अमृतम पत्रिका, ग्वालियर मप्र के अनुसार
- कपिल तीर्थ की कृपा से ही हुआ था जन्म वराह. पुराण भाग 1, अध्याय. 8, श्लोक 4-8 में इसके बारे में संक्षिप्त उल्लेख है। कि श्रीबेङ्गटेश्वर की मां वकुलमाता ने कपिलेश्वर में शिवजी की कठोर साधना से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।
- वकुल माता ने ऐसा ही किया था। उनको अपने कार्य में सफलता भी मिली थी। (भविष्योत्तर पु. अ. 8, श्लो. 79-82)
- एक अन्य मान्यता के मुताबिक जब श्रीवेङ्कटेश्वर ने अपनी माता वकुलमाता को पद्मावती देवी के साथ अपना विवाह कराने के लिए आकाशराजा के पास भेजा था, तब उन्होंने वकुलमाता से पहले कपिल तीर्थ में पवित्र स्नान करने और कपिलेश्वर की पूजा करने की बात भी कही थी।
अपने दुनिया के अदभुत और स्वयंभू शिवलिंग के बारे में नहीं सुना होगा। अमृतम पत्रिका के शिव विशेषांक से साभार यह आर्टिकल आपको आनंदित कर देगा।
- तिरुपति बालाजी श्रीबेङ्गटेश्वर के दर्शन के लिए चढ़ाई से पूर्व एक चौराहे के पास यह शिवालय लाखों सालों से स्थित है।
- तिरुपति रहस्य के अनुसार कपिल तीर्थ कुंड में स्नान, दर्शन और मां पद्मावती के दर्शन के बाद ही तिरुमला में बालाजी के दर्शन का विधान है।
कपिल तीर्थम में है सत्रह तीर्थों का माहात्म्य
- शेषाद्रि पदतल प्रांत में कपिलेश्वर शिवलिंगाकार में अवतरित हुए हैं। इससे पहले भगवान शिव पाताल लोक में कपिल मुनि द्वारा आराधित थे।
- कुछ विशिष्ट कारणवश कपिलेश्वर लिंग रूप में भूमि से निकलकर भूमि तल पर यहाँ उद्भवित हुए हैं।
- सुरों (देवताओं) ने भगवान शिव की यहाँ आराधना की है। जहाँ उद्भूत हुए हैं वहीं उनकी प्रतिष्ठा भी की। कपिलेश्वर के लिंग रूप में उद्भवित होने से पहले ही कामधेनु (सुर गाय) यहाँ आ गयी।
- यहाँ एक छोटी गुफा है। इसी गुफा का नाम “कपिलतीर्थ’ है। यहाँ एक तीर्थम् (झरनी) भी है। यहाँ के शिव की आराधना पूजा से सभी पाप मिट जाते हैं। कपिलेश्वर की शक्ति अनुपम है (वरा. पु )।
कपिल तीर्थ में स्वयंभू शिवलिंग
- कपिलेशर शिवलिंग मूलतः पाताल लोक में विराजित तथा कपिल महर्षि से पूजित था।
- कामधेनु गाय रोज शिवलिंग का अभिषेक किया करती थी। यह शिवलिंग पृथ्वी को भेद कर ऊपर आया है।
- शिवलिंग का ऊपर की ओर बढ़ना कामधेनु को स्वीकार नहीं था। कामधेनु ने अपने खुर से बढ़ती को रोकने का प्रयास किया। परिणामतः प्रारंभ की निशान लिंग पर पडी। आज भी इस शिवलिंग पर गाय के खुर के निशान देख सकते हैं।
- शिवलिंग का निछला भाग चाँदी के समान धवल और मध्य भाग सुवर्ण आभा से अधिक प्रकाशमान है।
- शिवलिंग का शिरो भाग सूर्य प्रकाश के समान उज्ज्वल है। इनके पाँच सिर हैं। त्रिनेत्र (तीन आँखे) भी गोचरित हैं।
- पाँच रंगों से युक्त होकर देखने पर प्रचण्ड लगते हैं, लिंग रूपी शिव जी। लिंग का मूल पाताल में शाश्वत रूप से है।
- कपिल महर्षि के द्वारा सबसे पहले आराधित होने के कारण यहाँ के शिव जी का नाम ‘कपिलेश्वर’ पडा
- कृतयुग से ये यहाँ पर विराजमान हैं। ये त्रेतायुग में अग्निदेव से आराधित हुए थे। इसलिए ये ‘अग्नेय शिवलिंग’ भी माने जाते हैं।
- कहते हैं कि केंसर से पीड़ित रोगी को यहां रुद्राभिषेक करने तुरंत लाभ मिलता है। जिनके शरीर में ऊर्जा या एनर्जी की कमी हो, डिप्रेशन के शिकार हों, उन्हे जरूर दर्शन करना चाहिए।
- कपिलेश्वर वही ओरिजनल शिवलिंग है जिसकी घराई नापने पटल तक गए थे। कपिलेश्वर का आदि अंत कोई पा नहीं सकते। (कहा जाता है कि पहले ब्रह्म ने इस शिवलिंग को नापने के लिए आदि तक पहुँचने का प्रयास किया था और विष्णु ने अन्त का पता लगाने दोनों अंततः असफल ही रह गये।(वामन. पु. अ. – 4, श्लो. 36-47 तथा 50 – 57 )
- द्वापरयुग (तीसरा युग) में भगवान विष्णु के चक्र (सुदर्शन) ने कपिलेश्वर की उपासना की।
- कलियुग (आज का चौथा युग) में भी यह आराधना जारी है। यहाँ का शिवलिंग कपिला गाय के द्वारा भी पूजित है।
- कपिलेश्वर के सामने पवित्र जल धारा और तीर्थ सरोवर देखने को मिलते हैं। इसी सरोवर के बिल से कपिलेश्वर उभर कर पृथ्वी पर विलसित हैं।
- पवित्र जल से संपूरित कपिल तीर्थ की झरी अत्यंत महिमा युक्त है। इसके दर्शन मात्र से पाप झड जाते हैं। इसमें पवित्र स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ और वाजपेय याग का फल मिलता है। जल प्रपात का स्नान पुनर्जन्म राहित्य प्रदाता है।
- कहने का तात्पर्य यह कि यहाँ का पवित्र स्नान मनुष्य को आगे के जन्मों से मुक्त करता है एवं मुक्ति प्रदान करता है।
कार्तिक मास का विशेष विधान
- कार्तिक मास में “कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिलोकों के सभी तीर्थ आकर इस तीर्थ में समाहित रहते हैं। वे मध्याह्न की चार घंटिकाओं (चार घण्टों) तक यहाँ रहते हैं। उस समय पर इस तीर्थ में पवित्र स्नान ब्रह्मलोक सिद्धि प्रदान करता है।
- यहाँ एक तिल सम सुवर्णदान मेरु पर्वत सम पुण्य देता है। इस संदर्भ में यहाँ किया जानेवाला अन्नदान सोम लोक (चंद्रलोक) में अन्नदान सम माना जाता है।
- कपिलेश्वर तीर्थ में कन्यादान (लडकी का विवाह) करना, गोदान करना, विद्यादान करना, विद्या मंत्रोपदेश कराना सब स्वर्ग (देवताओं का लोक) लोक सिद्धि के कारक हैं।
- कैलाश, वैकुण्ठ और ब्रह्मलोक वास की प्राप्ति की इच्छा भी पूरी होती है। जो यहाँ मंत्र – श्लोक ( मंत्रोच्चारण) सहित समस्त तीर्थों के समागम के समय पर पवित्र स्नान करता है, उसे उपयुक्त सभी फल प्राप्त होते हैं।
- यहाँ का कार्तिक पूर्णिमा के दिन का स्नान अत्यंत महत्वपूर्ण और शान्ति तथा मोक्ष प्रदान करनेवाला होता है। यह विष्णु पादम् (विष्णु का चरण) प्राप्ति कारक है।
- कपिल तीर्थ मंदिर में दक्षिणा मूर्ति गुरु के समक्ष बैठकर एक माला ॐ शंभूतेजसे नमः शिवाय की अवश्य करना चाहिए। इनके पास ही मोर्गन कार्तिकेय स्वामी के दर्शन कर 9 बार ये स्तुति बोलें।
कार्तिकेय महातेजा आदित्य वरदर्पिता।
शांति करोतु में नित्यम बलम, सुखम च तेजसा।।
- मंदिर परिसर के मैदान में अनेकों अनोखी नाग प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो पूर्व ऋषियों की कुंडलिनी जागरण का प्रतीक हैं। इन्हे दीप अर्पित कर, चंदन इत्र चढ़ाएं।
- बगल में ही अग्स्तेश्वराय, कोटि लिंग, नवग्रह मंदिर के दर्शन करें।
शक तीर्थम्
- कपिल तीर्थम् के ऊपर पर्वत शिखर पर अत्यंत पवित्र शक्र तीर्थम् है। माना जाता है कि शक्र (इन्द्र) को शक्र तीर्थ स्नान से गौतम ऋषि के शाप से मुक्ति मिली थी। अहल्या से छद्म रूप में मिलने के प्रयत्न के कारण ही गौतम ने इन्द्र को शाप दिया था। अहल्या गौतम महर्षि की धर्म पत्नी थीं। शक्र तीर्थ को वज्र तीर्थ भी कहते हैं।
विष्वक्सेन सरोवर
- शक्र तीर्थम् के ऊपरी प्रान्त में विष्वक्सेन सरस् (तीर्थम्) है। विष्वक्सेन वरुण पुत्र हैं। अपनी तपस्या के बल से उन्होंने विष्णु से सारूप्य प्राप्त किया है। विष्णु के सान्निध्य (सन्निधि) में रहते हुए वे वैकुण्ठ की सेना के सेनापति भी हैं। विष्णु सारूप्य की प्राप्ति के फलस्वरूप ये भी शंख चक्र धारी बने हैं। –
पंचायुध तीर्थम्
- भगवान विष्णु के पाँच आयुध हैं- शंख (पांचजन्य), चक्र (सुदर्शन), गदा (कौमोदकी), सारंग (धनुष) और दक (खड्ग)। इन आयुधों के नामों से विष्वक्सेन सरस् 5 तीर्थ विराजमान हैं। ये पाँच तीर्थ अत्यंत पवित्र महत्वपूर्ण हैं।
अग्नि कुण्ड तीर्थम्
यह पंचायुध तीर्थ के ऊपर है। उस तक पहुँचना दुष्कर और कठिन है।
ब्रह्म तीर्थम्
- ऊपर स्थित तीर्थों में यह अंतिम तीर्थ है। इसे महाहत्या पाप को शमित और परिहरित करने की शक्ति प्राप्त है। यह अत्यंत महिम म्त माना जाता है।
. सप्तर्षि तीर्थम्
- ब्रह्म तीर्थम् के पास सप्त ऋषियों के नाम पर सात तीर्थ हैं कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, और वशिष्ठ। इन तीर्थों का जल अति पवित्र माना जाता है। ये सप्त तीर्थ सात तीर्थों का समूह है। इनमें क्रमशः एक के बाद एक का महत्व दस गुना अधिक गिना जाता है।
- एक बार एक अघोरी ने समस्त तीर्थों की यात्रा का संकल्प लिया। उस समय विष्णु देव ने उनके सपने में दर्शन देकर सलाह दी कि “इस पुष्कर शैल पर अति पवित्र तीर्थ हैं।
- ये तीर्थ अत्यंत महिमावान है। इन तीर्थों का आरंभ “कपिल तीर्थम्” से होता है। अगर तुम इन तीर्थों में पवित्र स्नान करोगे तो अमित फल पाओगे।
- इन तीर्थों में पवित्र हृदय से, धार्मिक दृष्टि से स्नान करोगे तो समस्त पापों का परिहार होगा। अनेक तीर्थों के पवित्र स्नानों से अधिक फल मिलेगा।”
- तब ब्रह्म ने इन्हीं तीर्थों की यात्रा का संकल्प किया और (हरि- गिरि) वेङ्कटाचल के लिए ब्रह्मलोक से निकले। सभी तीर्थों के साथ सप्तर्षि तीर्थ का सेवन किया। इस प्रकार वेङ्कटाचल के तीर्थों के साथ विष्णु द्वारा घोषित और ब्रह्म द्वारा वांछित सप्त ऋषि तीर्थम् पूर्णफल प्रदायक हुए।
- तैंतीस करोड पचास लाख तीर्थों की समवेत महिमा, त्रिलोकों के तीर्थों की महत्ता इन सप्तर्षि तीर्थों में निहित है। यह हरि-गिरि (वेङ्कटाचल) का महत्व है। सप्त गिरियों, सात पहाड़ों की प्रकृति की रमणीयता के बीच पवित्र तीर्थों का स्नान अतुलनीय आनंद प्रदान करता है। वेङ्कटाचल के दर्शन की सर्वोत्कृष्ट पावनता अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने इस तीर्थयात्रा का फल पाया है।क्रमशः अभी शेष जानकारी और आगे देंगे
इसका समग्र परिचय वामन. पु. अ. 4, श्लो. 36-47 में प्राप्त होता है।)
चलते है तिरुपति बालाजी के दर्शन करने
- तिरुपति मूल रूप से शेषनाग हैं और मंगलनाथ यानी भगवान कार्तिकेय या मोरगन स्वामी यही है।
- सुब्रमण्यम स्वामी के छह मुख हैं, जिसमें मुख्य अग्र बीच का मुख यही है।
- मान्यता यह भी है कि-यहां केशदान को स्वरूप का दान माना गया है जिससे अहंकार, अंधकार और अज्ञानता का नाश हो जाता है।
- तिरुपति बालाजी की विशेषता एक यह भी है कि- जो लोग भवन-भूमिहीन हैं, उन्हें एक बार के दर्शन से अवश्य मिलता है। क्योंकि कि यह मुख्य मंगलनाथ हैं। भूमि पुत्र हैं।
- चन्द्रमा के नक्षत्र जैसे हस्त, रोहिणी एवं श्रवण में जन्मे जातक हर वर्ष इनके दर्शन करें, तो विशेष भाग्योदय होकर अपार धन-संपदा बढ़ती है।
- तिरुमला को शेषाचलम पर्वत भी कहते हैं। जब आप तिरुपति यानि नीचे से देखेंगे, तो शेषनाग के 5 फन की आकृति स्पष्ट नजर आती है। यहां शेषनाग ने तप किया था।
- इसका सही नाम तिरुमलय है। तिरु का अर्थ श्री और मलय कहते हैं-पर्वत को। यह दो शब्दों से बना है। तिरु और मला। तिरु का अर्थ श्री-बुद्धि, पवित्र या लक्ष्मी हैं, और मला का अर्थ मलय, पहाड या पर्वत अर्थात तिरुमला का अर्थ, श्री पर्वत, पवित्र पर्वत या लक्ष्मी पर्वत के हैं।
- तिरुमला पर्वत पर ही रुद्रावतार श्री हनुमान को उनकी जननी माँ अंजनी ने जन्म दिया था।
- एक बात बहुत रहस्य की यह है कि शिव पत्नी पार्वती का जन्म तिरुपति मन्दिर परिसर में ही हुआ था।
- तिरुपति रहस्य नामक तमिल ग्रन्थ में इन्हें त्रिपुरारेश्वर कहा गया है।
तिरुपति श्री वेंकटेश्वरा किताब के अनुसार
मान्यता यह भी कि- सर्वप्रथम तिरुपति से 50 किलोमीटर दूर कानिपाकम में स्वयम्भू गणेश के दर्शन करें।
- फिर तिरुपति में स्थित इनकी पत्नी मां पद्मावती तथा कपिल तीर्थ शिवालय के दर्शन करने के बाद ही तिरुपति बालाजी के दर्शन करना विशेष लाभकारी रहता है। लेकिन अज्ञानतावश ज्यादातर लोग तिरुपति के दर्शन पश्चात ही पद्मावती के दर्शन करते हैं।
- राहु की शांति, कृपा पाने हेतु……. तिरुपति से 35 किलोमीटर दूर श्रीकालाहस्ती स्वयम्भू शिवालय के दर्शन करें। यह कालसर्प-पितृदोष की शांति करना हो, तो रसीद बनवाकर पूजा करें।
- अमृतम परिवार पिछले 27 वर्षों से हर साल दर्शन करने तिरुपति जरूर जाता है। यह प्रवास 16 से 20 दिन का होता है और इस दरम्यान हम 108 स्वयम्भू सिद्ध मंदिरों के दर्शन, अर्चन पूजा इत्यादि करते हैं।
तिरुमला को शेषाचलम पर्वत भी कहते हैं। जब आप तिरुपति यानि नीचे से देखेंगे, तो शेषनाग के 5 फन की आकृति स्पष्ट नजर आती है। यहां शेषनाग ने तप किया था।
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