कलयुग में चराचर जीव-जगत के
जीवन की जबाबदारी हनुमानजी पर है।
माँ अंजना के आशीर्वाद फलस्वरूप
इन्हें चिंरजीवी होने का वरदान प्राप्त है।
पवनपुत्र के चमत्कार की चर्चा चलचित्रों
से लेकर ग्रन्थ-पुराणों में मिलती है।
इन्हें चन्दन की जगह सिन्दूर का चोला
चढ़ाने की परम्परा है। इनकी भक्ति से
तन-मन चमक जाता है।
किस्से अनेक हैं। हम भी इसके हिस्से
बने यही हमारा सौभाग्य होगा।
कहा गया है कि-
हरि अनंत – हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
भावार्थ-
हनुमान हरि अनंत हैं। हनुमानजी की कथा का पार नहीं पाया जा सकता और उनकी कथा भी अनंत है। सन्त-महात्मा और इनके उपासक बस,
इतना कहकर शांत हो जाते हैं कि-
हनुमत लीला का न पाया कोई पार,
कि-लीला तेरी, तू ही जाने…..
सभी साधक बजरंग के बारे में बहुत
विचित्र बातें बताते हैं, कहते-सुनते हैं।
इनके सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी
गाए नहीं जा सकते।
एक अतिसूक्ष्म निवेदन है कि-
इस ब्लॉग को पढ़कर अपने कमेंट्स,
लाइक अवश्य देवें। यदि पाठकों को
प्रतीत हो कि-यह शोध लेख है, तो
मेरा परिश्रम सार्थक होगा।
मेरा जन्म भी हनुमान जयंती को
होने के कारण इनसे अत्यधिक लगाव रहा। बजरंग बलबती कृपा के चलते
देश के लगभग 1100 हनुमान मन्दिर
के दर्शन भी किये। इन हनुमान मंदिर के महत्व को अमॄतम पत्रिका के अगले किसी लेख में प्रकाशित किया जाएगा।
सीमांत समय तक अध्ययन, खोज, अनुसंधान कर यह लेख लिखा है। आपको यह पसंद आये, तो शेयर करने में कंजूसी न करें। मेरी कोशिश रहेगी कि आपकी अर्जी
उस मनमर्जी वाले दर्द हरौआ
(ददरौआ सरकार) तथा बलशाली बालाजी
पहुंचा सकूं। यह लेख कुछ बड़ा भी है, लेकिन पढ़ने से मन-अन्तर्मन पवित्र हो जाएगा।
!!जय-जय-जय हनुमान गुसाईं!!…..
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का रहस्य शायद ही बहुत कम लोग जानते हों-
नारदजी अनुसार-“मन के संग“
एक युद्ध, सदैव चलता ही रहता है, जो अमन में बाधक है
‘क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारतं!’
जीवन एक युद्ध अपने ही विरुद्ध है।
जीव और शिव-शरीर में दो जन है-
ईश्वर कहता है:-
यह शरीर मेरा है और मेरे लिए है
और जीव कहता है, यह शरीर मेरा है
और मेरे लिए है। यह विवाद आत्मा-मन के मध्य चलायमान है।
नारद पुराण के अध्याय-४९:पूर्वार्ध
में हनुमानजी की अनेक लीलाओं,
रहस्यों का वर्णन है।
हनुमानजी जी की जय-जयकार से ही हमारे अंधकार, अज्ञानता तथा अहंकार की पराजय होगी। इसी वजह तुलसदासजी ने लिखा….
!!जय-जय-जय हनुमान गोसाई,
कृपा करो गुरुदेव की नाईं!!
आपकी की जय से ही हमारी विजय सम्भव है। श्रीमद्भागवत गीता में 1 श्लोक आया है
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते बहूनां
अर्थात्-
जय, जय, जय तीन बार बोले, तो यह ‘बहुवचन’ हो जाता है।
विज्ञान के युग से अनुसंधान करें, तो
यह एक प्रकार से “हनुमान की वेबसाइट”
का पता है। जैसे हम कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी में
तीन बार “WWW. का उपयोग कर किसी भी वेबसाइट को खोल सकते हैं।
हनुमान चालीसा में इसीलिए तीन बार “जय-जय-जय” लिखा है। वास्तव में यह डब्लूडब्लूडब्लू (www) ही है।यह भी आईटी का बहुत रहस्यमय विज्ञान है। नई पीढ़ी के बच्चे इस खोज को आगे बढ़ाकर विशाल उपलब्धि पा सकते हैं। मुझे नवीन आकाशीय विज्ञान का अधिक ज्ञान नहीं है। एक तरह से यह पूरा लेख “तीर में तुक्का” है।
जब तुम्हारी जय-जय करेंगे, तो हमारी भी जय-जय एक दिन होगी ही। यह निश्चित मानो।
अतः “स्वकर्मणा तमभ्यच्र्य” …..
बस केवल- 24 घण्टे चलते-फिरते, उठते-बैठते आप खुद ही एकादश माह तक
जय-जय-जय हनुमान गुसाईं!
कृपा करो गुरुदेव की नाईं!!
जपते-जपते इसे अजपा कर डालो।
पूरा हनुमान चालीसा पढ़ने की जरूरत नहीं है। इससे आपका कुछ ही दिनों में मनोबल, आत्मविश्वास आसमान छूने लगेगा। जीने का सलीका मिलेगा। भय-भ्रम, डर का पूर्णतः नाश हो जाएगा। चाहिए थोड़ा प्रयास, कुछ बार चाहिए। पूजा-पाठ के ज्यादा झंझट से बचो। अपने वाणीकर्म से रुद्रावतार की मानसिक पूजा अर्चना करें, तो जितना फल सुंदरकांड, हनुमान चालीसा करने से मिलता है, उससे 10 गुना ज्यादा लाभ जपने से होगा। हमारी शिथिल नाड़ियाँ जाग्रत होने लगेगी। परशुराम अष्टक में यह मानस यज्ञ है।
बजरंग की भक्ति से हो-भय-भ्रम नाश...
महावीर हनुमान की उपासना राष्ट्र को सुदृढ़, संगठित, सशक्त और शक्तिशाली बनाने के लिए कई युगों से की जा रही है।
अर्जुन ने विजय पाने के लिए कपि-ध्वज धारण किया था। हनुुुमानजी देश-दुनिया में यह पहलवानों, चरित्रवानों के देवता कहलाते हैं।ये गाँव-गाँव पूजे जाने वाले लोकनायक हैं। मजदूर, मजबूर और मशहूर, शहरी तथा ग्रामीण दोनों ही उनकी सामान रूप से पूजा करते हैं। मन में अमन देने वाले देवता तन को पतन से बचाकर, मन में अमन देने वाले, थोड़ी सी प्रार्थना, प्रयत्न से प्रसन्न होने वाले परमवीर परमात्मा कलयुग के भगवान हैं।
हनुमान जयन्ती क्यों मनाते हैं-
चैत्र महीने की पूर्णिमा को, मंगल के चित्रा नक्षत्र में मङ्गलवार को जन्मे, मङ्गल ही करते वीर हनुमान पांच भाई हैं।
कभी देश के नामी-ग्रामी पहलवानों,
ब्रह्मचारियों के आराध्य अब देश के नेताओं के लिए राजनीति की धुरी बन गए हैं।
भोग लगे या रूखे-सूखे,
हनुमन्त हैं श्रद्धा के भूखे….
चना, इलायची दाना और मूंगफली के नैवेद्य से प्रसन्न होने वाले उनका मूल नाम महावीर छोड़कर कोई उन्हें बलि, तो कोई अली कहकर राजनीति कर रहे हैं।
स्कन्द पुराण, भविष्य पुराण की माने, तो इनका जन्म कार्तिक मास की चतुर्दशी यानि छोटी दीपावली को इनका जन्म नक्षत्र चित्रा ओर स्वाति, मेष लग्न, दिन मंगलवार का भी जन्म बताया है।
भगवान सूर्य इनके गुरुदेव हैं।■मुक्तिकोउपनिषद ■रामपूर्व तापनिय उपनिषद ■राम रहस्योउपनिषद
आदि प्राचीन ग्रंथों में श्री हनुमान जी की बुद्धि के बारे में, उनकी प्रखरता के विषय मेंबहुत विस्तार से लिखा है।
हनुमान जी ज्योतिष के भी प्रकांड विद्वान थे।
वेदों ने हनुमानजी को रूद्रावतार,अग्नि, प्राण आदि कहा गया है। इन्हें रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। द्वारपाल, सन्तानदाता हनुमानजी का वृक्षों में निवास माना गया है।
वृक्ष लगाने से हनुमानजी की सिद्धियां प्राप्त होती हैं, ऐसा पुराणों में उल्लेख है। भूत-प्रेत इनके स्मरण से दूर भागते हैं।
कभी एक बार आजमाकर देखना…
कभी भी घोर परेशानी के समय
जय-जय-जय हनुमान गुसाईं।
कृपा करो गुरुदेव की नाई।।
40 बार जपने से कष्ट तत्काल दूर होते हैं।
“मन्त्रमहोदधि ग्रन्थ” के अनुसार
शनि, राहु, केतु और सूर्य से पीड़ित जातक पहाड़ की ऊंचाई पर स्थित हनुमान मंदिर के 40 दिन तक पैदल जाकर 5 दीपक अमॄतम फार्मास्युटिकल्स द्वारा निर्मित
“राहुकी तेल” के जलाकर,
हनुमान सहस्त्रनाम का एक पाठ दर्शन कर, 108 परिक्रमा लगाए, तो बंदी, सजायाफ्ता व्यक्ति जेलों के बंधन से मुक्त होता है।
मंगलवार को दुपहर 3 बजे से 4.30 के बीच किसी एकांत जंगल में स्थित हनुमानजी के मन्दिर की साफ-सफाई या पुताई कर एक छोटा सा घण्टे टांगकर, कर्जमुक्ति की प्रार्थना 16 मंगलवार करके देखे, तो कर्जे से मुक्ति मिलती है। लाभ होने पर 108 दीपक राहु की तेलं के 5 मंगलवार जलावे।
शत्रु, बुद्धि, रोग आदि विनाश, प्रज्ज्वलन, प्रदीप्ति, सर्वभक्षण अग्नि के ही कर्म है।
इसीलिए इन्हें रुद्र का अंश यानि भोलेनाथ का रूप वेदों में माना है। तन्त्र में हनुमान तांत्रिक ग्रंथों में एक मुख्य, पांच मुख और एकादश यानि 11 मुख के रूप में इनकी पूजा का विधान है।
“हनुमाज्योतिष्म” ज्योतिष का चमत्कारी ग्रन्थ है। हनुमान सहस्त्रनाम में इनको
भगवान शिव का नंदी, स्वर्णिम पर्वत की आभायुक्त “हेमशैलाभदेहम” लक्ष्मण के लिए शीघ्र संजीवनी बूटी लाने के कारण “मनोजवम‘ उछल कुंद कर चलने के कारण पलवंगम, बड़ी पुच्छ के कारण लांगुली और सात करोड़ गायत्री मंत्रों से अभिमंत्रित शरीर का ब्रह्मचारी बताया गया है।
हनुमानजी जी अष्टसिद्धि और नवनिधि के दाता भी कहलाते हैं।
श्री राम कथा ने इनको प्रसिद्धि की चरमसीमा तक पहुंचा दिया। अभी बहुत जानकारी शेष है!
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उपनिषद में उल्लेख है-
!!पीत्वां मोहमयी प्रमादमदिरां उन्मत्तभूतं!!
मैं कौन हूँ, किसके कारण मैं खडा हूँ, मेरी बुद्धि किसके कारण चल रही है। यदि ध्यानपूर्वक गौर करें, तो इन सबका कारक “शव को शिव” बनाने वाला मारुति ही है।
ये पवनपुत्र-प्राणवायु बनकर हमें जीवित रखते हैं।
शरीर से वायु निकली कि- आयु खत्म।
प्रत्येक जीव में जीवन देने वाली “5 मुख्य ◆अपान, ◆उदान, ◆व्यान, ◆समान और ◆प्राण वायु के रक्षक हनुमानजी हैं।
बरसात होने से धरती पर हरियाली उगती है मगर पत्थर वैसे ही रहते हैं। वर्षा तो दोनो जगह होती है, मगर पत्थर पर कुछ नहीं उपजता। हनुमन्त उपासना से पत्थर रूपी पुरुष भी परमपूज्य हो जाता है। जय, जय, जय में इतनी शक्ति है।
क्यों नाम पड़ा मारुति नंदन-
मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। कुल
४९ मरुतों (वायु) का उल्लेख ग्रंथो में मिलता है। रुद्रावतार भगवान मारुति नंदन इन उन्नचास मरुतों के अधिपति है। व्यान, उदान, अपान, समान और प्राण वायु इन्हीं की आज्ञा का पालन करती हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं में “मारुति” यानि पवनपुत्र का अर्थ हवा का बेटा बताया है।
वज्र की तरह शरीर होने के कारण इन्हें बजरंग बलि कहा जाता है।
ये रुद्रावतार हैं। रूद्र रूप हैं। हनुमानजी की उपासना परोक्ष रूप से शिव की साधना है।दरअसल सारा जीव-जगत शिव का स्वरूप है। आदिशंकराचार्य जी ने कहा-
शिवोहम्-शिवोऽहम्
भावार्थ-
मैं ही शिव हूँ। हर व्यक्ति शिव का प्रतिबिम्ब है। हनुमन्त साधना, जब इस उच्चतम स्तर तक पहुंच जाएगी, तब समझ आता है कि-
न मैं मन हूँ। बुद्धि, चित्त और अहंकार भी नहीं हूं। मैं कान, जिह्वा, नाक और नेत्र भी नहीं हूं । न मैं व्योम (आकाश), भूमि, तेज और वायु ही हूं। मैं तो चित्त का आनंद रूप हूं, मैं शिव हूँ-शिव का ही प्रतिरूप हूँ। शिव के सिवाय सन्सार सूना है। हनुमानजी की अटूट भक्ति से व्यक्ति शिव अर्थात कल्याण कर्ता हो जाता है। सिद्धियां उसके साथ रहने लगती हैं। इनका चिन्तन कर चिन्ता मिटाना आसान हो जाता है। लेकिन इतना वक्त भी अब दुनिया में किसी के पास नहीं है। इसी कारण मानसिक अशांति से लोग जूझ रहे हैं।
यह भी जानना जरूरी हैै:
बजरंग बली 5 भाई थे..
हनुमान जी के 5 छोटे भाईयों के नाम…
【१】मतिमान
【२】श्रुतिमान
【३】केतुमान
【४】गतिमान
【५】धृतिमान
यह सभी विवाहित थे।
बजरंगबली भी ब्रह्मचारी नहीं थे…
सूर्य पुत्री सुवर्चला के साथ हनुमानजी के विवाह उल्लेख पराशर सहिंता में मिलता है। दक्षिण भारत के तेलंगाना राज्य में बसे खम्मम जिले में स्थित हनुमान देवालय में ये अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान हैं।
पाराशर संहिता के अनुसार हनुमान जी ने सूर्य देव को अपना गुरू बनाया था। सूर्य देव ने उन्हें 4 सिद्धियों में सिद्धहस्त कर दिया, परन्तु चार सिद्धि पाना शेष था। इसमें विवाहित होना आवश्यक था।
ऐसा कहा जाता है की खम्मम स्थित हनुमानजी के दर्शन से विवाह की बाधा मिट जाती है। मंगलदोष से पीड़ित जातक को इनके दर्शन की सलाह दी जाती है।
विवाहित दम्पत्ति यहां दर्शन करे, तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखी हो जाता है।
श्रीरामचरितमानस मानस में एक किष्किंधा कांड भी है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा की यह स्थान दक्षिण भारत में बेंगलोर से लगभग 300 किलोमीटर दूर हम्पी से 20 किमी एकांत वन के समीप एक पर्वत पर स्थित है। इस पर्वत का आकार बहुत दूर से ही हनुमान जी जैसा प्रतीत
होता है। यहीं हनुमान जी का जन्म हुआ था।
पुराण प्रसिद्ध अंजनी पर्वत, गन्धमाधव पर्वत यहीं पाए जाते हैं।
ऋष्यमूक पर्वत
का श्रीमदभागवत् में भी उल्लेख है-
‘सुह्यो देवगिरि-र्ऋष्यमूकः
श्री शैलोवेंकटो महेन्द्रोवारिधारो विन्ध्यः
मातंग पर्वत माल्यवन्त रघुनाथ पर्वत सभी ओरिजनल रूप से स्थित हैं। ऋष्यमूक पर्वत तथा तुंगभद्रा के घेरे को चक्रतीर्थ कहते हैं।
वाल्मीकि रामायण में पहले वालि का तथा उसके पश्चात् सुग्रीव का राज्य बताया गया है।
मंदिरों का मायाजाल–
●कोदण्डराम देवालय, ●चक्रतीर्थ, ●पम्पा सरोवर, ●श्री अति प्राचीन यन्त्रोंद्धारक स्वयम्भू हनुमान मन्दिर
●शक्तिरूप में माँ भुवनेश्वरी, ●विठ्ठल मन्दिर, ●शिवरहस्य मन्दिर
तथा ●स्वयम्भू कोटिलिंगेश्वर शिवालय ये सब तुंगभद्रा नदी के तट पर प्राचीनकालीन से हैं।
हम्पी में पुराने समय के तुलाभार दृष्टियोग हैं, इन्हें जरूर देखें।
हम्पी में ही एक आदिकालीन शिवालय विरूपाक्षी के नाम से भी है। मान्यता है कि- भगवान मोरगन स्वामी कार्तिकेय का जन्म हुआ था। इसे पम्पापति, पम्पापुर तीर्थ भी कहते हैं।
भारतीय मुद्रा पर जो चित्र अंकित है वह यहीं हम्पी के विठ्ठल मन्दिर के चौक में रखे शिलारथ का है।
चने के गणेशजी...
एक ही शिला से निर्मित 18 फिट ऊंची गणपति की मूर्ति दर्शनीय है। इन्हें सासिवे कालु गणपति कहा जाता है।
हम्पी में एक बहुत दुर्लभ बडवी शिंवलिंग देखने लायक है, जो सदैव पानी में ही डूब रहता है। यह विशाल शिंवलिंग 12 से 14 फुट का है।
पास में ही उग्र नृसिंग भगवान की विशालकाय मूर्ति देखकर आप भयभीत भी हो सकते हैं।
सिर के पीछे 7 फन वाले शेषनाग मुख से निकलते अंगारे अंग-अंग में सिरहन उत्पन्न कर देते हैं।
आगे चलकर वीरभद्र शिव मन्दिर, कुछ ऊपर की तरफ पातालेश्वर शिवालय मन को अमन प्रदान करते हैं।
कमलमहल, गजशाला, रानियों का जलमहल
और आदिकालीन मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भी है। इसी स्थान पर स्वामी कार्तिकेय का जन्म हुआ बताते हैं। इस शिंवलिंग को ज्योतिर्लिंग की मान्यता प्राप्त है।
किष्किंधा पर्वत पर वह गुफा आज भी देखी जा सकती है, जहां शिवभक्त दशानन रावण ओर बाली का 6 महीने तक युद्ध हुआ था।
श्रीराम से सुग्रीव की प्रथम मुलाकात इसी जगह हुई थी।
श्रीराम द्वारा स्थापित 5 शिंवलिंगों की दुर्दशा इस 5 किमी ऊंचाई पर चढ़कर इस पहाड़ पर देखी जा सकती है।
हम्पी के कमलापुर में दुनिया का सबसे प्राचीन संगीत महल देखकर अचंभित हो जाएंगे।
पर्वत से उतरकर एक मार्ग में राम गमन मार्ग का बोर्ड लगा है। यहां से रामेश्वरम का पैदल मार्ग 700 किमी है।
संजीवनी बूटी की सच्चाई….
राम-रावण युद्ध के दौरान शक्ति बाण से घायल लक्ष्मण चिकित्सा के लिए जब संजीवनी बूटी की जरूरत पड़ी, तो उस समय के जाने-माने वैद्यराज श्री सुषुण ने बजरंगबली को उत्तराँचल के द्रोणाचल पर्वत पर भेजकर संजीवनी बूटी लाने को कहा था, जब बजरंगबली को यह हनुमान ओषधि समझ नहीं आयी, तो वे पूरा पहाड़ ही उठा कर ले आये थे।
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