रोज-रोज की खोज–
निरन्तर खोज के परिणामों से वैज्ञानिकों ने उस जीन का पता लगा लिया,जो व्यक्ति को लेफ्टी बनाता है ।LRRTM-1 नामक जीन दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं,जो भावना औऱ वाणी जैसी शारीरिक क्रियाओं को चलायमान रखता है।वैज्ञानिकों का विचार है कि यह जीन अनुवांशिक रूप से अगली पीढ़ियों में प्रवाहित होता रहता है। जो बच्चें जुड़वा हो, उन्हें लेफ्टी बनाया जाए,तो वे बहुत ही भाग्यशाली व विद्वान होते हैं।
राइट हैंड-लेफ्ट हैंड किताब के लेखक ‘क्रिस मेक मेनस’ जो खुद भी लेफ़्टिज थे, उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर अनेकों ऐसे खुलासे किए कि- लोग उल्टे हाथ से लिखने के लिए प्रेरित हो जाएं।क्रिसमेक ने लिखा कि जो प्राकृतिक यानि पैदाइशी लेफ़्टिज होते हैं, यदि उन्हें सीधे हाथ से लिखने या काम करने को मजबूर किया जाए, तो वे डिस्लेक्सिया रोग से पीड़ित हो सकते हैं।
राइट हैंड-लेफ्ट हैंड’- पुस्तक के अनुसार उल्टे हाथ वाले मौके का इंतजार कर जीवन में अत्याधिक उन्नति करते हैं।लेफ्टीज बहुत मेहनती, लगनशील, ईमानदार होने के साथ-साथ अपने समय का सदुपयोग करते हुए सफल जरूर होते हैं।सट्टा, शेयर, जुआ, MCX आदि जैसे कामों में लेफ़्टिज का गणित बहुत सही-सटीक बैठता है। ये कभी नुकसान नहीं उठाते यदि धैर्य से काम लें।लेफ़्टिज में हानि-नुकसान, घाटे को रिकवर करने की योग्यता होती है। अमृतम पत्रिका के सन २०११ अगस्त अंक लेखक ने शोध में गुण-अवगुण लिखे हैं।लेफ़्टिज की मेहनत व्यर्थ नहीं जाती।
ऐसी परिस्थितियां नहीं बनती कि….रातों काता कातना, सिर पर नहीं नातना’ अर्थात-पूरी रात सूत काता यानि चरखा चलाया फिर भी सिर को ढकने के लिए लत्ता अर्थात वस्त्र, कपड़ा नहीं तैयार हो सका।लेफ़्टिज धुन के पक्के होते हैं। जिस काम के पीछे पड़ जाएं, सफल होकर ही दम लेते हैं। गम रहित सम जीवन जीते हैं।लेफ़्टिज हमेशा जीवन को गोबर की तरह उपयोग करते हैं। गोबर जहां भी गिरेगा, तब भी कुछ न कुछ लिपटेगा ओर गोबर पर भी कुछ गिरेगा, तो भी कुछ न कुछ चिपकेगा।अर्थात ये हानि-लाभ, जीवन-मरण, सुख-दुःख शिव हाथ सोच वाले होते हैं। हानि में भी लाभ की दृष्टि रखकर नुकसान के समय भी शान से जीते हैं। लेफ़्टिज स्वार्थरहित राग में रत रहकर ईश्वर पर अटूट भरोसा रखते हैं।
एक लेफ़्टिज शायर ने लिखा है कि…. राजी हैं हम उसी में, जिसमें तेरी रजा है। अर्थात हर हाल में मस्त रहते हैं।
जाहे विध जाखे शम्भू, वाहे विध रहिये या
जो कछु कीन्हा, कान्हा कीना
वाली परिपक्व आस्था के साथ ये जीवन को बोझ नहीं समझते। सारांश यही है कि…
”रात छोटी–बड़ी कहानी” की तरह इनका जीवन होता है।मित्रता में इनका कोई सानी नहीं होता। ये रिश्तों को दिल से निभाते हैं। लेफ़्टिज आत्मा के सम्बन्ध बनाते हैं, दिमाग के नहीं। एक बार कोई दिल से निकल गया, तो फिर ये लोग मुड़कर नहीं देखते।बड़ी मार दातार की, दिल से देयो निकार। मतलब जो लोग धोखा, छल-कपट देकर चले गए, वे एक दिन ईश्वर की मार से पीड़ित जरूर होंगे। ऐसा सोचकर लेफ़्टिज दुुख का निवारण कर लेता है।
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