पिछले का शेष
पूर्व के लेख में “आधि” के बारे में बताया था।
2- अब जानिए “व्याधि” क्या है? –
व्याधि का अर्थ है शारीरिक कष्ट
मस्तिष्क को छोड़कर अन्य सभी तन व
शरीर के रोगों को व्याधि कहते हैं ।
“रावण” रचित
मन्त्र महोदधि नामक दुर्लभ ग्रन्थ में तन्त्र–मन्त्र,यन्त्र के बारे में विस्तार से बताया है इसमे भी व्याधि को महापीड़ा कहा गया है।
“उत्तर कालामृत” के रचयिता
महाकवि कालिदास ने शरीर को धर्म का साधन माना है।
संस्कृत का सूत्र है-
“शरीरमाघम खलु धर्म साधनम”
लिखा है कि व्याधि से बड़ी बाधा
विश्व में दूसरी नहीं है।
स्वामी विवेकानन्द ने अपनी
आत्मकथा में लिखा है कि
“स्वस्थ शरीर से ही तकदीर बनती है”।
बलवीर बनने के लिए नई-नई खोजें,
अनुसंधान, तजवीर करने तथा आयुष्मान
होने हेतु स्वस्थ तन, अच्छे मन की बहुत
ज्यादा जरूरत होती है।
आयुर्वेदिक ग्रन्थ चक्रदत्त में
कहा है कि वात-पित्त-कफ (त्रिदोष)
के विषम होने से व्याधियां सताती हैं। विशेषकर वात सब व्याधि
का मूल कारण है।
व्याधि,वात से उत्पन्न होती है । तब,
वात-विकार तन में हाहाकार मचा देते है ।
■ वात की लात से शरीर इतना कमजोर हो
जाता है कि हाथ-लात, माथ (सिर)
तथा बात करने में कम्पन्न एवं
पात-पात (अंग-अंग) हिलने लगता है ।
■ वात, इतना शक्तिहीन,उर्जारहित
कर देता है कि रात नींद आना मुशिकल
हो जाता है।
■ वात रोग से शरीर में सूजन आने लगती है। थायराइड जैसी व्याधियां पनपने लगती हैं।
थायरॉइड के कारण गले एवं शरीर में सूजन
आने लगती है।
■ रक्तसंचार मन्द होकर शरीर शिथिल और कमजोर होने लगता है।
■ पाचन तन्त्र (मेटाबॉलिज्म) छिन्न-भिन्न
हो जाता है।
■ कम उम्र में ही बुढापा आने लगता है।
■ आंखों की रोशनी कम होने लगती है।
■ मधुमेह (डाइबिटिज),
■ अर्श रोग (बवासीर),
■ ह्रदय रोग, ■ उदर रोग,
■त्वचारोग, ■ श्वांस,दमा,
■ सर्दी-खाँसी, जुकाम,
■ लिवर की खराबी,
■ खून की कमी,
■ भूख न लगना,
■ वायु विकार (गैस्ट्रिक प्रॉब्लम)
■ अम्लपित्त (एसिडिटी)
■ वमन (वोमिटिंग) गुर्दा रोग,
■ किडनी की खराबी,
■ पथरी पड़ना,
■ नपुंसकता, पुरुषार्थ की कमी,
■ हड्डियों का कमजोर होना आदि सभी शारीरिक परेशानियां, तकलीफें व्याधि कहलाती हैं।
आयुर्वेदिक देशी चिकित्सा
अमृतम ने पिछले 35 वर्षों के अध्ययन,अनुसंधान,पुराने वेद्यों,
आधुनिक आयुर्वेद चिकित्सकों की
सलाह लेकर देशी जड़ीबूटियों के योग से
4 प्रकार की वातरोग नाशक
हर्बल ओषधीयों का निर्माण किया है ।
● स्वर्ण भस्म,
● बृहत वात चिंतामणि रस (स्वर्ण युक्त)
● योगेंद्र रस (स्वर्ण युक्त)
● रसराज रस (स्वर्ण युक्त)
● एकांगवीर रस
● महवातविन्ध्वंसन रस
● गूगल, ● शिलाजीत,
● निर्गुन्डी, ● अरण्ड मूल,
● शतावर, ● अश्वगंधा
● मुलेठी, ● त्रिकटु, ● त्रिसुगन्ध
आदि बहुमूल्य स्वर्ण-चांदी युक्त
रस-रसायनों का इसमें मिश्रण है ।
◆ तुलसी रस, ◆अदरक रस,
◆ घीकुंआर, ◆ आँवला रस,
◆ अमलताश गूदा की भावना देकर
और अधिक प्रभावशाली बनाया है।
ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल 88 तरह के वातविकार एवं थायराइड जैसी विकराल बीमारियों का शर्तिया इलाज है। वातरोग के कारण आई पुरुषेन्द्रीय
समस्याओं का भी समाधान करता है।
शुद्ध देशी दवाओं से निर्मित
पूर्णतः हानिरहित गुणकारी ओषधि है।
मात्रा और सेवन विधि-
सुबह एक कैप्सूल खाली पेट गर्म दूध
के साथ एक माह तक निरन्तर लेवें।
सावधानी एवं परहेज-
रात्रि में फल, दही, रायता, छाछ, सलाद, अरहर की दाल, जूस आइस क्रीम का सेवन कतई न करें
तत्काल लाभदायक वात नाशक
अन्य हर्बल उत्पाद (प्रोडक्ट)—
पेट की जाम तथा कड़क नाडियों को
मुलायम कर पाखाना साफ लेन में सहायक है। उदर के वात और वायु विकार जड़ से ठीक करने में पूरी तरह सक्षम है।
यह अंदरूनी वातरोगों का नाश कर शरीर को ऊर्जावान बनाता है। सभी ज्ञात-अज्ञात वात-व्याधियां ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट के सेवन
दूर हो जाती हैं। इम्युनिटी पॉवर में बढोत्तरी होती है।
पाचन तंत्र (मेटाबोलिज्म) करेक्ट हो जाता है।
यकृत (लिवर) के दुष्प्रभाव दूर हो जाते हैं।
शरीर शक्तिशाली होकर,सुन्दर व स्वस्थ्य हो जाता है। इसमें मिलाया गया
★ आँवला मुरब्बा, ★ सेव मुरब्बा,
★ हरड़ मुरब्बा, ★ गुलकन्द तथा
★ 45 तरह की जड़ीबूटियों के काढ़े का मिश्रण है। इसमें स्वर्णयुक्त ओषधियों को
खरल कर मिलाया गया है।
3-ऑर्थोकी पावडर
यूरिक एसिड को कम करने में सहायक है।
शरीर की कम्पन्न दूर करने में सहायक है।
दर्द के स्थान पर मालिश करने हेतु
अति उत्तम हर्बल पैन ऑयल है।
इसप्रकार
में चार तरह की गुणकारी विलक्षण हर्बल मेडिसिन हैं।
ऑर्थोकी के नाम से प्रचलित ये दवा
88 प्रकार के वात-विकारों,व्याधियों
को जड़ से दूर करने में हितकारी है ।
जिनका शरीर वात रोग से
जीर्ण-शीर्ण, चलती-फिरती
लाश हो गया हो, उनके लिए
चमत्कारी रूप से असरकारक है ।
3 माह तक ऑर्थोकी के सेवन से
अन्य दवाओं की तलाश नहीं करनी पड़ेगी ।
ध्यान रखें-
हर्बल दवाएँ निरापद अर्थात पूरी तरह हानिरहित होती हैं,जो शरीर से रोगों को मिटा देती हैं ।
तन-मन और आत्मा के
दोषों को दूर कर इसे पवित्र बनाती हैं ।
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