क्यों कर रहे हैं प्रसिद्ध या गरीब
लोग आत्महत्या? और डिप्रेशन में
जाने के क्या कारण है?
इस बदलते दौर में, हर पल बदलती
बदरंग, दोगली दुनिया से दुखी होकर
एक भावुक शायर खुदा से प्रार्थना
करता है कि-
एक दिमाग वाला दिल,
मुझे भी दे, दे ए खुदा…
ये दिल वाला दिल,
सिर्फ तकलीफ़ ही देता है।
अतः सभी से सादर निवेदन है कि
अपने दिल में मानवता बनाये रखें।
लोगों से कहो! आओ हमारे ह्रदय
में वास करो और कोई किराया मत दो।
इस लेख में पढ़ें-
डिप्रेशन से उत्पन्न रोग-विकार,
अवसाद के आध्यात्मिक 23 उपाय,
डिप्रेशन दूर करने वाली विशेष
40- जड़ीबूटियों के नाम और
आयुर्वेदिक इलाज….
भारत में दिनोदिन सुरसा के मुख की
तरह नई पीढ़ी में बढ़ता डिप्रेशन का
डर बहुत ही डरावना चिंता का विषय है।
डर बहुत ही डरावना चिंता का विषय है।
दिल और दिमाग की सीमाएं बड़ी करें…
अब ऐसे लोग भी आत्महत्या करने
पर मजबूर हैं, जिनके पास नाम,
काम, जाम, ताम-झाम, फेम, रहम,
टेम, जेम, गेम तथा जहन की कोई
कमी नहीं है।
सोसाइड यानि आत्महत्या का जत्था
क्यों दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है?….
~ जब मन-मस्तिष्क का मनोबल
कमजोर होकर टूट जाये,
~ आत्मविश्वास में कमी होने लगे।
~ लोगो से भरोसा उठ जाना।
~ परमसत्ता (शिव) रूठ जाए।
~ जात-पात नीचा और जगत में जग हँसाई,
~ प्यार में रुसवाई, कम कमाई,
~ पति-पत्नी में लड़ाई
~ समाज में बुराई,
~ कर्जे की गहरी खाई,
~ कम उम्र में मुहँ दिखाई (सेक्स रिलेशन)
~ वाद-विवाद, याद की तन्हाई और
~ रग-रग में राग-रोग-शोक के कारण
तन का पतन होकर, पत्ता-पत्ता अर्थात
नाड़ी-कोशिकाओं में जीने की उमंग
मिटकर जीवन में चारो तरफ से पतझड़
होने लगे, तो व्यक्ति अपनी आत्मा की
हत्या यानि आत्महत्या कर लेता है।
डिप्रेशन में जाने या आत्महत्या
करने की 33 खास वजह...
1– परिवार में विवाद,
★ बच्चों के द्वारा तीखे वचन,
★ पैसे की कमी,
★ नोकरी या छोकरी छूट जाना।
★ प्यार में क्रैकपन के कारण ब्रेकअप होना।
★ व्यापार में नुकसान।
★ कर्जा न पटा पाना।
★ बैंक की कुड़की का भय रहना।
★ मुकदमें में हार।
10– शरीर में रोगों की भरमार,
★ हिस्से का किस्सा,
★ रिश्तेदारी में अपमान,
★ आत्महत्या के विचार आना
★ प्रयास के बाद प्रसिद्धि न मिल पाना।
★ दूसरों के द्वारा भावनाओं का न समझना।
★ लोगों की बेवजह अपने बच्चों की
सफलता, सम्पत्ति का दिखावा करना।
★ छल-कपट स्वार्थी न होना, सीधापन।
★ झूठ न बोल पाना।
★ अपने दिल की बात शेयर न कर पाना।
20– सबसे बड़ा रोग-क्या कहेंगे लोग
★ बेशुमार अपव्यय खर्चे बढ़ा लेना
★ शासकीय उलझन, पेंशन
★ बार-बार हर कार्य में असफल होना
24– नकारात्मक विचारों से घिरे रहना
25- घर-परिवार, समाज औऱ देश की
विपरीत परिस्थितियों की वजह से
लोग दिशाहीन होते जा रहे हैं।
इत्यादि ऐसे बहुत से कारण डिप्रेशन की
वजह बनते चले जाते हैं।
वर्तमान में तेज़ गति से युवाओं में
बढ़ता डिप्रेशन का क्या कारण हैं?…
26- प्राकृतिक नियम-धर्म, संस्कारों और
शुद्ध खानपान से विमुख होना।
27– पारिवारिक विवाद, गृह-क्लेश
28– पुरुषार्थ की कमी, दुर्बलता
29– स्त्रियों के रोग, सुन्दरता में कमी,
30– बालों का लगातार झड़ना व पतला होना,
31– थायरॉइड, वातरोग, बीमारियां
32– धन की तंगी आदि समस्याएं तनाव,
चिन्ता, डिप्रेशनवृद्धि में सहायक है।
33– कहीं-कहीं द्वेष-दुर्भावना, दुर्भाग्य,
स्वार्थ, व्यर्थ का संघर्ष, ग्रह दोष तथा बुरा समय भी डिप्रेशन पैदा कर देता है!
दिमाग की चाबी है-ब्रेन की गोल्ड ....
डिप्रेशन (अवसाद), अनिद्रा दूर कर
दिमाग को ऊर्जा-उमंग देने वाली
देशी दवाई ब्रेन की गोल्ड मााल्ट & टैबलेट
BRAIN KEY GOLD MALT & TAB.
(हर्बल मेडिसिन) नियमित उपयोग करें।
एक ऐसी देशी दवा है जो दिमाग के
बन्द दरवाजे खोलकर डिप्रेशन,तनाव
को तबाहकर सकता है। बहुत लंबे समय
तक थकावट, सुस्ती, आलस्य, चिन्ता,
घबराहट, बैचेनी, तनाव को दूर करने में
यह पूरी तरह लाभदायक आयुर्वेदिक
औषधि है।
एक कारण डिप्रेशन का ये भी है….
मनोचिकित्सक और दिमागी
अनुसंधान वैज्ञानिकों के अनुसार
अवसादग्रस्त यानि डिप्रेशन में लोग
खुशी का दिखावा ज्यादा करते हैं-
स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे कि-
जितना हम दिखावा करके अपनी खुशी
जाहिर करने की कोशिश करने लगते हैं
या दिखावा करते हैं।
हम उतना ही दुखी होते जाते हैं।
अवसाद यानि डिप्रेशन के लक्षण,
जो आत्महत्या की वजह बनता है.…
@ व्यक्ति का हमेशा उदास, दुखी रहना,
@ लगातार थकान, आलस्य।
@ जोड़ों में दर्द, थायराइड की समस्या
@ अच्छी गहरी नींद न आना,
@ सदैव चिन्तातुर तनाव मग्न रहना।
@ कोई आकस्मिक भय, डर सताना।
@ ज्यादा देर तक सोना,
@ निरन्तर चुप रहना या अधिक बोलना
आदि बातों से ऐसा व्यक्ति प्रभावित होने
जैसे-लक्षण 15 से 20 दिन या उससे
ज्यादा रहें और उसका कामकाज में
मन लग रहा हो, तो यह आदतें अवसाद
यानी डिप्रेशन की होती हैं।
उपरोक्त लक्षणों से उलझा मनुष्य
स्वयं को हानि पहुंचा कर आत्मघाती उठा सकता है, जिसे हम आत्महत्या कहतें हैं।
किसी मस्त-मौला ने कहा है-
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की!
लोगो ने मेरे घर से रास्ते बना लिए!!
सरकार की नीतियां भी अवसाद और
आत्महत्या का बहुत बड़ा कारण है….
■ कभी बढ़ा हुआ बिजली का बिल,
■ जगह-जगह पुलिस की बसूली,
■ झूठे केसों में फंसने का डर,
■ नगर-निगम की मनमर्जी,
■ आयकर का छापे के भय,
■ Gst के नोटिस,
■ न्याय में लेट-लतीफी,
■ सरकारी दफ्तरों में महा भ्रष्टाचार।
■ सरकार की रोज बदलती नीतियां।
■ मुलजिम वेखोफ
■ शासन में कोई सुनने वाला नहीं।
■ सभी सरकारी कामों में समय की बर्बादी
■ सरकारी अमले की गुंडागर्दी, लापरवाही।
■ सड़क जर्जर होने के कारण हादसे का डर।
■ कब किसकी झोंपड़ी, मकान-दुकान
टूट जाये। भारत में कोई भरोसा नहीं।
■ सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था।
■ बीमारियों पर बेसुमार खर्चा।
■ चिकित्सा जगत में लूटमार।
आदि की वजह से लोगों में जीने की
उमंग घटती जा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डव्लूएचओ) ने
दुनिया को चेताया है कि युवा पीढ़ी
यानि नई जनरेशन अब डिप्रेशन के
डर से बहुत डरी हुई है। देश-विदेश
में विपरीत परिस्थितियों के कारण
विश्व समुदाय विशेषकर युवा पीढ़ी
अवसादग्रस्त होती जा रही है।
आने वाले वक्त में लोगों में दिनों-दिन
अवसाद यानि डिप्रेशन दोगुनी
गति से बढ़ेगा, जो अत्याधिक
सोसाइड का कारण होगा।
डिप्रेशन का दुष्प्रभाव है –आत्महत्या..
!- वर्तमान समय में हर प्राणी परेशान है।
!!- किसी भी काम या चीज में मन न लगना,
!!!- कोई कार्य करने में रुचि न होना,
!v– सुख-दुःख का एहसास न होना,
V- यहां तक गम का भी अहसास न होना।
V!- हमेशा हीनभावना से भरे रहना,
V!!!- बहुत तुच्छ मानसिकता या छोटी सोच,
V!!!– छोटी बातें मस्तिष्क में रखना,
!X– तनाव को जीवन का हिस्सा बनाना।
आदि संकुचित विचारों के चलते
आदमी अवसाद या डिप्रेशन में
लगातार रहने से आत्महत्या करने
पर मजबूर हो जाते हैं।
ज्यादा नकारात्मकता या निगेटिव
बात, दुःख-तकलीफ नहीं झेल पाते आत्महत्या करने वाले.…
अवसाद एक तरह से व्यक्ति के दिमाग
को प्रभावित करता है। इसके कारण
व्यक्ति हर समय नकारात्मक सोचता
रहता है। जब यह स्थिति चरम पर
पहुंच जाती है, तो इंसान को अपना
जीवन निरूद्देश्य या उद्देश्य हीन लगने
लगता है।
अवसाद (डिप्रेशन) क्या है?..……
डिप्रेशन (अवसाद) नई जनरेशन के
कैरियर औऱ जीवन को बर्बाद करने
वाली अत्यंत खतरनाक मानसिक
बीमारी है। डिप्रेशन भय-भ्रम को
वास्तविक बनाता है। यह दिमाग में
होने वाला एक रासायनिक
असंतुलन है, जो छलकर भ्रमित करता है।
मनोचिकित्सक तथा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अवसाद (डिप्रेशन) के कई औऱ
भी अनेक कारण हो सकते हैं। यह मूलत:
किसी व्यक्ति के सोच की बनावट,
विचारधारा, उसके मूल व्यक्तित्व अथवा
परिवार की परिस्थितियों पर भी निर्भर
करता है। किसी ने लिखा है-
ज़िन्दगी की थकान में गुम हो गए,
वो लफ्ज़ जिसे सकुन कहते हैं।
मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर, अवसाद
का एक ऐसा प्रकार है, जिससे बहुत सारे
लोग प्रभावित होते हैं। इस अवसाद से
ग्रस्त व्यक्ति में मिश्रित लक्षण नज़र आते
हैं और यह अवसाद रोगी के काम करने,
सोने, पढ़ने, खाने और आनंद लेने की
क्षमता को प्रभावित करके कामकाज
में प्रभाव डालता है
मनोविकारों पर रिसर्च करने वाले
मनोवैज्ञानिकों ने अवसाद का कारण बढ़ती
बेरोजगारी बीमारी, जिम्मेदारी एवं दूरदृष्टि
की कमी, उद्देश्य रहित जीवन को बताया है। इससे सिर भारी तनाव, चिन्ता होने से व्यक्ति अवसाद के चंगुल में उलझ जाता है।
तत्पश्चात डिप्रेशन से पीड़ितों की
समझदारी, होशियारी कम होकर आगे
की तैयारी नहीं हो पाने से अंत में हिम्मत
टूट जाती है। सुकून नष्ट हो जाता है।
व्यक्ति गुमसुम रहने लगता है।
हकीम से क्या पूछें,
इलाज-ए-दर्दे दिल।
मर्ज जब जिंदगी खुद ही हो,
तो दवा कैसी, दुआ कैसी।
अवसाद या डिप्रेशन
का तात्पर्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोभावों
(मन के भाव) संबंधी दुःख-तकलीफों से
माना जाता है। इसे मानसिक विकार या
सिंड्रोम की संज्ञा दी जाती है।
चिंता, डिप्रेशन है क्या बला?
लगातार तनाव में रहना, दुःखद या
शोकपूर्ण विचार, फिक्र,खटका, खुटका,
सदैव चिन्तामग्न, चिन्तातुर, एक अज्ञात
भय-भ्रम का बना रहना, आदि से
मानसिक तनाव उत्पन्न होता है।
आपका मन विचलित हो रहा है।
जीने की इच्छा शक्ति क्षीण होती जा
रही है। कुछ भी सकारात्मक न सोच
पाना आदि विचारों से घिरे हुए हैं,
तो कहीं न कहीं आप अवसाद की
डगर पर जीवन के उस पार
जाने को तैयार बैठे हैं।
वैज्ञानिकों की खोज-
Who की “डिप्रेशन एवं अन्य सामान्य
मानसिक विकार-विश्व स्वास्थ्य आंकलन“
शीर्षक वाली जांच (रिपोर्ट) से ज्ञात हुआ
है कि पूरी दुनिया में भारत अवसाद
(डिप्रेशन) अर्थात मानसिक रोग से
पूरी तरह प्रभावित देशों में से एक है।
हिंदुस्तान में डिप्रेशन (अवसाद) तीव्र
गति से बढ़ रहा है। 20 से 30 करोड़ से
भी अधिक भारतीय भयंकर मानसिक
विकार तनाव, अशान्ति और भय-भ्रम,
चिंता से पीड़ित हैं।
इसमें युवाओं और महिलाओं की
संख्या सर्वाधिक है।
आयुर्वेदिक ग्रन्थों के अनुसार
क्यों होता है अवसाद (डिप्रेशन)…
रसराज महोदधि, शालाक्य विज्ञान,
भैषज्य रत्नसार, मन की संवेदनाएँ
काय चिकित्सा, चरक एवं सुश्रुत सहिंता
आदि आयुर्वेद के प्राचीन प्रसिद्ध ग्रंथों
में अवसाद (डिप्रेशन) के लिए ढेर सारा
लिखा पड़ा है।
आयुर्विज्ञान मनोचिकित्सकों की नवीन जानकारियों से ज्ञात हुआ है कि कोई भी
व्यक्ति अवसाद की अवस्था में स्वयं को कमजोर, हीन, लाचार और निराश महसूस
करता है। जिंदगी से हार मान लेता है।
अवसाद या डिप्रेशन से व्यथित
व्यक्ति-विशेष के लिए धन-संपदा,
ध्यान-कर्म, सुख, शांति, सफलता,
खुशी यहाँ तक कि रिलेटिव या
रिश्तेदार,मित्र-यार, परिवार या अन्य
कोई संबंध ( रिलेशन) तक बेमानी हो
जाते हैं।
अवसादग्रस्त आदमी को सर्वत्र निराशा,
अशांति, अरुचि प्रतीत होती है।
अमृतम आयुर्वेद में अवसाद-
यह एक मस्तिष्क मनोदशा विकार है।
इसे मानसिक रोग भी कहा जाता है।
जब किसी व्यक्ति में बहुत लम्बे समय
तक चिन्ता की स्थिति बनी रहती है,
तो वह ‘‘अवसाद’’ या विषाद का रूप ले
लेती है।
अवसाद या डिप्रेशन की स्थिति में
व्यक्ति का मन बहुत ही उदास रहता है
तथा उसमें मुख्य रूप से निष्क्रियता,
शरीर से शिथिल, जिद्दीपन,
अकेले रहने एवं आत्महत्या के प्रयास
करने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
ऐसा अवसादग्रस्त व्यक्ति स्वयं को
दीन-हीन, निर्बल मानकर जिन्दगी को
बेकार समझने लगता है।
डिप्रेशन से होने वाली बीमारियां....
तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन का
स्तर बढ़ता जाता है, जिनमें एड्रीनलीन
और कार्टिसोल प्रमुख हैं। लगातार
अनावश्यक मानसिक खिंचाव,
घबराहट, तनाव की स्थिति अवसाद
में बदल जाती है।
अवसाद एक गंभीर स्थिति है।
बल्कि इस बात का संकेत है कि
आपका तन-मन, मस्तिष्क और जीवन
पूरी तरह असंतुलित हो गया है।
डिप्रेशन थायराइड (ग्रंथिशोथ) जैसे-
रोग एवं 88 प्रकार के वात-विकारों
का जन्मदाता है।
अवसाद (डिप्रेशन) मानसिक बीमारी है।
लालन-पालन की कमी औऱ पारिवारिक परिस्थितियां भी जिम्मेदार है।
डिप्रेशन के शारीरिक लक्षण-
¶ सिरदर्द, कब्ज एवं अपच,
¶ मेटाबोलिज्म का बिगड़ना,
¶ पाचन तंत्र कमजोर होना,
¶ छाती में दर्द,
¶ मधुमेह (डाइबिटीज),
¶ बवासीर (पाइल्स),
¶ गले में दर्द व सूजन,
¶ अनिद्रा भोजन में अरूचि,
¶ पूरे शरीर में दर्द रहना,
¶ हमेशा कुछ न कुछ सोचते रहना,
¶ घबराहट, एंजाइटी एवं थकान इत्यादि।
धर्मशास्त्र, अध्यात्म, आयुर्वेद
के हिसाब से अवसाद अर्थात
डिप्रेशन और मनोरोग की वजह….
●.● सहनशीलता में कमी
●.● बढ़ती महत्वकांक्षा
●.● धैर्य व सयंम न होना
●.● अपनी तकलीफों को छुपाना
●.● पारिवारिक मूल्यों का पतन
●.● रिश्तों में दिखावा
●.● दुःख के समय मजाक उड़ाना
●.● परीक्षा या कॉम्पटीशन में फेल होना
●.● युवा पीढ़ी का परिवार, माता-पिता
एवं समाज से दूर रहना।
●.● स्वयं को स्वीकार न करने की कुंठा।
●.● सामाजिक उपेक्षा।
●.● खुद को कमजोर व गिरा हुआ समझना।
●.● बार-बार असफलता।
●.● रात में पूरी नींद न लेना।
●.● नशे की बढ़ती प्रवृत्ति।
●.●निगेटिव सोच, सपने बड़े।
●.● आर्थिक तंगी, धन की कमी
●.● रोगों का भय, बढ़ती बीमारी,
●.● परिवार की चिंता
●.● बेशुमार बेरोजगारी
●.● धोखा, छल, कपट, वेवफ़ाई
●.● कहीं-कहीं नारी की बलिहारी
●.● कभी-कभी पुरुषों की कारगुजारी
●.● सयंम न होना, जल्दबाजी
डिप्रेशन(अवसाद) का प्रमुख कारण है।
अतः घबराएं नहीं आयुर्वेद
में इसका शर्तिया इलाज है।
मोहब्बत के मारे, मायूस मनुष्य…
वर्तमान के कलयुगी औऱ स्वार्थी मोहब्बत
ने भी युवा पीढ़ी को डिप्रेशन में डाल रखा है।
सभी धर्मशास्त्र कहते हैं कि किसी के दिल
को देवी-देवता नहीं समझ पाए, तो हमारी क्या बिसात है।
नामुमकिन है इस दिल को समझ पाना !
दिल का अपना अलग ही दिमाग होता है !!
जब हम अबाधित सुख के लिए बेचैन होकर इधर-उधर सिर पटक-पटक कर भटक जाते हैं,तो हमारी मस्तिष्क कोशिकाएं ढीली या शिथिल होने लगती हैं।
काम कम करना, सोचना ज्यादा
यह प्रवाह बेलगाम होता है।
जब मन वासनात्मक होकर वासनाभांड
अर्थात इच्छाओं के कुम्भ से टकराता है,
जिसमें नई प्रतिक्रिया जन्म लेती है।
यह डिप्रेशन का गर्भ धारण कहलाता है।
शरीर विज्ञान और अवसाद की आहट –
■ तमोगुण, रजोगुण हमारी चेतना शक्ति
क्षीण कर देते हैं, तब होता है अवसाद।
■■ अधिक आराम और आलसी जीवन
आमोद-प्रमोद की ओर आकर्षण।
■■■ अपार आज़ादी के चलते,
जब अंदर का असीम आनंद का
अनुभव त्याग जब हम बाहर की
वस्तुओं से ओत-प्रोत हो जाते हैं,
तब हम अवसादग्रस्त हो जाते हैं।
■■■■ ज्यादा बतूनापन यानी बहुत
बोलने की आदत भी मन को तनावपूर्ण
बनाता है।
पहले कहते थे कि
“चट्टो बिगाड़े 2 घर,
बततो बिगाड़े 100 घर”
अर्थात-चटोरा आदमी दो ही घर या
परिवार खराब करता है, लेकिन बतूना
आदमी 100 घरों को बर्बाद कर सकता है।
अवसाद का अंत....
ब्रेन की गोल्ड माल्ट & टेबलेट में मिलाए
गए घटक-द्रव्य प्रसन्नता से लबालब
कर देते हैं। इसका फार्मूला 500 वर्ष
पुराने “अर्कप्रकाश” वैद्य कल्पद्रुम
जैसे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथो से लिया
गया है, जो ब्रेन की कमजोर ग्रन्थियों को
जाग्रतकर “अवसाद का अंत” कर देता है।
डिप्रेशन-अवसाद के दो प्रकार...
डिप्रेशन या अवसाद को मनोवैज्ञानिकों
एवं अमृतम आयुर्वेद के मनोचिकित्सकों
ने दो श्रेणियों में विभक्त किया है-
[¡] प्रधान विषादी विकृति-
इसमें व्यक्ति एक या एक से अधिक अवसादपूर्ण घटनाओं से पीड़ित होता है।
इस श्रेणी के अवसाद (डिप्रेशन) में अवसादग्रस्त रोगी के लक्षण कम से
कम दो सप्ताह से रहे हों।
[¡¡] डाइस्थाइमिक डिप्रेशन–
इसमें विषाद की मन:स्थिति का स्वरूप दीर्घकालिक होता है। इसमें कम से कम
एक या दो सालों से व्यक्ति अपने
दिन-प्रतिदिन के कार्यो में रूचि खो
देता है तथा जिन्दगी जीना उसे व्यर्थ
लगने लगता है।
ऐसे व्यक्ति प्राय: पूरे दिन अवसाद की मन:स्थिति में रहते है। ये प्राय: अत्यधिक
नींद आने या कम नींद आने, निर्णय लेने
में कठिनार्इ, एकाग्रता का अभाव तथा अत्यधिक थकान आदि इन समस्याओं से पीड़ित रहते हैं।
अवसाद से-निपटने के 23 उपाय
{१} अवसाद से परेशान पीड़ितों
का मजाक न बनाकर उनके प्रति
अपनापन का भाव पैदा करें
{२} डिप्रेशन से पीड़ितों के प्रति
संवेदनशील बने।
{३} “प्यार बांटते चलो” वाली पुरानी
विचारधारा से काफी हद तक डिप्रेशन
को कम किया जा सकता है।
{४} ईश्वर की दुआ औऱ अमृतम
कीआयुर्वेदिक देशी दवा भी डिप्रेशन
मिटाने के लिए बहुत फायदेमन्द है।
{५} शिंवलिंग पर जलधारा अर्पित करें।
{६} आँसू हैं अवसाद है
सब प्रभु का प्रसाद है!
ये सोच भी आपमें हिम्मत भर सकती है।
{७} योग, व्यायाम, प्राणायाम,
{८} सुबह का घूमना, दौड़ना,
{९} अच्छे साहित्य का अध्ययन,
{१०} सत्संग अर्थात अच्छे लोगों का संग,
{११} समाज सेवा,
{१२} समय पर काम निपटाना,
{१३} आलस्य का त्याग,
{१४} सकरात्मक सोच,
{१५} कैसे भी सदैव व्यस्त रहना,
{१६} सात्विक भोजन,
{१७} खर्चे में कटौती, लेखन,
{१८} प्रेरक कहानियां पढ़ना,
{१९} दिव्यांग व गरीबों की सेवा,
{२०} पशु-पक्षियों की सेवा, दाना चुगाना
{२१} असहाय बच्चों को पढ़ाना, ध्यान करना,
{२२} पेड़ों की देखभाल, वृक्षारोपण
{२३} घर, आफिस, मन्दिर, मस्जिद,
गुरुद्वारे की साफ-सफाई औऱ
देखभाल करना आदि में व्यस्त
रहकर समय को खुशी के साथ
बिताया जा सकता है।
डिप्रेशन के ऑपरेशन हेतु
ब्रेन की गोल्ड माल्ट & टेबलेट
जैसी कोई देशी दवा नही है।
मानसिक शांति की गारंटी हेतु इसे
आयुर्वेद ग्रंथों में लिखे फार्मूले से बनाई
गई है, जो मन को मिलिट्री की तरह
मजबूत बनाने के लिए बेहतरीन ओषधि है।
ब्रेनकी गोल्ड माल्ट-डिप्रेशन के दाग
को पूरी तरह धो देता है। इसे शुद्ध देशी जड़ीबूटियों जैसे-
ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जटामांसी,
नागरमोथा, तगर, बच, मालकांगनी,
सारस्वतारिष्ट, आँवला मुरब्बा, गुलकन्द,
स्मृतिसागर रस आदि से निर्मित
किया है इसे औऱ अधिक असरदार
बनाने के लिए इसमें स्वर्ण भस्म
मिलाया गया है।
अश्वगंधा आयुर्वेद की बेहतरीन
एंटीऑक्सीडेंट मेडिसिन समाहित है।
शतावर मस्तिष्क में रक्त के संचार
को आवश्यकता अनुसार सुचारू करता है।
बादाम से डिप्रेशन तत्काल दूर होता है।
याददास्त बढ़ाता है
प्रोटीन,विटामिन, मिनरल्स की पूर्ति हेतु
ब्रेन की में आँवला, सेव, गुलाब, त्रिकटु
का मिश्रण किया गया है।
मस्तिष्क मनुष्य का महाराजा है…
आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार मष्तिष्क
को राजा औऱ शरीर की कोशिकाओं
को सेना माना गया है।
यदि राजा दुरुस्त है- मजबूत है,
तो दुश्मन हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
ब्रेन की गोल्ड माल्ट एवं टेबलेट
आयुर्वेद के नये योग से निर्मित नये युग
की अवसाद नाशक, डिप्रेशन दूर करने
के लिए एक नई सपने सच करने वाली
विलक्षण हर्बल मेडिसिन है।
आयुर्वेद के उपनिषद बताते हैं कि–
जीवन की जटिलताओं, मस्तिष्क के
रोग-मानसिक विकारों से बचने के लिए आयुर्वेद ही पूरी तरह सक्षम है।
देशी दवाएँ स्थाई इलाज के लिये बहुत
जरूरी है।
अब,अवसाद का अन्त…तुरन्त.…..
मानसिक रोग,अवसाद (डिप्रेशन) को
“अमृतम आयुर्वेद चिकित्सा”
से ठीक किया जा सकता है।
वर्तमान में दिमाग की दीमक को
मारकर मन चंगा, तन की तंदरुस्ती
एवं ब्रेन को तेज कर ताकतवर बनाने
तथा जीवन खुशनुमा बनाने के लिए
देशी दवाएँ बहुत कारगर सिद्ध हो रही हैं।
आपके अनुभव से बनेगा नया आयुर्वेद—
आयुर्वेद के इतिहास में अमृतम एक
नया नाम है। नया अध्याय है।
क्योंकि इस समय की खतरनाक
बीमारियों से मुक्ति पाने तथा पीछा
छुड़ाने के लिए आयुर्वेद की पुरानी
परम्पराओं को परास्त करना जरूरी है।
ब्रेन की गोल्ड-मानसिक शांति हेतु
24 कैरेट गोल्ड प्योर हर्बल मेडिसिन
फार्मूला है जिसे खोजा है-
अमृतम ने प्राचीन 50 किताबों से।
मन को बेचैन करने वाली क्रियाहीन कोशिकाओं को क्रियाशील बनाता है।
अमृतम की हर्बल दवाएँ सभी के लिए
स्वास्थ्य की रक्षक औऱ दिमाग का सेतु है। हमारा विश्वास है कि दिमागी केे विकारों में
ब्रेन की का चयन ही आपको चैन देगा।
मस्तिष्क का मैल मिटाता है-ब्रेन की गोल्ड
नवयुवकों-युवतियों अर्थात न्यू जनरेशन डिप्रेशन के इम्प्रेसन से दुखी है,तो इसे
सुबह खाली पेट गर्म दूध के साथ लेवें,
अन्यथा गर्म पानी में मिलाकर चाय
की तरह भी ले सकते है।
इसे दिन में 3 से 4 बार तक लिया
जा सकता है।
हर शब्द अमृतम...
निवेदन-हम अमृतम की लाइब्रेरी में
स्थित15 से 20 हजार पुरानी किताबों
के किवाड़ खोलकर ब्लॉग चुनते हैं
जिन्हें वैज्ञानिक कसौटी पर भी परख
सकते हैं।
आयुर्वेद की प्राचीन परम्पराओं को समझने,
पढ़ने औऱ ज्ञान से परिपूर्ण होने के लिए
अमृतम के लेख का अध्ययन आवश्यक है।
यदि पसन्द आएं,तो उन्हें लाइक,कमेंट्स,
शेयर करने में कतई कंजूसी न करें।
डिप्रेशन से मुक्ति पाने और खुश रहने का
फंडा जब किसी को बहुत समझाने के बाद
भी वह अपने मन की करे, तो उसे अपने
हाल पर छोड़ देना चाहिए।
उसकी ज्यादा चिन्ता,फ़िकर नहीं
करना चाहिए। यह पुराने अनुभवी
लोगों की नसीहत है।
इसीलिए कहा गया कि-
बहते को बह जाने दे,
मत बतलावे ठौर।
समझाए समझे नहीं,
तो धक्का दे-दे और।।
केवल काम के आदमी के साथ रहो।
भिंड-मुरैना की एक ग्रामीण तुकबंदी है।
बारह गाँव का चौधरी,
अस्सी गाँव का राव।
अपने काम न आये तो,
ऐसी-तैसी में जाओ।।
कभी हिम्मत न हारें,हिम्मत से काम लेवें
हारा मन इशारा कर रहा है-
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत।
पारब्रह्म को पाइए,
मन ही की परतीत।।
अर्थात- कभी भी निराश नहीं होना चाहिए।
यह सूक्ति हजारों साल पुरानी है।
सूफी कहावत है-
खुद को कर बुलंद इतना कि,
खुदा वन्दे से पूछे-बता तेरी रजा क्या है।
अर्थात-अपना आत्मविश्वास औऱ प्रयास
ऐसा हो कि खुद, खुदा आकर हमारी हर
मुराद पूरी करे।
भगवान पर भरोसा
एक अद्भुत ज्ञानवर्द्धक कहानी–
परम सन्त भक्त रैदास का नाम, तो
आपने सुना ही होगा।
उनकी यह कहावत विश्व प्रसिद्ध है-
“मन चंगा, तो कठौती में गंगा”
इसका सीधा सा अर्थ यही है कि-
अगर मन शुद्ध है अथवा यदि शरीर
स्वस्थ्य-तन तंदरुस्त है, तो घर में ही गंगा है।
एक बेहतरीन किस्सा जाने पहली बार-
कहते हैं कि एक बार सन्त रैदास ने कुछ
यात्रियों को गंगास्नान के लिए जाते देख,
उन्हें कुछ कौंडियां देकर कहा… कि-
इन्हें माँ गंगा को भेंट कर देना,परन्तु देना,
तभी जब गंगा जी साक्षात प्रकट होकर
कोढ़ियाँ ग्रहण करें।
तीर्थ यात्रियों ने गंगा तट पर जाकर,
स्नान के समय स्मरण करते हुए, कहा
कि- ये कुछ कोढ़ियाँ सन्त रैदास ने
आपके लिए भेजी हैं,आप इन्हें स्वीकार कीजिये।
माँ गंगा ने हाथ बढ़ाकर कोढ़ियाँ ले लीं
औऱ उनके बदले में सोने (गोल्ड) का
एक कंगन “सन्त रैदास” को देने के लिए दे दिया।
यात्रा से लौटकर यात्री गणों ने-वह
कंगन रैदास के पास न ले जाकर
राजा के पास ले गए औऱ उन्हें भेंट कर दिया।
रानी उस कंगन को देखकर इतनी
विमुग्ध हुई की उसकी जोड़ का दूसरा
कंगन मंगाने का हठ कर बैठी, पर जब
बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उस तरह
का दूसरा कंगन नहीं बन सका, तो राजा
हारकर रैदास के पास गए औऱ उन्हें
सब वृतांत सुनाया।
‘भक्त रैदास जी’ ने गंगा का ध्यान करके
अपनी कठौती में से,उस कड़े की जोड़ी
निकाल कर राजा को दे दी।
कठौती किसे कहते हैं-
जिसमें चमार (जाटव) चमड़ा
भिगोने के लिए पानी भर कर रखते हैं।
ज्ञात हो कि सन्त रैदास चर्मकार
(चमार) जाति के थे।
मन के हारे, हार है-यही सही है….
मन की अशांति हो अलविदा
रहस्योपनिषद के अनुसार-
मन की अशान्ति, तनाव अनेक मानसिक विकारों को आमंत्रित करती है।
मन को शान्त रखने का प्रयास करें।
प्रयास से ही प्राणी वेद व्यास
जैसा ज्ञानी बन पाता है।
दुःख,तो दूर हो सकता है किन्तु
भय से भरे व्यक्ति की रक्षा कोई
कर ही नहीं सकता।
खुशियों का दौलत से क्या वास्ता,
ढूढ़ने वाले इसे धूल में भी तलाश लेते हैं।
जीवन का सार-जीवन के पार-
अध्यात्म और सनातन धर्म का नजरिया.…
बीज की यात्रा वृक्ष तक है,
नदी की यात्रा सागर तक है
और…
मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक..
संसार में जो कुछ भी हो रहा है
वह सब ईश्वरीय विधान है,….
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं।
दिनों-दिन गिर रहा है
इंसानियत का स्तर,
और दुनिया का दावा है
कि- हम तरक्की पर हैं।
डिप्रेशन आ अवसाद में जाने के
अलावा और भी कारण जाने इस
अमृतम ब्लॉग में….अवश्य पढ़ें!
संसार में समस्त दु:खों के कारण तीन हैं—
(१) अज्ञान
(२) अशक्ति
(३) अभाव।
जो इन तीनों कारणों को जिस सीमा
तक अपने से दूर करने में समर्थ होगा,
वह उतना ही सुखी बन सकेगा।
(1) अज्ञान-
अज्ञान के कारण मनुष्य का दृष्टिकोण
दूषित हो जाता है। वह तत्त्वज्ञान से
अपरिचित होने के कारण उलटा-सीधा
सोचता है और उलटे काम करता है,
तदनुरूप उलझनों में अधिक फँसता
जाता है और दुःखी होता है।
स्वार्थ, भोग, लोभ, अहंकार, अज्ञानता,
अनुदारता और क्रोध की भावनाएँ मनुष्य
को कर्तव्यच्युत करती हैं और वह
दूरदर्शिता को छोड़कर क्षणिक,
क्षुद्र एवं हीन बातें सोचता है
तथा वैसे ही काम करता है।
फलस्वरूप उसके विचार और
कार्य पापमय होने लगते हैं।
पापों का परिणाम-
पापों का निश्चित परिणाम दुःख है।
दूसरी ओर अज्ञान के कारण वह अपने
और दूसरे सांसारिक गतिविधियों के मूल
हेतुओं को नहीं समझ पाता। फल स्वरूप
असम्भव आशाएँ, तृष्णाएँ, कल्पनाएँ किया करता है। इस उलटे दृष्टिकोण के कारण साधारण- सी बातें उसे बड़ी दुःखमय
दिखाई देती हैं, जिसके कारण वह
रो-रोकर, चिल्लाता रहता है।
अवसाद या डिप्रेशन का शिकार
होकर आत्महत्या के विचार लाकर
मर भी सकता है।
रग-रग में राग, मोह, लोभ भी वजह….
आत्मीयों की मृत्यु, साथियों की
भिन्न रुचि, परिस्थितियों का उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है, पर अज्ञानी सोचता है कि
मैं जो चाहता हूँ, वही सदा होता रहे।
प्रतिकूल बात सामने आये ही नहीं।
इस असम्भव आशा के विपरीत घटनाएँ
जब भी घटित होती हैं, तभी वह सबके
सामने गिड़गिड़ाता है, रोता- चिल्लाता है।
तीसरे अज्ञान के कारण भूलें भी अनेक
प्रकार की होती हैं, समीपस्थ सुविधाओं
से वञ्चित रहना पड़ता है, यह भी दु:ख
का कारण है। इस प्रकार अनेक दु:ख
मनुष्य को अज्ञान के अंधकार के कारण
प्राप्त होते हैं।
हमारे त्रिशूल, त्रिदोष, त्रिपाश,
त्रिकाल दुख, तथा अशक्ति का अर्थ है-
निर्बलता। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक, आत्मिक निर्बलता के कारण
मनुष्य अपने स्वाभाविक जन्मसिद्ध
अधिकारों का भार अपने कन्धों पर
उठाने में समर्थ नहीं होता !
फल स्वरूप उसे वञ्चित रहना पडऩा है।
स्वास्थ्य खराब हो,
बीमारी ने घेर रखा हो, तो
^ स्वादिष्ट भोजन,
^ रूपवती तरुणी,
^ मधुर गीत- वाद्य,
^ सुन्दर दृश्य निरर्थक हैं।
^-धन- दौलत का कोई कहने लायक
सुख उसे नहीं मिल सकता।
बौद्धिक निर्बलता हो, तो
साहित्य, काव्य, दर्शन, मनन,
चिन्तन का रस प्राप्त नहीं हो सकता।
आत्मिक निर्बलता होने से सत्संग,
प्रेम, भक्ति आदि का आत्म-आनन्द
दुर्लभ है।
इतना ही नहीं, निर्बलों को मिटा डालने
के लिए प्रकृति का ‘उत्तम की रक्षा’
सिद्धान्त काम करता है।
कमजोर को सताने और मिटाने के लिए
अनेकों तथ्य प्रकट हो जाते हैं।
निर्दोष, भले और सीधे-सादे तत्त्व भी
उसके प्रतिकूल पड़ते हैं।
सर्दी का मौसम यानि ठंड, जो बलवानों
को बल प्रदान करती है,
रसिकों को रस देती है,
वह कमजोरों को निमोनिया, गठिया,
थायराइड, मानसिक रोग
आदि का कारण बन जाती है।
जो तत्त्व निर्बलों के लिए प्राणघातक हैं,
वे ही बलवानों को सहायक सिद्ध होते हैं।
बेचारी निर्बल बकरी को जंगली जानवरों
से लेकर जगत् माता भवानी दुर्गा तक
चट कर जाती है और सिंह को वन्य पशु
ही नहीं, बड़े- बड़े सम्राट तक अपने राज्य
चिह्न में धारण करते हैं।
हीनभावना एवं निगेटिव नजरिया रखने
वाले अशक्त या कमजोर मनुष्य हमेशा
दुःख पाते हैं, उनके लिए भले
तत्त्व भी आशाप्रद सिद्ध नहीं होते।
उनकी कोई आशा-आकांक्षा पूर्ण नही
हो पाती। वे सदा पाप पुण्य,समाज का
भय, जमाने की चिंता में घिरे रहते हैं,
उनका पूरा जीवन ऊहा-पोह में मिट
जाता है।
अभावजन्य दु:ख क्या है–
अर्थात पदार्थों का अभाव।
अन्न, वस्त्र, जल, मकान, पशु, भूमि,
सहायक, मित्र, धन, औषधि, पुस्तक,
शस्त्र, शिक्षक आदि के अभाव में
विविध प्रकार की पीड़ाएँ, कठिनाइयाँ
भुगतनी पड़ती हैं ।
उचित आवश्यकताओं को कुचलकर
मन मानकर बैठना पड़ता है ।
मन मार-मारकर जीना इनकी मर्जी
बन जाती है और जीवन के महत्त्वपूर्ण
क्षणों को मिट्टी के मोल नष्ट करना पड़ता है।
योग्य, समर्थ और मेहनती व्यक्ति भी
साधनों के अभाव में अपने को लुजं-पुजं
अनुभव करते हैं और जीवन भर दु:ख
उठाकर सन्सार से अलविदा हो जाते हैं।
क्या करें- ईश्वर पर अटूट भरोसा….
महाकाल उपासना कामधेनु है!
— शिव रहस्योउपनिषद
एवं पुराणों में उल्लेख है कि-
सुरलोक में देवताओं के पास कामधेनु
गऊ है, वह अमृतोपम दूध देती है जिसे
पीकर देवगण सदा सन्तुष्ट, प्रसन्न तथा
सुसम्पन्न रहते हैं। वह शिवजी द्वारा प्रदत्त है।
!!हर शब्द अमृतम!!
तन की भूख, तनिक है
तीन पाव या सेर।
मन की भूख अपार है,
कम लागे सुमेर।।
माया कभी रुकी नहीं,
जाती देर-सबेर।
सीख से ठीक…
पुराने बड़े-बुजुर्ग पहले
बाई (स्त्री), दवाई, जम्हाई (आलस्य)
काई (दोगले लोग) और ज्यादा
कमाई से बचने की सलाह देते थे।
स्वस्थ्य तन ही, मन को स्वच्छ रखता है।
तंदरुस्ती तथा मानसिक शांति के लिए-
प्राकृतिक चिकित्सा, योगादि का सहारा
लेना लाभकारी रहता है।
अब समय आ गया है कि-
सन्सार के समझदार लोग सभ्यता
की एक सूची बनाएं, इसमें से परमाणुओं
एवं नकारात्मकता को हटा दें –
और देखें कि क्या हम एक और सुंदर
सभ्यता एवं समाज का निर्माण कर सकते हैं,
जो अधिक टिकाऊ और समावेशी हो –
जो सभी जीव-जगत को समान मानती हो।
शिव की तरह कल्याणकारी हो।
जीवन का एक तरीका जहां आप हमसे
अलग उन लोगों के साथ सदभाव में रहते हैं
और उन्हें हमारी संपत्ति के रूप में नहीं
सोचते हैं।
वर्तमान समय में अमृतम आयुर्वेद के लिये अनुभवों की अमूल्य धरोहर है।
मन-मस्तिष्क की मार हो या
तन के विकार अथवा अंतर्मन में
हाहाकार हो सब तरह की तकलीफ़
दूर कर अमॄतम दवाएँ तन-मन को
मजबूत बनाती हैं। आयुर्वेदक के
नवीन अनुसंधान और खोज रोगों
की फौज को काल कवलित कर देगी।
हर्बल मेडिसिन का सर्वाधिक असर
मन पर ज्यादा होता है। यह मरे मन
में मनन कर जोश भर देती हैं।
“मन की मृत्यु” से तन का पतन होकर
हमारी आत्मा दूषित हो जाती है ।
वेद-वाक्य है-
आत्मा ही परमात्मा है।
आत्मा मरी कि मानवता
का महाविनाश निश्चित है।
कहा गया
मन के मत से मत चलिओ,
ये जीते-जी मरवा देगा।
किसी महान आत्मा ने मनुष्य की मदद के
लिए मन ही मन मनुहार की, कि
अरे, मन समझ-समझ पग धरियो,
इस दुनिया में कोई न अपना,
परछाईं से डरियो।
अमृतम जीवन का आनंद
अशांति त्यागने में है ।
मन की शांति से ही,
आकाश में अमन है ।
जरा (रोग), जिल्लत (अपमान)
जहर युक्त जीवन अमृत से भर जाएगा ।
फिर, मुख से बस इतना ही निकलेगा
“बोले सो निहाल“
निहाल अर्थात भला करने वाले की
वाणी भी गुरुवाणी समान हो जाती है।
सभी धर्म ग्रंथों, पंथों, संतों का यही वचन है ।
मन शांत हुआ कि सारी सुस्ती, शातिर,
स्वार्थी पन, शरीर की शिथिलता,
समझदारी सहज-सरल हो जाती है।
जीवन में धन भी जरूरी है…
धन की मृत्यु जीवन का अंत
है, क्योँ कि धन हमें पार लगाता है।
धन से ही सारा मन -मलिन,मैला
या हल्का, साफ-सुथरा हो जाता है।
धन से ही ये तन ,वतन ओर अमन-चमन
है।सारी पूजा-प्रार्थना का कारण धन
की आवक है।
किंतु स्वस्थ्य शरीर सबसे बड़ी सम्पदा है…
पहले कहते थे-
धन गया तो कुछ नहीं गया,
तन गया तो कुछ-कुछ गया,
लेकिन चरित्र गया तो
सब कुछ चला गया।
लेकिन अब तनिक बदल सा रहा है-
आधुनिक युग का आगाज है
चरित्र गया, तो कुछ नहीं गया
बल्कि आनंद आ गया ,
तन गया, तो कुछ गया,
परंतु धन चला गया, तो
समझों सब कुछ चला गया ।
धन के जाते ही रिश्तों में रिसाव होने
लगता है! ज्यादा रूठने व लालच से
रिश्ते रिसने लगे हैं!
धनवालों को ही रिझाने में लगे हैं लोग।
यह एक राष्ट्रीय रोग हो रहा है!
अपने रो रहे हैं, परायों पर रियायत
(दया) हो रही हैं!
महर्षि वेदव्यास जी की अठारह पुराणों
में दो बातें सारतत्व हैं।
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।।
अर्थात्-
प्रथम…..परोपकार से बड़ा कोई पुण्य
नहीं होता है और दूसरों के साथ किया
गया विश्वासघात, छल-कपट कर दुःख
देना इससे बड़ा कोई पाप पृथ्वी पर है ही नहीं।
स्वार्थी से परेशान माँ भारती.…
किसी अनुभवी आदमी का अकाट्य वाक्य है-
तन की भूख तनिक है,
तीन पाव या सेर!
मन का मान अपार है,
कम लागे सुमेर!!
मतलब-
तन की भूख पोन-एक किलो अन्न धान्य,
भोजन से मिट जाएगी, लेकिन मन
की भूख असीमित है, यदि उसे सभी
सुमेर (पर्वत) भी मिल जाएं, तो भी उसके
मन की तृप्ती नहीं होगी।
क्या है? अपना चप्पा-अपना नमकीन
और थोड़ी सी वर्फ़….
वर्तमान समय केवल अपने में, अपने लिए
जीने का चल रहा है। अधिकांश लोगों की
जीवन शैली अपना चप्पा यानि अपनी बीबी/पत्नी/घरवाली तथा अपना नमकीन अर्थात केवल अपने बच्चे एवं थोड़ी सी वर्फ़ का
मतलब है- थोड़े-बहुत पैसे वाले रिश्तेदार
बस दुनिया की आधी आबादी यहीं तक
सिमट कर रह गई है।
क्यों कैसे होता है- मन व दिमाग डिस्टर्ब...
1. देरी से उठना, देरी से जगना
2. लेन-देनका हिसाब नहीं रखना.
3. कभी किसी के लिए कुछ नहीं करना.
4. स्वयं की बात को ही सत्य बताना.
5. किसी का विश्वास नहीं करना.
6. बिना कारण झूठ बोलना.
7. कोई काम समय पर नहीं करना.
8. बिना मांगे सलाह देना.
9. बीते हुए सुख को बार-बार याद करना.
10. हमेशा अपने लिए सोचना.
मन के मुहावरे…..
■ मनवाँ मर गया,खेल बिगड़ गया
यानि हिम्मत हारने से कम बिगड़ जाता है!
■ मन के लड्डू खाने से भूख नहीं मिटती!
यानि- केवल विचारने या सपने देखने
से काम नहीं चलता। यह भी डिप्रेशन
का कारण बनता है।
■ मन के लड्डू फोड़ना!
मतलब यही है कि हवाई महल
बनाने से जीवन नहीं कटता।
■ मन उमराव, करम दरिद्री
अर्थात-इच्छाएं तो बड़ी हैं पर भाग्य खोटा।
■ मन करे पहिरन चौतार,
कर्म लिखे भेड़ी के बार।
चौतार का अर्थ है बढ़िया मखमल।
कहने का आशय यही है कि मन,
तो मखमल पहनने का करता है,
पर किस्मत में भेड़ी के बाल की बनी
स्वेटर पहनना लिखा है,तो क्या करें।
तन के अस्वस्थ्य होने पर एक
कहावत पुरानी है।
■ मन चलता है,पर टट्टू नहीं चलता।
अर्थात- इच्छाएं तो बहुत हैं पर शरीर
साथ नहीं देता या शरीर किसी काम
का नहीं रहा।
■ मन के लिए श्रीरामचरितमानस
(रामायण) का एक दोहा भी ज्ञानवर्द्धक है-
मन मलिन,तन सुन्दर कैसे,
विष रस भरा कनक घट जैसे। (तुलसी)
भावार्थ- मन की मलिनता अनेक रोगों
की जन्मदाता है। कनक का अर्थ स्वर्ण
या सोने से है। मन की पवित्रता से ही तन स्वस्थ्य रह सकता है।
मन को मस्त बनाएं-
ब्रेन की गोल्ड माल्ट
इसमें ■आंवला, ■सेव, ■गुलकन्द
■हरड़ मुरब्बे का मिश्रण है।
जो पेट के लिए ज्वलनशील नहीं है।
“आयुर्वेद और स्वास्थ्य“ के अनुसार
सफलता व अनुशासन के लिए मानसिक सुकून,तनावरहित एवं वेफ़िक्र होकर
स्वस्थ्य रहना आवश्यक है।
मनोविज्ञानी रिसर्च के हिसाब से
तन-मन से प्रसन्न खुश व्यक्ति दूसरे
लोगों की अपेक्षा 65 से 80 प्रतिशत
शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण कर नित्य
व्यायाम करने वाले 30 से 35 प्रतिशत
अधिक मेहनत करने में सक्षम होते हैं।
◆ मस्तिष्क में जागरूकता बढ़ाये
ब्रेन की भुलक्कड़पन दूर कर बुद्धि
को तेज़ औऱ याददास्त (मैमोरी)
वृद्धिकारक है।
◆ मनोरोगियों, मिर्गी, पागलपन से
पीड़ित व्यक्तियों के दिमाग में कमजोर
रक्तग्रंथियो में रक्तसंचार सुचारू कर
दिमाग की शिथिल कोशिकाओं को जाग्रत करना इसका मुख्य कार्य है।
अध्ययन रत बच्चों, विद्यार्थियों, के
मन-मष्तिष्क में अशांति का अन्त
औऱ शांति की स्थापना करने एवं
शार्प माइंड (sharp mind) बनाने
के लिए यह अद्भुत आयुर्वेदिक ओषधि है।
भय को भगाओ-
© ज्यादा तनावग्रस्त लोग 95 फीसदी
सफल नहीं हो पाते।
© 49 फीसदी लोग तनाव के कारण
नोकरी छोड़ देते हैं
© अस्वस्थ आदमी 5 घंटे से ज्यादा काम
करने पर थकावट महसूस करता है।
करें– “डिप्रेशन” का “ऑपरेशन”
■■■ अशान्ति का अन्त ……■■■….
ब्रेन की गोल्ड माल्ट/ ब्रेन की गोल्ड टेबलेट
से तन औऱ मन उत्तरोत्तर शुद्ध होते जाते हैं।
3 माह तक नियमित सेवन करने से यह बिचलित,भटकते एवं मलिन मन पर नियंत्रण
कर लेता है। मन सत्व गुण से प्रभावित होने लगता है।इसके उपयोग से हमारी मूल
चेतना या आत्मा की झलक मन पर पड़ती है,
तो मन सात्विक तथा अच्छा हो जाता है।
आयुर्वेद में ब्राह्मी,शंखपुष्पी को सर्वश्रेष्ठ सात्विक जड़ी कहा है जो मन व मानसिक विकार उत्पन्नकरने वाली ग्रन्थियों को फ़िल्टरकर अवसाद (डिप्रेशन) से
मुक्त कर देती हैं। इसमें मिलाया मुरब्बा मेटाबोलिज्म व पाचन क्रिया ठीक करने
में मदद करता है।
जड़ीबूटियों के प्रकाण्ड जानकर आयुर्वेदाचार्य श्री भंडारी के अनुसार
पेट की खराबी
से ही मन की बर्बादी होती है।
अनेक तरह के भय-भ्रम,चिन्ता,मस्तिष्क
रोग रुलाने लगते हैं।
ब्रेन की गोल्ड माल्ट & टेबलेट
एक बैलेंस हर्बल फार्मूला है इन दोनों
में 50 से अधिक हर्बल मेडिसिन का
मिश्रण है।
अवसाद एक खतरनाक मानसिक
विकार है, किन्तु यह असाध्य रोग नहीं.…
आयुर्वेद की सहिंताओं के अनुसार
अवसाद (डिप्रेशन) को आयुर्वेदिक
चिकित्सा द्वारा ब्रेनकी गोल्ड माल्ट
एवं ब्रेनकी गोल्ड टेबलेट 3 महीने
नियमित सेवन करके इसे काफी हद
तक कम किया जा सकता है।
आयुर्वेद के मुताबिक….
अवसादग्रस्त होने के पीछे जैविक,
आनुवांशिक और मनोवैज्ञानिक तथा
सामाजिक कारण हो सकते हैं।
यही नहीं देह में लगातार त्रिदोषों
की तकलीफ तथा जैवरासायनिक
असंतुलन की वजह सेे भी कोई-कोई
अवसाद (डिप्रेशन) की लपेट में आ जाता है। वर्तमान में अवसाद का हिसाब इतना बिगड़ चुका है कि लोग जरा सी परेशानी होने पर सोसाइड (आत्महत्या) तक कर रहे हैं।
यह सब अचानक होता है।
इसलिए परिवार के लोगों को सदैव
परिजनों की रक्षा-सुरक्षा के लिये चैतन्य
और सजग रहकर निगाह रखना जरूरी है।
अकेले हैं, चले आओ-जहाँ हो-
ध्यान रखें कि परिवार (फेमिली)का कोई सदस्य (मेम्बर) बहुत समय तक गुमसुम, उदास, चुपचाप रहता है, अपना अधिकतम समय अकेले में बिताता है, निराशा से भरी निगेटिव बातें करता है, तो उसे तुरंत
मनोचिकित्सक (साइक्लोजिस्ट)
से 10 या 12 बार थेरेपी लेवें।
ये घरेलू उपायों पर भी ध्यान दें….
* अकेले में न रहने दें।
* हंसाने की कोशिश करें।
* उसके साथ मस्ती करें।
* पुरानी पिक्चर दिखाएं।
* तारीफ करें।
* मनोबल को बढ़ाने वाली पुरानी बातें करें।
* दिन में 1 से 2 घंटे परिवार के
सभी सदस्य साथ रहें।
* मॉर्निंग वॉक, योग करावें।
* देशी दवाओं देशी उपायों
* योग, ध्यान, भक्ति, कसरत एवं
दुआओं का सहारा लेवे।
* शुद्ध देशी जड़ीबूटियों से निर्मित
१०० फीसदी आयुर्वेदिक दवा
ब्रेनकी गोल्ड माल्ट & टेबलेट
का 3 से 6 माह तक सेवन करना चालू करें।
कैसे बचें डिप्रेशन से–
■ बहुत ज्यादा क्रोध न करें।
■ अनुभवी और जिन्दादिल लोगों के साथ बैठे।
■ हमेशा दुःख की बात करने वालों से दूर रहें।
■ हँसी-मजाक की बातें करें
■ मन को स्थिर करने के लिए मेहनत करें
■ व्यस्त रहें-मस्त रहें
■ परेशानी को हावी न होने दें
■ कुछ संस्मरण लिखें
■ काया की मसाज ऑयल
■ मॉर्निंग वॉक, व्यायाम करें
■ कॉमेडी वीडियो, सीरियल देखें
■ बच्चों को पढ़ायें, उनके साथ मस्ती करें
■ पोसिटिव सोच बनाएं
■ कुछ देर धार्मिक स्थानों पर जाकर बैठें
■ मनोबल और हिम्मत बढ़ाने वाली
किताबों का अध्ययन करें।
■ मैं बहुत अच्छा इंसान हूँ, ऐसा सोचें
■ हीन भावना न आने दें
■ आत्मबल, आत्मविश्वास में वृद्धि करें।
यह काम अवश्य करें…
■ चिन्ता, तनाव से मुक्ति के लिए
केवल राइट साइड की नाक
से श्वांस लेकर राइट साइड की
नाक से ही छोड़ें। यह प्रयोग
दिन भर में 25 से 50 बार
अवश्य करके देखें।
बहुत मानसिक शांति मिलेगी।
■ म्यूजिक सुनें, फ़िल्म देखें।
■ कोई गेम या खेल खेलें,
■ दोस्तों या परिवार के साथ या
अपने किसी खास दोस्त के साथ
गप्पे लड़ाएं या कही घूमने जायें या
किसी अन्य गतिविधि में लिप्त हों
जिसमें आपका मन लगता हो।
क्यों बढ़ रहा है डिप्रेशन-
जब हम अबाधित सुख के लिए बेचैन होकर इधर-उधर सिर पटक-पटक कर भटक जाते हैं, तो हमारी मस्तिष्क कोशिकाएं ढीली या शिथिल होने लगती हैं।
काम कम करना,
काम कम करना,
सोचना ज्यादा यह प्रवाह बेलगाम होता है।
जब मन वासनात्मक होकर वासनाभांड अर्थात इच्छाओं के कुम्भ से टकराता है, जिसमें नई प्रतिक्रिया जन्म लेती है। यह डिप्रेशन का गर्भ धारण कहलाता है।
आयुर्वेद के अनुसार अवसाद की आहट –
■ तमोगुण, रजोगुण हमारी चेतना
शक्ति क्षीण कर देते हैं, तब होता है अवसाद।
■■ अधिक आराम और आलसी जीवन
आमोद-प्रमोद की ओर आकर्षण।
■■■ अपार आज़ादी के चलते,
जब अंदर का असीम आनंद का अनुभव
त्याग जब हम बाहर की वस्तुओं से
ओत-प्रोत हो जाते हैं, तब
हम अवसादग्रस्त हो जाते हैं।
ज्यादा बतूनापन यानी बहुत बोलने
की आदत भी मन को तनावपूर्ण बनाता है।
पहले कहते थे कि-
“चट्टो बिगाड़े 2 घर,
बततो बिगाड़े 100 घर”
अर्थात-चटोरा आदमी दो ही घर या
परिवार खराब करता है, लेकिन बतूना
आदमी 100 घरों को बर्बाद कर सकता है।
अवसाद से बाहर निकलने के लिये-
ब्रेन की गोल्ड माल्ट & टेबलेट में मिलाए गए घटक-द्रव्य प्रसन्नता से लबालब कर देते हैं। इसका फार्मूला 500 वर्ष पुराने
“अर्कप्रकाश” वैद्य कल्पद्रुम
जैसे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथो से लिया गया है
जो ब्रेन की कमजोर ग्रन्थियों को जाग्रत
कर “अवसाद का अंत” कर देता है।
डिप्रेशन के कारण होने वाले रोग…
सिरदर्द, कब्ज एवं अपच, मेटाबोलिज्म का बिगड़ना, पाचन तंत्र कमजोर होना,
छाती में दर्द, मधुमेह (डाइबिटीज),
बवासीर (पाइल्स),
गले में दर्द व सूजन,
अनिद्रा भोजन में अरूचि,
पूरे शरीर में दर्द,
हमेशा कुछ न कुछ सोचते रहना,
घबराहट, एंजाइटी एवं थकान इत्यादि।
2-प्रकार के डिप्रेशन-
डिप्रेशन या अवसाद को मनोवैज्ञानिकों एवं अमृतम आयुर्वेद के मनोचिकित्सकों ने दो श्रेणियों में विभक्त किया है-
■ प्रधान विषादी विकृति-
इसमें व्यक्ति एक या एक से अधिक अवसादपूर्ण घटनाओं से पीड़ित होता है। इस श्रेणी के अवसाद (डिप्रेशन) में अवसादग्रस्त रोगी के लक्षण कम से कम दो सप्ताह से रहे हों।
■ डाइस्थाइमिक डिप्रेशन-
इसमें विषाद की मन:स्थिति का स्वरूप दीर्घकालिक होता है। इसमें कम से कम एक या दो सालों से व्यक्ति अपने दिन-प्रतिदिन के कार्यो में रूचि खो देता है तथा जिन्दगी जीना उसे व्यर्थ लगने लगता है।
ऐसे व्यक्ति प्राय: पूरे दिन अवसाद की मन:स्थिति में रहते है। ये प्राय: अत्यधिक नींद आने या कम नींद आने, निर्णय लेने में कठिनार्इ,
एकाग्रता का अभावतथा अत्यधिक थकान आदि इन समस्याओं से पीड़ित रहते हैं।कैसे निपटे अवसाद से-
एकाग्रता का अभावतथा अत्यधिक थकान आदि इन समस्याओं से पीड़ित रहते हैं।कैसे निपटे अवसाद से-
★★ अवसाद से परेशान पीड़ितों का मजाक न बनाकर उनके प्रति अपनापन का भाव पैदा करें
★★ डिप्रेशन से पीड़ितों के प्रति
संवेदनशील बने।
★★ “प्यार बांटते चलो” वाली पुरानी विचारधारा से काफी हद तक डिप्रेशन को कम किया जा सकता है।
★★ अमृतम की
आयुर्वेदिक देशी दवा भी डिप्रेशन मिटाने के लिए बहुत फायदेमन्द है।
ये सोच भी आपमें हिम्मत भर सकती है।
★★ योग, व्यायाम, प्राणायाम, सुबह का घूमना,
दौड़ना,अच्छे साहित्य का अध्ययन, सत्संग अर्थात अच्छे लोगों का संग, समाज सेवा,
समय पर काम निपटाना, आलस्य का त्याग,
सकरात्मक सोच, कैसे भी व्यस्त रहना,
सात्विक भोजन, खर्चे में कटौती, लेखन,
प्रेरक कहानियां पढ़ना,दिव्यांग व गरीबों की सेवा, असहाय बच्चों को पढ़ाना, ध्यान करना,
घर, आफिस, मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे की साफ-सफाई औऱ देखभाल करना। आदि में व्यस्त
रहकर समय को खुशी के साथ बिताया जा सकता है।
डिप्रेशन के ऑपरेशन हेतु
ब्रेन की गोल्ड माल्ट & टेबलेट
जैसी कोई देशी दवा नहीं है।
मानसिक शांति की गारंटी हेतु इसे आयुर्वेद ग्रंथों में लिखे फार्मूले से बनाई गई है जो मन को मिलिट्रीकी तरह मजबूत बनाने के लिए बेहतरीन ओषधि है। यह डिप्रेशन के दाग को पूरी तरह धो देता है। इसे शुद्ध देशी जड़ीबूटियों जैसे ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जटामांसी से निर्मित
किया है इसे औऱ अधिक असरदार बनाने के लिए इसमें स्मृतिसागर रस मिलाया गया है।
अश्वगंधा आयुर्वेद की बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट मेडिसिन है।
शतावर मस्तिष्क में रक्त के संचार
को आवश्यकता अनुसार सुचारू करता है।
बादाम से डिप्रेशन तत्काल दूर होता है।
याददास्त बढ़ाता है
प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स की पूर्ति हेतु
ब्रेन की में आँवला, सेव, गुलाब, त्रिकटु
का मिश्रण किया गया है।
आयुर्वेद के उपनिषद बताते हैं कि-जीवन की जटिलताओं, मस्तिष्क के रोग-मानसिक विकारों से बचने के लिए आयुर्वेद ही पूरी तरह सक्षम है।
देशी दवाएँ स्थाई इलाज के लिये बहुत जरूरी है।
देशी दवाएँ स्थाई इलाज के लिये बहुत जरूरी है।
अब, अवसाद का अन्त…तुरन्त……
मानसिक रोग, अवसाद (डिप्रेशन) को
“अमृतम आयुर्वेद चिकित्सा” से ठीक किया जा सकता है। वर्तमान में दिमाग की दीमक को मारकर मन चंगा, तन की तंदरुस्ती
एवं ब्रेन को तेज कर ताकतवर बनाने के लिए
तथा जीवन खुशनुमा बनाने के लिए देशी दवाएँ बहुत कारगर सिद्ध हो रही हैं।
आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार मष्तिष्क को राजा औऱ शरीर की कोशिकाओं को सेना माना गया है। यदि राजा दुरुस्त है- मजबूत है, तो दुश्मन हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
आयुर्वेद के नये योग से निर्मित नये युग की अवसाद नाशक, डिप्रेशन दूर करने के लिए एक नई विलक्षण हर्बल मेडिसिन है। यह सपने सच करने का साथी है।
अब आपके अनुभव से
बनेगा नया आयुर्वेद–
आयुर्वेद के इतिहास में अमृतम एक नया नाम है। नया अध्याय है। क्योंकि इस समय की खतरनाक बीमारियों से मुक्ति पाने तथा पीछा छुड़ाने के लिए आयुर्वेद की पुरानी परम्पराओं को परास्त करना जरूरी है।
ब्रेन की गोल्ड-मानसिक शांति हेतु 24 कैरेट गोल्ड प्योर हर्बल मेडिसिन फार्मूला है जिसे खोजा है-अमृतम ने प्राचीन 50 किताबों से।
यह मन को बेचैन करने वाली क्रियाहीन कोशिकाओं को क्रियाशील बनाता है।
यह मन को बेचैन करने वाली क्रियाहीन कोशिकाओं को क्रियाशील बनाता है।
अमृतम की हर्बल दवाएँ सभी के लिए स्वास्थ्य
की रक्षक औऱ दिमाग का सेतु है। हमारा विश्वास है कि दिमागी केे विकारों में
ब्रेन की का चयन ही आपको चैन देगा।
दिमाग की चाबी है–ब्रेन की गोल्ड
नवयुवकों-युवतियों अर्थात न्यू जनरेशन डिप्रेशन के इम्प्रेसन से दुखी है, तो इसे
सुबह खाली पेट गर्म दूध के साथ लेवें,
अन्यथा गर्म पानी में मिलाकर चाय की तरह भी ले सकते है। इसे दिन में 3 से 4 बार तक लिया जा सकता है।
निवेदन-हम अमृतम की लाइब्रेरी में स्थित
15 से 20 हजार पुरानी किताबों के किवाड़
खोलकर ब्लॉग चुनते हैं जिन्हें वैज्ञानिक कसौटी पर भी परख सकते हैं।
आयुर्वेद की प्राचीन परम्पराओं को समझने,
पढ़ने औऱ ज्ञान से परिपूर्ण होने के लिए
अमृतम के लेख का अध्ययन आवश्यक है।
यदि पसन्द आएं, तो उन्हें लाइक, कमेंट्स,
शेयर करने में कतई कंजूसी न करें।
–खुश रहने का फंडा
अध्ययन करें, किताबें पढ़ें–
अध्ययन करें, किताबें पढ़ें–
जब किसी को बहुत समझाने के बाद भी वह अपने मन की करे, तो उसे अपने हाल पर छोड़ देना चाहिए। उसकी ज्यादा चिन्ता, फ़िकर नहीं करना चाहिए। यह पुराने अनुभवी लोगों की नसीहत है। इसीलिए कहा गया कि-
बहते को बह जाने दे,
मत बतलावे ठौर।
समझाए समझे नहीं,
तो धक्का दे-दे और। ।
केवल काम के आदमी के साथ रहो।
भिंड-मुरैना की एक ग्रामीण तुकबंदी है।
बारह गाँव का चौधरी,
अस्सी गाँव का राव।
अपने काम न आये तो,
ऐसी-तैसी में जाओ। ।
कभी हिम्मत न हारें, हिम्मत से काम लेवें
हारा मन इशारा कर रहा है-
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत।
पारब्रह्म को पाइए,
मन ही की परतीत। ।
अर्थात- कभी भी निराश नहीं होना चाहिए।
यह सूक्ति हजारों साल पुरानी है।
सूफी कहावत है-
खुद को कर बुलंद इतना कि,
खुदा वन्दे से पूछे-बता तेरी रजा क्या है।
अर्थात-अपना आत्मविश्वास औऱ प्रयास
ऐसा हो कि खुद, खुदा आकर हमारी हर
मुराद पूरी करे।
एक अद्भुत ज्ञानवर्द्धक कहानी-
परम सन्त भक्त रैदास का नाम, तो आपने सुना ही होगा। उनकी यह कहावत विश्व प्रसिद्ध है-
“मन चंगा, तो कठौती में गंगा”
इसका सीधा सा अर्थ यही है कि-
अगर मन शुद्ध है अथवा यदि शरीर स्वस्थ्य-
तन तंदरुस्त है, तो घर में ही गंगा है।
एक बेहतरीन किस्सा
कहते हैं कि एक बार सन्त रैदास ने कुछ
यात्रियों को गंगास्नान के लिए जाते देख,
उन्हें कुछ कौंडियां देकर कहा कि इन्हें माँ
गंगा को भेंट कर देना, परन्तु देना, तभी जब
गंगा जी साक्षात प्रकट होकर कोढ़ियाँ
ग्रहण करें।
तीर्थ यात्रियों ने गंगा तट पर जाकर, स्नान के समय स्मरण करते हुए, कहा कि- ये कुछ कोढ़ियाँ सन्त रैदास ने आपके लिए भेजी हैं, आप इन्हें स्वीकार कीजिये। माँ गंगा ने हाथ बढ़ाकर कोढ़ियाँ ले लीं
औऱ उनके बदले में सोने (गोल्ड) का एक कंगन“सन्त रैदास” को देने के लिए दे दिया।
यात्रा से लौटकर यात्री गणों ने-वह कंगन रैदास के पास न ले जाकर राजा के पास ले गए औऱ उन्हें भेंट कर दिया।
रानी उस कंगन को देखकर इतनी विमुग्ध हुई की उसकी जोड़ का दूसरा कंगन मंगाने का हठ कर बैठी, पर जब बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उस तरह का दूसरा कंगन नहीं बन सका, तो राजा हारकर रैदास के पास गए औऱ उन्हें सब वृतांत सुनाया।
‘भक्त रैदास जी‘ ने गंगा का ध्यान करके
अपनी कठौती में से, उस कड़े की जोड़ी
निकाल कर राजा को दे दी।
कठौती किसे कहते हैं-
जिसमें चमार (जाटव) चमड़ा भिगोने के लिए पानी भर कर रखते हैं। ज्ञात हो कि सन्त रैदास चर्मकार (चमार) जाति के थे।
मन के मुहावरे..…
■ मनवाँ मर गया, खेल बिगड़ गया
यानि हिम्मत हारने से कम बिगड़ जाता है
■ मन के लड्डू खाने से भूख नहीं मिटती!
यानि- केवल विचारने या सपने देखने
से काम नहीं चलता। यह भी चिन्ता, तनाव, अशांति
का कारण बनता है।
■ मन के लड्डू फोड़ना!
मतलब यही है कि हवाई महल
बनाने से जीवन नहीं कटता।
■ मन उमराव, करम दरिद्री
अर्थात-इच्छाएं तो बड़ी हैं पर भाग्य खोटा।
■ मन करे पहिरन चौतार,
कर्म लिखे भेड़ी के बार।
चौतार का अर्थ है बढ़िया मखमल।
कहने का आशय यही है कि मन, तो मखमल पहनने का करता है, पर किस्मत में
भेड़ी के बाल की बनी स्वेटर पहनना लिखा है, तो क्या करें।
तन के अस्वस्थ्य होने पर एक
कहावत पुरानी है।
■ मन चलता है, पर टट्टू नहीं चलता।
अर्थात- इच्छाएं तो बहुत हैं पर शरीर साथ नहीं देता या शरीर किसी काम का नहीं रहा।
■ मन के लिए श्रीरामचरितमानस (रामायण)
का एक दोहा भी ज्ञानवर्द्धक है-
मन मलिन, तन सुन्दर कैसे,
विष रस भरा कनक घट जैसे।
(तुलसी)
(तुलसी)
भावार्थ- मन की मलिनता अनेक रोगों की जन्मदाता है।
कनक का अर्थ स्वर्ण या सोने से है। मन की पवित्रता से ही तन स्वस्थ्य रह सकता है।
कनक का अर्थ स्वर्ण या सोने से है। मन की पवित्रता से ही तन स्वस्थ्य रह सकता है।
■ मन की अशांति हो अलविदा
रहस्योपनिषद के अनुसार–
मन की अशान्ति, तनाव अनेक मानसिक विकारों को आमंत्रित करती है। मन को शान्त रखने का प्रयास करें।
■ प्रयास से ही प्राणी वेद व्यास
जैसा ज्ञानी बन पाता है।
■ दुःख, तो दूर हो सकता है किन्तु भय से भरे
व्यक्ति की रक्षा कोई कर ही नहीं सकता।
■ मस्तिष्क में जागरूकता बढ़ाये
ब्रेन की भुलक्कड़पन दूर कर बुद्धि को तेज़ औऱ याददास्त (मैमोरी) वृद्धिकारक है।
◆ मनोरोगियों, मिर्गी, पागलपन से पीड़ित
व्यक्तियों के दिमाग में कमजोर रक्तग्रंथियो में रक्तसंचार सुचारू कर दिमाग की शिथिल कोशिकाओं को जाग्रत करना इसका मुख्य कार्य है।
अध्ययन रत बच्चों, विद्यार्थियों, के मन-मष्तिष्क में अशांति का अन्त औऱ शांति की स्थापना करने एवं शार्प माइंड (sharp mind) बनाने के लिए यह अद्भुत आयुर्वेदिक ओषधि है।
मन को मस्त बनाएं-ब्रेनकी
इसमें ■आंवला, ■सेव, ■गुलकन्द ■हरड़ मुरब्बे का मिश्रण है। जो पेट के लिए ज्वलनशील नहीं है।
अवसाद की आहट….
सफलता व अनुशासन के लिए मानसिक
सुकून, तनावरहित एवं वेफ़िक्र होकर
स्वस्थ्य रहना आवश्यक है।
मनोविज्ञानी रिसर्च के हिसाब से तन-मन
से प्रसन्न खुश व्यक्ति दूसरे लोगों की
अपेक्षा 65 से 80 प्रतिशत शुद्ध सात्विक
भोजन ग्रहण कर नित्य व्यायाम करने
वाले एवं 30 से 35 प्रतिशत अधिक
मेहनत करने में सक्षम होते हैं।
भय को भगाओ-
© ज्यादा तनावग्रस्त लोग 95 फीसदी
सफल नहीं हो पाते।
© 49 फीसदी लोग तनाव के कारण
नोकरी छोड़ देते हैं
© अस्वस्थ आदमी 5 घंटे से ज्यादा काम
करने पर थकावट महसूस करता है।
करें– “डिप्रेशन” का “ऑपरेशन”
■■■ अशान्ति का अन्त ■■■….
ब्रेन की गोल्ड माल्ट/ ब्रेन की गोल्ड टेबलेट
से तन औऱ मन उत्तरोत्तर शुद्ध होते जाते हैं।
3 माह तक नियमित सेवन करने से यह बिचलित, भटकते एवं मलिन मन पर नियंत्रण
कर लेता है।
मन सत्व गुण से प्रभावित होने लगता है। इसके उपयोग से हमारी मूल चेतना या
मन सत्व गुण से प्रभावित होने लगता है। इसके उपयोग से हमारी मूल चेतना या
आत्मा की झलक मन पर पड़ती है,
तो मन सात्विक तथा अच्छा हो जाता है।
आयुर्वेद में ब्राह्मी, शंखपुष्पी को सर्वश्रेष्ठ सात्विक जड़ी कहा है,
जो मन व मानसिक विकार उत्पन्न
करने वाली ग्रन्थियों को फ़िल्टर कर
अवसाद (डिप्रेशन) से मुक्त कर देती हैं।
इसमें मिलाया मुरब्बा मेटाबोलिज्म
व पाचन क्रिया ठीक करने में मदद करता है।
जड़ीबूटियों के प्रकाण्ड जानकर
आयुर्वेदाचार्य श्री भंडारी के अनुसार
पेट की खराबी से ही तन-मन की बर्बादी
होती है। अनेक तरह के भय-भ्रम, चिन्ता, मस्तिष्क रोग रुलाने लगते हैं।
रात भर सो नहीं पाते।
अवसाद को आस-पास आने न दें-
डिप्रेशन से पीड़ित 85 फीसदी लोगों में
अनिद्रा यानि समय पर नींद न आने
की समस्या होती है। ब्रेनकी गोल्ड
एक बैलेंस हर्बल फार्मूला है, जो
गहरी नींद लाने में सहायक है।
इसमें मन-मस्तिष्क को राहत देने
वाली असरदार 50 से अधिक हर्बल
मेडिसिन का मिश्रण है।
मन के अमन देने एवं तन को पतन
से बचाने के लिए के लिए यह बहुत ही लाभदायक है।
शान्ति का साम्राज्य–आयुर्वेद और आध्यात्मिक आदेशो के अनुसार-
सुख-दुःख भुगतकर ही मन-मस्तिष्क की मलिनता को मिटाया जा सकता है।
सुख-दुःख जब शुद्ध होकर आदमी को अप्रभावित करने लगें, तभी समझना
चाहिए हम अवसाद से मुक्त हैं।
हमारा तन-मन में, तभी शान्ति की
स्थापना हो पाती है।
ब्रेनकी गोल्ड के चमत्कारी फायदे…
【】मन को प्राणेंद्रियों यानि कर्मेंद्रियों के
प्रभाव से मुक्त कर ब्रेन को चेतन्य
करता है।
【】कॉस्मिक आइडिएसन से चेतना
शक्ति, ऊर्जा-उमंग भर देता है।
इससे पुराने निगेटिव विचार तेजी
से नष्ट होने लगते हैं।
【】ब्रेन की गोल्ड माल्ट & टेबलेट
“डिप्रेशन का ऑपरेशन” करने वाली
24 कैरेट गोल्ड दवाई है।
【】ब्रेन को प्रभावशाली बनाने वाली
केमिकल रहित हर्बल ओषधि है।
【】बुद्धि की अभिवृद्धि हेतु विलक्षण है।
【】ब्राह्मी, शंखपुष्पी, बादाम, मुरब्बा युक्त
ब्रेन की गोल्ड माल्ट & टेबलेट
निगेटिव सोच से उत्पन्न बुद्धि में बाधक,
विकारों का जड़मूल से नाश करता है
ऊर्जा, उमंग, उत्साहवर्द्धक देशी दवा है,
जो बुद्धि-विवेक का बल बढ़ाकर दिमाग
के हर भाग को झंकृत कर देती है।
गुणवत्ता युक्त जड़ीबूटियों तथा प्राकृतिक
ओषधियों के काढ़े से बनी यह दवा दिमागी
कोशिकाओं को जीवित व जाग्रत कर मन प्रसन्न, तन तरोताज़ा बनाती है।
प्राकृतिक प्रयास–
आसन का अभ्यास, अनुभव से भी व्यक्ति असंतुलित, अवसादग्रस्त मन को कंट्रोल कर सकता है।
सेवन विधि, परहेज, पथ्य-अपथ्य, हानि लाभ,
डिप्रेशन दूर करने वाले अन्य उपाय
बस, सुबह खाली पेट 2 से 3 चम्मच तथा 1 या 2 टेबलेट गर्म दूध से लें, तो यह कमजोर दिमाग का लाजबाब इलाज है। अन्यथा इसे चाय व पानी के साथ भी लिया जा सकता है।
रात में भी ऐसे ही सेवन करें।
बिना प्रयत्न के तन-मन और मस्तिष्क को प्रसन्न रखने वाली बुद्धि की शुद्धि के लिए बुद्धिवर्धक तथा दिमाग को शुद्ध करने वाली आयुर्वेदिक दिमागी दवा है। जिसके उपयोग से
“अमृतम” के परिश्रम व जतन एहसास हो जाएगा।
को बनाने की प्रक्रिया भी बहुत कठिन है।
पुरानी परम्पराओं की पध्दति के हिसाब से इसके निर्माण में लगभग एक माह का समय लगता है। यह हीनभावना अवसाद (डिप्रेशन) बहुत जल्दी दूर करता है। यह नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाकर जिंदगी की दिशा बदलने में सहायता करता है।
■ भय-भ्रम, क्रोध, किच-किच, चिन्ता,
फिक्र, तनाव, होता ही नहीं है।
इसका सेवन जीवन की धारा, विचारधारा एवं
आपका नजरिया बदलकर भटकाव, भय-भ्रम
मिटा देता है। आप जो बनना चाहते हैं या आत्मबलशाली होने एवं बल-बुद्धि की वृद्धि के लिये“ब्रेन की गोल्ड माल्ट”
जैसी अमृतम दवाएँ बहुत जरूरी है। इसे अपने
“आफिस स्पेस में साथ रखें।
बड़े-बुजुर्ग कहते हैं-
चिन्ता, चिता जलाए, चतुराई घटाए।
ब्रेन की का सेवन करें एवं सदा खुश रहें।
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