क्या आप जानते हैं कि बायाँ हाथ बंगाली, कभी न जाये ख़ाली। का अर्थ क्या है? भाग तेरह

सदाशिव का साथ

मेरा बचपन से ही मानना रहा की सब कुछ शिव ही है, शिव में सब है। इसके चलते पूरे भारत के लगभग 20 से 25 हजार शिवालयों के दर्शन सम्भव हो सके।

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि-शिव के 12 ज्योतिलिंगों” के अलावा पंचमहाभूतों (पंचतत्वों) एवं नवग्रहों के अलग-अलग महाशिवालय,देवालय भी हैं।

1- तिरु अन्नामलाई-अग्नितत्व शिवालय

2- श्री कालहस्ती- वायु तत्व राहु मंदिर

3- श्री चिदम्बरम-आकाश शिवलिंग

4- श्री जम्बुकेश्वर-जल तत्व शिव मंदिर

5- तिरु एकम्बरेश्वर- पृथ्वी तत्व शिवालय ये सब प्राचीन ज्योतिर्लिंग हैं

नव ग्रहों के 9 शिवालय

27 नक्षत्रों के 27 स्वायंभुव शिवलिंग 64 योगिनियों के 64 शिवलिंग इसी तरह 12 राशियों के 12 विभिन्न शिव मंदिर ऐसे बहुत से दुर्लभ अनेक-असंख्य शिव मंदिरों के दर्शन का सौभाग्य मिला।घने वन में स्थित शिवलिंगों को बड़े मन से निहारने का मौका मिला। इन 20-25 हजार शिवालयों के नाम दे पाना इस लेख में सम्भव नहीं है ।

अमृतम के अगले लेखों शिव के शिवालयों का सन्सार नामक लेख में देश के बहुत से अनजान शिवलिंगों की जानकारी दी जाएगी

प्रत्येक प्रश्न का उत्तर उत्तरांचल में

हर प्रश्न का उत्तर उत्तरांचल में उपलब्ध है, तभी,तो श्रृष्टि के सभी शिवालयों, शिवमंदिरों में शिवलिंग की जलहरी उत्तर की तरफ होती है। एक बार हरेक लेफ़्टिज को उत्तराँचल, हिमाचल की यात्रा जरूर करना चाहिए। क्योंकि प्रकृति, धर्म, अध्यात्म औऱ स्वयं को स्वयम्भू बनाने, उच्च स्तर पाने का विधान

बर्फीले हिम में जाने की हिम्मत

उत्तरांचल के गौमुख से ऊपर हिमालय में बसे सप्तऋषि कुंड यात्रा के समय हिम्मत से हिम में बिराजे महातपस्वी, परम्शि व उपासक योगिराज ने शिवभक्ति का महत्त्व बताया था किसंसार शिवकृपा से चलायमान है। सब शिव की ही सब शक्ति है।

सभी देवी-देवता,किन्नर-राक्षस, दैत्य-अदैत्य,भूत-भभूत, प्रेत-पिशाच,पितृ-पूर्वज सदा से शिवभक्ति में तल्लीन हैं । कल, काल, अकाल, ताल, खाल, जीवन के जाल-जंजाल हर हाल पर महाकाल का ही अधिकार है।

हानि-लाभ, जीवन-मरण, सुख-दुख ये सब शिव के ही हाथ में होने के कारण स्कन्धपुराण में इन्हें जगन्नाथ यानि जगत का नाथ कहा गया। शिव के बिना हम सब शव के समान हैं उन्होंने कहा- हमारा मस्तिष्क, दीपक की ज्योत (लौ) सब शिव स्वरूप है।

लेफ़्टिज अघोरी शिव

भोलेनाथ के 5 मुखों में से एक मुख अघोरी रूप में है। इनके उल्टे हाथ में एक तांत्रिक कपाल है, जो एक तरह का वैज्ञानिक कंप्यूटर है।सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का लेख-जोखा इसी में है। इसलिए अघोरी-अवधूत साधु अपने शरीर से 108 तक शिवमुद्राएँ बना लेतें हैं। अघोरी-अवधूत कहते हैं।

आज तक हमने, जो देखा है, वह ऊपर की रूप रेखा है।

हर पल की जो घटना है, महाकाल की वह गणना है।।

स्वास्थ्यवर्द्धक फार्मूला-

भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में स्वस्थ्य जीवन के सूत्र बताये हैं कि कोई भी प्राणी प्रकृति प्रदत्त परम्पराओं को अपनाए,तो परेशान-पीड़ित होने से बच सकता है। उचित आहार-विहार, आचार-,विचार तन-मन को विकार और विनाश से बचाता है।

अमृतम की अमृतवाणी

दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित आयुर्वेद के प्रसिद्ध व प्राचीन ग्रंथ चरक सहिंता, सुश्रुत सहिंता, बागभट्ट आदि में संस्कृत श्लोकों के सूत्र सिखाते हैं कि संसार में सत्य केवल हमारा स्वास्थ्य ही है, इसी के सहारे चतुर्थ पुरुषार्थ (धर्म,अर्थ,काम-मोक्ष) की प्राप्ति सम्भव है। बाकी सब कुछ तेरा है।

हमेशा जो लोग हमारा-हमारा,मेरा,-मेरा करते हैं, ऐसे राग-रंग में रमे-रंगे लोगों के रग-रग में रोग समाहित होकर उनका तन फिर, त्रिदोष,त्रिशूल,त्रिपात से घिर जाता है। दूषित खानपान के साथ द्वेष, दुर्भावना भरे गंदे विचारों से पाचन तन्त्र, यकृत और मेटाबोलिज्म बिगड़ता है।

उदर विकार परेशान करते हैं। फिर, इसका दुष्प्रभाव मानव मस्तिष्क पर होता है। इन सब कारणों से आधि-व्याधियों से व्यक्ति बर्बाद हो जाता है।

सन्तों की वाणी

उच्चकोटि के साधक परमपूज्य श्री “अड़गड़ानंद जी” ग्राम धारकुंडी, सतना द्वारा रचित “यथार्थ गीता” पुस्तक में मानव शरीर व महाभारत दोनों में समानता बतायी है। –

महाभारत का मतलब –

आत्मबल भीम है। मोह-माया की ऑंखे नहीं होती वह घृतराष्ट्र है। जीवन में एकाग्रता अर्जुन की तरह है। शरीर को चलाने वाली कोशिकाएँ-नाड़ियां शरीर की सेना है। बिना कमाई के धन को बर्बाद करना दुर्योधन जीवन के कष्ट ही कृष्ण है आदि।

एक युद्ध अपने ही विरुद्ध

श्रीमद्भागवत का सार तत्व यह है कि- यह संसार कुरुक्षेत्र है। प्रत्येक प्राणी कुरुक्षेत्र की भूमि पर खड़ा है और उसके भीतर -बाहर यानि मन-मस्तिष्क और आत्मा में निरन्तर महाभारत चल रहा है।मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन युद्धमय है। युद्ध के बिना कोई भी आध्यात्मिक और भौतिक विजय नही मिलती।

कर्तव्य- पालन की बाधाओ से निरन्तर युद्ध करना ही स्वधर्म है। आलस्य, मोह, मिथ्याचार, कामचोरी, और विकास जीवन के शत्रु हैं। श्रीमद्भागवत गीता इनसे निरन्तर युद्ध करने का आदेश देती है।संसार रूपी कुरुक्षेत्र मैं विजय पाने के लिए परमेश्वर महादेव ने जीव को मानव-देह दी, बुद्धि, बल, कर्म का अधिकार दिया और अपनी परमकृपा से आगे बढ़ाया।

मनुष्य संसार में आया, हसा- खेला, भयभीत हुआ, रोया और रोजी-रोटी और उन्नति का मार्ग खोजने लगा। कुछ लोग माया और गुणों के खिलौनों से खेलने लगे, अपने धेय्य, पथ और परमेश्वर से बिछुड कर अनायास ही रोगरूपी शत्रु के हाथों मारे गए।

सच्चे भक्त अपने साथी परमपुरुष श्रीकृष्ण का सहारा लेकर उठे, संकट के समय उनसे सहायता हेतु याचना की और अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के चारों घोडों की बागडोर परमेश्वर के तारक हाथों में सौंप दी। मनुष्य जैसा चाहता है, भगवान वैसा ही करते हैं, परन्तु प्रत्येक अवस्था में कर्म मनुष्य को ही करना पड़ता है।

कलयुग में कर्म ही पूजा है

कर्मक्षेत्र में भय, संशय और भीष्म- जैसी भीषण बाधायें सामने आती हैं। ऐसे समय में ईश्वर अपनी अतुलित शक्ति से भक्त की रक्षा करते हैं। कमजोर का उत्साह बढ़ाते हैं और उसे फिर साहस देकर कुरुक्षेत्र की भूमि पर प्रगति करने का महादेव शिव सभी को सत्य और सुन्दर सन्देश देते हैं।l

आयुर्वेद,यूनानी,धर्म शास्त्रों का मूल सार यही है कि स्वास्थ्य की सुरक्षा सबसे बड़ा धर्म है । शास्त्रमत और प्रकृति प्रदत्त परम्पराएं प्राणी को पार पहुंचा देती है।

कहते हैं जीवन का आधार, जीवन का सार आयुर्वेद ही है। नई खोज-नई सोच, अब आसान है सबकुछ।

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