- पैसा ही कलयुग में छठी इन्द्रिय है। जाने धन के 52 से अधिक चमत्कार!
- क्योंकि जीवन 52 पत्तों की तरह है,
- जिसके पत्ते लग गए या अच्छे आ गए, वही पल में अम्बानी, बिलगेट्स बन जाता है।
- शिव सन्त सही कहते हैं-
- मैं अति दुर्बल मैं मतिहीना, जो कछु कीन्हा, शम्भू कीन्हा।
- कहा गया है कि- पैसा तेरे तीन नाम- परसा, परशु, परशुराम….
- छठी इन्द्रिय धन या ध्यान से जागृत हो जाती है।
- वैसे संघर्ष, परेशानी भी छठी इन्द्रिय जागृत करने में सहायक होती हैं।
- कलयुग में धन सबसे बड़ी शक्ति है।
- अगर पास पैसे है, तो जमाना पूछेगा आप कैसे हो।
- टकाटक रहने के लिए टका का होना जरूरी है।
- टका वालों को ही लोग टीका लगाकर वन्दन करते हैं।
- पहले धन कमाओ फिर ध्यान लगाओ।
- क्योंकि धन से सबका ध्यान रख पाओगे।
- अकेले धन के अन्दर ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों की शक्तियां समाहितहैं।
- कलयुग में धन को ही माल कहा जाने लगा है।
- अब संसार में माल का ही जगह-जगह जलाल है।
- जलाल का अर्थ है– प्रकाश, तेज, प्रताप और महिमा जो केवल मालदारों के पास उपलब्ध है।
- बिना माल वाले की दुनिया “खाल” खींच लेती है।
- माल की मनमानी इतनी है कि काल के कपाल पर भी अंकुश लगा देता है।
- शक्तिशाली सिद्ध देवता है- धन….
- वर्तमान में माल हर चीज की ढाल है, इसलिये मालवालों की हर चाल निराली होती है।
- माल हो,तो ताल से ताल, सुर से सुर मिलाने वाले हजारों पास आ जाते हैं।
- छटी इन्द्रिय है माल यानि धन
- कलयुग में धन को छटी इन्द्रिय माना जा रहा है।
- जिसके पास धन है उसकी पाँचों इन्द्रिय
जाग्रत स्वतः ही हो जाती हैं ।और जिस पर
धन की कमी है, उसके मन में अमन नहीं है। - अपने यह पुरानी कहावत कभी ग्रामीण क्षेत्रों में किसी योग्य ब्राह्मण के मुख से सुनी होगी—
- टका कर्मा, टका धर्मा
- टका से ही टकाटक है।
- टका नही है पास तो
- सुबह से ही खटाखट है।
- टका से ही सब ऐशो-आराम
- टके से ही सब चकाचक है।
- टके से ही नाम प्रसिद्धि
- काम होते फटाफट है।
- टका का धमाल या माल का कमाल…..
- इस ब्लॉग में कहीं -कहीं धन/टका का कलयुगी नाम माल शब्द का प्रयोग इसलिए किया है।
- क्योंकि मकॉल से ही गाल पर रोक आती है। कभी बाल जल्दी नहीं झड़ते।
- युगों से संसार में तन,मन और धन का बोलबाला रहा है।
- अकाल का कारण है माल और इसी से जीवन में भूचाल आता है।
- धन यानि माल संसार में भूचाल लाने की ताकत रखता है।
- धनहीन आदमी की जाग्रत पाँचों इन्द्रिय शिथिल हो जाती है।
- धन ही इस धरातल में धनजंय,धन-धान्यसे भरपूर कर मलिन मन को मार्मिक और धार्मिक बनाता है ।
- सत्ता के दलाल, हलाल कर हर हाल में
मुश्किल काम चुटकियों में करवाकर
अथाह के मालिक बन जाते हैं ।
माल से ही खाल (त्वचा) में चमक आती है । - माल की वजह से हालचाल पूछने से चौपाल भरी रहती है।
माल की वजह से चपाल (चापलूस) की भरमार होती है ।
जरा सी जरा-पीड़ा होने पर मलाल (दुःख प्रकट) करने वालों का अंबार माल वालों के यहां ही लगता है। - माल से ही संसार में जलाल (आस्था) है।
- माल सबको निहाल (पार) करता है।
- सदा खुशहाल रहने का मूल मंत्र भी माल है।
- माल से सारा साल आनंदमय बीतता है ।
- माल-ससुराल में भी सम्मान में सहायक है।
- माल की आबोहवा गाल की चमक में वृद्धिकारक है ।
माल वाले बड़े-बड़े जाल (उलझन) काटकर सुलझने का मार्ग निकाल लेते हैं
ताल से ताल मिलाना माल से सम्भव है ।
बिन माल सब सून, खून सम्बन्धी तक साथ नहीं देता ।
धन का अभाव दाल-रोटी के भाव याद दिला देता है। - धन का स्वभाव ही है, प्रभाव दिखाना।
धन वाले कि रूह (आत्मा) के रहस्य जानने सब सक्रिय रहते हैं । - अतः हाथ में माल, जेब में रुमाल हो ओर क्या चाहिये कलयुग में
पर धन आये कैसे –
श्री गुरुग्रन्थ साहिब में कई बार आया है
धन -धन श्री वाहेगुरु जी - गुरु की जब कृपा होती है, तो अपार धन की बरसात होने लगती है।
- वह व्यक्ति धन्य-धन्य हो जाता है। गुरु से जीवन शुरू होता है।
- माता-पिता हमारे प्रथम गुरु हैं । वेद-शास्त्रों में
इन्हें ईश्वर से भी ऊपर का पद प्राप्त है। - खतरनाक है धन कि मृत्यु पिछले लेख में धन की मृत्यु,
- तन तथा मन की मृत्यु का भय के
बारे में संक्षिप्त में बताया था कि ये तीन ही
मानव जीवन की शक्तियां हैं। - कैसे बचाएं तीनों को
तन को तरुण अवस्था में सम्भालें
मन की मलिनता मेहनत द्वारा मिटाये ।
लेकिन धन विभिन्न प्रयास,
आत्मविश्वास, दूर दृष्टी, कड़े परिश्रम
समय का सदुपयोग से ही आता है ।
यह लेख केवल धन के विषय में है ।
बहुत समय पहले तीर्थ दर्शन के दौरान मथुरा के द्वारिकाधीश मंदिर के प्रागढ़ - में एक बुजुर्ग दम्पत्ति जो पहनावे से, गरीब लगे, लेकिन मुखमंडल का तेज़ बता रहा था, कि किसी अच्छे
परिवार के हैं। - वेे बुजुर्ग बड़ी तन्मयता से एक भावपूर्ण भजन गा रहे थे,
- जिसकी कुछ शब्द मेरे स्मरण में बहुत वर्षों से आज भी हैं –
- वृक्ष में बीज, बीज में बूटा,
सब झूठा सत्य नाम है ईश्वर
बीज है हमारी श्रम-संघर्ष रूपी पूजा। लगातार प्रयास से बीज से पौधा निकलता है। - पौधा वृक्ष बनकर बूटा (फल) देने लगता है, धन के लिए नियमित कर्म करते हुए धैर्य और धर्म (ईमानदारी) की विशेष आवश्यकता है।
गीता का गीत भी यही है-
माया के चक्कर में चक्करगिन्नि करवाने वाले
चक्रधारी श्रीकृष्ण का भी, तो यही वाक्यसूत्र है यथा- - केवल कर्म करो
फल की इच्छा मत करो।
कर्म से कालसर्प व कुकर्म (दुर्भाग्य) का
नाश हो जाता है। सम्पूर्ण सृष्टि में संघर्ष (कर्म) ही सुख-सम्पन्नता में सहायक है। - सद्प्रयास और कर्म करते हुए कोई अदृश्य परम् सत्ता हमारी सदैव सहायता करती है वह ईश्वर ही है,
- तो क्यों न हम, ऐश्वर्य(धन) पाने-परमेश्वर के पीछे लग जाये।
- ग्रन्थ-पुराण वेद-उपनिषद बताते हैं कि जो जितना ईश्वर के नजदीक है,
- उसके पास उतना ही ऐश्वर्य है।
- ये आता है परम् परिश्रम और शिव साधना से यही हमारी पूजा है ।
- वे ही लोग जीवन में सफल हो सकते हैं, जिनके पास पूंजी (धन) हो या पूजा
- (परेशानी ओर संघर्ष भरा जीवन) अंतिम मार्ग भी वही है।
संसार मे पूजा पूंजी (धन) वाले की ही हो रही
है चाहें वह परमात्मा अथवा पुजारी
(महात्मा) हो। बाकी सब झूठा भ्रमजाल है। - अगला ब्लॉग में दौलत, पैसा की परिभाषा ।
पैसा कैसे पाएं ।पढ़ने के लिये देखें
http://amrutam.co.in
ब्लॉग अच्छे लगें, तो इंस्टाग्राम पर लाइक, शेयर करें।
Watch this story by Amrutam on Instagram before it disappears.
68.3k Followers, 66 Following, 1,461 Posts
Leave a Reply