मधु पंचामृत यानी शुद्ध शहद भी एक ओषधि है, जो भयंकर एनर्जी देता है। जिम में कसरत करने वालों को मधु का सेवन अति उत्तम रहता है। amrutam

  1. शहद को हनी HONEY क्यों कहते हैं…”हनी” शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा में खोजी जा सकती है। अरबी में “हैन” शब्द का अर्थ “उत्पाद” होता है। यह जर्मनी भाषा में “होइंग” हो गया । प्राचीन अंग्रेजी भाषा में इसे “हुइंग” कहा गया तथा धीर-धीरे वह “हनी” हो गया।
  2. मधु पंचामृत के हजारों फायदे जानकर अचंभित हो जाएंगे
  3. शहद की सल्तनत..शब्द कोष में शहद को फूलों के मकरन्द से मधुमक्खियों द्वारा एकत्रित तथा छत्ते में संचित हल्के पीले, मधुर, पारभासी खाद्य पदार्थ” के रूप में परिभाषित किया गया है।
  4. लगभग जीवन के सभी रूपों ने शहद तथा पराग से पोषण प्राप्त किया है।
  5. द्रव्यगुण विज्ञान ग्रन्थानुसार मधु के सेवन से बुढ़ापा, पेट तथा अंतड़ी की खराबी, गलशोध, मुंहासे, एलर्जी जैसी विभिन्न बीमारियों को शहद तथा मधु पराग से ठीक किया जा सकता है।
  6. पाचन खराबी के इलाज में यह बहुत उपयोगी होता है क्योंकि यह पित्तनाशक अप्रदाहजनक आहार है। यह पेट में रौस या जलन उत्पन्न नहीं करता है।
  7. विश्वभर में शहद का खूब इस्तेमाल किया जाता है। यह चीनी के आगमन से पहले लगभग सभी रसोईघरों में एक उपयोगी प्रयोजनशील मीठा माना जाता था ।
  8. शहद की बनावट….शहद उत्पन करने वाले विभिन्न तत्वों को धीरे-धीरे अनेक वर्षों में खोजा गया है। हालांकि रसद्रव्य मालूम है तथा उनका प्रतिशत निकाल लिया गया है फिर भी कृत्रिम शहद तैयार नहीं किया जा सकता है।
  9. वर्तमान समय में बिकने वाले सभी शहद नकली मिल रहे हैं, जो ग्लूकोज, इन्वर्ट शुगर, शहद का एसेंस कादि मिलाकर मिलावटी शहद बना रहे हैं।
  10. नकली शहद या कृत्रिम रूप से बनाए गए इन द्रव्यों में उनके प्राकृतिक प्रतिरूपों के पोषक मूल्यों की भारी कमी पायी गयी। ये अत्याधिक हानिकारक भी हैं।
  11. शहद अपने गुप्त गुणों के कारण वैज्ञानिकों के लिए अब भी रहस्यमय है।
  12. शहद में पाए जाने वाले घटक-द्रव्य…शहद मुख्यतः चीनी तथा पानी से युक्त होता है। शहद के नमूने का विश्लेषण करने पर हमें निम्नलिखित तत्व प्राप्त होते हैं : पानी -फल शर्करा (डी-फ्रकटोज) 17%, दाक्षा शर्करा (डी-ग्लूकोज) 39% -। इक्षु शर्कराव34% – डेक्सट्रीन प्रोटीन मोम वनस्पति अम्ल (मैलिक, फार्मिक, सिट्रिक इत्यादि) लवण (कैल्सियम, लौह, फॉस्फेट, मैग्नीशियम, आयोडीन) अनिर्धारित अवशेष (रजिन, गोंद, रंगद्रव्य, अपरिष्कृत तेल, पराग कण) 1%- 0.5% 2%, 1%,- 0.5%, 1%, 4% फल-शर्करा तथा दाक्षा-शर्करा चीनी हैं।
  13. चीनी एक साथ मिलकर कार्बोहाइड्रेट बनाती है। यह कार्बोहाइड्रेट तीन प्रकार की होती है : चीनी, स्टार्च, सैलूलोज तथा सम्बद पदार्थ शहद में दाक्षा-शर्करा, फल-सर्करा तथा इक्षु-शर्करा पायी जाती है। दाक्षा -शर्करा सबसे साधारण चीनी है, जो रक्त द्वारा सीधे आत्मसात् की जा सकती है।
  14. फल-शर्करा को सामान्यतः दाक्षा-शर्करा के नाम से जाना जाता है। इसे लीवूलोज के नाम से भी जाना जाता है। इसकी रासायनिक बनावट ग्लूकोज की तरह है। फिर भी यह ग्लूकोज की अपेक्षा अधिक आसानी से क्रिस्टल होती है ।
  15. ग्लूकोज आक्सीजन स्तर को बनाए रखने में सहायक होता है जबकि फल-शर्करा ऊतक निर्मित करती है।
  16. इक्षु- -शर्करा फल-शर्करा तथा दाक्षा-शर्करा का समूहन है। मधुमक्खीपालन उद्योग में मधुमक्खियों को सफेद चीनी खिलायी जाती है तथा कभी-कभी यह मधुमक्खियों के आहार का प्रमुख अवयव होता है। तब उत्पन्न शहद में इक्षु शर्करा की मात्रा अधिक होती है।
  17. डेक्सट्रीन बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। यह एक चिपचिपा पदार्थ होता है तथा रक्त द्वारा सीधे आत्मसात् किया जा सकता है। इसलिए शहद की सुपाच्ता में योगदान देता है।
  18. शहद में प्रोटीन की मात्रा बहुत कम होती है। जब शहद को उसके मलिन रंग-रूप को हटाने के लिए बार-बार फिल्टर किया जाता है तो प्रोटीन भी चला जाता है।
  19. शहद में विटामिनों की विद्यमानता का पता 1943 में ही चला । यूनिवर्सिटी ऑफ मिन्नसोटा के वैज्ञानिक हेडेक्स ने सिद्ध किया कि शहद में कम से कम छ: विटामिन हैं। उनमें निम्नलिखित शामिल हैं :
  20. थियामिन (विटामिन-बी), एस्कोर्बिक ऐसिड (विटामिन-सी), रिबोक्लैविन, पैन्टोथेनिक ऐसिड, पाइरीडाक्साइन, नियासिन
  21. शहद में मौजूद विटामिन तत्व मकरन्द स्रोत के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं। चूंकि विटामिन बहुत कम मात्रा में होते हैं, अतः वे बारम्बार फिल्ट्रेशन से नष्ट हो जाते हैं। शहद को गरम करने या संसाधित करने के दौरान भी विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
  22. शहद सब्जियों या फ्लों की तरह “प्राकृतिक आहार” है और शहद फूलों का विशुद्ध तथा अमिश्रित स्त्राव है।
  23. शहद संग्रहण के भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर रंग, सुगंध तथा स्वाद में भिन्न-भिन्न होता है। यह मकरन्द जुटायें जाने वाले फूलों के प्रकार पर काफी निर्भर करता है ।
  24. अतः शहद को किसी विशिष्ट फूल से मकरन्द के प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है जिसमें उसकी अधिकता होती है। उदाहरण के लिए नारंगी बौर शहद जो मुख्यतः नारंगी के बौरों के, मकरन्द से निर्मित शहद होता है।
  25. हालांकि दूसरे फूलों से मकरन्द विद्यमान हो सकते हैं लेकिन वे अल्प मात्रा में विद्यमान होते हैं तथा शहद के विशिष्ट रंग, सुगंध या स्वाद को प्रभावित नहीं करते हैं।
  26. मधु के विभिन्न रंग होते हैं…
  27. शहद कई रंगों में पाया जाता है। यह पारदर्शी भी हो सकता है। रंग पीले से लेकर भूरे तक तथा कभी-कभी करीब-करीब काला होता है। ये रंग मधुमक्खी के आहार पर निर्भर करते हैं।
  28. उदाहरण के लिए सरसों के फूल से शहद रंग से सफेद, नीम और निम्बू के बौरों से सुनहला-पीला तथा सेब के बौरों से गहरा लाल या काला होता हैं!
  29. तपेदिक रोग मिटाता है-नीलगिरी मधु…जैसा कि शहद मकरन्द पर निर्भर होता है, सभी प्रकार के शहद मीठे तथा स्वादिष्ट नहीं होते हैं। यूकेलिप्टस के पेड़ से प्राप्त शहद अरुचिकर हो सकता है। फिर भी लोग तपेदिक यानि क्षय, यक्ष्मा, टी.बी. का रोग।के इलाज में इस शहद का इस्तेमाल करते हैं।
  30. शहद स्वरूप में अत्यधिक आर्दताग्राही होता है अर्थात उसमें नमी खींचने की उच्च क्षमता होती है । अतः इसे हवा बंद डिब्बों में रखा जाना चाहिए । इस ढंग से रखने पर शहद की सुगंध में समय बीतने के साथ सुधार आता है।
  31. सामान्यतः नमी के अवशोषण द्वारा उत्पन्न होने वाले किण्वन (फर्मेन्टेशन) से बचा जा सकता है ।
  32. वस्तुतः जब अमेरिकी पुरातत्ववेत्ता टी.एम.डैविज़ ने महारानी त्यी के माता-पिता का मकबरा खोला तो उसे शहद से भरा एक मर्तबान मिला । लगभग 3300 साल पुराना यह शहद कुछ अंश तक तरल स्थिति में था। उसकी खुशबू पूरी तरह बनी हुई थी तथा खाने योग्य था।
  33. यीस्टों द्वारा शहद में विद्यमान चीनी के उपयोग के कारण भी फर्मेन्टेशन होता है। ये यीस्ट मधुमक्खियों द्वारा छत्ते में लाए जाते हैं ।
  34. सामान्यतः जब शहद बनने की प्रक्रिया के दौरान चीनी का संकेन्द्रण बढ़ जाता है तब ये यीस्ट नष्ट हो जाते हैं । यदि शहद को हवा बंद स्थितियों में नहीं रखा जाता है, तो नए यीस्ट पैदा हो सकते हैं। 50° एफ से. कम तथा 80° एफ से. अधिक तापमान इन यीस्टों की क्रियाशीलता को रोकता है।
  35. फर्मेन्टेशन मुख्यतः भण्डारण सुविधाओं के दोषपूर्ण होने के कारण उत्पन्न होता है। फर्मेन्टेशन के कारण उत्पन्न उप-उत्पाद शहद के सुगंध तथा खुशबू को नष्ट कर देते हैं।
  36. शुद्ध तरल शहद ठंडे जलवायु में दानेदार हो सकता हे या अंशतः जम सकता है। कुछ शहदों में छत्ते से निकालने के एक महीने के भीतर दाने पड़ सकते हैं जबकि कुछ शहद दो सालों तक तरल रूप में बने रहते हैं।
  37. मधु अपने आपमें एक आहार है। उसमें कई औषधीय गुण होने के अलावा जब उसे दूसरे आहार में मिलाया जाता है तो स्वाद बढ़ जाता है।
  38. शहद को संसाधित करना तथा बोतल में भरना शहद स्वरूप में अत्यधिक आर्द्रताग्राही होता है। यदि दुर्गन्ध, बदबू उत्पन्न करने वाले पदार्थ शहद में छोड़ दिए जाते हैं, तो वह उन्हें सामान्यतः तुरंत आत्मसात् कर लेता है, इसलिए यह आवश्यक है कि निकालने के बाद समस्त शहद को विभिन्न मोटाई वाले पनीर कपड़ों की कई परतों के माध्यम से छाना या फिल्टर किया जाए।
  39. मरी हुई मधुमक्खियां, डिंभक तथा अन्य अवसाद छानने से निकल जाते हैं । ये शहद के स्वाद को खराब करते हैं। अतएव इन्हें तुरंत निकालना जरूरी है।
  40. शहद को निकालने के बाद लगभग 30 मिनट तक 145°-150° F के तापमान पर गरम किया जाना चाहिए। इससे फर्मेन्टेशन नहीं हो पाता है। फिर भी गरम बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए।
  41. अधिक गरम करने से शहद में जले हुए स्वाद के अलावा उसका रंग तथा सुगंध भी खराब हो सकता है।
  42. गरम एक निश्चित समय तक ही किया जाना चाहिए। अच्छी तरह से चलाने से गरम या ठंडा होने में कम समय लगता है। इसलिए यह आवश्यक है कि गरम करने की प्रक्रिया के दौरान शहद को अच्छी तरह से चलाया जाए।
  43. लगभग 30 मिनट तक गरम करने के बाद शहद को छानना चाहिए। ठंडे शहद की अपेक्षा गरम शहद को छानना आसान होता है।
  44. छानने के लिए प्रयुक्त पनीर कपड़ा दोहरा-तेहरा होना चाहिए । कपड़े को बीच में थैले जैसा बनाया जाना चाहिए तथा ऊपर बांध दिया जाना चाहिए।
  45. छानने के लिए प्रयुक्त इन कपड़ों को बदलते रहना चाहिए क्योंकि उनमें अवसाद जम जाते हैं।
  46. शहद को छानने के बाद स्वच्छ विसंक्रमित बोतलों या पात्रों में रखा जाना चाहिए तथा यथासंभव शीघ्र ठंडा किया जाना चाहिए। कभी-कभी ठंडी जलवायु पर्याप्त होती है।
  47. कभी-कभी ठंडा बहता पानी ठंडा करने के लिए प्रयोग किया जाता है। शहद टीन या धातु के डिब्बों में कभी नहीं रखा जाना चाहिए क्योंकि शहद में विद्यमान एसिड धातुओं पर प्रभाव डालता है। शीघ्र ही शहद की शुद्धता नष्ट हो जाती है। ।
  48. शुद्ध शहद की पहचान…शुद्ध शहद में मिलावट का पता चल सकता है। यदि गरम पानी। मिलाया गया है तो शहद किण्वित हो जाएगा।
  49. गन्ने, सेब या मक्का का सीरप मिलाने से शहद फट जाता है। यदि शहद में कोई अन्य शर्करा मिलायी गई हो तो वह घनीभूत तथा गाढ़ा हो जाता है। इसलिए हमें शहद पीते समय हमेशा “शुद्ध आहार” सुनिश्चित होता है।
  50. यदि शहद तैयार करने तथा रखने की उपर्युक्त विधियों का पालन किया जाए तो शहद में सभी प्राकृतिक गुण-रंग, खुशबू, स्वाद इत्यादि अनिश्चित काल तक बने रहेगे।
  51. ‘शहद एक ऊर्जादायक टानिक है -प्रकृति ने हमें ऊर्जादायक एक महान पेय शहद दिया है। यह जानने के लिए कि शहद ऊर्जा कैसे देता है, यह जानना आवश्यक है कि जब शरीर में “थकावट” की भावना आ जाती है तो उसमें क्या घटित होता है।
  52. सभी मांसपेशियों में ग्लायकोजीन होता है। जब किसी मांसपेशी का व्यायाम किया जाता है तो कुछ समय के बाद वह थक जाती है। थकान जैसे ही आती है, मांसपेशियों में विद्यमान ग्लायकोजीन के भंडार का धीरे-धीरे उपयोग हो जाता है।
  53. ग्लायकोजीन के स्थान पर उतनी ही मात्रा में लैक्टिक एसिड बन जाता है । लैक्टिक एसीड की मात्रा के अनुपात में गरमी पैदा होती है। उत्पन्न लैक्टिक एसीड के हरेक ग्राम के लिए शरीर द्वारा छोड़ी गयी गरमी की मात्रा 370 कैलोरी होती है। –
  54. प्रयोगों से यह सिद्ध हो गया है कि यदि मांसपेशी में हाइड्रोजन की कमी है, तो वह कड़ी हो जाती है तथा सिकुड़ जाती है लेकिन आक्सीजन की उपस्थिति में नरम तथा लचीली बनी रहती है।
  55. थकान के दौरान हाइड्रोजन आयन संकेन्द्रण मांसपेशियों को संकुचित करते हुए बढ़ता है।
  56. व्यायाम के दौरान आक्सीजन स्तर घटता है जिससे आक्सीजन की कमी होती है। उसे विश्राम द्वारा सामान्य स्तर पर वापस लाया जा सकता है।
  57. इस अवधि के दौरान फेफड़ों में पर्याप्त मात्रा में हवा जाती है। इसके दौरान लैक्टिक एसिड तितर-बितर हो जाता है। चूंकि व्यायाम के दौरान गरमी नष्ट हो जाती है, उसकी प्रतिपूर्ति करनी होती है।
  58. कार्बोहाइड्रेट से युक्त आहार खाने से उसकी प्रतिपूर्ति हो सकती है। ये कार्बोहाइड्रेट मांसपेशियों के प्राथमिक इंधन हैं।
  59. कार्बोहाइड्रेट का एक अत्यंत सुपाच्य रूप शहद है क्योंकि शहद में डेक्सट्रीन होता है। डेक्सट्रीन पाचन की जटिल प्रक्रिया से गुजरे बिना सीधे रक्त में मिल सकता है।
  60. एक पौंड शहद 1450 कैलरी ऊर्जा देता है। रोज 30 ग्राम शहद ही लेना हितकारी है। यह 15 दिन में 1450 कैलरी देता है।
  61. शहद के मूल्यवान गुणों को कुछ शताब्दियों तक प्रायः भुला देने के बाद आजकल फिर से महत्व दिया जा रहा है। अधिकांश खिलाड़ी अपने अभ्यास तथा प्रशिक्षण के ठीक पूर्व तथा उसके दौरान शहद लेते हैं।
  62. एक चम्मच शहद पीने से व्यक्ति को दस मिनट से कम समय में ऊर्जा प्राप्त होती है।
  63. रक्त धारा में गुजरने वाले ग्लायकोजीन से हमें वही ऊर्जा प्राप्त होती है जो नियमित आहार लेने के बाद प्राप्त की जा सकती है।
  64. मधु प्रायः आपाती मामलों, थकान, परिश्रान्ति या अशक्तता में दी जाने वाली ऊर्जा के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  65. ताजे साग-पातों, ताजे फलों, गिरीदार फलों तथा दूध के साथ शहद अच्छे स्वास्थ्य तथा तरूणता के लिए आदर्श आहार होता है ।
  66. शहद का अनुपात-अनुपान…शहद की कोई निर्धारित मात्र नहीं है। ऐसा कहना गलत है। शहद लेने की मात्रा परिश्रम की मात्रा पर निर्भर करती है। अधिक मात्रा में शहद का सेवन सफेद दाग उत्पन्न कर सकता है।
  67. तदानुसार शारीरिक कार्य कम करने वाले लोगों को पतले रूप में शहद की मात्रा कम लेनी चाहिए! अधिक कार्य। करने वाले लोगों के लिए शहद की मात्रा बढ़ायी जा सकती है तथा गाढ़े रूप में लिया जा सकता है!
  68. यह ध्यान रखा जाए कि अलसी लोग शहद खाली पेट कभी न लेवें। इसे परिश्रम या व्यायाम के बाद ही सेवन करें।
  69. शहद अपने आर्द्रताग्राही स्वरूप के कारण शहद पेट में पानी की मात्रा को अवशोषित कर लेगा, जिससे पेट में दर्द हो सकता है। जब शहद खाली पेट लिया जाता है, तो उसमें केवल सादा पानी मिलाकर पतला करना चाहिए।
  70. शहद के नए फायदे बहुत हैं। इसे मध्य वय तथा वृद्ध व्यक्तियों के लिए एक मुख्य ऊर्जादाता माना गया है ।
  71. शहद हृदय के लिए उत्तम…स्लायकोजीन की मात्रा रक्त में हमेशा होनी चाहिए।
  72. मधु शरीर के उचित क्रियाकलाप के लिए अनिवार्य है । जब रक्त में विद्यमान शर्करा की मात्रा कम हो जाती है, तो बहुत थकान महसूस होती है। इससे हृदय की मांसपेशियों का कार्यकलाप भी धीमा हो जाता है।
  73. विश्राम कर लेने वाली अन्य स्वैच्छिक मांसपेशियों की तुलना में हृदय को लगातार काम करना होता है।
  74. अतएव यह आवश्यक है कि खाए जाने वाले आहार ऊर्जादायक हों।
  75. शहद ऐसा ही एक उत्तम आहार है। अन्य आहारों को उनके ऊर्जा देने के पहले पचाना होता है। इसके विपरीत शहद को लगभग तुरंत आत्मसात् किया जा सकता है जिससे ऊर्जा शीघ्र प्राप्त होती है।
  76. सामान्यतः हृदय के रोगियों को ऊर्जा के लिए चीनी लेने की सलाह दी जाती है। यही कारण है कि मधुमेह के रोगियों के हृदय सामान्यतः कमजोर होते हैं क्योंकि वे चीनी का परहेज करते हैं। उनके आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा भी कम होती है।
  77. मधुमेह के रोगियों (साधारण मामलों) के लिए शहद की सिफारिश की जाती है-ऊर्जा प्रदान करने के अलावा, वह रक्त चीनी स्तर को प्रभावित नहीं करता है।
  78. जब शहद लिया जाता है तब रक्त चीनी स्तर में अस्थायी वृद्धि होती है। जब शहद आत्मसात् हो जाता है तब वह शीघ्र ही अपने सामान्य स्तर पर वापस आ जाता है।
  79. हृदय के रोगियों को बिस्तर पर जाने के पहले एक चम्मच शहद मिला एक गिलास गरम पानी लेने की सलाह दी जाती है।
  80. रात में उठने पर भी इसे लिया जा सकता है। इसकी सिफारिश इसलिए की जाती है क्योंकि इतना कठिन परिश्रम करने वाले अंग हदय को रात में लम्बे अंतरालों तक ऊर्जा के बिना छोड़ना उनके लिए बुद्धिमानी नहीं है।
  81. स्वामी शिवानंद के अनुसार, “शहद कमजोर हृदय, कमजोर मस्तिष्क तथा कमजोर पेट को मजबूत बनाता है।
  82. कुपोषण के मामले में भी यह उपयोगी होता है। इसे सामान्य शारीरिक मरम्मत के लिए दिया जाना चाहिए। शहद जीवणुओं को नष्ट करता है तथा इस प्रकार शरीर को रोगों का प्रतिरोध करने में समर्थ बनाता है।
  83. रोगाणु शहद में नहीं बढ़ सकते हैं।
  84. शहद संतरे के रस तथा कॉड लीवर ऑयल का प्रतिस्थापन है।
  85. शहद श्वसनी-नजला, गलशोध, खांसी तथा सर्दी में उपयोगी होता है। मधुमेह के रोगियों को शहद लेने से फायदा होता है।
  86. शहद दुध, मलाई या मक्खन के साथ लिया जा सकता है।
  87. शहद गंभीर बीमारी के बाद एक पुष्टिकर आहार है। यह च्यवनप्राश तथा अन्य “कल्पों” के समूहन में मिल जाता है। ज्यों ही बच्चा जन्म लेता है, उसकी जिहवा पर शहद लगाया जाता है।
  88. शहद बच्चे द्वारा लिया जाने वाला पहला आहार होता है। शहद अत्यधिक उद्दीपन होता है। यदि आप अधिक परिश्रम से थक या परिक्लांत हो जाने पर गरम पानी के साथ एक चम्मच शहद लेते हैं, तो यह आपको तुरंत तरोताजा कर देता है।
  89. चार बादम रात भर पानी में भिगोकर रखें सुबह छिलके उतार दें। उन्हें दो चम्मच शहद के साथ लें। यह एक मस्तिष्क टानिक है।”
  90. शहद का नियमित ग्रहण अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में काफी सहायक होता है।
  91. शहद-सर्वोत्तम ओषधि…शहद तथा परिष्कृत चीनी ये दोनों पदार्थ सुप्रसिद्ध मधुरन हैं । लेकिन उनके पोषक अंशदानों पर गहन दृष्टि डालने से आश्चर्यजनक अंतर मिलते हैं।
  92. मध्य युग में शहद का खूब उपयोग किया जाता था। यह समाज के सभी वर्गों द्वारा उपभोग की जाने वाला एक सुप्रसिद्ध मधुरण था। इसके विपरीत चीनी का बहुत कम उपयोग किया जाता था।
  93. 15वीं शताब्दी के बाद ही धनाढ्य लोगों ने चीनी का उपयोग करना शुरू किया। तब तक चीनी राजाओं तथा कुलीन पुरुषों के लिए जिज्ञासा की वस्तु थी।
  94. चीनी या इक्षु-शर्करा पहली शताब्दी ई.पू. के आस-पास ही यूरोप में आयी । इतिहास हमें बताता है कि सम्राट सिकन्दर के बेड़े के एडमिरल नियरचस भारत से ईख कैसे ले गया। उसने उसे “शहद से भरपूर नरकट” कहा।
  95. साधारण लोगों ने सत्रहवीं शताब्दी से चीनी का उपयोग करना शुरू किया। बाद में औद्योगिक क्रांति के आ जाने से चीनी का उत्पादन लगातार व्यापारिक होता गया।
  96. मशीनों की सहायता से पर्याप्त मात्रा में चीनी का उत्पादन होने लगा। इससे उसके मूल्यों में गिरावट आयी।
  97. मधु पंचामृत के अदभुत फायदे जानकर शीघ्र ही इसका खूब प्रयोग होने लगा तथा मुख्य मधुरन के रूप में प्रयुक्त शहद का स्थान ले लिया हैं तथा उसके प्रयोग को बढ़ावा मिल रहा है।
  98. यदि हम शहद तथा परिष्कृत चीनी के संघटनों की तुलना करें तो यह पाया जाता है कि शहद में 25 से अधिक विटामिन खनिज होते हैं, जबकि परिष्कृत चीनी में इनमें से कुछ भी नहीं होता है।
  99. हालांकि परिष्कृत चीनी में शहद की अपेक्षा अधिक कैलरी होती है, यह नुकसानदेह है। परिष्कृत चीनी अंततोगत्वा शरीर के लिए हानिकर होती है।
  100. शहद में विटामिन तथा खनिज तत्व शहद में विद्यमान पराग पर निर्भर करते हैं । पराग फूलों के परागकोश में विद्यमान एक अति बारीक पाउडर है। पराग फूल के सिर्फ नर तत्व द्वारा बनता है। जब मधुमक्खी मकरन्द एकत्रित करती है तब पराग मधुमक्खी के पैरों में चिपक जाता है। बाद में छत्ते में वह शहद में मिल जाता है । प्रयोगों ने पराग के उच्च पोषक तत्व को सिद्ध कर दिया है। उनसे यह भी पता चला है कि। निस्पंदन द्वारा पराग को निकालने से विटामिनों की हानि होती है।
  101. कृत्रिम चीनी में इक्षु शर्करा, चुकन्दर शर्करा, दाक्षा शर्करा (ग्लूकोज) जैसी चीनी होती है।
  102. केवल ग्लूकोज किसी परिवर्तन से गुजरे बिना सीधे रक्त में आत्मसात् किया जा सकता है। दूसरी चीनी को आत्मसात् करने के पहले सामान्य मिश्रणों में विश्लेषित करना आवश्यक होता है।
  103. फिर भी, शहद में मुख्यतः फल शर्करा तथा दाक्षा शर्करा (ग्लूकोज) होती है। जबकि दाक्षा शर्करा रक्त द्वारा शीघ्र ही आत्मसात् कर ली जाती है, फल शर्करा धीरे-धीरे आत्मसात् होती है। फिर भी यह धीमा आत्मसात्करण शरीर के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि इससे रक्त चीनी स्तर में अचानक वृद्धि नहीं होती है।
  104. चिकित्सकों के अनुसार चीनी दाहोत्पादक होती है। शहद फायदेमंद होता है क्योंकि इससे दस्त उत्पन्न नहीं होता है। वह दस्त उत्पन्न किए
  105. बिना कब्ज से राहत दिलाने की क्षमता रखता है। बच्चों को नियमित रूप से शहद देने पर यह देखा गया कि उनमें अपेक्षाकृत अधिक कैल्शियम होता है।
  106. चीनी की उच्च ज्वलनशील ईधनों से तुलना की जा सकती है । ये ईधन विस्फोटक प्रभावों के साथ प्रज्वलित होते हैं, तीव्र ऊष्मा पर जलते हैं तथा शीघ्र ही बुझ जाते हैं।
  107. यही बात शरीर में कृत्रिम चीनी के बारे में कही जा सकती है। चीनी का प्रभाव अल्कोहल के प्रभाव के समान होता है।
  108. अल्कोहल की तरह कृत्रिम चीनी शक्तिशाली उद्दीपक हो जाती है।
  109. ज्यों ही कृत्रिम चीनी पेट में आक्सीजन के सम्पर्क में आती है, वह पाचन तंत्र पर तात्कालिक प्रभाव डालती है।
  110. चीनी के कारण पाचन तंत्र कठिन तथा त्वरित काम करते हुए प्रतिक्रिया दिखाता है। यह अल्कोहलों के प्रभाव की तरह होता है जिसके बाद अवपात अर्थात थकावट की भावना आती है जिससे शरीर को और चीजों की जरूरत पड़ती है। फिर भी चीनी का अधिक उपयोग किसी भी रूप में शरीर की सहायता नहीं करता है।
  111. शक्कर का पोषक तत्व शून्य होता है। इसके बजाय वह पाचन तंत्र विशेषकर अग्नाशय पर भारी बोझ डालती है क्योंकि कृत्रिम चीनी को उसके आत्मसात्करण के पहले साधारण चीनी में बदलना होता है।
  112. अग्नाशय पर अधिक भार पड़ने से वह ठीक से काम नहीं करेगा जिससे शीघ्र ही मधुमेह हो सकता है।
  113. परिष्कृत चीनी के अधिक आहार पर पोषित बच्चों का अवलोकन करने के बाद डॉ. डब्लूय.ई. डेक्स ने निष्कर्ष निकाला कि परिष्कृत चीनी पोषक आहार नहीं है।
  114. चीनी से निर्मित टॉफी, चॉकलेट खाने वाले ऐसे बच्चे पीले तथा चिड़चिड़े दिखाई दिए। उनका व्यवहार विशेषकर रात में ठीक नहीं रहता था।
  115. वे एग्जिमा तथा आमाशय-अंतड़ी की खराबी के जोखिम में थे तथा दांत देर से निकले ये सभी समस्याएं किसी चिकित्सा के बिना चीनी के स्थान पर शहद का प्रयोग करके ठीक की जा सकती है।
  116. शहद सफेद चीनी की तरह पाचन क्षेत्र में फर्मेन्ट नहीं होता है। फर्मेन्टेशन हानिकारक जीवाणुओं के विकास के लिए आदर्श स्थितियां पैदा करता है। आंशिक रूप से पचे, अधिक स्टार्च तत्व भी हानिकारक जीवाणुओं के विकास को बढ़ावा देते हैं।
  117. शहद सर्दी एवं खांसी में भी प्रभावी ढंग से काम करता है । अपाचन के मामले में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। हानिकर जीवाणुओं के विकास को बढ़ावा देने वाली परिष्कृत चीनी के विपरीत शहद स्वास्थ्य में सुधार लाता है।
  118. बच्चों में प्रारंभ से ही शहद की आदत डालनी चाहिए। दूध में मधुरन के रूप में चीनी के बजाय शहद मिलाया जाना चाहिए। शहद का अधिक मात्रा में तथा परिष्कृत चीनी का कम मात्रा मे सेवन बच्चों का अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करता है।
  119. मधु-अमृत है -मनुष्यों द्वारा प्रयुक्त एक अत्यंत प्राचीन ऐन्टिसेप्टिक शहद था।
  120. कीटाणुओं को मारने में शहद की प्रभावशाली क्षमता के कारण चीन, बर्मा, प्राचीन मिस तथा अन्य पूर्वी देशों में शहद का खूब इस्तेमाल होता था।
  121. सेंट एम्ब्रोज ने ठीक ही कहा है, “मधुमक्खियों का फल सभी की अभिलाषा है तथा राजा और मिक्षक दोनों के लिए समान रूप से मीठा होता है तथा यह केवल प्रीतिकर ही नहीं बल्कि लाभकर तथा स्वास्थ्यकर भी है।
  122. यह उनका मुंह मीठा करता है, उनके धावों को ठीक करता है तथा भीतरी फोड़ो का उपचार करता है।”
  123. शहद को परिरक्षक के रूप में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता था। पूर्वी देशों में उसी गुण को शव-संलेपन की प्रक्रिया में प्रयोग किया जाता था। यह प्रणाली बर्मा में आज भी है।
  124. बर्मा में अक्सर जब तक अंत्येष्टि के समस्त खर्च का भुगतान नहीं कर दिया जाता है तब तक “पोंगाइस” या पुरोहित मनुष्य को खरीदने से इंकार कर देते हैं । जब तक पूरी लागत अदा नहीं कर दी जाती है तब तक शव शहद में रखा जाता है।
  125. जब पुरोहितों को उनकी फीस मिल जाती है तब शहद को हटा दिया जाता है तथा मिट्टी के बरतन में रखा जाता है। कभी-कभी इस शहद को बाजार में भी बेजा जाता है। लेकिन इसके बावजूद यह वस्तुतः उल्लेखनीय है कि शहद जिस पर भी कीटाणुमुक्त रहता है। यह शहद के ऐन्टेसेप्टिक गुण को दर्शाता है।
  126. शहद का शक्तिशाली आर्द्रताग्राही स्वरूप उसके ऐन्टिसेप्टिक गुणों के लिए मुख्यतः उत्तरदायी है। कीटाणुओं को जीवित रखने के लिए नमी की आवश्यकता होती है। शहद कीटाणुओं को नमी से वंचित करके शीघ्र नष्ट कर देता है। इसलिए शहद बहुत असरदार होता है।
  127. – दि पेरिस इंस्टीट्यूट ऑफ बी रिसर्च के प्रोफेसर रेमी चौविन तथा डॉ. लावी ने 1965 में खोज की कि शहद पैदा करने के अलावा मधुमक्खियां छ: प्रकार के एन्टिबायोटिक्स बनाती हैं।
  128. इन ऐन्टिबायोटिक्सों को मधुमक्खियों द्वारा उनके प्रयोग के आधार पर 6 वर्गों में बांटा गया है। वे निम्नलिखित प्रयोग में लाए जाते हैं :
  129. उनके शरीर को ढंकने के लिए।
  130. छत्ते को पंक्तिबद्ध करने के लिए।
  131. पराग में मिलाने के लिए।
  132. रानी मक्खी के आहार में मिलाने के लिए।
  133. शहद में मिलाने के लिए।
  134. मधु-मोम में मिलाने के लिए।
  135. शायद यह इस बात को स्पष्ट करता है कि शहद मनुष्य की अंतड़ी तथा पेट के लिए इतना शामक तथा रोगहर क्यों है ?
  136. रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी में खनिज तत्व की कमी आ गई है। फलस्वरूप ऐसी मिट्टी में पैदा की गई तथा बाद में खायी गयी फसलों में पहले की अपेक्षा कम खनिज तत्व होते हैं । चिकित्सकों का कहना है कि यह आज इतने अधिक रोग होने का कारण हो सकता है।
  137. शहद के उत्पादन में यह देखा गया है कि मधुमक्खियां उपजाऊ मिट्टी में – विशेषकर प्राकृतिक खाद मिट्टी में पैदा की जाने वाली फसलों से मकरन्द एकत्र करने में तीव्र अभिलाषा रखती हैं । निकटवर्ती क्षेत्रों में इस ढंग से उगायी गयी फसलों के मामलों में कि एक फसल को प्राकृतिक खाद मिट्टी तथा दूसरी फसल को कृत्रिम उर्वरक मिलता है, मधुमक्खियां हमेशा मकरन्द एकत्रित करने के लिए पहली फसल को चुनती हैं। इसलिए यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि शहद अदूषित होता है।
  138. फोड़ों तथा बाहरी घावों के इलाज में भी शहद का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  139. सुदूर पूर्वी देशों में फोड़ों के इलाज के लिए शहद का नियमित रूप से इस्तेमाल किया गया है। साबुन में मिलाकर फोड़े पर लगाने से शहद उसमें विद्यमान मवाद तथा नमी को शीघ्र खींचता है तथा उसके द्वारा शरीर को साफ करता है।
  140. शहद तथा सफेद आटे को बराबर मात्रा में मिलाकर एक दूसरा मलहम तैयार किया जा सकता है। मिलाने के लिए थोड़ा पानी प्रयोग किया जा सकता है। तैयार मलहम गाढ़ेपन में मोटा, न कि तरल, होना चाहिए। यह शहद मलहम खून बहना बंद करता है।
  141. जले हुए भाग पर शहद तुरंत लगाने से छाले नहीं पड़ते हैं। यह जलन भी कम करता है तथा विषाक्त दशाओं की रोकथाम करता है शहद के नियमित प्रयोग से जलने से पड़े हुए दाग प्रायः अदृश्य हो जाते हैं । जलने के गंभीर मामलों में भी शहद के नियमित उपयोग से दाग के पड़ने से बचा जा सकता है।
  142. मधु-मोम का सैकड़ों वर्षों से इस्तेमाल किया जा रहा है। प्राचीन भारतीय चिकित्सक फोड़ों के इलाज के लिए – “सिरोमल” नामक मिश्रण
  143. का प्रयोग करते थे। सिरोमल चार भाग पानी में एक भाग मधु-मोम मिलाकर तैयार किया जाता था।
  144. कफनिस्सारक के रूप में कफ मिश्रण शहद में एक उत्कृष्ट सम्बद्ध तत्व मुहैया करता है शहद कफनिस्सारक के रूप में काफी असरदार होता है।
  145. शहद तथा नींबू रस को बराबर मात्रा में मिलाकर तथा धीमी आंच पर गरम करके लेना गले के लिए अच्छा होता है। बच्चों को इस मिश्रण को बराबर मात्रा में पानी मिलाकर पतला करके देना चाहिए।
  146. घर के बने कफ सीरप का दूसरा नुस्खा इस प्रकार है : एक कप शहद (अधिमानतः गाढ़ा शहद) में एक चम्मच अदरक तथा एक नींबू का रस मिलाएं। इस मिश्रण को 15 मिनट तक उबलने दें।
  147. राहत के लिए यह सीरप हर एक या दो घंटे पर एक या दो चम्मच लिया जाना चाहिए। गरम दूध के साथ शहद गल-शोथ के लिए अच्छा होता है।
  148. प्याज से निचोड़ा रस भी गले की खराबी में प्रयोग किया जा सकता है। मिश्रण प्रकार तैयार किया जाए।
  149. एक गिलास पानी गरम करें। इसमें नींबू के आकार के प्याज का रस मिलाएं। पानी की लगभग आधी मात्रा के बराबर शहद मिलाएं। इस घोल को शहद के पूरी तरह घुल जाने तक पकाएं। एक-एक घंटे पर एक चम्मच या यह मिश्रण लेने से गले की लाल श्लेष्मल झिल्लियों में और जलन नहीं होने पाती है।
  150. दमा जैसी श्वसनी बीमारियों में भी शहद यानि मधु पंचामृतसे राहत मिलती है… दमा रोगी की नाक के नीचे एक सुराही शहद इस ढंग से रखा जाए कि जब वह सांस अंदर खीचे तो शहद का सम्पर्क होने से उसकी श्वसन क्रिया आसान हो जाए । ऐसी अंतः श्वसित हवा श्वसन क्रिया को गहरी तथा अधिक आरामदायक बनाती है।
  151. शहद का यह प्रभाव लगभग एक घंटे तक रहता है। लेकिन राहत अकसर तात्कालिक होती है। दमा के इलाज के लिए सबसे अच्छा शहद कोनिफर से भरपूर पहाड़ी ढालों पर मधुमक्खियों द्वारा लगाए गए छत्तों से प्राप्त शहद होता है।
  152. जर्मन वैज्ञानिकों ने इस चमत्कार का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण दिया है। उनके अनुसार शहद में “उच्च” अल्कोहल तथा ईथरीय तेल का मिश्रण होता है। इनके द्वारा निस्सरित वाष्प निरोगियों के लिए दुर्ग्राह्य होते हैं लेकिन दमा रोगियों के लिए स्पष्टतया शामक तथा फायदेमंद होते हैं।
  153. एक कप खौलते पानी में एक या दो चम्मच शहद मिलाकर उसे गरमागरम पीने से दमा के रोगियों को काफी राहत मिलती है तथा वे तरोताजा महसूस करते हैं।
  154. गठिया तथा संधिवात के लिए उपयोगी मधु…काफी लम्बे समय से गठिया तथा संधिवात से ग्रस्त लोगों ने स्वयं को मधुमक्खियों द्वारा डसा करके राहत प्राप्त की हैं। हालांकि यह उपचार असरदार था लेकिन एक अंधविश्वास के रूप में इसे अस्वीकार कर दिया गया ।
  155. फिर भी इतने तिरस्कारपूर्ण ढंग से अस्वीकार कर दिए गए इन उपचारों में प्रयोगों से ठोस वैज्ञानिक आधार पाए गए हैं। कैसेल, जर्मनी के डॉ. हीरमैन ने 1936 में एक चिकित्सा पत्रिका में लिखा कि शहद कि शहद में निष्प्रभावक एसिड होते हैं। ये एसिड संधिवात के अलावा गठिया, मांसपेशी अपक्षय, स्नायु बीमारियों में विशेष रूप से असरदार पाए गए। मीठे स्वाद के कारण शहद को अन्य दशाओं की अपेक्षा लेना आसान होता है।
  156. हाल के वर्षों में मधु-मोम के उपचारात्मक गुणों का भी पता लगाया गया है। गठिया रोगियों के हाथों तथा पैरों पर गरम मधु-मोम लगाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
  157. अच्छे रंग-रूप के लिए….नियमित रूप से शहद के सेवन से रंग-रूप में निखार आता है। मध्यम आकार के एक नींबू के रस के साथ एक चम्मच शहद प्रतिदिन सुबह नाश्ते के पहले लेने से रंग-रूप साफ रहता है। इससे वजन कम करने में भी सहायता मिलती है।
  158. शहद लोशन भी घर पर बनाया जा सकता है। यह लोशन त्वचा को सुंदर बनाने के अलावा उसे ताजा बनाता है तथा उसका पोषण भी करता है। यह लोशन दो चम्मच छने हुए शहद में एक चम्मच बादाम का तेल मिलाकर तैयार किया जा सकता है।
  159. त्वचानिखार है मधु….त्वचा को पहले गरम पानी तथा साबुन से अच्छी तरह साफ किया जाना चाहिए। इसके बाद यह लोशन चेहरे पर लगाया जाना चाहिए तथा उसे आधे घंटे तक रहने देना चाहिए। इसके बाद उसे मुलायम कपड़े तथा गुनगुने पानी से हटाना चाहिए। लोशन को हटाने के बाद एक नरम स्तम्भक लगाया जाए। इससे रोमकूपों को बंद करने में सहायता मिलती हे तथा त्वचा में निखार आता है।
  160. साफ-सुथरे रंग-रूप के लिए उपयुक्त दूसरी विधि शहद मास्क है । इस मास्क के लिए आपको एक-एक चम्मच शहद तथा सफेद आटा मिलाना होता है। इसमें गुलाब जल की कुछ बूंदें भी डाली जा सकती हैं।
  161. गुलाब जल की मात्रा आवश्यक गाढ़ेपन तथा चिकनेपन पर निर्भर करती है। इस लेप को चेहरे पर सावधानी से लगाना चाहिए तथा 30 मिनट तक रहने देना चाहिए। इसे मुलायम कपड़े का प्रयोग करते हुए ठंडे पानी से धो देना चाहिए। साफ-सुथरे रंग-रूप के लिए इस मास्क को एक माह तक सप्ताह में दो बार लगाना चाहिए।
  162. वजन कम करने के लिए…शहद वजन कम करने में उपयोगी होता है। यह विश्वास प्राचीनकाल से ही अकाट्य है। हमें यह समझने के लिए कि शहद ऐसे मामलों में कैसे लाभप्रद होता है, हमें यह समझना जरूरी होगा कि शरीर के भीतर चीनी का क्या होता है।
  163. यह देखा गया है कि चरबी तथा चीनी दोनों उर्जा उत्पन्न करने वाले आहार से युक्त कार्बन हैं । आक्सीजन के सम्पर्क में आने पर वे जल उठती । हैं जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती है ।
  164. यह देखा गया है कि चरबी की अपेक्षा चीनी अधिक शीघ्र जलती है तथा शीघ्र ऊर्जा उत्पन्न करती है। मोटे लोगों में, चरबीदार ऊतक अधिक होने के कारण ऊर्जा धीरे-धीरे प्राप्त होती है क्योंकि चरबी धीरे-धीरे जलती है। शहद खाने से यह प्रक्रिया तेज हो जाती है क्योंकि वह तीव्र दहन उत्पन्न करता है तथा चरबी को समाप्त करता है।
  165. .बदहजमी के लिए….शहद एक अप्रदाहजनक आहार है!
  166. मधु पंचामृत… पेट में फर्मेन्ट नहीं होता है या गैस पैदा नहीं करता है । अतएव यह जठर-शोथ, बदहजमी तथा अम्लपित्त के मामलों में लाभदायक होता है!
  167. मधु पंचामृत…मिचली के मामलों में भी लाभदायक होता है । आधा-आधा चम्मच अदरक का रस, नींबू रस तथा शहद एक में मिलाकर लेना मिचली तथा चक्कर आने की बीमारियों के मामलों में लाभकारी सिद्ध होता है।
  168. मधु पंचामृत…ऊर्जादायक होता है। अतएव जब लगातार उलटी आने से पेट कोई भी आहार ग्रहण करने में असमर्थ हो तो ऐसे मामलों में इसे लिया जा सकता है!
  169. जयरनाशक मधु पंचामृत…बुखार में सामान्य पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है तो यह ऐसे मामलों में भी ऊर्जा प्रदान करता है।
  170. थोड़ा-सा घी मिलाकर मधु-मोम को उसके पिघलने तक गरम किया जाना चाहिए । जब इस मिश्रण को एक गिलास गरम पानी में मिलाकर लिया जाता है तो कब्ज को कम करने में सहायता मिलती है।
  171. मधु पंचामृत बच्चों के लिए…यदि बच्चों को प्रारंभिक आयु से ही यह मधुरन दी जाती है तो उनमें शहद के प्रति रूचि विकसित हो सकती है।
  172. शहद बच्चों को कई रूपों में फायदा पहुंचाता है। शिशुओं तथा छोटे बच्चों में केल्सियम के प्रतिधारण में सहायता करके यह स्वस्थ दांतों तथा मजबूत अंगों के विकास में योगदान देता है।
  173. शहद बिस्तर पर पेशाब रोकने के लिए विशेषकर प्रभावी होता है। यह उसके आर्द्रताग्राही स्वरूप के कारण है।
  174. उपचार शुरू करने के पहले कुछ पूर्व शतें पूरी की जानी चाहिएं। सर्वप्रथम, उपचार अहानिकर होना चाहिए। उपचार में प्रयुक्त पदार्थ कुछ निश्चित समय तक या लम्बे समय तक प्रभावी ढंग से काम करने में समर्थ होने चाहिएं।
  175. शहद इन पूर्व शर्तों को पूरा करता है। इसका मधुर स्वाद बच्चों में इसे लोकप्रिय बना सकता है। अतएव बच्चों को सोने के समय एक चम्मच शहद दिया जाना चाहिए।
  176. सोने के दौरान बच्चे के शरीर में विद्यमान तरल को खींचने तथा रोकने के अलावा यह एक “शमक” के रूप में भी काम करता है। अतिरिक्त तरल को रोक रखने से गुरदों पर भी अतिरिक्त भार नहीं पड़ पाता है ।
  177. शहद रक्त में रूधिर वर्णिका (हेमोग्लोबीन) तथा लोहिताणुओं का उचित संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।
  178. रुधिर वर्णिका लोहे का एक यौगिक है-मधु पंचामृत… वह आक्सीजन खींचती है तथा उसे सम्मिश्रित करती है । रक्त लोहिताणु शरीर के विभिन्न भागों में आक्सीजन पहुंचाने का काम करते हैं।
  179. रक्त लोहिताणुओं का विनाश तथा नवजीवन एक सतत् प्रक्रिया है। रक्त लोहिताणुओं के स्तर में कमी से रक्तक्षीणता (अनीमिया) हो जाती है।
  180. डॉ. पॉल एमिरिक ने शहद के इस गुण को यूरोप में सिद्ध किया था। उन्होंने आयु, गठन तथा रक्त में रूघिरवर्णिका तत्व में समान बच्चों के छः ग्रुप चुने । ये बच्चे सामान्य जीवन स्तर वाले परिवारों से थे। हरेक ग्रुप में दो बच्चे थे।
  181. एक बच्चे को केवल दूध दिया जाता था जबकि दूसरे को शहद और दूध दिया जाता था । परिणामों के अनुसार शहद लेने वाले ग्रुप में रूधिरवर्णिका तत्व में अधिक वृद्धि पायी गयी।
  182. बेरी बेरी के लिए…यह रोग विटामिन बी की कमी के कारण होता है। बेरी-बेरी के पुराने मामले आंखों को प्रभावित करते हैं जिससे ग्लूकोमा हो जाता है।
  183. ऐसे मामलों में सुबह ताजे दूध (उबाले बिना) के साथ एक चम्मच शहद लेने की सलाह दी जाती है । पुनः 15-20 मिनट के बाद ठंडा दूध (उबाला तथा ठंडा किया गया) लिया जाना चाहिए ।
  184. इस अवधि के दौरान अहार बिल्कुल सीमित होना चाहिए । नींबू, शलजम, मूली इत्यादि की सलाह दी जाती है। शहद के साथ इन सब्जियों का रस लेना फायदेमंद होता है। भोजन प्रतिदिन एक ही समय पर किया जाना चाहिए।
  185. मधु पंचामृत आंख के रोगों के लिए…आंख के लगभग सभी प्रकार के रोग शहद के प्रयोग से एक सीमा तक ठीक किए जा सकते हैं। सामान्यतः शहद को “आईड्राप्स” के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्रारंभ में जलन महसूस होती है तथा आंखों से पानी निकलता है। फिर भी नियमित उपयोग से नेत्र ज्योति बढ़ती है। कमल के फूलों के मकरन्द से प्राप्त शुद्ध शहद आंख की बीमारियों के इलाज में लाभदायक होता है।
  186. कान की बीमारियों के लिए…एक या दो बूंध गरम शहद कान में डालने से छूत के कारण मवाद बनना बंद हो जाता है।
  187. पाइरिया तथा दंत चिकित्सा के लिए…शहद एक स्फूर्तिदायक एजेंट के रूप में काम करता है। दिन में दो । बार 10 मिनट तक मुंह में शहद रखने से दांतों तथा मसूड़ों की समस्याएं दूर की जा रकती हैं। पाइरिया के मामले में दांत को शहद से साफ करना तथा मंसूड़े पर शहद रगड़ना फायदेमंद होता है।
  188. मूत्र विकार के लिए…(गुरदे में पथरी सहित) शरीर की उत्सर्जन प्रणालियों को उचित रूप से काम करना चाहिए जिससे शरीर का क्रियाकलाप समुचित रूप से चले । गुरदों के अच्छी तरह काम न करने से मूत्र मार्ग में मूत्राम्ल का अधिक संचयन हो जाता है। यही बाद में आगे चलकर पथरी का रूप धारण कर लेता है।
  189. आहार में शहद का नियमित समावेश इस समस्या को दूर करता है। रक्त शोधक के रूप में कार्य करते हुए शहद शरीर को स्वच्छ रखने में सहायक होता है।
  190. क्षय रोग (तपेदिक) के लिए…क्षय रोगी कमजोर पाचन प्रणाली से पीड़ित होते हैं। उनके लिए शहद आदर्श आहार है। शहद न केवल आसानी से पच जाता है बल्कि यह तात्कालिक ऊर्जा भी प्रदान करता है।
  191. शहद रक्त को शुद्ध करता है तथा नई रक्त कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा देकर उसे नया बनाता है। अतएव शहद रक्त कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा देकरउसे नया बनाता है । अतएव शहद सुबह तथा शाम दोनों समय लिया जाना चाहिए।
  192. शरीर की प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने के लिए तथा कार्बनिक तत्वों और खनिजों की कमी को पूरा करने के लिए मक्खन या घी के साथ शहद लेने की सलाह दी जाती है। यह सम्मिश्रण चिकित्सक की सलाह पर ही लिया जाना चाहिए।
  193. ऐंठन के लिए मधु पंचामृत……शहद का नियमित सेवन ऐंठन के प्रभाव को कम करता है । ऐंठन सामान्यतः उस समय होती है जब रक्त में विद्यमान कैल्सियम निम्न स्तर पर होता है जबकि फास्फोरस स्तर उच्च होता है। शहद का सेवन करने से आवश्यक स्तर रक्त में आ जाते हैं।
  194. इस प्रकार शहद मनुष्यों की विविध रूपों में फायदा पहुंचाने के अलावा मुख्यतः ऊर्जा प्रदान कर एक मूल्यवान वस्तु के रूप में करत है
  195. क्रोमोथिरेपी में शहद.. क्रोमोथिरेपी प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है जो रंगों के “रोगहरी गुणों” का उपयोग करती है। हमें बिल्कुल ज्ञात नहीं है कि सभी रंगों में कुछ विशेषताएं होती हैं जो हमारी शारीरिक तथा भावात्मक दशाओं को विभिन्न रूपों में प्रभावित करती हैं।
  196. रंगों के विभिन्न गुणों के अध्ययनों से कई स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में उनके उपयोग की शुरूआत हुई है।
  197. क्रोमोथिरेपी सामान्यतः इस प्रकार की जाती है! रोगी को विशिष्ट रंगीन प्रकाश के प्रभाव में रखना। 2. विशिष्ट रंगीन प्रकाश के प्रभाव में रखे या सौरीकृत आहार या तरल के सेवन द्वारा
  198. पानी, दूध, चीनी, शहद इत्यादि को अपेक्षित रंग के बोतलो में इन पदार्थों को रखकर तथा आवश्यक समय तक उन्हें धूप के प्रभाव में रखकर सौरीकृत किया जा सकता है।
  199. ये सौरीकृत तत्व मुख्यतः उपभोग किए जाते हैं । पानी की तुलना में शहद लम्बे समय तक रखा जा सकता है। इसके रोगहरी गुण लम्बे समय काल तक बने रहते हैं।
  200. सौरीकरण की विधि…एक रंगीन बोतल लें तथा उसे अच्छी तरह से साफ करें। सफाई में किसी रसायन या साबुन का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। बोतल को धूप में 2-3 घंटे तक सूखने दें।
  201. जब बोतल सूख जाए और उसमें लेशमात्र भी नमी न रह जाए तो उसमें दो-तिहाई तक शहद भरें तथा काग लगा दें । बोतल का मुंह बोतल के समान रंग वाले सेलोफेन पेपर से बंद कर दिया जाना चाहिए । इसे बाह्य पदार्थों से मुक्त होना चाहिए।
  202. अब बोतल बिन पालिश के लकड़ी के तख्ते पर रखी जाए । उसे एक सप्ताह तक लगातार धूप में रखा जाए । शहद अब सौरीकृत हो जाता है तथा दवा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है ।
  203. यह शहद दुग्ध शर्करा (जिसका होमियोपैथी में भरपूर प्रयोग किया जाता है) की अपेक्षा अधिक फायदेमंद होता है क्योंकि इसे तंत्र में आसानी से आत्मसात् किया जा सकता है। इस प्रकार शहद तुरंत राहत पहुचाता है ।
  204. प्रयुक्त रंगीन बोतल के आधार पर सौरीकृत शहद उस रंग के गुणों को प्राप्त कर लेता है। अतएव प्राथमिक रंगों लाल, हरा, नीला तथा पीला का अध्ययन करना युक्तियुक्त होगा।
  205. लाल रंग शरीर को ऊर्जा तथा ओजस्विता प्रदान करता है। यह रक्त संचरण को बढ़ावा देता है तथा इंटर्टिया को दूर करने में सहायक होता है । विभिन्न रोगों में रोगियों को लाल प्रकाश के वर्ण चिकित्सीय उपचारों के माध्यम से फायदा हुआ है। इन रोगों में रक्तक्षीणता (अनीमिया), रक्त रोग, क्लाति, सर्दी, लकवा तथा क्षय रोग शामिल हैं।
  206. लाल रंग श्वसनी-दमा, नमूनिया जैसी बीमारियों में भी लाभदायक होता है । यह मंद क्रमाकुंचन (पेरिस्टैलसिस), बच्चों में मंद विकास, मंद ओजस्विता दशाओं तथा उन्मत्त विषाद में उपयोगी होता है। चिरकालिक घावों को भरने के अलावा यह प्रसुप्त ऊतक क्रिया को उद्दीपित करता है तथा हाथ और पैर को ठंडा होने से बचाता है।
  207. उत्तेजक, भावुक या विकल व्यक्तियों पर लाल रंग चिकित्सा का प्रयोग कभी नहीं किया जाना चाहिए।
  208. लाल रंग रीढ़ के मूल में स्थित सूक्ष्म केन्द्र को उद्दीप्त करता है। इससे रूधिरवर्णिका कणिकाएं बढ़ती हैं । इसलिए शरीर का तापमान बढ़ जाता है, ऊर्जा मुक्त हो जाती है तथा श्लेष्मा (म्यूकस) परिक्षिप्त हो जाता है। यह प्रकीर्णन श्लेष्मा बनाने वाले सभी रोगों के फैलाव की रोकथाम करता है।
  209. 7 लाल रंग चिकित्सा के लिए प्रयुक्त शीशे में लोहा, जिंक, तांबा, विस्मथ, ब्रोमाइन, फेरस आक्साइड, अमोनियम कार्बोनेट इत्यादि जैसे कुछ खनित्व तत्व होने चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि लाल रंग इन खनिजों से विकिरित होता है।
  210. भोजन में लाल रंग के आहार मिलाकर लाल रंग चिकित्सा को बढ़ाया जा सकता है। इनमें से कुछ हैं – चुकन्दर, मूली, लाल बंदगोभी, पालक, बैंगन, टमाटर, चेरी जैसे लाल छिलके वाले फल तथा कुछ लाल बेरियां। समान रंग के आहार लिए जाने पर रंग चिकित्सा को अतिरिक्त शक्ति मिलती है।
  211. लाल सौरीकृत शहद दिन में 2-4 बार लिया जाना चाहिए। खुराक 1-2 चम्मच होनी चाहिए लेकिन दशाओं के आधार पर बढ़ायी जा सकती है। शहद को उसी रूप में या 2 औंस पानी मिलाकर पतले रूप में लिया जा सकता है।
  212. रक्तक्षीणता के लिए दूसरा नारंगी रंग 30 मिनट तक तिल्ली पर विकिरित करना होता है। धूप वाले दिनों में सूर्य की शक्ति दोपहर में विशेषकर लाभदायक होती है। ऐसे समयों में धूप एक लाल परदे के माध्यम से पैर के तलवे पर फोकस की जानी चाहिए।
  213. उपचार सामान्यतः 10 मिनट तक रोगी के ऊपर हरे या नीले प्रकाश को विकिरित करके समाप्त किया जाता है। ऐसा उत्पन्न होने वाले अवांछित या ज्वलनशील प्रभावों से बचने के लिए किया जाता है।
  214. नीला रंग अपने शामक गुणों के लिए विख्यात है। यह एक शामक तथा स्तम्भक के रूप में भी काम कर सकता है।
  215. विभिन्न धातुएं नीले रंग का विकिरण करती हैं इनमें शीशा, रांगा, कोबाल्ट, तांबा, निकल जिंक, केडिमियम, अल्मुनियम तथा मैंगनीज शामिल हैं। नीले रंग का विकिरण करने वाले कुछ रसायनों में फास्फोरिक एसिड, टैनिक एसिड, आक्सीजन, क्लोरोफार्म शामिल हैं। यह आवश्यक है कि उपचार के लिए प्रयुक्त नीले शीशे में तांबे तथा अमोनियम सल्फेट का आक्साइड होना चाहिए। ,
  216. उपचार अनुक्रम के दौरान भोजन में जामुन तथा नीली बेरियों जैसे आहार होने चाहिएं।
  217. नीला रंग बुखार,हैजा, पीलिया, आनंज्वर, स्कारलेट ज्वर को नियंत्रित करता है । अन्य बीमारियां जिनमें राहत मिलती है, इस प्रकार हैं
  218. हिस्टीरिया, मिरगी, धड़कन, अतिपाती संधिवात, कै, पेचिश, सिर दर्द, अनिदा, स्नायविक खराबी, सदमा, खसरा तथा चेचक ।
  219. गले की सभी प्रकार का खराबियों (बीमारियों) में नीला रंग चिकित्सा से विशेषकर फायदा होता है । हरेक आधे घंटे पर आधा गिलास नीला सौरीकृत पानी पीने से स्वरयंत्रशोथ अच्छा हो सकता है। इस पानी से कुल्ला करने से भी फायदा होता है।
  220. आराम मिलने तक हरेक घंटे पर आधे चम्मच नीले सौरीकृत शहद का सेवन सौरीकृत पानी के प्रभावी विकल्प के रूप में काम करता है। इसके साथ नीला प्रकाश गले पर डालना चाहिए। आवाज फटना दूसरी शिकायत है जिसे नीला रंग चिकित्सा से ठीक किया जा सकता है। अपनायी जाने वाली प्रक्रिया इस प्रकार है श्वसन अभ्यास के बाद प्रतिदिन सुबह में 30 मिनट तक गले पर नीला प्रकाश फोकस किया जाना चाहिए। –
  221. उपचार में सौरीकृत पानी या शहद पीना शामिल है। जब सौरीकृत पानी उपचार प्रक्रिया में प्रयोग किया जाता है तो यह पानी सुबह में तथा फिर दोपहर में तीन बार आधा-आधा गिलास लिया जाना चाहिए। इस पानी से कुल्ला करना भी लाभदायक होता है । यदि पानी के बजाय सौरीकृत शहद लिया जाता है तो दिन में चार बार एक-एक चम्मच लिया जाना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो इस सौरीकृत शहद को पतला किया जा सकता है।
  222. नीले सौरीकृत पानी से कुल्ला करने के साथ-साथ प्रतिदिन 30-45 मिनट तक गले पर नीले प्रकाश के फोकस से घेघे को राहत मिलती है।
  223. इस उपचार के माध्यम से राहत प्राप्त कररने वाली कुछ अन्य शिकायतें विस्फोटक बुखार हैं पेचिश के लिए नीली बोतल में रखे तथा दस मिनट तक सौरीकृत दूध लेने की सलाह दी जाती है। पीलिया तथा धड़कन में नीले पानी के सेवन की सलाह दी जाती है। शिशुओं को कुछ घंटे तक नीले प्रकाश में रखने से प्रारंभिक कठिनाइयां कम हो जाती हैं।
  224. पीला…पृथ्वी पर पहुंचने वाली सूर्य की किरणें रंग में पीली होती हैं। गहरी सांस लेते हुए एक खुली खिड़की के सामने प्रातःकाल में इस पीले प्रकाश में खड़ा होना बहुत लाभदायक होता है। पीली किरणों में घनात्मक मैग्नेटिक धाराएं होती हैं। ये स्नायुओं को मजबूत बनाती हैं तथा मानसिक और तार्किक क्षमताओं को ये स्नायुओं को ओजस्विता प्रदान करती हैं।
  225. पाचन तथा जिगर की बीमारियों, मधुमेह तथा चर्म रोगों में पीत रंग चिकित्सा से लाभ मिलता है।
  226. प्रतिदिन 30 मिनट तक सौर चक्र के क्षेत्र पर फोकस किया गया पीला प्रकाश एक सप्ताह के भीतर व्यक्ति की दशा में पर्याप्त सुधार लगता है। कब्ज, बदहजमी, मधुमेह तथा स्नायु संबंधी दुर्बलता जैसी बीमारियों में पीत रंग चिकित्सा की सलाह दी जाती है। इन बीमारियों के लिए सौरीकृत शहद या पानी प्रत्येक सुबह तथा रात में 30 मिनट तक नाभि पर फोकस किया जाना चाहिए ।
  227. भोजनों के बीच दो चम्मच सौरीकृत शहद लेने की सलाह दी जाती है। यदि शहद के बजाय पानी लिया जाता है तो सौरीकृत पानी लगभग 4 औस लिया जाना चाहिए।
  228. पक्षाधात यानी लकवा मुख्यतः नसों का रोग है। नसें कार्य करने की अपनी क्षमता खो देती हैं। पक्षाघात के लिए मेरूरज्जु के पश्चकपाल तथा ग्रीवा क्षेत्रों और अधरागंधात के लिए कटि तथा सेक्रमी क्षेत्रों पर फोकस किया गया पीला प्रकाश एक प्रभावी उपचार है।
  229. कुछ अपस्मारी बीमारियों में स्नायु ऊर्जा कम होती है पीला सौरीकृत पानी या शहद ऐसे समय में लाभदायक होता है ।
  230. पीले रंग के फल तथा सब्जियों में खीरा, कद्, केला, पपीता, आम तथा लोकाट शामिल हैं।
  231. हरा प्रकृति का रंग है । यह रंग मस्तिष्क तथा शरीर में संतुलित शक्ति तथा प्रगति सूचित करता है । यह स्नायु तंत्र पर शामक प्रभाव रखता है तथा तंत्र में सामंजस्य स्थापित करता है।
  232. हरे रंग की श्रेणी के अंतर्गत आने वाले आहार में अधिकांशतः हरी सब्जियां शामिल हैं। नींबू परिवार के फल तथा अन्य फल, जो प्रतिक्रिया , में अम्लीय या क्षारीय नहीं होते हैं, इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
  233. विभिन्न तत्व हरे रंगों का विकिरण करते हैं। इनमें सोडियम, तांबा, । निकल, क्रोमियम, कोबाल्ट, प्लैटिनम, अल्मुनियम, कार्बन, नाइट्रोजन, कलोरोफिल तथा हाइड्रोक्लोरिक एसिड शामिल हैं। .
  234. हरा रंग हृदय की बीमारियों, रक्त चाप, अल्सर, कैंसर, सिर दर्द, तंत्रिकाति, प्रतिश्याय इत्यादि में आराम पहुंचाता है।
  235. खुजली, एकज़िमा, परिसर्प जैसे चर्म रोगों में इस उपचार के माध्यम से राहत मिलती है। आतशक, एराइजपैलिस भी हरे रंग से ठीक किये जा सकते हैं।
  236. अल्प रक्त चाप के मामलों में हरा प्रकाश 30 मिनट तक हृदय पर फोकस किया जाना चाहिए। इसके साथ-साथ भोजनों के बीच में हर घंटे पर एक-एक गिलास सौरीकृत पानी लिया जाना चाहिए ।
  237. यदि पानी के बजाय शहद लिया जाता है तो 1-2 चम्मच शहद दिन में चार बार लिया जाना चाहिए।
  238. उच्च रक्त चाप के मामलों में भी यही उपचार किया जाना चाहिए लेकिन हरे रंग के हल्के रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  239. हरे प्रकाश पर देखने मात्र से तंत्रिकीय सिर दर्द में प्रायः आराम मिलता है । एक घंटे तक हरे प्रकाश में बैठने से परिक्लांत स्नायुओं को नयी शक्ति प्राप्त होती है।
  240. व्रण भी हरे रंग के प्रकाश उपचार से प्रभावी ढंग से अच्छे किए जा सकते हैं। यह उपचार लम्बे समय तक किया जाना चाहिए।
  241. हरे प्रकाश की चिकित्सा घावों को भरने में भी सहायक होती है। सौरीकृत शहद घावों, जलन इत्यादि के लिए एक मलहम के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  242. क्रोमोथिरेपी में इन चार प्राथमिक रंगों लाल, हरा, नीला तथा , पीला के अलावा कई अन्य रंगों का प्रयोग किया जा सकता है। इन रंगों के विभिन्न संयोजन गौण रंग उत्पन्न करते हैं । इन रंगों में उन्हें बनाने के लिए प्रयुक्त प्राथमिक रंगों के संयुक्त लाभ समाविष्ट होते हैं।

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