माणिक्य से करें-कालसर्प की शान्ति..
एक रहस्यमयी दुर्लभ खोज-
!!!ज्योतिष ग्रन्थ का हर शब्द अमॄतम!!!
वाराह मिहिर सहिंता के श्लोकानुसार
भ्रमरशिखि……. भुजङ्गानाम्
भवतिमणि:…..स विज्ञेय:
प्राचीन शास्त्रों में लिखा है- माणिक्य की उत्पत्ति मणिधारी नागों से होने के कारण
माणिक्य रत्न का एक नाम नागमणि भी है।
दूषित कालसर्प-नागदोष की शान्ति के लिए इसे स्वर्ण धातु में जड़वाकर, दही में शुद्ध कर अनामिका उंगली में रविवार को दुपहर ११.४० से १२.२८ के मध्य पहिनने से रुकावटें दूर होने लगती हैं।
माणिक्य भस्म के सेवन मिलेगी सफलता
रोचक ज्ञान की बाते पढ़ने के लिए, ,जुड़ें
Leave a Reply