- गिलोय का वैदिक नाम अमृता है। यह एक बेहतरीन ज्वरनाशक बूटी है। बिगड़ा ज्वर हो या स्वर गिलोय से मिट जाते हैं।
- गिलोय का कोई वृक्ष नहीं होता। यह बेल के रूप में घर में भी लगाई जा सकती है।
- अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से साभार इस सम्पूर्ण लेख (ब्लॉग) को पढ़कर ही पकड़ पाएंगे की गिलोय अमृत क्यों है?
सुख समृद्धि कारक गिलोय की बेल
- गिलोय की बेल घर में लगाने से धन, धान्य की बुद्धि होती है। वास्तुदोष, गरीबी, रोग, विकार और गृह क्लेश दूर होता है।
- चरक सहिंता के अनुसार जिस घर में गिलोय की बेल लगी होती है, उसके यहां कभी ज्वर, मलेरिया, कोरोना, डेंगू फीवर जैसे संक्रमण दस्तक नहीं देता।
- गिलोय के अनेक नाम है। इसे गुडूची, अमृता, गुलबेल, अमरबल्ली आदि नाम से भी जाना जाता है। गिलोय के बारे में संस्कृत का यह श्लोक बहुत अदभुत है।
ग्रामीणों की पुरानी कहावत है कि-
- जिसके घर हो गिलोय, वह काय को रोये। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ आदर्श निघंटु, भावप्रकाश, द्रव्यगुण विज्ञान, आयुर्वेद सहिंता आदि में गिलोय के बारे में इतना विस्तार से बताया है कि सृष्टि में होने वाले अनेक ज्ञात-अज्ञात, दृश्य-अदृश्य, साध्य-असाध्य किसी भी प्रकार के नए व पुराने रोगों को, तो ठीक करती है।
- साथ ही अमृता के सेवन से तन-मन व वतन में समय-असमय फैलने वाले विकार विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ नहीं बिगाड़ पाते।
- गिलोय के पत्ते पान की आकृति के होते हैं, लेकिन खाने में कड़वे रहते हैं। लेकिन किसी का पित्त बढ़ा हुआ, तो उसे नीम और गिलोय के पत्ते कभी भी कड़वे नहीं लगेंगे।
- गिलोय का अधिक मात्रा में अथवा लगातार लेने से वात विकार, ग्रन्थिशोथ, शरीर में दर्द तथा सूजन की शिकायत हो सकती है।
- एक दिन में 3 से चार गिलोय पत्तों का रस लेना प्रायप्त है। इसके पत्ते कभी नहीं निगलना चाहिए। क्योंकि ये पचते नहीं है।
- गिलोय की जड़ का काढ़ा सुबह खाली पेट 10 ml से अधिक कभी न लेवें अन्यथा कब्ज की समस्या होने लगती है।
- सबसे अच्छा है कि गिलोय सत्व या गिलोय वटी की एक से दो गोली लेना पर्याप्त रहती है।
- गिलोय रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धिकारक होती है। आयुर्वेद की पुरानी किताबों में गिलोय के बारे में बहुत उल्लेख है।
गिलोय या गुडूची एक गुणकारी ओषधि है..
- गिलोय के गुण-लाभ, उपयोग, उत्त्पत्ति सेवन विधि व पहचान के बारे में इस लेख में वह सब कुछ मिलेगा, जिसे आज तक न जान सकें! अमृतम ओषधि गिलोय, जो 200 से अधिक रोगों को जड़ मूल से मिटाती है।
- आयुर्वेद शास्त्र वनोषधि चन्द्रोदय, भावप्रकाश निघंटु, द्रव्यगुण विज्ञान आदि क्षेत्रों में गिलोय के विभिन्न नाम बताये हैं, जो इस प्रकार हैं- गिलोय के संस्कृत नाम-
- गुडूची– ‘गुडरक्षते‘ अर्थात गुडूची अनेक व्याधियों से रक्षा करती है ।
- मधुपर्णी– ‘मधुमयानि पर्ण अन्यस्या:।जिसके पर्ण (पत्ते) मधुर होते हैं।
- अमृता– न मृतमस्या:। अर्थात गिलोय या गिलोय से निर्मित ओषधियों के सेवन से रोग व मृत्यु टल जाती है! जीवाणु-कीटाणुओं से रक्षा करता है!
- अमृतवल्लरी-अमृत रस बरसाने वाली
- छिन्ना– जो काटने पर भी नष्ट न हो ।
- छिन्नरुहा– छिन्ना अपि रोहति। जो काट डालने पर भी बढ़ती रहती हो । छिंनोदभवा
- वत्सादनी– वत्से:अद्यते, ‘अद भक्षणे’। बछड़े जिसे खाते हैं ।
- जीवन्ती–जीवन दायिनी । जीवनीय शक्तिदायक।
- रोगप्रतिरोधक क्षमता वृद्धिकारक। संक्रमण नाशक।
- तंत्रिका– तन्त्रयति या-सा, ‘तत्रीकुटुम्बधारणे। तन्त्रयते धारयत्यायु: अर्थात- गिलोय सारे शरीर के साथ ही कुटुम्ब के आयुष्य की रक्षा करती है ।
- सोमा– अमृत से भरने वाली।
- सोमवल्ली, कुण्डली-आध्यात्मिक ऊर्जादायक। कुंडलिनी जागरण में सहायक
- चक्रलक्षणिका– सप्तचक्र जागृत करती है।
- धीरा- धीरे-धीरे शरीर को क्रियाशील बनाने वाली ।
- विशल्या रसायनी– ताकत देने वाली । इसके सेवन से हानिकारक रसायन नष्ट होते हैं ।
- गरुनवेल, गुलवेल, चंद्रहासा, वयस्था, मण्डली और
- देवनिर्मिता– देवताओं द्वारा खोजी गई ओषधि आदि गिलोय के संस्कृत नाम है।
- गिलोय एक प्राकृतिक ओषधि है, जो बेहोश किए बिना दर्द को कम करती है। ये चोट या संक्रमण के कारण होने वाली सूजन को कम करने वाली दवाएं।
- प्राचीन काल से गिलोय का उपयोग ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित कर डायबिटीज़ से बचने या इसके इलाज में इस्तेमाल की जाती है।
- ये दवाएं शरीर का तापमान कम करती हैं और बुखार के दौरान इनका उपयोग किया जाता है।
- ये एजेंट मुक्त कणों को साफ करके ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद करते हैं।
- वे दवाएं जो वायरल संक्रमण के लक्षणों को रोकने में मददगार होती हैं।
- गिलोय के ये घटक, एजेंट भोजन करने की इच्छा में सुधार करते हैं।
- गिलोय पदार्थ या दवा जो लिवर के सामान्य कार्य की रक्षा करने में फायदेमंद है।
- ऐसे पदार्थ जो प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य को उत्तेजित करके या कम करके उसे ठीक करता है।
- गिलोय संक्रमण याबैक्टीरिया को बढ़ने से रोकने वाली चमत्कारी दवा है।
- वो दवा या एजेंट जो सूक्ष्म जीवों को नष्ट और उन्हें बढ़ने से रोकता है। वे एजेंट्स जो एलर्जी के लक्षणों को रोकते हैं।
- गुडूची,अमृता या गिलोय नाम से प्रसिद्ध यह कटु (कड़वी) तिक्त, तथा कषाय रस युक्त एवम विपाक में मधुर रसयुक्त, रसायन, संग्राही, उष्णवीर्य, लघु, बलकारक होने से गिलोय सर्वरोग नाशक है।
- अग्निदीपक तथा त्रिदोष, आम (आँव), तृषा (प्यास), दाह (जलन), मेह (मधुमेह), कास (खांसी) आदि कफ विकारों में लाभकारी है।
- पाण्डुरोग (खून की कमी या खून न बनना), कामला (यकृत रोग पीलिया), कुष्ठ (सफेद दाग) वातरक्त, ज्वर, कृमि, त्वचारोग और वमि (अति सूक्ष्म कीटाणु) आदि रोगों का गिलोय जड़ से नाश करती है ।
- गिलोय– प्रमेह, श्वांस, अर्श (बबासीर), मूत्रकृच्छ (पेशाब की रुकावट,जलन) हृदयरोग, संक्रमण या वायरस से फैलने वाले रोग और पुराने वात-विकारों को उत्पन्न नहीं होने देती।
- गिलोय के बारे में भावप्रकाश निघंटू, द्रव्यगुण विज्ञान में भी विस्तार से बताया है। गुडूच्यादिवर्ग में लिखा है कि- गुड़ति रक्षति इति गुडूची! अर्थात रोगों से शरीर की रक्षा करती है।
- पेट की बीमारी भी गिलोय से हारी आचार्य चरक के मुताबिक गिलोय-वातघ्न है गिलोय- ग्राही, वातहर, दीपनीय (भूख बढ़ाने वाली), श्लेष्महर यानि फेफड़ों के रोग,कफनाशक होती है।
- गिलोय रक्तरोगों का संहार करने वाली तथा विबंध (पुरानी कब्ज) दूर करने वाली है। पित्त और कफ पूरी तरह मिटा देती है।
- गिलोय-शरीर में संक्रमण, वायरस के कारण पनपने वाले विकारों का नाशकर, बेशुमार जीवनीय शक्ति बढ़ाकर शरीर को शक्तिशाली बनाती है। (सुश्रुतसंहिता)
- गिलोय भय-भ्रम से उत्पन्न विकारों को दूर करती है । संक्रमण, वायरस, ज्वर के जीवाणु गिलोई के सेवन से नष्ट हो जाते हैं।(राज्यनिघण्ठ ग्रंथ)
गिलोय के अन्य गुण, फायदे और उपयोग –
- गिलोय देसी घी के अनुपान के साथ लेने से शरीर की सम्पूर्ण वायु, वात-विकार नष्ट हो जाते हैं ।
- गिलोय- गुड़ के साथ लेने से पुरानी से पुरानी कब्ज दूर होकर, दस्त साफ आता है ।
- गिलोय-मिश्री के साथ लेने से पित्तनाशक है ।
- गिलोय-शहद (मधु) के साथ लेने से कफ को तथा शुण्ठी के साथ आमवात को दूर करती है।(धन्वन्तरि निघंटु शास्त्र)
गिलोय अमृता का परिचय-
- भारत में सब स्थानों में मिलने वाली अमृतम गिलोय बरसात के समय गाँव-गाँव, वन-वन बहुत मात्रा में पायी जाती है। गिलोय एक बहुवर्षायु बेल की तरह फैलने वाली लता है |
- पहले कथा में इस लता की चर्चा होती थी। भागवत कथा, वेद-पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है।
कहाँ उगती है- गिलोय…
- गिलोय को खेत की मेढ़ों, घर की छत पर, बाग़ – बगीचे या सड़क के किनारे किसी पेड़ या दीवार पर चढ़ी हुई देख सकते है | गिलोय के पत्ते पान (नागवल्ली) के पतों की आकृति के होते है।
- आयुर्वेद में इसे अमृता, अमृतम ओषधि कहा गया है । अमृत के समान उपयोगी होने से मानव शरीर पर गिलोय का प्रयोग लाभदायी होता है |
- आदिकाल से आज तक अमृतम आयुर्वेद की परम्परागत चिकित्सा पद्धति में गिलोय का इस्तेमाल हजारों-लाखों वर्षों से हो रहा है ।
- भारत में इसके चिकित्सकीय गुणों का ज्ञान बुजुर्गों को अत्याधिक था | गाँवों में प्राचीन समय से ही बुखार , ज्वर, कफज, संक्रमण व बरसात के कारण फैलने वाले रोग, प्रमेह रोग, उदर रोग, पुरुषों व महिलाओं के रोग, रक्त की खराबी,सर्दी-खांसी, आदि रोगों में गिलोय के पंचांग को उबाल काढ़ा बनाकर देने का प्रचलन रहा है।
गिलोय का प्रमुख गुण –
- यह जिस पेड़ पर चढ़ कर फैलती है | उसके सारे गुण भी अपने में गृहण कर लेती है। नीम पर चढ़ी गिलोय सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है – जिसे नीम गिलोय भी कहते है , इसमें नीम के सारे गुण होते है। इसीलिये यह ज्वर नाशक ओषधि के रूप में प्रसिद्ध है।
- उदर में उपजे मल का एरिया ठीक होकर मलेरिया इसके सेवन से नष्ट हो जाता है। साथ ही अपने गुणों के कारण यह सभी प्रमेह, मधुमेह जैसी बीमारियों में तुरन्त लाभकारी है।
- भारत के अलग-अलग प्रान्तों व भाषाओं में गिलोय को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे-
- ◆हिंदी में- गिलोय, गुरुच, गुडुच।
- ◆ बँगाली में- गुलंच, पालो (सत्व)।
- ◆मराठी में- गुलवेल, गरुडवेल।
- ◆ गुजराती में- गलो।
- ◆ कंन्नड में- अमरदवल्ली, अमृत वल्ली।
- ◆ तेलगु में- तिप्पतिगे।
- ◆ तामिल में- शिन्दिल्कोडी, अमृडवल्ली।
- ◆ उड़ीसा में- गुलंचा ।
- ◆ मलयालम में- अंम्रितु ।
- ◆ गोआ में- अमृतवेल ।
- ◆ फारसी में- गिलोई, गिलोय ।
- ◆ अरबी में- गिलोई ।
- ◆अंग्रेज़ी में- टिनोस्पोरा ।
- गिलोय का उत्त्पत्ति स्थान– सर्वत्र , भारत के हर कोने में उपयोगी अंग- काण्ड व पर्ण।
- गिलोय का संग्रह काल– गर्मी के दिनों में वर्षा पूर्व इकट्ठी करना चाहिए।
गिलोय की ताज़ी काण्ड
- त्वक में तीन रवेदार पदार्थ, गिलोइनिन, ग्लाइकोसाइड (Giloin,C-23, H-32, 5H-2, O), गिलोइनिन नामक कड़वा पदार्थ (Giloinin,C-17, H-18, O-5) तथा गिलिस्टेरॉल (Gilosterol, C-28, H-48, O ) पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त गिलोई में बर्बेरिन (barberin) की तरह का एक पदार्थ पाया जाता है।
- गिलोय का कांड (तना) औषध उपयोग में गिलोय का कांड ही सर्वाधिक उपयोगी है | इसका तना मांसल होता है जिन पर लताये नीचे की तरफ झूलती रहती है।
- गिलोय के तने का रंग धूसर , भूरा या सफ़ेद हो सकता है। तने की मोटाई तन की अंगुली से अंगूठे जितनी होती है। लेकिन अगर बेल अधिक पुरानी है, तो यह तना भुजा के आकार का भी हो सकता है | तने को काटने पर तने के अन्दर का भाग चक्राकार दिखाई पड़ता है।
- गिलोय के पत्र (पतियाँ)-पान के पते आप सभी ने देखे होंगे | गिलोय पान के पत्तों के समान आकृति और प्रारूप वाली होती है।
- गिलोय पत्तों का व्यास 2″ से 4″ का होता है। इस पर 7 से 8 रेखाएं बनी हुई होती है। पत्ते छूने पर कोमल और स्निग्ध (चिकने) प्रतीत होते है। ये पते 1 से 3 इंच के पत्र डंठल सीधे बेल के पतले तनों से जुड़े हुए होते है।
- गिलोय का फूल–गर्मी के दिनों (ग्रीष्म ऋतु) में जब अमृता के पत्ते झड़ जाते है, तब इसके फूल आते है। गिलोय के फूल आकार में छोटे, पीले या हरिताभ पीले रंग के होते है | इसके फूल मंजरियों में इक्कठे लगते है।
- गिलोय के फल –इसके फल शीत ऋतु में लगते है, जो आकार में मटर के सामान छोटे अंडाकार और चिकने मांसल होते है। कच्चे फल हरे रंग के और पकने पर लाल रंग के हो जाते है। इन फलों में बीज निकलते है जो सफ़ेद और चिकने ये बीज मिर्च के बीज के सामान टेढ़े और पतले होते है।
- गिलोय का रासायनिक संगठन –इसके कांड में स्टार्च मुख्य रूप से पाया जाता है। तीन रवेदार द्रव्य गिलोइन , गिलोइनिन और गिलिस्टरोल पाए जाते है तथा साथ में ही बर्बेरिन भी कुछ मात्रा में पाया जाता है। ये सब ऊपर लिख दिया है।
- आयुर्वेदिक शास्त्र –सोढल, वंगसेन, शारंगधर सहिंता आदि में पुराने समय में गिलोय से नष्ट होने वाले रोग के बारे में जिस भाषा शैली में प्राचीन रोगों के नाम लिखे हैं, उन्हीं शब्दों में प्रस्तुत है।
- गिलोय के औषधीय लाभ गुण धर्म-गिलोय के लिये लिखा कि-जो न खाये गिलोय, वही जल्दी सोये ‘सोये से तात्पर्य जल्दी मृत्यु से है।
- गिलोय का रस तिक्त और कषाय होता है। गुण में गिलोय गुरु और स्निग्ध होती है। यह शीत वीर्य होती है। पचने पर इसका विपाक मधुर होता है।
- गिलोय स्वाद और स्वभाव में चरपरी, कडवी, रसायन, पाक में मधुर, ग्राही, कसैली, हलकी, गरम, बलदायक, त्रिदोष शामक और ज्वर, आम तृषा, प्रमेह, खांसी, पांडू, कामला, कुष्ठ, वातरक्त, कृमि, वमन, श्वास, बवासीर, मूत्र कृच्छ, हृदय रोग एवं वात प्रकोप को दूर करती है।
- गुडूची का सत्व -वातिक, पैतिक, श्लेष्मिक (वात-पित्त-कफ) ज्वर में बहुत फायदेमंद होता है। साथ ही जीर्ण ज्वर, सन्निपात ज्वर, ज्वरातिसार, सूतिका ज्वर, रात्रि ज्वर और मलेरिया ज्वर में बहुत गुणकारी माना जाता है।
- नीम गिलोय का सत्व– मधुमेह रोग के लिए उत्तम औषधि साबित होता है | लगातार इसके सत्व का उपयोग करने से रक्त शर्करा का विकार दूर होता है।
- गिलोय के रोग-प्रभाव-गिलोय त्रिदोष शामक, सभी प्रकार के ज्वर में सबसे उत्तम आयुर्वेदिक औषधि है।
- गिलोय विषम ज्वर ,जीर्ण ज्वर, वायरल , छर्दी , अम्लपित, पीलिया, रक्ताल्पता आदि रोगों में भी बेहतर प्रभाव डालती है।
- गिलोय रक्तविकार, यकृत , प्लीहा, सुजन , कुष्ठ, मेह, पुयमेह, श्वेत प्रदर और स्तन्य विकारो में लाभकारी होती है।
- मात्रा एवं सेवन विधि–गिलोय का चूर्ण 1 से 2 ग्राम तक ले सकते है | गिलोय सत्व को 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक लिया जा सकता है एवं क्वाथ को 5 से 10 ML तक ले सकते है।
- गिलोय से निर्मित होने वाले आयुर्वेदिक उत्पादों के चित्र। ये सभी अमेजन, amalaearth, amrutam की वेवसाइट पर सर्च कर सकते हैं।
- Amrutam Gold Malt जो कि बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः कमजोर इम्यूनिटी, कमजोर पाचन शक्ति, कमजोरी के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।
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