यह सब जानकारी शायद पहली बार ही पढ़ेंगे। इन उपायों को अपनाने से मेरे अनेक कष्ट, गरीबी दूर हुए। इसमें कुछ सिद्ध उपाय सिद्ध महात्माओं, अवधूत-अघोरियों द्वारा बताए थे, उन अनुभवों को भी इस जबाब में जोड़ा गया है। यह ब्लॉग इस पवित्र भाव से आपको समर्पित है कि-
मैं अति दुर्बल, में मतिहीना।
जो कछु कीन्हा, शम्भू कीना।।
जाने दुर्लभ, रहस्यमयी उपाय—
!!ॐ नमःशिवाय!! मन्त्र की कब,
कैसे, कितनी माला जपने से होंगे ये 13 लाभ-
यह सब उपाय, जाप घर या किसी एकांत वन में स्थित जीर्ण-शीर्ण शिवालय में कर सकते हैं।
!!१!! ॐ नमःशिवाय मन्त्र के 27 दिन तक एक माला जाप से एक तीर्थ या ज्योतिर्लिंग के दर्शन का फल मिलता है।
!!२!! 200 दिन तक नियमित राहु की तेल का दीपक जलाकर, दो माला जाप रोज करने से नेत्र रोग, वाणी दोष, कुटुम्ब का कलह, बटवारा, कोर्ट, मुकदमा एवं अविद्या विकार दूर होते हैं।
!!३!! अलसी के तेल के 3 दीपक 3 माला जप 33 दिन रोज करें, तो त्रिदोष शान्त होता है। पराक्रम बढ़ता है। रोग-बीमारी दूर होती हैं।
!!४!! 41 दिन लगातार 14 दीपक देशी घी के जलाकर 4 माला ॐ नमःशिवाय के जप से भूमि, वाहन, भवन की प्राप्ति होती है।
!!५!! मंदबुद्धि दिमागी कमजोरी से पीड़ित जातक या बालक को ज्ञानी बनाने के लिए 23 दिन तक लगातार, 23 दीपक तिल तेल में काली तिल, खड़ी उड़द डालकर पान के पत्ते पर रखकर जलाएं। इसके बाद 5 माला जाप लगातार करें, तो बुद्धि तेज होकर बच्चों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
!!६!! प्रतिदिन 6 माला 27 दिन करने से रोग-शत्रु कुछ नहीं बिगाड़ पाते। मुकदमे में विजय होती है। कर्जे से मुक्ति मिलती है।
!!७!! मंगलदोष की शांति और विवाह बाधा दूर करने के लिए 28 दिन तक नियमित 17 दीपक राहु की तेल के जलाकर रोज सात माला ॐ नमःशिवाय मन्त्र की जपने से जल्दी विवाह योग बनता है। बेरोजगार को रोजगार प्राप्त होता है।
!!८!! 18 दिन तक आठ माला रोज जपने से मृत्यु योग टल जाता है। कोई विशेष रुका या बिगड़ा काम बनने लगता है।
!!९!! 90 दिन तक लगातार यदि 9 माला रोज जपें, तो माता-पिता, पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है। विशेष भाग्योदय होने लगता है। ज्योतिर्लिंग के साक्षात या स्वप्न में दर्शन होते हैं। जाप करते वक्त सम्भव हो, तो घर के बने मावे में पंचमेवा को सूखा पीसकर दोनों को मिलाकर एक बड़ा दीपक देशी का जलाएं। इस दीपक को पीपल के पत्ते का कमलदल बनाकर उसके ऊपर रखें।
!!१०!! 101 दिन नियम से रोज निश्चित समय में
11 दीपक राहु की तेल के एवं 20 दीपक देशी घी के बरगद के पत्ते पर रखकर जलावें और दस माला पंचाक्षर मन्त्र ॐ नमःशिवाय के 27 दिन जाप से व्यापार, काम-धंधे में उन्नति, बरकत होने लगती है।
!!११!! ग्यारह माला रोज जपें, तो आय में विशेष बढ़ोत्तरी होने लगती है।
!!१२!! 12 बारह दिनों तक 12 दीपक राहु की तेल के राहुकाल में बारह माला जपने से फालतू के खर्चे, बीमारियों में व्यय नहीं होते। कर्जा पट जाता है।
!!१३!! 19 दिन लगातार तेरह माला 27 दिन जाप से मन का डर,भय, भ्रम, मानसिक विकार मिटने लगते हैं। भूत-बाधा, पीड़ित प्रेत शांत होते हैं।
लाभ होने पर गुरुवार के दिन किसी शिवमन्दिर या घर में ही दूध-जल से रुद्राभिषेक कराकर श्रीसूक्त से हवन कराएं।
जैसी मनोकामना हो, उतनी माला रोज प्रातःकाल अथवा राहुकाल में 27 दिन तक जरूर जपकर या ये उपाय करके देखें। यह प्रयोग जीवन बदलने और भाग्योदय में सहायक होगा।
पुराणों में एक दिन के भी बहुत से
प्रयोगों का वर्णन मिलता है-
ये चमत्कार भी अपनाकर देखें….
◆ प्रातः सूर्योदय के समय प्रतिदिन एक माला पंचाक्षर मन्त्र का जप करके सूर्य के समक्ष जल पीने से पेट दर्द और सभी तरह उदर रोगों का नाश हो जाता है।
◆ भोजन ग्रहण करने से पहले ग्यारह बार
ॐ नमःशिवाय मन्त्र के जप से भोजन भी अमृत के समान होकर शीघ्र पच जाता है।
◆ ज्योतिष से रोग निदान पुस्तक में वर्णन है कि-असाध्य रोग कैंसर, मधुमेह, बीपी हाई, श्वास की समस्या आदि से मुक्ति के लिए अपनी उम्र के अनुसार दीपक जलाकर, उतने ही माला का जाप शुक्रवा एवं मंगलवार को अवश्य करें।
जैसे किसी की उम्र 40 वर्ष है, तो 40 दीपक अमॄतम राहु की तेल के जलाकर 40 माला
!!ॐ नमःशिवाय!! मन्त्र की जपें।
किस-किसने जपा यह मन्त्र…
@ भगवान परशुरामजी न ॐ नमः शिवाय
मन्त्र का 11 करोड़ पुनश्चरण किया, तो
भोलेनाथ ने उन्हें धनुष दिया, जिसे
सीता स्वयंवर में राम ने तोड़ा था।
@ दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ॐ नमःशिवाय
मन्त्र के 11 करोड़ पुरुश्चरण किये, तो
जीवित करने वाली संजीवनी विद्याका
ज्ञान दिया था।
@ दशानन रावण ने 11 करोड़
!!ॐ नमःशिवाय!! मन्त्र का जप किया तो उन्हें आत्मलिंग और सोने की लंका प्रदान की।
@ गुरुद्रोणाचार्य ने शिव को अपना गुरु बनाकर ॐ नमःशिवाय पंचाक्षर का अजपा जप किया, तो वे युद्ध गुरु कहलाये।
गुड़गांव या गुरुग्राम में गुरुद्रोणाचार्य द्वारा स्थापित प्राचीन शिवालय दर्शनीय है।
@ धनुर्धर अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर
भोलेनाथ ने इन्हें अर्जुन नाम दिया।
@ कर्ण भी परम गुरु एवं शिव भक्त थे।
ॐ नमःशिवाय के अजपा जाप से आज भी वे दानवीर कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हैं।
करनाल का पुराना नाम कर्णपाल भी बताते हैं।
राजा कर्ण ने लगभग 108 स्वयम्भू शिवालय का जीर्णोद्धार कराया था। जिसमें करनाल हरियाणा, कोटा राजस्थान, कर्णावद निमाड़ मालवा मप्र, सिहावा धमतरी 36 गढ़ का कर्णेश्वर महादेव मंदिर सिद्ध प्रसिद्ध हैं।
उत्तरांचल में पांडुकेश्वर के पास हिम में स्थित कर्णेश्वर शिंवलिंग सभी चमत्कारी हैं। यह हेमकुंड साहिब के पास 5 km की दूरी पर पहाड़ों पर स्थित है। गुरुगोविंद सिंह जी को यहीं पर पिछले जन्म के तपस्या स्थल का ज्ञान हुआ था। यह बात उन्होंने अपनी पोथी में भी लिखी है। ये पूर्व में शिवभक्त क्षत्री थे। सूर्य कृपा हेतु यह अदभुत हैं।
दुनिया में इस मंत्र को हर जाति-पाति के लोग इसे जपते हैं। 13 अखाड़ों में प्रमुख जूना नाग अखाड़े के साधुओं का यह गुरुमंत्र भी है।
ॐ नमःशिवाय मन्त्र अन्य भाषाओं में
नेपाली भाषा में~ ॐ नम: शिवाय
रूसी भाषा में~ Ом Намах Шивайа
चीनी भाषा में~ 沒有Om Namah
अंग्रेजी में~ Om Namah Shivaya
कन्नड़ भाषा में~ ಓಂ ನಮಃ ಶಿವಾಯ
मलयालम में~ ഓം നമഃ ശിവായ
तमिल में~ ஓம் நம சிவாய
तेलुगु में~ ఓం నమః శివాయ
बांग्ला में~ ওঁ নমঃ শিবায়
गुजराती में~ ૐ નમઃ શિવાય
पंजाबी में~© ਓਮ ਨਮਃ ਸ਼ਿਵਾਯ
ओड़िया में~ ଓଁ ନମଃ ଶିଵାୟ
उर्दू में~ اوم نامہ شیوا
अरबी में~ بدون ام نعمة
डच भाषा में~ Zonder Om Namah
इंडोनेशिया में~ Tanpa Om Namah
टर्किश भाषा में~ Om Namah olmadan
अफ्रीकन में~ Sonder Om Namah
थाई भाषा में~ โดยไม่ต้อง Om Namah
यह मंत्र के मौखिक या मानसिक रूप
से दोहराया जाते समय मन में भगवान
शिव की अनंत व सर्वव्यापक उपस्थिति
पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
परंपरागत रूप से इसे रुद्राक्ष माला
पर १०८ बार दोहराया जाता है।
इसे जप योग कहते हैं।
इसे कोई भी गा या जप सकता है,
परन्तु गुरु द्वारा मंत्र दीक्षा के बाद
इस मंत्र का प्रभाव बढ़ जाता है।
मंत्र दीक्षा के पहले गुरु आमतौर पर
कुछ अवधि के लिए अध्ययन करता है।
मंत्र दीक्षा अक्सर मंदिर अनुष्ठान जैसे कि पूजा, जप, हवन, ध्यान और विभूति लगाने का हिस्सा होता है। गुरु, मंत्र को शिष्य के दाहिने कान में बोलतें हैं और कब और कैसे दोहराने की विधि भी बताते हैं।
मन्त्र का शुभ प्रभाव…
यह मंत्र प्रार्थना, परमात्मा-प्रेम, दया, सत्य और परमसुख जैसे गुणों से जुड़ा हुआ है। सही ढंग से मंत्र जप करने से यह मन को शांत, आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और ज्ञान लाता है । यह भक्त को शिव के पास भी लाता है। परंपरागत रूप से, यह स्वीकार किया गया है कि इस मंत्र में समस्त शारीरिक और मानसिक बीमारियों को दूर रखने के शक्तिशाली चिकित्सकी गुण हैं।
ॐ नमःशिवाय मंत्र के भावपूर्ण पाठ
करने से दिली शांति और आत्मा को
प्रसन्नता मिलती है।
विश्व के अनेक वैज्ञानिकों का कहना
कि इन पाँच अक्षरों का ॐ नमःशिवाय
मन्त्र को निरन्तर, नियमित गुनगुनाना
अथवा दोहराना शरीर के लिए साउंड
थैरेपी और आत्मा के लिए अमृत की
भाँति है।
शक्तिशाली मंत्र ॐ नमः शिवाय के पीछे छिपा है चमत्कारी रहस्य….
“ॐ नमः शिवाय” केवल मंत्र नहीं है!
यह एक पंथ है! इसमें एक आत्मा
मौजूद है। यह मंत्र वाणी के माध्यम
से आत्मा की शुद्धि करता है।
ॐ नमः शिवाय सिर्फ आवाज़ है- तरंग है!
महर्षि चरक ने इसे औषधीय गीत भी कहा हैं। ₹संगीत की किताबों में इसे आत्मा-गीत बताया है।
व्याकरण की पुस्तकों में नमः शिवाय से निकलने वाली मधुर आवाज़ किसी भी विशेषण से संबोधित नहीं है।
जीवन में कभी भी आप परेशान होते हैं या आप अपना आपा खो बैठते हैं, तब आप सभी चाहते हैं कि शांति रहे, लेकिन यह आपको छोड़ने का विकल्प चुनता है।
भौतिक सन्सार में जो भी पीड़ित !!ॐ नमः शिवाय!! मन्त्र की मधुर आवाज में डूबता है, वह सुरक्षित हो जाता है। उसके बाद सब कुछ बहुत ही सकारात्मक होने लगता है।
!!ॐ नमः शिवाय!! का मंत्र आपको अंदर से ठीक कर मजबूत बना देता है। अपनी आत्मा को शांत करने के लिए इसे 24 घण्टे चलते-फिरते जपने की आदत बना डालें। यह पंचमहाभूतों की सिद्धि हेतु अनोखा है।
शिवपुराण में आया है कि महिलाओं को हमेशा
!!ॐ नमः शिवाय!! के स्थान पर केवल शिवाय नमः का जाप ज्यादा चमत्कारी है।
द हिंदू’ में प्रकाशित ‘ॐ नमः शिवाय’
और ‘ॐ शिवाय नमः’ के बीच का
अंतर कुछ इस प्रकार से हैं…
इन मंत्रों में से प्रत्येक शब्द का महत्व है।
‘न” शब्द हमारे गौरव का प्रतिनिधित्व
करता है यानि हमारा सम्मान, गौरव बढ़ाता है।
‘मा’ हमारे दिमाग में अशुद्धियों का प्रतिनिधित्व करता है अर्थात हमारी बुद्धि की नकारात्मक विचार और अशुद्धि नमःशिवाय के जाप से दूर होने लगती है।
‘शि’ भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है मतलब व्यक्ति में कल्याण करने का भाव उत्पन्न होने लगता है। लोग उसकी पूजा करने लगते हैं।
‘वा’ देवी शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है यानि आत्मविश्वास बढ़ता है। सोचे हुए काम पूरे होने लगते हैं।
‘या’ शब्द आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है। ॐ नमःशिवाय के जाप से आत्मा पवित्र हो जाती है।
जब हम ‘शिवाय नमः कहते हैं,, तो
आत्मा को ‘या’ शब्द द्वारा बीच में सम्बोधित किया जाता है। एक तरफ गर्व और अन्य अशुद्ध विचार क्रमशः ‘ना’ और ‘मा’ द्वारा प्रतिनिधित्व करते हैं। ‘या’ के दूसरी तरफ, हमारे पास भगवान शिव और देवी शक्ति है जिसे ‘शि’ और ‘वा’ द्वारा दर्शाया गया है।
मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप सांसारिक उद्देश्यों कि पूर्ति तथा सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
मंत्र ‘ॐ शिवाय नमः’ का जाप मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने में सहायक है।
ॐ नमःशिवाय शिव पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है। इसमें पंचतत्व, 5 कर्मेन्द्रियों, 5 ज्ञानेंद्रियों को जागृत करने की शक्ति समाहित है। त्रिकालदृष्टा ऋषियों का यह मूल मंत्र था।
यह स्तोत्र संस्कृत साहित्य में किसी देवी-देवता की स्तुति में लिखे गये काव्य को कहा जाता है। इस स्तोत्र में शिव जी की प्रार्थना की गई है। ‘ॐ नम: शिवाय’ पर निर्धारित यह श्लोक संग्रह (श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र) अत्यंत मनमोहक रूप से शिवस्तुति कर रहा है, जो काफी लोकप्रिय है।
इस स्तोत्र के रचयिता श्री आदि शंकराचार्य जी हैं जो महान शिव भक्त, अद्वैतवादी, एवं धर्मचक्रप्रवर्तक थे। सनातनी ग्रंथ एवं विद्वानों के अनुसार वे भगवान शिव के अवतार थे।
‘ॐ नमः शिवाय’ यह मंत्र प्रतिष्ठित है, उसे दूसरे बहुसंख्यक मंत्रों और अनेक विस्तृत शास्त्रों से क्या प्रयोजन है?
जिसने ‘ॐ नमः शिवाय’ इस मंत्र का जप दृढ़तापूर्वक अपना लिया है, उसने मानो संपूर्ण शास्त्र पढ़ लिया और समस्त शुभ कृत्यों का अनुष्ठान पूरा कर लिया।
आदि में ‘नमः’ पद से युक्त ‘शिवाय’ ये तीन अक्षर जिसकी जिह्वा के अग्रभाग में विद्यमान हैं, उसका जीवन सफल हो गया।
जब आप यह मानना शुरू करते हैं कि जीवन आपके खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है और कोई शांति नहीं है अब उथल-पुथल है, तो यह मंत्र आपको सही और सत्य मार्ग दिखाकर तत्काल मानसिक परेशानियों को हर लेगा।
हर हर हर महादेव का जयकारा सबको
अधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यत्मिक
झंझटों से छुटकारा दिलाता है।
पीड़ा देने वाले दुष्टों को यह मन्त्र का जाप सद्बुद्धि देता है। आपको सम्मान के साथ जवाब देने के लिए स्पष्टता और आत्मानुभूति बुद्धि प्रदान करेगा।
ॐ नमः शिवाय मंत्र आपके अहंकार और आक्रामकता को झुकाता है, यह आपको सही रास्ते दिखाता है और अपके अतिरंजित मन से तनाव को दूर करता है।
यह एक मात्र मंत्र ऐसा है जिसकी कोई जप संख्या निर्धारित नही है | आप जितना इसका जप करेंगे उतना ही यह सिद्ध होता जायेगा। सामान्यतः १०८ मन्त्र जप की एक माला, इसप्रकार १०८ माला जप से यह सिद्ध होकर चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न करने लगता है।
*ॐ नमः शिवाय मंत्र जितना सरल है उतना ही चमत्कार से भरा हुआ है | ब्रहमस्वरुप महा शिव की कृपा पाने का सबसे आसान रास्ता है।
यदि आप किसी पवित्र नदी के किनारे शिवलिंग स्थापना और पूजन के बाद जप करेंगे तो उसका फल सबसे उत्तम प्राप्त होगा।
आप किसी पर्वत और शांत वन में भी यह शिव पंचाक्षर मन्त्र का जाप कर सकते है।
नमःशिवाय मन्त्र के जप से
कैसे करें दसों इंद्रियों की शुद्धि….
नमः शिवाय पांच अक्षरों से बनने वाले इस महामंत्र को पंचाक्षर मंत्र भी कहते है। यह मंत्र प्रणव ”
ऊँ” का स्थूल रूप है। पंचतत्व से समाहित इस मंत्र के निरन्तर जाप से पांच कर्म इन्द्रिया और पांच ज्ञानइन्द्रियां जाग्रत रहती है। पूर्व तथा इस जन्म के पाप-शाप, दुःख-दारिद्र, शोक-रोग, लोभ-मोह तथा पतित-पापी जीवन संवर जाता है और भोलेनाथकी शरण प्राप्त होती है। ”
नमः शिवाय” मंत्र में पांचों तत्व समान मात्रा में पाये जाते है।
न को नमस्कार….
नमःशिवाय मन्त्र में पहला अक्षर न शब्द का अर्थ नभ होता है। यह आकाश यानि गगनगामी है।
नभ का अर्थ है- वायु देवता, जो आकाश में विचरित है।
आकाश गंगा-
आकाश में स्थित एक नरक का नाम भी नभः है।
शब्दकोश में नभ के और भी अर्थ है जैसे आश्रय, आसमान, आकाश, सावन का महिना, मेघ जल आदि। भगवान विष्णु के प्रिय वाहन श्री गरूड़ जी का एक नाम “नभगेश” भी है, जिनकी अतिसूक्ष्म दूर-दृष्टि है, जो सूर्य को एक टक लगातार देख सकते है। आकाश में विचरने वाले सभी देवगण सूर्य, चंद्र ग्रह-नक्षत्र, वायु, बादल और पक्षी नभचर कहे जाते है।
नभस्य का अर्थ है-भाद्रपद यानि भरा हुआ। भादों के महीने में प्रकृति, पृथ्वी हरि कृपा और हरियाली से लबालब हो जाती है।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र इस नक्षत्र का स्वामी गुरू और उत्तराभाद्रपद
भादौ मास में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दिन यदि शनिवार हो, तो अति शुभ होता है। इस दिन किसी शिवालय की रंगाई.पुताई, जीर्णोद्वार तथा साफ.सफाई घंटा, नाग और नंदी की स्थापना करने करवाने से एक वर्ष तक शनि ग्रह सभी अनिष्टों का नाश कर सहृदयता, समृध्दि एवं शुकुन प्रदान करते है।
श्रावण मास में श्रवण नक्षत्र के दिन रूद्राभिषेक कराने से सारे दुःख-दारिद्र, कष्ट मिट जाते हैं।
श्रवण का अर्थ होता है सुनना।
इस महीने सूर्य कर्क राशि में होते हैं, जो चन्द्रमा की स्वग्रही राशि है। चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है। चन्दमा ने ही सन्सार के लोगों का मन चंचल और चलायमान बना रखा है। दुनिया की सारी मानसिक अशांति, मानसिक रोग, शारीरिक विकार तथा अप्रसन्नता का कारण चन्द्रमा ही है। अतः श्रावण मास में शिंवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने का विधान वैज्ञानिक है, ताकि चन्द्र का दुष्प्रभाव और मन की चंचलता कुछ हद तक कम हो सके। सारा संसार शिव का प्रतिरूप हैं। महादेव का ही अंश है।
वेद मन्त्र उदघोष करते हैं-
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च हृदयात्सर्वमिदं जायते।।
अर्थात
महादेव के मन से चन्द्रमा, महादेव के चक्षु यानि आंखों से सूर्य, श्रोत्र यानि कानों से वायु और प्राण-हृदय से सम्पूर्ण जगत उत्पन्न हुआ।
सृष्टि की समस्त विष रूपी नकारात्मक ऊर्जा के मालिक महाकाल ही हैं। हमारे विष रूपी विकारों का नाश “नमःशिवाय” मन्त्र के निरन्तर जप से होने लगता है।
बाबा कल्यानेश्वर सबका कल्याण करते हैं, सबकी प्रार्थना सुनते है। भगवान शिव सारे जीव जगत के वैद्यनाथ चिकित्सक भी हैं। सभी की नब्ज इन्ही के हाथों में है। ये बिना नब्ज पकड़े नरक से निकाल देते है।
न शब्द की विशाल नगरी.. .
देवनागरी वर्णमाला में त वर्ग त, थ, द, ध और न
ये 5 शब्द होते हैं। “न” – इसका पांचवां वर्ण है।
‘न’ शब्द का उच्चारण स्थान दंत और नासिका है।
बिना दांत के भोजन और बिना नाक के श्वास लेना असंभव है। सभी प्राणी जगत को भोजन और वायु ग्रहण करने की व्यवस्था शिव कृपा से ही संभव है।
“न” कि नियति
न से निर्मित नंगा शब्द का अर्थ शब्दकोश में शिव महादेव कहा गया है। जिसकी देह पर कोई वस्त्र न हो उसे निर्लज्ज बेहया नङ्गघडंग कहा है। वही सत्य शिव है। नंगघडंग शिव जब निर्लज्ज और बेहया हो जाते है तो सृष्टि में भूचाल प्रलय हो जाता है।
“नमः” को नमन…..
नमः का अर्थ है नमन, प्रणाम, नमस्कार, भेंट, समर्पण करने वाले लोग सदा नफा लाभ तथा फायदे में रहते है। नम अर्थात आर्द्र तरल व गीला होता है। शिव के इस स्वरूप का ध्यान करने वाले महासागर की तरह शांत होते है। शिव को सदा तर गीला रखने के कारण शिंवलिंग पर जल धारा अर्पित करने की प्राचीन परम्परा है।
जल का जलजला….
जल जीवन शक्ति है। शिवलिंग पर जल अर्पित करने का भाव यही है कि शिव मैंने अपना जीवन आपको अर्पण कर दिया है। अब जैसी तेरी इच्छा। ग्रामीण क्षेत्रों में यह भजन सुनकर आत्मा आत्म विभोर हो जाती है। गांवों के ग्रामीण गाते हैं कि…
(ऊपर चित्र में राहु की तेल के निर्माण की प्रक्रिया)
अब छोड़ दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में!
हर जीत तुम्हारी हाथों में,
हर हार तुम्हारी हाथों में!!
इन गीत-भजनों से अंर्तमन की गंदगी तन से गल-गल कर निकल जाती है।
न से नमक की नम्रता…
संसार में सभी को सुन्दरता, लावण्य, सलोनापन प्रदान करने वाला सबसे महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ नमक एक प्रकार से ईश्वर की नकारात्मक शक्ति का प्रतीक है। नमक दुःख है, तो मीठा सुख है।
नम्र-विनम्र नरम भाव से कर्म करने वाले नागरिक की अक्सर आंखे नम हो जाती हैं, जब उसे दुनिया में बहुत कठोर और नीच लोगों से पाला पड़ता है। नश्वर शरीर की रक्षा करने वाला शिव ही है।
नमक से निदान और नुकसान…
नमक न खाने वाला प्राणी जहरीला होता है। ज्यादा नमक खाने से हड्डियां गलने लग जाती हैं। रक्त प्रवाह की कमी, रक्तचाप का कम होना तथा बीपी लो होने में नमक अधिक मात्रा में देने से रोगी स्वस्थ हो जाता है। नमक के अधिक सेवन से रक्तचाप बढ़ जाता है यानि बीपी में वृद्धि हो जाती है, जिससे हृदयघात एवं लकवा हो सकता है।
नमक रखने के पात्र को नमक दान और जहां नमक निकलता है या प्राकृतिक रूप से निर्मित होता है उसे नमक सार कहते है। स्वामी मालिक अर्थात शिव से द्रोह छल करने वाला नमकहराम कहा जाता है। तुलसी दास ने लिखा है कि-
“शिवद्रोही मम दास कहावा”!
लेकिन कटनी जिले के अंतर्गत विजयराघवगढ़ ग्राम से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित कैमोर नामक स्थान पर भारत की सुप्रसिद्ध और सबसे पुरानी एसीसीACC सीमेंट फैक्टरी है। यहां एक राम कथा चल रही थी। रामकथा वाचक अपने प्रवचन में सुना रहे थे कि संसार में जितने भी शिव द्रोही है वे ही मेरे भक्त हैं।
शिव को मानने वाले राम भक्त नहीं हो सकते। कभी.कभी झूठी प्रसंशा के खातिर कथा वाचक उटपटांग बोलकर भक्तों को भ्रमित कर देते है।
नमक के बिना नमकीन व्यंजन या पकवान भोजन का निर्माण असंभव है। उज्जैन के विक्रम घाट में साधनारत एक अघोरी ने बताया कि जीवन में आराम, हराम, विराम, विषराम, या विश्राम तथा बेकाम की कामना है, तो तुलसीदास के राम को उच्चारण करें। अग्नि तत्व की जागृति पूर्ति शरीर शुध्दि सुख.समृध्दि की इच्छा हो तो नाभि च्रक को जागृत करने वाले अग्नि तत्व का बीज मंत्र “रं” का मनसा जाप करें।
हानि को लाभ में, मृत्यु को जीवन में और दुःख को सुख में पूर्व जन्म के पाप-प्रारब्ध के पुर्नमूल्यांकन तथा बार.बार की मृत्यु से मुक्ति एवं संसार की समस्त एैश्वर्य की कामना हो तो केवल शिव की साधना करें। सदा !
!ॐ नमः शिवाय!! मंत्र का इतना जाप करें कि यह अजपा हो जावे।
दुर्भाग्य को दूर भगाएं शिव…
■ भगवान शिव दुर्भाग्य को दूर करते हैै, तो
■ माँ भगवती भाग्य को जगा देती है।
■ श्री गणेश गरीबी दूर करते है!
■ श्री कृष्ण और कार्तिकेय का स्मरण कष्ट निवारक है।
■ नंदी जीवन में नयापन और नम्रता लाते है।
■ नाग नवग्रहों की वक्रता नाश करते है।
■ महाकाली काल की काली छाया को उजयाली कर जीवन को लाल एवं लाली बना देती है।
■ शिव का त्रिशुल तीन शूलों, त्रिदोषों का नाशकर्ता है।
■ शिव के सिर पर सधा चन्द्र चंचलता का नाश कर साधक को स्थिरता प्रदान करता है।
■ शिव के हाथ में डमरू दम-दम भरी घूटन से मुक्त करता है।
!!ॐ नमःशिवाय!! मंत्र की उत्पत्ति का रहस्य—
भजले मनवा नमःशिवाय।
व्यर्थ सुनहरा जीवन जाय।।
भगवान शिव को प्रसन्न कर रिझाने
वाले सृष्टि का महामन्त्र ॐ नमः शिवाय
की उत्पत्ति का रहस्य बहुत कम लोगों को मालूम है।
नमः शिवाय मन्त्र का अर्थ है-
भगवान भोलेनाथ शिव को नमस्कार,
जो सदैव सबका मङ्गल करता है।
इस पंचाक्षर के अजपा तथा सिद्ध होने से सन्सार का हर सुख साधक के साथ सूक्ष्म रूप जुड़ जाता है।
!!ॐ नमः शिवाय!! के निरन्तर जाप से व्यक्ति की हरेक मनोकामना सोचने मात्र से पूर्ण होने लगती है।
कहां से आया ॐ नमःशिवाय मन्त्र….
ॐ नमः शिवाय मन्त्र चार वेदों में से
एक कृष्ण यजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी के
हिस्से श्री रुद्रम् चमकम् में मौजूद है।
यह तैत्तिरीय संहिता के दो अध्यायों
से मिल कर बना है।
यह मंत्र “न”, “मः”, “शि”, “वा” और “य”
इस वेद के प्रत्येक अध्याय में एकादश
स्तोत्र हैं, जो महादेव शिव के एकादश
रुद्रों यानि रक्षक को समर्पित हैं।
दोनों अध्यायों में अध्याय पाँच
का नाम नमकम् एवं अध्याय सात
नाम चमकम् कहलाता है।
इन्हें नमक-चमक भी कहा जाता है।
!!ॐ नमः शिवाय!! महामंत्र, महादेव को प्रसन्न करता है। यह शैव सन्त सम्प्रदाय के गुरुमन्त्र में से लिया गया है। यह मुक्तिमन्त्र भी है।
शिष्य या साधक की साधना से प्रसन्न होकर सदगुरु बाद में अपने परमशिष्य को प्रदान करते हैं।
!!ॐ!! रहित रुद्री नमकम् अध्याय के आठवे स्तोत्र में
ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च
नमः शङ्कराय च मयस्कराय च
नमः शिवाय च शिवतराय च।।
के रूप में मौजूद है। इसका अर्थ है ”
शिव को नमस्कार, जो शुभ है और
शिवतरा को नमस्कार जिनसे अधिक
कोई शुभ नहीं है, जो हर असम्भव को
शिव पल में सम्भव कर देते हैं।
मंत्र का विभिन्न परंपराओं में अर्थ…
नमः शिवाय का अर्थ “भगवान शिव
को नमस्कार” या उस मंगलकारी को प्रणाम! है।
इसे शिव पञ्चाक्षर मंत्र भी कहा जाता है।
यह भगवान शिव की महिमा एवं उनके स्वरुप को दर्शाने, बतलाने वाला मन्त्र है।
पंचतत्व का प्रतीक इस मंत्र का निरन्तर
जाप शिव भक्त की आत्मा-हृदय की गहराइयों में पहुंचकर शिव से उसका साक्षात्कार कराता है।
पांच अक्षर का महत्व..
ॐ नमःशिवाय मंत्र में पांच फ़नधारी
शेषनाग और पंचब्रह्मरूपधारी भगवान
शिव इसमें अप्रमेय होने के कारण वाच्य
है और मंत्र उनका वाचक माना गया है।
यह मंत्र शिव तथ्य है जो सर्वज्ञ, सर्वकर्ता, सर्वव्यापी होकर कण-कण में प्रतिष्ठित हैं।
आदि वैद्य बाबा वैद्यनाथ…
जैसे आयुर्वेदिक ओषधियाँ रोगों का
स्वभाव से दुश्मन हैं, उसी प्रकार भगवान
शिव सम्पूर्ण संसार दोषों के स्वाभाविक
शत्रु माने गए हैं।
जिस प्रकार बीमार व्यक्ति बिना वैद्य या चिकित्सक के रोग मुक्त नहीं हो सकता,
वह देह सुख से रहित होकर अनेक
परेशानी या क्लेश उठाते हैं, उसी प्रकार
बैधनाथ शिव का ध्यान, स्मरण नहीं
करने तथा सदाशिव का आश्रय न लेने
से संसारी जीव नाना प्रकार के कष्ट,
दुःख गरीबी भोगते हैं।
असम्भव को शिव करते सम्भव—
एक खास बात यह भी है कि- वैद्य या
चिकित्सक केवल शरीर के रोगों का
इलाज करते हैं और बाबा बैद्यनाथ
तन-मन, अन्तर्मन और अन्तरात्मा
को रोगरहित और पवित्र कर देते है।
संदर्भ ग्रन्थ, पुस्तकों की सूची/नाम।
इन सबका निचोड़ इस लेख में है….
★ ब्रह्मवैवर्त पुराण
★ अग्नि पुराण
★ शिवपुराण
★ काली तन्त्र
★ रहस्योउपनिषद
★ ईश्वरोउपनिषद
★ काशी का इतिहास
★ प्रतीक शास्त्र
★ हिंदी-संस्कृत शब्दकोश
★ भविष्य पुराण
★ स्कन्ध पुराण
★ महामृत्युंजय रहस्य
★ व्रतराज सहिंता
★ मन्त्र महोदधि
★ तन्त्र चंद्रोदय
★ अंक प्रतीक कोष
★ अर्ध मार्तण्ड
★ श्रीमद्भागवत महापुराण
★ मनीषी की लोकयात्रा
★ हिमालय के योगी
★ अघोरी-अवधूतों के रहस्य आदि!
चमत्कारी मन्त्र की विशेषताएं…..
【1】इस मायावी संसार बन्धन में
बँधे हुए मनुष्यों की मनोकामना पूर्ति
सदैव स्वस्थ्य-प्रसन्न रखने के लिए
स्वयं महाकाल ने !!ॐ नम: शिवाय!!
इस उत्साह दायक सर्व शक्तिमान
मन्त्र का प्रतिपादन किया।
【2】अघोरी-अवधूत, औघड़दानी सन्त इसे
पंचाक्षरी विद्या भी कहते हैं।
【3】वेदों का विश्वास, पृथ्वी की
शक्ति और यह मंत्रों का राजा है।
【4】समस्त श्रुतियों-शास्त्रों का
सिरमौर तथा श्रेष्ठ है।
【5】ॐ नमःशिवाय मन्त्र सम्पूर्ण
उपनिषदों की आत्मा है।
【6】हरेक अक्षर शब्द समुदाय का बीजरूप है।
【7】!!ॐ नम: शिवाय!! मन्त्र के
अजपा जाप से साधारण साधक
शव से शिवस्वरूप हो जाता है।
【8】यह पंचाक्षर मन्त्र मोह-माया
के अंधकार में प्रकाशित करने वाला दीपक है।
【9】अविद्या के समुद्र को सोखने
वाला वडवानल यानि अग्नियुक्त वायु है।
【10】पापों के जंगल को जला डालने वाला दावानल यानि फैलने वाली अग्नि है।
【11】स्कन्दपुराण के अनुसार-
यह पंचाक्षर मन्त्र वटवृक्ष के बीज की भाँति हैं, जो सब कुछ देने वाला तथा सर्वसमर्थ माना गया है।
【12】इस मन्त्र को जपने के लिए
कोई महूर्त, दिन-वार लग्न, तिथि, नक्षत्र
और योग का विचार नहीं किया जाता।
【13】पंचाक्षर मन्त्र कभी सुप्त, लुप्त
या विमुक्त नहीं होता।
【14】यह मन्त्र सदा जाग्रत ही रहता है।
【15】अत: पंचाक्षर मन्त्र ऐसा है,
जिसका जाप, अनुष्ठान सब लोग
किसी भी अवस्थाओं में कर सकते हैं।
【16】पंचाक्षर मन्त्र के जाप से अनेक जन्मों के पाप क्षय होकर 8 तरह के अष्टदरिद्र दूर हो जाते हैं।
शिवावतार जगतगुरु अदिशंकराचार्य
ने लिंगाष्टकम स्तोत्र में लिखा भी है-
!!अष्टदरिद्र विनाशन लिंगम!!
【17】यह मन्त्र भगवान शिव का
हृदय–शिवस्वरूप, गूढ़ से भी गूढ़
विद्या, अथाह सुख-सम्पदा, ऐश्वर्य,
प्रसिद्धि और मोक्ष ज्ञान देने वाला है।
【18】यह मन्त्र समस्त वेदों का
सार है। परमात्मा का वास है इसमें।
【19】यह अलौकिक मन्त्र मनुष्यों
के मन में चैन-अमन देकर तन को
तन्दरुस्त बनाने वाला है।
【20】यह शिव की आज्ञा से सिद्ध है।
【21】पंचाक्षर मन्त्र का निरन्तर जाप तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र तथा नाना प्रकार की
सिद्धियों को देने वाला है।
【22】इस मन्त्र के जाप से साधक
को लौकिक, पारलौकिक सुख,
त्रिकाल दृष्टि, इच्छित फल एवं
पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है।
【23】यह मन्त्र मुख से उच्चारण
करने योग्य, सम्पूर्ण प्रयोजनों को
सिद्ध करने वाला व सभी विद्याओं
का बीजस्वरूप है।
【24】यह मन्त्र सम्पूर्ण वेद, उपनिषद्,
पुराण और शास्त्रों का आभूषण व सब
पापों का नाश करने वाला है।
【25】ॐ नमःशिवाय-यह सृष्टि
निर्माण के वक्त स्वतः ही उत्पन्न
हुआ सबसे पहला मन्त्र है।
【26】प्रलयकारी परिस्थितियों में
संहार के समय सृष्टि का हर कण इसमें समाहित रहकर सुरक्षित हो जाता है।
पूरा शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है…
इसके पाँचों श्लोकों में क्रमशः
न-म:-शि-वा-य है। अत: यह स्तोत्र
पंचतत्व परिपूर्ण शिव का ही स्वरूप है…
नमःशिवाय का श्लोक विस्तार से जाने..
{1} पहले “न”- अक्षर से••••
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै ‘न’ काराय नम: शिवाय !!१!!
अर्थ:- जिनके कण्ठ/,गले में नागों का है। जिनके तीन नेत्र हैं, अपने शरीर पर भस्म का लेप लगाये रहते हैं।दसों दिशाएं ही जिनका वस्त्र है। अर्थात जो सदैव नग्न रहते हैं। ऐसे नित्य शुद्ध महेश्वर ‘न’ कार स्वरूप भोले नाथ को नमन करते हैं।
{2} दूसरे “म”-अक्षर से••••
मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मन्दारपुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै ‘म’काराय नम: शिवाय !!२!!
अर्थात-
गंगाजल, चन्दन, मदार (सफेद अकौआ) तथा विभिन्न पुष्पों से जिस शिंवलिंग की बेहद सुंदर विधि-विधान से पूजा की जाती है, उन नन्दी के अधिपति प्रथम गणों के स्वामी महाकाल ‘म’ कार स्वरूप हदेव को प्रणाम है।
{3} तीसरा “शि”-अक्षर से••••••
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै ‘शि’काराय नम: शिवाय !!३!!
भावार्थ:—सारे विश्व का कल्याण करने वाले, महागौरी के मुख रूपी कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिए सूर्यरूपी दक्ष यज्ञ का नाश करने वाले तथा वृषभ (बैल) के चिन्ह की ध्वज वाले, सर्व ज्ञान सम्पन्न, सुशोभित नीले कण्ठ वाले “शि” कार स्वरूप शिव जी को नमस्कार करता हूं।
{4} चौथे “वा”-शब्द का पूरा मन्त्र….
वशिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य
मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय
तस्मै ‘व’काराय नम: शिवाय !!४!!
अर्थात::—महर्षि वशिष्ठ, ऋषि अगस्त, गौतम आदि इन त्रिकालदर्शीयों और इंद्र आदि देवगण जिनके मस्तक की नित्य पूजा-अर्चना करते हैं। सूर्य तथा चंद्रमा जिनके नेत्र हैं। उन “व” कार स्वरूप कल्यानेश्वर शिवजी को मैं बारम्बार वन्दनकरता हूं।
{5} पांचवा “य”-शब्द का पूरा मन्त्र
यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै ‘य’काराय नम: शिवाय
!!५!!
अर्थ:—यक्ष का रूप धारण करने वाले जटाधारी, अपने हाथों में पिनाक धनुष लिए हुए सनातन आदि पुरुष दिगम्बर देव “य” कार स्वरूप भगवान सोमनाथ को नमस्कार है।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ! शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते!!
भावार्थ- जो कोई भी प्राणी शिव मंदिर में शिंवलिंग के समीप उनके इस पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है। उसे सर्व-सम्पन्नता और शिवलोक की प्राप्ति होती है। वह जगत में स्वस्थ्य प्रसन्न रहता है।
विभिन्न मनोकामनाओं के लिए निम्न
प्रकार से करें, इस पंचाक्षर मन्त्र
ॐ नमःशिवाय का जाप या प्रयोग-
अकालमृत्यु भय को दूर करने के लिए…
शनिवार को पीपलवृक्ष पर कलावा
लपेटकर उसका स्पर्श करके 10 दिन
554 बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करे।
ज्योतिष रत्नाकर एवं कालचक्र सहिंता
में उल्लेख है कि- पीपल वृक्ष में 3 देवताओं का निवास है- संस्कृत में श्लोक है-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु,
सखा शंकरमेवच ।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम,
वृक्षराज नमोस्तुते ।
इसे 5 बार पढ़े, तो अर्थ समझ आ जायेगा।
मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः!
अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः!!
अर्थात-
पीपल के मूल में भगवान ब्रह्म,
मध्य में भगवान श्री विष्णु तथा
अग्रभाग में भगवान शिव का वास
होता है।
गरुड़ पुराण में आया है कि-परमात्मा का वास 554 योजन दूर है। एक योजन में लगभग 13 किमी होता है। एक मन्त्र जपने से हमारे मंत्रों का स्पन्दन, ऊर्जा एक योजन पर कर पाता है।और दस दिन में मन्त्र जाप की प्रार्थना दसों दिशाओं में पहुंच पाती है।
यह जानकारी बहुत संक्षिप्त में दी
जा रही है। भविष्य में यह पूरा ब्लॉग
लिखा जाएगा कि-कितने दिन में,
कितनी माला जपने से जीवन में
क्या-क्या परिवर्तन होने लगते हैं।
@ यश-कीर्ति, मंत्री पद पाने के लिए रविवार को दुपहर 11.40 से 12.28 के मध्य अभिजीत महूर्त में
अमॄतम राहुकी तेल के दो दीपक जलाकर 11 माला
!!ॐ नमःशिवाय!! मन्त्र का जाप करें।
अभिजीत महूर्त का महत्व….
रविवार को उपरोक्त समय में
अभिजीत महूर्त होता है।
भविष्य पुराण के अनुसार-
सब ग्रहों का राजा है और रविवार
दिवस के ये अधिपति/स्वामी हैं।
इस महूर्त में किया गया कोई भी
मन्त्र जप, पूजा-अनुष्ठान पूर्णतः
फलित होता है।
@ धन की वृद्धि के लिए बिना अन्न ग्रहण किये प्रतिदिन राहुकाल में शिंवलिंग पर चन्दन इत्र लगाकर, चारों दिशाओं में एक-एक दीपक देशी घी का
और राहु की तेल का जलाकर 55 दिन तक नियमित 9 माला ॐ नमःशिवाय मन्त्र की जपें!
राहु और राहुकाल के बारे में हम
अमॄतम पत्रिका में अनेक लेख
ऑनलाइन प्रकाशित कर चुके हैं।
@ तन्त्र महोदधि ग्रन्थ से साभार।
विद्या और लक्ष्मी पाने के लिए एक उपाय यह भी है कि किसी तांबे या मिट्टी के पात्र में जल भरकर 101 बार उस जल में ॐ नमःशिवाय मन्त्र का आव्हान कर फिर शिवलिंग पर अर्पित करें। एक दीपक आटे का देशी घी से जलाएं।
मानसिक शांति के लिए रोज अपनी हाथों यानि अंजलि में जल लेकर शिव या सदगुरू का ध्यान करते हुए ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके उस जल को शिवलिंग पर 47 दिन लगातार अर्पित करना चाहिए।
अंत में अंतःकरण से निवेदन—
पशु-पक्षी, जीवों की भी सेवा करें। ये भी रोते हुए
भगवान शिव से हमारी सुख-सम्पन्नता की दुआएं मांगते हैं-
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