- अपने मन को मजबूत बनाकर अपने काम पर ध्यान देवें। समझदार, सफल लोग दुश्मन की लकीर को छोटा करने में समय बर्बाद नहीं करते अपितु अपनी लाइन को बड़ा करने में पूरी शक्ति झोंक देते हैं।
- दुश्मन को हराने के लिए आपको पूरा ध्यान अपनी नाभी पर देना होगा। गहरी गहरी श्वास लेकर नाभी पर एकत्रित करें और मुख से छोड़ें।
- प्राणवायु की इस प्रक्रिया में नाभि में अग्नि प्रज्जलित होने लगेगी और शरीर में ऑक्सीजन की वृद्धि होकर नाकारात्मक ऊर्जा यानि कार्बनडायऑक्साइड बाहर निकल जायेगी। फिर आपको एहसास होगा कि आप ही खुद के दुश्मन थे। आपका कोई नहीं।
- अमृतम के इस लेख को पढ़कर आपको इस ब्रह्माण्ड में कोई भी शत्रु नजर नहीं आएगा।
- अमल करें, तो आप भी कठिन अभ्यास के बाद बहुत बड़े आदमी बन सकते हैं। बस आपको नाभि पर ध्यान लगाना है। यही ध्यान है। amrutam अमृतम पत्रिका, ग्वालियर मप्र से साभार
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- भगवान महावीर, बुद्ध, श्रीकृष्ण, हनुमानजी, दशानन रावण, हिरण्यकश्यप, गुरु नानकदेव और बड़े बड़े अवतारों, परमहंस ने केवल नाभि पर ध्यान केंद्रित कर शून्य से शिखर पर पहुंचे।
- आप किसी से भी शत्रुता रखकर या द्वेष, दुर्भावना पालकर अपना ही नुकसान करते हो। गंदे, दूषित और नकरात्मक विचारों से नाभि की शक्ति क्षीण होने लगती है।
- तभी, तो वेद, पुराण, धर्मग्रंथ और सदगुरु सलाह या निर्देश देते हैं कि बुरी है बुराई मेरे दोस्तो। बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो। बाकी आपकी मर्जी।
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- गंदगी रहित जिंदगी जीने के लिए आपको शुद्धता अपनानी ही पड़ेगी। विचारों को बल देकर मनोबल मजबूत रखें।
- जीने के लिए कुछ जुनून पैदा करना पड़ेगा। याद रहे न गर्मी चून में होती है, न जून में होती है और ऊन में होती है।
- हमारे भाग्य दुर्भाग्य का संबंध नाभी से है। यही सफलता की चाबी छुपी है। सिद्धि, समृद्धि, सफलता के द्वार नाभि से ही खुलते हैं। इसलिए अड़ोस पड़ोस की भाभी से मन हटाकर नाभी को सिद्ध करें।
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- वैसे पड़ोसन बहुत ही अच्छी थी। इसमें किशोर कुमार, सुनील दत्त और महबूब ने गजब का रोल किया था।
- मानव शरीर की नाभी को मणिपुरक चक्र कहते हैं। यही अग्नि का स्थान है। नाभि चक्र की आकृति त्रिकोण है।
- रंग रक्त के समान लाल है। नाभि चक्र ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र है। यहीं से सारे शरीर और बुद्धि में ऊर्जा का संचरण होता है। यह अग्नि तत्त्व को नियंत्रित करता है।
स्वस्थ्य, सुखी जीवन हेतु नाभि के ६४ रहस्य जाने
- प्राचीन वैदिक धर्मग्रंथ के कुंडलिनी चक्र अध्याय के अंतर्गत नाभि हमारी जीवन ऊर्जा का केंद्र है। मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में 6 मिनट तक रहते हैं।
- नाभि शरीर का प्रथम दिमाग होता है, जो प्राणवायु से संचालित होता है। नाभी का शरीर में दिमाग से भी महत्वपूर्ण स्थान है।
- मनुष्य का सूक्ष्म शरीर नाभि ऊर्जा के केंद्र से जुड़ा रहता है। यदि कोई संत या सिद्धपुरुष शरीर से बाहर निकलकर सूक्ष्म शरीर से कहीं भी विचरण करता रहता है, तो उसके सूक्ष्म शरीर की नाभि से स्थूल शरीर की नाभि के बीच एक रश्मि जुड़ी रहती है। यदि यह टूट जाती है तो व्यक्ति का अपने स्थूल शरीर से संबंध भी टूट जाता है।
- विष्णु पाताल लोक में ही रहते हैं। इस धरती और संपूर्ण ब्रह्मांड का भी नाभि केंद्र है। नाभि केंद्र से ही संपूर्ण जीवन संचालित होता है।
- संसार में प्रत्येक मनुष्य का जन्म का संबंध नाभि से ही होता है। नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। भगवान ब्रह्मा का जन्म विष्णु की नाभि से हुआ था।
- पतंजलि योग शास्त्र में नाभि चक्र को मणिपुर चक्र कहते हैं। नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 दल कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है, उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को ‘कर्मयोगी’ कहते हैं।
- कर्म में तल्लीन ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं। इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है।
- आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं, उनमें से एक है नाभि स्पंदन से रोग की पहचान की जाती है।
- शरीर का कौन-सा अंग खराब हो रहा है या रोग विकार ग्रस्त है। नाभि के संचालन और इसकी चिकित्सा के माध्यम से सभी प्रकार के रोग ठीक किए जा सकते हैं।
- नाभी में ऊर्जा, एनर्जी की कमी से ही तन, मन, अंतर्मन में मलीनता आती है और बीमारियां होने लगती हैं।
- नाभि स्पंदन पद्धति के अनुसार यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब महिलाएं गर्भधारण योग्य होती हैं। लेकिन यदि यही मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए, तो ऐसी महिलाएं गर्भ धारण नहीं कर सकती हैं।
- गर्भ से नाभी का गहरा नाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जिन महिलाओं की नाभि एकदम बीचोबीच में होती है वो बिलकुल स्वस्थ बच्चे को जन्म देती हैं।
- नाभि के खिसकने से मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताएं कम हो जाती हैं। यदि गलत जगह पर खिसक जाए व स्थायी हो जाए, तो परिणाम अत्यधिक खराब हो सकते हैं।
- नाभि को यथास्थान लाना एक कठिन कार्य है। थोड़ी-सी गड़बड़ी किसी नई बीमारी को जन्म दे सकती है।
- नाभि की नाड़ियों का संबंध शरीर के आंतरिक अंगों की सूचना प्रणाली से होता है इसलिए नाभि नाड़ी को यथास्थल बैठाने के लिए इसके योग्य व जानकार सिद्ध गुरुओं, अघोरियों का ही सहारा लिया जाना चाहिए।
- नाभि को यथास्थान लाने के लिए रोगी को रात्रि में कुछ खाने को न दें। गुरु के पास सुबह खाली पेट उपचार के लिए जाना चाहिए, क्योंकि खाली पेट ही नाभि नाड़ी की स्थिति का पता लग सकता है।
- हमारे सभी मंत्र जाप, ध्यान, तपस्या नाभी में ही एकत्रित होकर जीवन को स्वस्थ्य और सुखी बनाने में मददगार होती है।
- नाभि में लगभग 1500 तरह के बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो बाहरी संक्रमण या संक्रमित बैक्टीरिया से देह की रक्षा करते हैं। इसलिए नाभि को साफ-सुथरा रखकर ओषधि तेल लगाया जाता है।
- प्राचीन काल में नहाने के बाद नाभी में केसर निर्मित Kumkumadi oil लगाने की परंपरा थी। इससे सौभाग्य की बढ़ोत्तरी होती थी और क्रूर विषम ग्रह हानि नहीं पहुंचाते थे।
- केवल सप्ताह में 2 बार ही नाभि में Kumkumadi tail लगाएं। प्रतिदिन तेल न लगाएं अन्यथा रोगप्रतिरोधी जीवाणु मार जाते हैं और गंभीर बीमारी का खतरा हो सकता है।
- कहां है पारस मणि और इसके रहस्य? मणिपुर में ही पारस मणि स्थित है, जो लोहे को स्वर्ण बना देता है। मणि का अर्थ है गहना, नागमणि, स्वर्ण मणि, भूमि में दबा स्वर्ण खजाना पारस मणि होता है और पुर का मतलब स्थान, महल, जगह, शहर या घर से लगाते हैं।
- मणिपुर चक्र में अनेक बहुमूल्य मणियां हैं जैसे स्पष्टता, आत्मविश्वास, आनन्द, आत्म भरोसा, ज्ञान, बुद्धि और सही निर्णय लेने की योग्यता जैसे गुण। मंत्रमहोदधी शास्त्र के अनुसार पारस मणि का रूप नाभी के मणिपुर चक्र जैसा है
- ऋग्वेद और गुरु गीता के मुताबिक नाभि चक्र तंत्र और योग साधना की चक्र संकल्पना का तीसरा चक्र है। नाभि का आधार तत्व अग्नि होने के कारण इसे अग्नि या सूर्य केन्द्र भी कहते हैं।
- शरीर में अग्नि तत्त्व सौर मंडल में गर्मी के समान ही प्रकट होता है। मणिपुर चक्र स्फूर्ति का केन्द्र है। यह हमारे स्वास्थ्य को सुदृढ़ और पुष्ट करने के लिए हमारी ऊर्जा नियंत्रित करता है।
- नाभि चक्र का प्रभाव एक चुंबक की भांति होता है, जो ब्रह्माण्ड से प्राण को अपनी ओर आकर्षित करता है।
- नाभि या मणिपुर चक्र विद्युत शक्ति (पावरहाउस) के रूप में कार्य करता है । जब ठीक से घूमता है, तो चक्र ऊर्जा को प्रवाहित होने देता है, लेकिन अगर यह अवरुद्ध या अवरुद्ध हो जाता है, तो आप खुद को शक्तिहीन, स्थिर या क्रोधित महसूस कर सकते हैं।
- नाभि चक्र का बीज मंत्र !!रं!! है। जिसे कथा वाचकों ने राम राम कहकर बेड़ागर्क कर दिया। क्योंकि बीजमंत्र को कभी बोला नहीं जाता। उच्चारण करने से गरीबी, बीमारी, दुःख आते हैं।
- ।।रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं या ॐ रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं रं ॐ।।
- बीज मंत्र के निरंतर जाप से साधक की चेतना मणिपुर चक्र में पहुंच जाती है तब हम स्वाधिष्ठान के निषेधात्मक पक्षों यानि हरेक निगेटिव चीज या विचार, डर, भय, चिंता, तनाव, अवसाद, डिप्रेशन आदि पर विजय प्राप्त कर लेते हैं।
- करबद्ध निवेदन आजकल धर्म को ढूंढ बना दिया है। सभी को धन की लालसा है। कोई किसी के दुःख को दूर करना नहीं चाहता। हमारी सलाह है कि आप ही ईश्वर स्वरूप हैं और अपने प्रयास, अभ्यास का एहसास कर परेशानियों से मुक्ति पाने की हिम्मत जुटाएं। किसी की भी बातों में न आएं। टीवी चैनल पर सभी टीबी की बीमारी परोस रहे हैं। में भी बहुत भटका हूं। बस लूटा गया।
- पाचक अग्नि के स्थान के रूप में नाभि चक्र अग्न्याशय यानि पेंक्रियाज (pancreas) और पाचक अवयवों (digestive organs) की प्रक्रिया को विनियमित करता है।
- इस केन्द्र में अवरोध कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जैसे पाचन में खराबियां, परिसंचारी रोग (circulatory disease), मधुमेह या डायबिटीज और रक्तचाप बीपी में उतार-चढ़ाव।
- नाभि पूरी तरह ऊर्जावान हो, तो मानसिक शांति का अनुभव होता है। फक्कड़ रहकर, रूखे – सूखे टिक्कड़ खाकर भी मन लागा यार फकीरी में ऐसा जीवन हो जाता है।
- सक्रिय मणिपुर चक्र अच्छे स्वास्थ्य में बहुत सहायक होता है और बहुत सी व्याधियां, बीमारियों को रोकने में हमारी मदद करता है।
- नाभि चक्र की ऊर्जा निरंतर, निर्बाध प्रवाहित होती है, तो प्रभाव एक शक्तिपुंज के समान, निरन्तर स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है – संतुलन और शक्ति बनाए रखता है।
- मणिपुर चक्र के प्रतीक चित्र में ब्रह्मकमल की दस पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। यह दस प्राणों, प्रमुख शक्तियों का प्रतीक है जो मानव शरीर की सभी प्रक्रियाओं का नियंत्रण और पोषण करती है।
- नाभि या मणिपुर चक्र का एक अतिरिक्त प्रतीक त्रिभुज है, जिसका शीर्ष बिन्दु नीचे की ओर है। यह ऊर्जा के फैलाव, उद्गम और विकास का द्योतक है।
- नाभि या मणिपुर चक्र के सक्रिय होने से मनुष्य नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त होता है और उसकी स्फूर्ति में शुद्धता और शक्ति आती है।
- नाभि, मणिपुर या अग्निचक्र के रक्षक महाकाल हैं और ब्रह्मकमल पर महालक्ष्मी के साथ विराजमान हैं। याद रखें लक्ष्मी चंचला होती है और महालक्ष्मी स्थाई। अधिक जानकारी क्योरा पर उपलब्ध है।
- नाभि के अधिदेवता विष्णु और लक्ष्मी हैं। भगवान विष्णु उदीयमान मानव चेतना के प्रतीक हैं, जिनमें पशु चारित्रता बिल्कुल नहीं है। देवी लक्ष्मी प्रतीक है-भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि की, जो भगवान की कृपा और आशीर्वाद से फलती-फूलती है।
- मणिपुर, नाभि या अग्नि चक्र में अग्नि क्या है?वेद और आयुर्वेद में अग्नि 13 प्रकार की बताई गई है। जिसका सीधा सम्बन्ध नाभि से ही रहता है।
- जप, तप, साधना, मंत्र जाप, पूजा, उपासना, अनुष्ठान, यज्ञादि में अग्नि के आव्हान का महत्व है। नाभी की शुद्धि किए ही महामृत्युंजय जप, रुद्राभिषेक करते हैं।
- पाचन क्रिया में अग्नि का विशेष महत्व है।
- मंद जठराग्नि अथवा तीव्र जठराग्नि से होने वाले रोग का कारण भी नाभि की अग्नि से ही है।
- जठराग्नि
- विषमाग्नि
- तीक्ष्णाग्नि
- मन्दाग्नि
- समाग्नि
- भूताग्नियाँ :
- धात्वाग्नियाँ
- अग्नि के प्रकार – आयुर्वेद के माधव निदान में 13 प्रकार की अग्नियों के बारे में बताया गया है। जिन्हें उनके काम और शरीर में उनके स्थान के आधार पर बांटा गया है। इन सबमें जठराग्नि को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
- पांच भूताग्नियाँ : १ – भौमग्नि ; २- आप्याग्नि ; ३- आग्नेयाग्नि ; ४- वायव्याग्नि ; ५- आकाशाग्नी
- सात धात्वाग्नियाँ : रसाग्नि ; रक्ताग्नि ; मान्साग्नि ; मेदोग्नि : अस्थ्यग्नि ; मज्जाग्नि ; शुक्राग्नि
- और एक जठराग्नि। ये १३ अग्नियां नाभि या अग्नि चक्र से संचालित होती हैं।
- अग्नि क्या है? – हम जो भी भोजन करते हैं उसमें मौजूद प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट या विटामिन जैसे तत्व ही शरीर में धातुओं का निर्माण करते हैं।
- लेकिन खाना खाने के बाद ये सीधे तौर पर सात धातुओं में नहीं बदलते हैं बल्कि हमारे शरीर में मौजूद एक तत्व उन्हें शरीर के तत्वों के रुप में बदलता है।
- भोजन को शरीर के अनुरूप ढालने की क्रिया ही ‘अग्नि’ द्वारा संपन्न होती है. यह पूरी प्रक्रिया पाचन क्रिया और मेटाबोलिज्म कहलाती है.
- अग्नि इस पाचन क्रिया को संपन्न करने के लिए उदर, यकृत, पेट, लीवर में कई तरह के पाचक रसों को उत्पन्न करती है।
- सभी इन पाचक रसों की मदद से सभी प्रकार के पदार्थ (ठोस, द्रव्य, आधे ठोस इत्यादि) धातुओं और मलों में बदल जाते हैं।
- पाचन की इस प्रक्रिया में वात और भोजन रस का वहन करने वाले स्रोतों का भी सहयोग मिलता है लेकिन अग्नि का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है. इस अग्नि को ही जठराग्नि कहा गया है।
- यदि शरीर में अग्नि ना हो, तो आपके द्वारा किया गया भोजन पचेगा नहीं और शरीर में धातुएं भी नहीं बनेंगी।
- आयुर्वेद सार संहिता और चिकित्सा चंद्रोदय में उल्लेख है कि शरीर की जठराग्नि ख़त्म हो जाए, तो मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।
- शरीर का तापमान भी इसी अग्नि द्वारा ही निर्धारित होता है। यही वजह है कि मृत्यु के कुछ समय बाद ही शरीर एकदम ठंडा हो जाता है।
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