जाने- दिल, दिमाग हिला देने वाली सच्ची घटना….

अमृतम पत्रिका का यह लेख केवल
उन विद्यार्थियों को समर्पित हैं, जो
सभी सुविधाओ के बावजूद पढ़ाई
में मन नहीं लगाते और कुछ ऐसे भी
हैं, जो अभाव, समस्या होने के बाद
भी माता-पिता के सपनों को पूरा
करने के लिए जी-जान से पढ़ाई में
लगे रहते हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जो
रोज-रोज का रोना रोते रहते हैं।
यह जानकारी पढ़ने वाले बच्चों
में ऊर्जा, प्रेरणा भर देगी।
जीवन बगिया ऐसी उलझी, 
फूल उगे कम, कांटे ज्यादा।
यह रट लगाना ठीक नहीं है। बहुत से
लोग अक्सर रोना रोने के कारण रोगी
बन जाते हैं।
भारत के एक महान गणितज्ञ 
श्री रामानुजम की सत्यकथा
दक्षिण भारत में एक परम शिवभक्त
गरीब परिवार में एक बालक ने जन्म
लिया जो मात्र 36 वर्ष की आयु में
क्षयरोग/टीबी की बीमारी के कारण
काल-कवलित हो गया।
यह घटना १८८८ की है।
वह थे-दुनिया के गणित वैज्ञानिक 
श्री रामानुजम
चारो तरफ अभाव से भरे इस छोटे से
गांव में भी बिना किसी विशेष स्कूल,
सुविधा, शिक्षा के श्रीरामानुजम का
मस्तिष्क मैथ में महान अदभुत था।
गणित जानकारों का कहना है कि
मानव जाति के इतिहास में  इनसे
बड़ा और विशिष्ट गणितज्ञ सन्सार
में कोई दूसरा हुआ ही नहीं।
बहुत से गणितबाजों को जीवन में 
सब कुछ मिला फिर भी सफल न हो सके।
लेकिन गणित वैज्ञानिक रामानुजम कभी कुछ भी आसानी से नहीं मिला। बल्कि,
रोटी के भी लाले थे। कम उम्र में ही पढ़ाई छोड़ घर चलाने के लिए बाल्यकाल में
एक दुकान पर काम करने लगे।
न कोई साथ मिला, न कोई सिर पर
रखने वाला हाथ मिला।
पिता की वसियत.
श्री रामानुजम के पिता ने एक बार
भावुक होकर रोते हुए बस इतना कहा
था कि-बेटा मेरे पास
तुझे देने लायक कुछ भी नहीं है।
बस इतना विश्वास के साथ कह सकता
हूँ कि बाबा विश्वनाथ का यह मन्त्र
!!ॐ नमःशिवाय!! जीवन को चमत्कारी बना देगा। इसे सदैव जपते रहना।
इसी पंचाक्षर मन्त्र के अजपा जाप से
आज भी श्री रामानुजम 132 सालों से
गणित विशेषज्ञों के आराध्य-अमर हैं।
कम उम्र में ही श्री रामानुजम जी द्वारा
गणित के विभिन्न सूत्रों को सुलझाने के कारण आसपास खबर फैलने लगी।
गणित के एक प्राध्यापक ने रामानुजम
को पत्र भेजने की सलाह दी।
 प्रोफेसर हार्डी जो कि-
कैम्‍ब्रिज युनिवर्सिटी में विश्वविख्यात गणितज्ञों में एक थे।
श्री रामानुजम ने पत्र तो नहीं लिखा, ज्यामिति की डेढ़ सौ प्रमेय यानि थ्योरम बनाकर भेज दीं। हार्डी तो चकित रह गया। इतनी कम उम्र के व्यक्ति से, इस तरह के ज्यामिति के सिद्धांतों का कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था।
डॉ हार्डी ने तत्काल रामानुजम को यूरोप बुलाया। गणित के कुछ कठिन प्रसन्न पूछे,
तो रामानुजम ने पल भर में उत्तर दे दिया, जिसे हल करने में बड़े से बड़े गणितज्ञ को
4 से 6 घण्टे लगते।
डॉ हार्डी भारत की इस महान प्रतिभा के आगे नतमस्तक हो गए और कहने लगे यह छोटा सा बच्चा ईश्वरीय अवतार से कम नहीं है।
रामानुजम की क्षमता ही ऐसी थी, जिसका मस्तिष्क से संबंध नहीं मालूम पड़ता था।
सामान्य जीवन में अनेक लोगों के जीवनारम्भ में उनकी योग्यता की परख नहीं हो पाती। किसी चीज में भी कोई ऐसी बुद्धिमत्ता नहीं मालूम पड़ती। किंतु
मनुष्य से बहुत पार की घटना उसके जीवन में होती रहती है। रामानुजम भी एकदम अतिमानवीय व्यक्ति थे।
महान गणितज्ञ श्री रामानुजम क्षय रोग
पीड़ित हुआ, तो हार्डी अपने दो तीन गणितज्ञ मित्रों के साथ उसे देखने गये।
 अस्पताल के दरवाजे पर ही हार्डी ने कार रोकी और भीतर गया, तब कार का नम्बर रामानुजम को दिखायी पड़ा। उसने हार्डी से कहा,  आपकी कार का जो नम्बर है, मनुष्य के गणित अनुसार  इस अंक का आंकडा अनेक खूबियों से भरा है।
 रामानुजम ने कार के नम्बरों की चार विशेषताएं उस आंकड़े की बतायीं।
 कुछ काल पश्चात रामानुजम तो काल के गाल में चले गए।
हार्डी को 4 अंक के इस सूत्र को समझने छह महीने लगे, तब भी वह तीन ही सिद्ध कर पाया, चौथी विशेषता तो असिद्ध ही रह गयी।
अंत समय हार्डी वसीयत छोड्कर मरा कि मेरे मरने के बाद उस चौथे आंकड़े की खोज जारी रखी जाए, क्योकि रामानुजम ने कहा है, तो वह 100 फीसदी सही होगी ही।
हार्डी के देहांत होने के 22 वर्ष साल बाद वह चौथी घटना सही सिद्ध हो पायी कि उसने ठीक कहा था कि आपकी कार के नम्बरों के आंकड़े में यह विशेषता है।
बात बस, इतनी सी है कि-कोई अदृश्य
परम सत्ता जिसे सब वेद-,पुराण शिव मानते हैं यही इस ब्रह्मांड को चला रही है।
आत्मा शिव-परमात्मा शिव है...
भगवान शिव ने हर इंसान को तीसरी आंख दे रखी है, जिसे आज्ञाचक्र कहतें हैं। यह माथे पर दोनों नेत्रों के बीच स्थापित है।
बड़ी सफलता के लिए इसे जागृत करना आवश्यक है ओर यह ॐ नमःशिवाय मन्त्र के निरन्तर जाप से ही खुल पाएगी।
तीसरी आंख के खुलते ही जीवन के बंजर
वन में हरि की हरियाली दिखने लगती है।
हर चीज का पूर्वाभास होने लगता है।
किस कार्य में सफलता-असफलता मिलेगी यह सब शिव के हाथ में आ जाता है।
अदभुत नजारे घर बैठे देखें...
जैसे कि किसी  मकान की छत में या दीवार पर एक सूक्ष्म सा छेद होकर, सूर्य की
रोशनी अथवा आकाश दिखायी पड़ने लगे,
तो कमरे, आंगन में उजाला होने लगता है।
जब तक वह छेद न खुला था, तो आकाश दिखायी नहीं पड़ता था। लगभग
 हमारी दोनों आंखों के बीच जो आज्ञाचक्र या  भ्रू-मध्य  स्थान है, वहा वह सुई की नोंक के बराबर छेद है जहां से हम प्रथ्वी लोक के बाहर देखना शुरू कर देते हैं।
महान लोगों के साथ यह घटना आम है।
श्री रामानुजम से भी जब कोई सवाल पूछा जाता, तो वे केवल शिव से इसका हल पूछते।
इस समय उनकी आंखों की दोनों पुतलियां ऊपर की तरफ चढ़ जाती थीं।
प्रोफेसर हार्डी भारत के इस अंदरूनी
आध्यात्मिक विज्ञान को ठीक से नहीं समझ विदेशों के गणितज्ञ भी आज तक नहीं समझे और देश के गणितज्ञ के साथ-साथ 24 घण्टे
राम-राम करने वाले कथा वाचक,
अशर्मयुक्त फर्जी सन्त-महात्मा आगे भी नहीं समझ पाएंगे।
दरअसल जब आज्ञाचक्र जागृत होने लगता है, तो दुनिया की मोह-माया, धन-दौलत,
भू-सम्पदा, आश्रम आदि से मोह भंग होने लगता है।
फिर बस यही लगता है कि-
जाहि विद राखे शम्भू, 
वा ही विधि रहिये।
आज्ञाचक्र का मतलब है-आदेश।
इसे भगवान शिव की तीसरा नेत्र और
मनुष्य की अंदरूनी तीसरी आंख है।
आज्ञाचक्र के जागरण उच्चस्तर के महात्मा, अवधूत-अघोरी, परमहंस सन्त ही कर पाते हैं।
नियमित ध्यान में नमःशिवाय मन्त्र का जाप
करने से आज्ञा चक्र होने का अभास होने
लगता है
स्कन्ध पुराण के अनुसार 11 करोड़ जप ॐ नमःशिवाय के करने से आज्ञाचक्र में स्पंदन होना आरम्भ हो जाता है।
महाकाली तन्त्र के हिसाब से नमःशिवाय के 11 लाख पुनश्चरण होने पर तीसरी आंख से
भौहों के बीच में सूर्य लोक स्पष्ट दिखाई देता है।
मूलाधार- स्वाधिष्ठान-मणिपूरक-अनाहत
और विशुद्ध – इन पंचचक्रों से ऊपर होने के कारण आज्ञाचक्र छठा चक्र भी कहलाता है।
 योगिनी तन्त्र तथा कठोउपनिषद् आज्ञाचक्र
 केन्द्र विन्दु को दोनों भौंहों के बीच अन्दर
 बताता है।
आज्ञाचक्र भौंहों के बीच माथे के केंद्र में स्थित होता है। यह भौतिक शरीर का हिस्सा नहीं है
विश्ववैज्ञानिक आज्ञा चक्र को पीनियल ग्रंथि कहते हैं। यह प्राणिक प्रणाली यानि आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र है। यह ओरा, आकर्षण का हिस्सा माना जाता है। माथे पर अमृतम चन्दन लगाने से आज्ञाचक्र की रक्षा होती है। यह देह का सवसे
पवित्र स्थान है।
परमहंस सन्त दोनों आँखों के मध्य तथा नाक के आगे बारह अंगुल की दूरी पर अन्दर में ही । आज्ञाचक्र केन्द्र विन्दु में सिमटकर अवस्थित होने पर अन्तजर्योति दिखाई पड़ने के साथ-साथ अन्तर्ध्वनि भी सुनाई पड़ने लग जाती है । वह अन्तर्ध्वनि मानो साधक के लिए ब्रह्मांड में आ जाने की प्रभु – आज्ञा का शब्द हो।
आज्ञाचक्र सिद्ध करने से साधक को ब्रह्मांड में प्रवेश करने की योग्यता हासिल हो जाती है । छठे चक्र को हठयोगियों – द्वारा ‘ आज्ञाचक्र ‘ कहने का यही कारण है ।
मणिपुर चक्र
इसका बीज मन्त्र है रं जिसे कच्चे साधक साधुओं ने राम-राम बना दिया। जबकि बीज मन्त्र और गायत्री मन्त्र  का उच्चारण कण्ठ से ही करने का शास्त्रमत विधान है।
ज्यादातर लोग राम-राम बोलकर अग्नितत्व का सर्वनाश कर अनेक रोगों से घिर जाते हैं।
 नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो दस दल कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है।
!! रं !! बीज मन्त्र के मन ही मन यानि कण्ठ द्वारा जपने से उसकी ऊर्जा-शक्ति, अग्नि जागृत होती है। ऐसे पूरुषों में  काम करने की धुन-सी रहती है। ये साधक या इंसान कर्मयोगी कहलाते हैं।
लेकिन मुख से बोलने पर इस मन्त्र का दुष्प्रभाव यह होता है कि लोग हर जगह असफल होकर भिखारी की तरह जीवन गुजरने मजबूर हो सकते हैं।
जिस व्यक्ति का आज्ञाचक्र में स्पंदन रहता है, वे लोग ज्योतिष, तन्त्र-मन्त्र में दक्षता हासिल कर लेते हैं। जरूरी नहीं है यह चक्र इसी जन्म में जागृत हो। श्रीमद्भागवत गीता के मुताबिक पूर्व जन्म की शिव भक्ति से भी इसकी ऊर्जा इस जन्म सक्रिय रहती है।
 ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न,
 संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है।
 जीवन में कभी हर नहीं मानता। अनेकों धंधे बदलता है। लेकिन वह सब कुछ जानने के
 बाद भी मौन रहता है। इस बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।
बहुत से धोखे खाता है। इसके बावजूद वह सफल होता ही है।
ऐसे लोग अधिकांशतः 55 के बाद ही हर क्षेत्र में सफल हो पाते हैं।
अथाह संघर्ष, छल कपट पाकर में मंजिल तक पहुंच जाते हैं।
नमःशिवाय मन्त्र के बराबर सन्सार में किसी भी मन्त्र में शक्ति नहीं है। यह पंचमहाभूतों की उपासना है।
भारत में बहुत से लोग आदि देव महादेव को छोड़कर स्वार्थ वश इधर-उधर भटककर ठोंकरे कहा रहे हैं जबकि
शिव ही साधे सब सधे
सब साधें सब जाएं ।
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Comments

3 responses to “जाने- दिल, दिमाग हिला देने वाली सच्ची घटना….”

  1. Kirti shankar Singh avatar
    Kirti shankar Singh

    itni adbhut jankari shayad hi koi de paye Bahut Bahut dhanyawad

  2. Anmol avatar
    Anmol

    Mind gets upmost happiness after reading about Lord Shiva and panchakshri mantra. Thankyou and keep posting.

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