त्रः
- ॐ कारी कुत्ता विबिलारी धोना कुत्ता कलोरा फलाना काटा कूकुर वार धयल्यायु।।
- जब किसी को कुत्ते के काटने से विष चढ़ गया हो तब भोमवार वाले दिन कुम्हार के चाक से मिट्टी लाकर उसकी छोटी छोटी अनेक गोलियां बना लें।
- प्रति गोली को इस मन्त्र से 21 बार शक्तिकृत करके कुत्ते के काटे हुये स्थान पर इन्हें लगा लगा कर इस मन्त्र से झाड़ा करें तो कुत्ते का सारा विष इन गोलियों में आ जाता है और रोगी स्वस्थ हो जाता है।
मिरगी नाशक प्रयोग मन्त्रः
- हाल सरगत मंड़िका पुड़िया श्री राम फूके। मृगी वायु सूखे। ॐ ठः ठः स्वाहा।।
- भोमवार वाले दिन त्र्योदशी पड़ने पर भोजपत्र के ऊपर इस मन्त्र को लिख करके रख लें और जब मिरगी का रोगी आये तब उसे कण्ठ में धारण करवा दें तो उसका रोग ठीक हो जाता है।
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