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अपने बच्चों के शारीरिक दर्द या
लँगड़ेपन को अनदेखा न करें। यह
बाल गठिया या
जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस
जे.आई.ए. का हो सकता है लक्षण…
जेआईए- आयुर्वेद के 88 तरह के वात विकारों में से एक है।
बचपन में इस खतरनाक वात रोग
के होने से बच्चा जीवन भर
दुनिया की लात खाता रहेगा।
कैसे बचाएं बच्चों को जेआईए से…
अपने बच्चों को बचाएं मोबाइल गेम,
टेलीविजन से अन्यथा हो सकता है-
बाल गठिया यानि जेआईए।
स्थाई आराम के लिए पूर्णतः आयुर्वेदिक
१/२ चम्मच रोज दो बार दूध से खिलाएं।
जाने- जेआईए यानि “जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस” क्या है और इसका परमानेंट इलाज कैसे करें…
जेआईए….बच्चों में लम्बे समय तक
चलने वाली जोड़ों के सूजन की
बीमारी है। यह तकलीफ 7 से 17
वर्ष तक के बालकों में बहुत तेजी
से बढ़ रही है।
जे.आई.ए. एक असामान्य वात
विकार है, जो 100 में से 10-20
बच्चों को प्रभावित करती है।
जोड़ों में सूजन के विशिष्ट लक्षण हैं
दर्द, सूजन, फुर्ती की कमी,
क्रियाशीलता, एक्टिवनेस और
गतिविधि में रुकावट।
“इडियोपैथिक” का मतलब है कि हमें
बीमारी के कारण का पता नहीं है और जुवेनाइल का है अर्थ है
कि- लक्षणों की शरुआत!
आमतौर पर जेआईए की परेशानी
18 वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों को
अधिक हो रही है।
अधिकतर माता-पिता इस रोग को
समझने में भूल कर बैठते हैं।
दरअसल यह आयुर्वेद के ८८ प्रकार के
वात विकारों में से एक है।
यह बचपन में 18 साल से पहले होती है।
जेआईए– असाध्य वात रोग यानि क्रोनिक अर्थराइटिस डिसीज है…
किसी भी बीमारी को असाध्य या
क्रोनिक, तब कहा जाता है जब
लगातार चिकित्सा के बाद भी
वह पूरी तरह तुरन्त ठीक नहीं होती।
जेआईए–बीमारी के क्या कारण हैं ?
हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली, रोगप्रतिरोधक क्षमता अर्थात इम्यून सिस्टम हमें
कई तरह के संक्रमण यानि बैक्टीरिया
एवं वायरस से बचाता है।
आयुर्वेदिक ग्रन्थ-
भेषजयरत्नावली,
चक्रदत्त,
द्रव्यगुण विज्ञान,
चरक सहिंता,
वात विकार की विकृति
आदि पुस्तकों में बताया गया है कि-
लम्बे समय का बाल गठिया इस
प्रतिरक्षा प्रणाली की असामान्य
प्रतिक्रिया का नतीजा है जिसके
कारण यह अपने और बाहरी तत्वों
की पहचान नहीं कर पाता और
अपने शरीर के तत्वों को ही नुकसान पहुंचाता है । इस कारण से
जे.आई.ए को “ऑटो इम्यून“
भी कहा जाता है, जिसका मतलब
है कि- प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही
शरीर के खिलाफ काम करती है।
किन्तु लम्बे समय तक चलने वाली
बाकी बीमारियों की तरह जे.आई.ए.
के मुख्य कारणों में बच्चों का
शारीरिक परिश्रम न करना ही है।
खेलोगे-कूदोगे, तो बनोगे नबाब..
ये मजाक में कही पुरानी कहावत है।
बच्चों के खेलने-कूदने, दौड़ने-भागने से बच्चों का शरीर बलवान होता है।
परिश्रम और संघर्ष से बच्चे स्वस्थ्य
रहते हैं। वहीं दिन भर लिखने-पढ़ने,
मोबाइल चलाने और टीवी देखने से
उनका पाचनतंत्र कमजोर होकर
रक्तसंचार अवरुद्ध हो जाता है,
जिससे वात की वृद्धि होती है।
यही बाल गठिया या जेआईए का
कारण बनता है। यह अनुवांशिक
बीमारी नहीं है।
जेआईए की दिक्कत केवल अलसी, लापरवाह एवं सुस्त बच्चों को ही
ज्यादातर होती है।
जेआईए के शुरुआती लक्षण या इस रोग
की पुष्टि कैसे की जाती है ?
बच्चों में इस वात विकार के लक्षणों
में 4/5 हफ्ते तक लगातार जोड़ों में
दर्द होना, चलते-फिरते अचानक
गिर जाना, बार-बार मोच आना,
जोड़ों या शरीर में सूजन हो एवं
अन्य बीमारियां जिनके कारण
जोड़ों में दर्द हो सकता है।
इस रोग से मुक्ति पाने हेतु-
!!अमॄतम!!
अत्यंत असरकारक हर्बल मेडिसिन है।
कितनी उम्र तक हो सकता है–जेआईए
यह तकलीफ 18 वर्ष की
आयु से पहले शुरु हो जाती है।
यह उन बच्चों को अधिक होती है,
जो मेहनत नहीं करते या बिल्कुल भी
नहीं खेलते।
बाल गठिया/जेआईए के लक्षण
20 से 25 दिनों से ज्यादा हों और
अन्य कोई भी बीमारी न हो जिनके
कारण जोड़ों में दर्द हो सकता हो।
जे.आई. ए. के अंतर्गत अनेक प्रकार के गठिये आते हैं।
संक्रमण से होने वाले अस्थायी
जे.आई.ए. के अंतर्गत वह सभी प्रकार
के गठिये आते हैं जिनके कारणों का
पता नहीं है और जिनकी शुरुआत
केवल बच्चों को बचपन में होती है।
बच्चों के जोड़ों को दर्द क्यों होता है ?
साइनोवियल झिल्ली, (membrane)
दो स्थानों, दिकों अंगों, पात्रों या खंडो
के बीच स्थित एक पतली अवरोधक
परत होती है जो कुछ चुने पदार्थों,
अणुओं तथा आयनों
या अन्य सामग्रियों को आर-पार
जाने देती है लेकिन अन्य सभी
को रोकती है। जीव शरीरों में ऐसी
कुछ कई पतली झिल्लियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें जैव-झिल्लियां कहा जाता है,
जो जोड़ों/जॉइंट्स के आसपास/
इर्द-गिर्द होती है। यह झिल्लियां
सामान्यत: बहुत पतली होती है,
वह बाल गठिया/जेआईए में मोटी
हो जाती है और जोड़ों के बीच का
द्रव्य पदार्थ (साइनोवियल फ्लूअड)
ज्यादा बनने लगता है जिसके कारण
जोड़ों में दर्द, सूजन एवं जोड़ों
को हिलाने में दिक्कत होती है।
जोड़ों में सूजन का एक मुख्य
लक्षण है लम्बे समय तक आराम
करने के बाद जोड़ों का अकड़ जाना,
इस कारण से यह दिक्कत सुबह
उठते वक्त ज्यादा होती है।
बच्चों में प्रतिदिन सुबह के समय
जोड़ों में जकड़न होना मतलब
जेआईए होने के पूरे आसार हैं।
एन्टेल्जिक क्या है...
अगर आपका बच्चा लम्बे समय
लगभग 20 से 25 दिनों तक जोड़ों
को टेढ़ा रखकर, लंगड़ा-लंगड़ाकर चले,
तो मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं जिससे जॉइंट्स में टेढ़ापन स्थायी हो जाता है ।
अधिकांश बच्चे जोड़ों में दर्द/जॉइंट
पेन को कम करने के लिये जोड़ों
को टेढ़ा रखने लगते हैं जिसे
एन्टेल्जिक कहा जाता है,
मतलब दर्द को कम करने हेतु
ठीक ढंग से न चल पाना।
यदि समय पर ठीक से आयुर्वेदिक
चिकित्सा न की जाए, तो
जोड़ों में सूजन से जोड़/,जॉइंट्स
खराब हो सकते हैं।
खतरनाक रोग है यह...
बाल गठिया के इस रोग में
साइनोवियल झिल्ली
व्यायाम न करने के कारण कम
उम्र के
बच्चों में घुटनों के बीच मौजूद
कार्टिलेज घिस कर सूखने लगता है।
इससे घुटने मोडऩे और चलने-फिरने में तकलीफ होती है।
साइनोवियल झिल्ली
बहुत मोटी हो जाती है
(साइनोवियल पैनस बन जाता है)
और ऐसे पदार्थ बनाती है जिनके
कारण हड्डी व जोड़ नष्ट होने लगते हैं। एक्स-रे करने पर हड्डियों में सुराख नजर आते हैं।
अस्थियों (हड्डियों) के अन्दर भरा
हुआ एक मुलायम ऊतक की
मांसपेशियों का सिकुड़ना
(बोन इरोज़न)। जोड़ों को लम्बे
समय तक टेढ़ा रखने के कारण
मांसपेशियां सिकुड़ जाती है,
मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है
जिसके कारण जोड़ों में स्थायी
नुकसान हो जाता है।
जे.आई.ए. के और अन्य लक्षण क्या हैं–
लगातार ज्वर, निमोनिया। बार-बार बुखार तेज एवं लम्बे समय तक रहता है और लाल धब्बे ज्यादातर बुखार के समय आते हैं।
क्रमवद्ध/सिस्टेमिक बाल गठिया जे.आई.ए.…
■ जोड़ों में सूजन के अलावा अन्य
अंगों में भी दिक्कत हो सकती है।
■ पाचनतंत्र कमजोर होना।
■ बच्चे का लम्बे समय तक सुस्त रहना।
■ शरीर के अन्य अंगों में सूजन हो
सकती है जो जाड़ों में सूजन से पहले या सूजन के दौरान हो सकते हैं।
बीमारी के अन्य लक्षण भी हो सकते
हैं जैसे
■ मांसपेशियों में दर्द,
■ जिगर, तिल्ली या गांठों का बढ़ना और
■ हृदय (पेरिकारडाइटिस) और फेफड़ों (प्लयूराइटिस का रोग) के आसपास
की परत में सोजिश। पांच या उससे
ज्यादा जोड़ों में सोजिश बीमारी की
शुरुआत या बाद में हो सकती है।
यह बीमारी किसी भी उम्र के लड़कों व लड़कियों में हो सकती है परन्तु यह
बीमारी अधिकतर स्कूली छात्रों से
छोटी उम्र के बच्चों में ज्यादा पाई जाती है।
बच्चों के लिए विनाशकारी...
करीब आधे बच्चों में थोड़े समय के
लिए बुखार और जोड़ों में सोजिश
होती है और आगे चलकर यह बच्चे
ठीक हो जाते हैं। बाकी आधे बच्चों
में बुखार ठीक हो जाता है जबकि
जोड़ों में सोजिश समय के साथ
बढ़ जाती है जिसका इलाज करना
मुश्किल हो जाता है ।
कुछ प्रतिशत बच्चों में बुखार एवं
सोजिश बने रहते हैं ।
जे.आई.ए. के दस प्रतिशत से कम
बच्चों में सिस्टेमिक जे.आई.ए के
लक्षण होते हैं, यह अधिकतर बच्चों
में पाया जाता है और कभी -कभार
व्यस्कों में भी पाया जाता है।
बाल गठिया या जेआईए विकार से
बच्चों की अस्थि या हड्डियों के क्षय
क्षीण तथा कमजोर होने पर तन
निम्न व्याधियों से घिर जाता है।
जैसे-
◆ बच्चों का मन उदास रहना ।
◆ किसी से ज्यादा बोलचाल की
इच्छा नहीं रहती ।
◆ कोई न कोई शंका, डर भय बना रहता है।
◆ किसी भी काम में मन नहीं लगता।
◆ जवानी आने के पहले ही वीर्य पतला
होकर सेक्स के प्रति अरुचि हो जाती है।
◆ शरीर दुबला व कमजोर होने लगता है।
◆ कम उम्र में ही शरीर का संज्ञान नहीं
रहता, स्वतः ही मल-मूत्र निकल जाता है।
◆ शरीर काँपता है , वमन (उल्टी) जैसा मन
रहता है ।
◆ शरीर सूखने लगता है।
◆ सूजन आती है ओर
◆ त्वचा-चमड़ी रूखी हो जाती है।
◆ एक बार में पखाना साफ नही होता।
◆ बार-बार फ्रेश होने की इच्छा होती है।
◆ देर रात तक नींद न आना।
◆ व्यर्थ की चिंता,बेचैनी, घबराहट रहती है ।
जेआईए से कमजोर हो जाती हैं हड्डियां :–
लगातार भूख न लगना,
पेट की खराबी,
खून की कमी,
राजयक्ष्मा (टी.बी.),
शरीर का प्रदूषित होना।
समय पर भोजन न करना, प्रदूषण,
व्यायाम न करना, आलस्य,शिथिलता, जीर्णज्वर, हमेशा थकान महसूस करना, हाथ-पैरों में टूटन, आदि परेशानी
अथवा रोग बहुत दिनों तक रहते हैं,
तो रस बनना कम हो जाता है
जिससे हड्डियां क्षय होकर पतली औऱ कमजोर होने लगती है।
हम इसका इलाज कैसे कर सकते हैं ?
बाल गठिया अर्थात जे.आई.ए.
को जड़ से खत्म करने की दवा
लाखों वर्ष पुरानी प्राकृतिक चिकित्सा
पध्दति केवल आयुर्वेद में ही उपलब्ध है।
विशेष दर्दनाशक आयुर्वेदिक ओषधि है-
बीमारी के इलाज का मकसद दर्द,
थकावट, अकड़न को कम करना,
जोड़ और हड्डी की खराबी को रोकना
एवं गठिये के सभी प्रकारों में विकास
और संरक्षण गतिशीलता में सुधार
का मुख्य कार्य है।
पिछले दस वर्षों में बॉयोलोजिक
दवाओं की शुरुआत से जे.आई.ए.
के इलाज में जबरदस्त प्रगति हुई है।
हालांकि कुछ बच्चे ‘उपचार
प्रतिरोधी’ हो सकते हैं जिसका
अर्थ है कि इलाज के बावजूद
बीमारी सक्रिय है और जोड़ों में
सूजन है।
ओषधि के रूप में अत्यंत कारगर है।
हालांकि हर बच्चे का
इलाज व्यक्तिगत रूप से किया
जाना चाहिए, उपचार तय करने
के लिए कुछ दिशा निर्देश हैं।
उपचार के निर्णय में माता-पिता की भागीदारी महत्वपूर्ण है।
अन्य चिकित्सा पध्दति में जेआईए
का इलाज काफी जटिल एवं खर्चीला
है और इसमें अलग-अलग विशेषज्ञों
जैसे- बाल संधिवात विशेषज्ञ,
हड्डी के विशेषज्ञ,
आंख के विशेषज्ञ,
कसरत के चिकित्सक
की सलाह लेना आवश्यक है।
इन सभी झंझट से बचने के लिए
एक बार तीन महीने तक नियमित
ऑर्थोकी का सेवन कराएं।
आप जेआईए नाशक दवा घर पर भी बन सकते हैं। विधि-विधान निम्नानुसार है-
अमृतम उपाय
शतावर 100 ग्राम,
अश्वगंधा 100 ग्राम,
मधुयष्टि 100 ग्राम,
सहजन 100 ग्राम
हरश्रृंगार पुष्प 25 ग्राम,
रास्ना 100 ग्राम
अमलताश गुदा 100 ग्राम,
हरड़ 100 ग्राम,
मुनक्का 200 ग्राम,
गिलोय 100ग्राम,
त्रिकटु 100 ग्राम सभी को जौ कूट
करके करीब 15 किलो पानी में इतना
उबाले की करीब 4 किलो रह जाये।
रोज एक बार में 25 ml काढ़ा एक
गिलास गुनगुने पानी मे 3 या 4 बार
30 दिन तक लेवे ।
दूसरा अमॄतम उपाय…..
अपने घर पर अवलेह (माल्ट) बनायें
आवला मुरब्बा 1 kg,
हरड़ मुरब्बा 1 kg
बादाम 200 ग्राम,
अंजीर 200 ग्राम,
मुनक्का 200 ग्राम,
काली किसमिस 200 ग्राम,
सभी को अच्छी तरह साफकर, धोकर
पीस लेवें। फिर, सभी ओषधियों को
200 या 300 ग्राम देशी घी में
ओर सुविधानुसार मंदी आंच पर
2-3 घंटे सिकाई करें।
फिर इसमें उपरोक्त काढ़ा करीब
1 लीटर मिलाकर फिर सेंकें।
तत्पश्चात 1 किलो गुड़
की चाशनी मिलाकर
1 घण्टे तक ओर पकाएं।
गुनगुना रहने पर निम्न ओषधि
पीसकर मिलाएं —
100 ग्राम लोंग,
10 ग्राम दालचीनी,
जीरा, हल्दी,अजवायन, धनिया,
सभी 25-25 ग्राम,
त्रिकटु 150 ग्राम,
त्रिसुगन्ध 45 ग्राम,
अश्वगंधा, शतावर, मुलेठी
प्रत्येक 50-50 ग्राम तथा
अमृतम एकांगवीर रस 50 ग्राम,
अमृतम शुद्ध गुग्गल 50 ग्राम,
सफेद मूसली 10 ग्राम
अमृतम वृहत्वात चिंतामणि रस
स्वर्णयुक्त 3 ग्राम,
अमृतम शुद्ध शिलॉजित 20 ग्राम,
बबुल गोंद 100 ग्राम
इन सभी को अच्छी तरह मिलाकर
20 या 30 ग्राम के लड्डू बनाकर
सुबह खाली पेट गुनगुने दूध से एक
लड्डू दुपहर में एक लड्डू तथा एक
लड्डू रात में दूध से एक दिन में
2 से 3 बार 45 दिन तक 3 से 4
महीने तक बच्चों को खिलावें।
अथवा बनी हुई दवा ऑर्थोकी मंगाए
जेआईए-रोगों का जड़ से काम खत्म...
उपरोक्त विधि-विधान से निर्मित
तथा
अनेकों अद्भुत असरकारक
जड़ी-बूटियों,मेवा-मसालों, आँवला,
सेव, हरड़ मुरब्बे के मिश्रण से तैयार
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
आधे से एक चम्मच दिन में 2 या 3
बार गुनगुने दूध से 3 महीने तक लेवें ।
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट 7 दिनों
में ही अपना चमत्कारी प्रभाव
दिखा देता है।
बच्चों की कमजोर हड्डियों को हर
बल, शक्ति और कमाल की ताकत
देने वाला पूर्णतः हर्बल माल्ट है।
इसमें सेव मुरब्बा,
हरड़ मुरब्बा, आमला मुरब्बा आदि
27 जड़ीबूटियों के काढ़ा एवं अर्क और
अनेक असरकारी ओषधियों का
समावेश है ।
अपना महत्वपूर्ण आर्डर देने के लिए
लॉगिन करें ।
www amrutam. co. in
अमॄतम पत्रिका पढ़ने के लिए
www.amrutampatrika.com
जे.आई.ए. से पीड़ित बच्चों के लिए
दुनिया भर में पहली पसंद बन सकती है। इसके कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं हैं,
बल्कि हजारों साइड बेनिफिट हैं।
आयुर्वेदिक ग्रंथो में कई अध्ययनों से
इसकी क्षमता एवं कई साल तक
सबूत मिला है।
हर्बल चिकित्सा साहित्य ने अब
अधिकतम प्रभावी खुराक है।
मेथोट्रेक्सेट पोलीआर्टिकुलर
बाल गठिया यानि
जे.आई.ए. के बच्चों में पहली पसंद
की दवा है। यह अधिकतर मरीजों में प्रभावशाली होती है । यह प्रदहन
को कम करती है एवं कुछ मरीज़ों में
अज्ञात तंत्र के माध्यम से रोग प्रगति
को कम करती है या बीमारी की
प्रतिक्रिया को समाप्त करती है।
आमतौर पर यह अच्छी तरह से
पच जाती है।
अंग्रेजों ने किया कबाड़ा…
आज दुनिया में केमिकल युक्त
रसायनिक दवाओं के सेवन से
लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं।
दर्द निवारक अंग्रेजी दवाओं के
उपयोग से पेट में जलन व जिगर के
एंजाइम्स बढ़ना, बेचैनी रहना,
कब्ज होना, पाचनतंत्र कमजोर
होना एवं भूख न लगना इसके
मुख्य दुष्प्रभाव हैं।
अमॄतम फार्मास्युटिकल्स,
ग्वालियर द्वारा निर्मित
मात्र आधा चम्मच ओषधि दूध के
साथ दिन में 2 बार देने से जेआईए की परेशानी से मुक्ति दिलाने में सहायक है।
गया निर्गुन्डी, रास्नादी, अश्वगंधा,
शतावर जैसी जड़ीबूटियों का
काढ़ा मुख्य रूप से विशिष्ट
JIAअणुओं के खिलाफ काम
कर रोगों का नाश करता है
तथा सेव का मुरब्बा, आँवला मुरब्बा
बच्चों के जे.आई.ए. रोग में होने
वाली प्रदहन प्रक्रिया, जलन, बेचैनी
को रोकने के लिए महत्वपूर्ण ओषधि
के रूप में कारगर हैं।
ओनली ऑनलाइन उपलब्ध
400 ग्राम कांच जार में।
खडीडने हेतु-
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