बच्चों को बार-बार होने वाले कफ दोष/रोग सर्दी-खाँसी,जुकाम कफ दोष या रोग और निमोनिया, श्वांस नली की सूजन व इंफेक्शन का कारण फेफडों का संक्रमण हो सकता है।
चिकित्सा वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनियाभर में 4 करोड़ से भी ज्यादा बच्चे इससे प्रभावित हैं।
इस रोग के लक्षण —
【】सीने में बलगम या जकड़न बनी रहना
【】श्वांस लेते समय सिटी बजना
【】तेजी से वजन का घटना
【】श्वांस लेने में परेशानी होना
【】श्वांस नलियों में सूजन आना
【】ऑक्सिजन की कमी महसूस होना
आदि तकलीफों का कारण शरीर मे कफ की अधिकता है।
आयुर्वेद के मुताबिक जब शरीर में कफ ज्यादा बनने लगे,तो फेफड़ों में खराबी या संक्रमण का संकेत है। आयुर्वेद में इसका स्थाई इलाज है।
फेफड़ों के संक्रमण से खतरा —
प्रदूषित वातावरण, दूषित वायु, धूल-धुंआ
स्मोकिंग करने वाले या प्रदूषण क्षेत्रो में रहने वाले लोगों को फेफड़ों की बीमारी और अस्थमा का खतरा बना रहता है।
समय रहते यदि आयुर्वेदिक चिकित्सा न की
जावे, तो हृदय, मस्तिष्क, धमनियों और अस्थियों पर दुष्प्रभाव हो सकता है।
आधुनिक खोजो से ज्ञात हुआ है कि
सी ओ पी डी यानि क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज़ 【COPD】 या क्रोनिक ब्रोंकाइटिस फेफड़ों से सम्बंधित रोग है। इसमें श्वांस नलियों में सूजन आ जाने के कारण रोगी को साँस लेने में परेशानी होती है।
■ जरा से चलने, काम करने से श्वांस फूलने लगती है। प्राणवायु (ऑक्सिजन) की कमी से हार्ट व ब्रेन पर भी असर पड़ता है।
■ बार-बार खाँसी होने लगती है।
■ खांसते समय कफ बाहर नहीं निकलता है।■ फेफड़ों की कमजोरी से होता है – अस्थमा
■ सीने में जलन और भारीपन बना रहता है।
■ हमेशा सर्दी-खाँसी व इंफेक्शन होता है।
■ सीओपीडी (COPD) में बहुत सफेद बलगम या कफ बनता है।
■ फेफड़ों में संक्रमण होने लगता है।
■ मांसपेशियों में दर्द, थकान, एवं हड्डियों में कमजोरी और कम्पन्नता आने लगती है।
■ जरा सी चोट या मोच लगने से हड्डियों के टूटने का भय बना रहता है।
■ हड्डियों में लचीलापन कम होने से वे, टूट जाती हैं।
■ पोषकता की कमी से शरीर की नाड़ियाँ शिथिल हो जाती हैं। इसे सीओपीडी (COPD) सिंड्रोम कहा जाता है।
सीओपीडी (COPD) से करोड़ों लोग चपेट में —
विश्व भर में लगभग सात करोड़ और अकेले हिंदुस्तान में 3 करोड़ से भी ज्यादा इससे पीड़ित हैं, जिसमें बच्चों की संख्या अत्यधिक बताई जा रही है। इस रोग में विषाक्त दवाओं के ज्यादा सेवन से उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता तेजी से घट रही है। इम्युनिटी पॉवर लगभग खत्म सा हो जाता है।
कैसे पता करें-
पल्मोनरी फंक्शन जाँच या सीने का एक्सरे द्वारा इस बीमारी की गम्भीरता का पता लग सकता है।
यदि इस विकार का सही समय पर प्राकृतिक उपाय या उचित इलाज न हो, तो
● टीबी ट्यूबरक्लोसिस (TB) हो सकती है।
● शारीरिक पुरुषार्थ में कमी आ सकती है।
● यौन समस्या नपुंसकता, सेक्स की कमी,
वीर्य का पतलापन आदि व्याधि जीवन की बर्बादी का कारण बन सकती हैं।
आयुर्वेद में सीओपीडी (COPD) सिंड्रोम और फेफड़ों के संक्रमण, अस्थमा, श्वांस विकार और कफ रोगों का शर्तिया इलाज है ––
उपरोक्त बीमारियों का समूल नाश करने के लिए
“लोजेन्ज माल्ट”
100% आयुर्वेदिक ओषधि
विशेष उपयोगी है ।
इसमें देशी दवाइयों वासा (अडूसा), हंसराज, मुलेठी, भारंगी,का काढ़ा मिलाया गया है, जो
फेफड़ों के संक्रमण को दूर कर श्वांस नली को साफ रख ताकत देता है।
हरीतकी, आँवला मुरब्बा का मिश्रण है जो शरीर में आवश्यक प्रोटीन, विटामिन की पूर्ति कर, शरीर में शक्ति इम्युनिटी पॉवर वृद्धिकारक है।
इसमें डाली गई ◆ सोंठ, ◆ कालीमिर्च, ◆ पीपल और ◆ नागकेशर, ◆ अजवायन कफ को बाहर निकलने में सहायक है।
लोजेन्ज माल्ट फेफड़ों तथा तन की शिथिल नाडियों एवं कमजोर अवयवों व कोशिकाओं को जीवनीय शक्ति दाता है।
यह फेफड़े के कारण उत्पन्न अस्थमा,
श्वांस एवं 22 तरह के कफ संबंधित सभी व्याधियों को दूर करने में सहायक है
2 से 3 चम्मच गर्म दूध या गर्म पानी से
40-45 दिन तक नियमित लेना है।
फेफड़ो के संक्रमण या पुरानी बीमारियों में एक दिन में 3 से 4 बार लेवें।
जिन बच्चों को हमेशा निमोनिया, सर्दी-खाँसी या किसी भी तरह का कफ विकार व इंफेक्शन बना रहता हो, उन्हें एक चौथाई से भी कम माँ के दूध के साथ अथवा गुनगुने पानी से 2 या 3 बार देवें।
परहेज-
रात्रि में दूध-दही, सलाद, फल, जूस, अरहर की दाल एवं ठंडे पदार्थ का सेवन न करें।
सुबह उठते ही 1 से 2 गिलास सादा या गुनगुना जल पियें।
आयुर्वेद ग्रंथो के अनुसार —
यह त्रिदोष (वात,पित्त,कफ) में से एक “कफ दोष/रोग” जब बहुत पुराना हो जाता है, तो फेफड़े संक्रमित और कमजोर होने लगते हैं,
इसकी वजह से श्वांस नली में अंदरूनी रूप से सूजन आने लगती है, जिस कारण सांस लेने में दिक्कत होती है और श्वांस फूलने लगती है।
ध्यान दें यदि आपके फेफड़े कमजोर हैं,तो निम्न रोग जिंदगी भर आपको परेशान कर सकते हैं।
लोजेन्ज माल्ट — नीचे लिखे इन बाइस (22) प्रकार के फेफड़ों के विकार तथा कफ रोगों को दूर करने में भी उपयोगी है।
1- सर्दी-खाँसी,जुकाम, निमोनिया
2- कफदार बलगम युक्त खांसी
3- कुकर खाँसी
4- दमा,श्वांस,
5- बार-बार जुकाम होना
6- गले की खराबी,खराश
7- गला रुंध जाना,बैठ जाना
8- गले व कंठ में सूजन
9- नजला,नाक में परेशानी
10- नाक से बराबर पानी बहना
11- कफ का हमेशा बना रहना
12- सर्दी से सिरदर्द
13- आंखों में भारीपन
14- टॉन्सिल की तकलीफ
15- बार-बार छींक आना
16- कफ के कारण सुस्ती रहना
17- श्वांस संस्थान की दुर्बलता
18- फेफड़ों की खराबी, संक्रमण
19- छाती में भारीपन
20- सांस लेने में दिक्कत होना
21– प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स की कमी
22- श्वांस फूलना संबंधी समस्याएं है,तो आपका शरीर जीर्ण-शीर्ण जर्जर औऱ कमजोर हो सकता है।
फेफड़ों की इन सब तकलीफों और
सीओपीडी (COPD) सिंड्रोम
से मुक्ति पाने के लिए
लोजेन्ज माल्ट बहुत आवश्यक है।
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