- बस एकादशी को चावल न खाएं। यह जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें..
- वैदिक धर्मग्रन्थों के मुताबिक जो भी प्राणी वर्ष के २४ एकादशी व्रत रखता है।
- वह जीवन में कभी भी स्वास्थ्य तथा समृद्धि जैसी परेशानियों या संकटों से नहीं जूझता और उसके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।
- विष्णु पुराण के अनुसार तन-मन को स्वस्थ्य रखने और शरीर की सुंदरता के लिए एकादशी का व्रत सभी को करना चाहिए।
- स्कंदपुराण के व्रत-उपवास खण्ड में बताया है कि अनेकों समस्याओं से बचने तथा परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ाने हेतु एकादशी व्रत बहुत महत्वपूर्ण है।
- यह व्रत महीने में दो बार आता है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद।
- पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं।
- कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत से पितरों-पूर्वजों की कृपा प्राप्त होती है।
- वंश की वृद्धि तथा सन्तान सुयोग्य प्राप्त होती है।
- ऐसे ही शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत पितृमातृकाओं एवं मातृमात्रकाओं की प्रसन्नता एवं उनकी मुक्ति के लिए किया जाता है।
- धन की वृद्धि, खुशहाल जीवन के लिए यह बहुत जरूरी है।
- कुछ धनाढ्य परिवारों में आज भी मान्यता है कि जब परिवार का कोई सदस्य मृत्यु को प्राप्त होता है,
- तो वे 11 माह तक एकादशी व्रत मृतात्माओं को समर्पित कर देते हैं।
- अलग-अलग होती है-एकादशी…
- पद्मपुराण में भी एकादशी व्रत के बारे में पूरा एक अध्याय है।
- इसमें मोक्ष एकादशी, देवी एकादशी, उत्पन्ना एकादशी, रमा और सफलता एकादशी के विषय पर विस्तार से लिखा है।
- भगवान विष्णुजी को महादेव का परम भक्त तथा मुख्य गण बताया है।
- भगवान शिव की कठोर तपस्या के फलस्वरूप ही श्रीहरि को सुदर्शन चक्र मिला था।
- इन्हें कमलनयन नाम भी भोलेनाथ ने ही दिया है।
- धरती के रक्षक भगवान श्री हरि ही क्यों?…
- श्रीविष्णुजी पृथ्वी पर प्राणी-पशुओं की देखभाल, रक्षा और धरती को हरा-भरा रखते हैं, इसीलिए इन्हें श्रीहरि भी कहा जाता है।
- पृथ्वी की रक्षा के लिए ही इन्होंने सर्वाधिक अवतार लिए हैं।
- श्रीकृष्ण, राम, परशुराम, भगवान बुद्ध इन्हीं के अवतार हैं।
प्रत्येक माह एकादशी व्रत करें, तो होंगे ये २४ चमत्कारी फ़ायदे…
【१】दुर्भाग्य दूर होकर सौभाग्य प्राप्त होता है,
【२】जातक को मुक्ति-मोक्ष मिलता है,
【३】विवाह बाधा समाप्त होती है,
【४】धन और समृद्धि आती है,
【५】मन को शांति मिलती है,
【६】व्यक्ति निरोगी रहता है, सभी रोगों का नाश होता है,
【७】पितरों को राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिलता है,
【८】पितृदोष, पितृमातृकाओं का श्राप दूर होता है तथा सभी शाप-पाप, विकार का नाश होता है,
【९】उलझनों-संकटों से राहत मिलती है,
【१०】सभी शुभ-सर्वकार्य सिद्ध होते हैं,
【११】मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है,
【१२】हर प्रकार के मनोरथ, मनोकामना पूर्ण होती हैं,
【१३】प्रसन्नता व खुशियां मिलती हैं,
【१४】सिद्धियां प्राप्त होने लगती हैं।
【१५】दुःख एवं उपद्रव शांत एवं गरीबी-दरिद्रता दूर होती है,
【१६】खोया हुआ धन-दौलत, सम्पदा सब कुछ फिर से प्राप्त हो जाता है,
【१७】पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है,
【१८】ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है,
【१९】सन्तान की प्राप्ति होती है,
【२०】मुकदमें में विजय होती है।
【२१】दुश्मन-शत्रुओं का नाश होता है,
【२२】यश-कीर्ति और प्रसिद्धि-ऐश्वर्य बढ़ता है।
【२३】 बुध व चन्द्रमा ग्रह का दोष मिटता है
【२४】एकादशी व्रत यदि 11 साल तक नियमित रखें, तो वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और हर कार्य में सफलता मिलती है।
एकादशी की कथा…
- श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार एक बार मानसिक तकलीफों से जूझ रहे धर्मराज युधिष्ठिर को चक्रधारी श्रीकृष्ण ने समस्त दुःखों,
- त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाने, हजारों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना करने वाले, चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाले एकादशी व्रत का विधान बताया था।
- यह व्रत सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक किया जाता है। भूलकर भी चावल न खाएं एकादशी व्रत में क्योंकि चावल का स्वरूप शिवलिंग की तरह होता है।
- देशी घी के दो दीपक जलाकर कम से कम 5 माला !!ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमःशिवाय!! का जप करें।
- एकादशी के दिन यथाशक्ति गाय-नन्दी, बैल, श्वान आदि को अन्न खिलाना चाहिए अन्य दान भी करना चाहिए।
- किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें।
- एकादशी व्रत में भूलकर भी न चावल या भात खाएं…क्यों?
- भारतीय परम्परा लगातार चलने वाला और तन-मन-अन्तर्मन को स्वस्थ्य रखने वाला मार्ग है।
- यह महान महर्षियों (प्रकृति वैज्ञानिक की खोज है। हमारे ग्रन्थ थोपी हुई रूढ़ि नहीं है।
- अगर तन्दरुस्त रहना है, तो प्राचीनता को ही सबसे बड़ी ओषधि मानकर चलें।p
- आयुर्वेदिक शास्त्रों एवं हरिवंश पुराण के अनुसार चावल यानि अक्षत और जौ को जीव मानते हैं।
- भगवान शिव के महान भक्त महर्षि मेधा ने चावल और जौ के रूप में धरती पर जन्म लिया।
- ऐसे ही परम् गुरुभक्त शनिदेव के आराध्य गुरु महर्षि पिप्लाद ने घनघोर तपस्या के फलस्वरूप महादेव से पीपल वृक्ष बनने का वरदान मांगा था।
- आप कभी गौर करना कि दुनिया में पीपल के पेड़ के नीचे सर्वाधिक शिवलिंग होते हैं।
- पीपल में ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों देवताओं का वास होता है।
- पीपल के पत्ते नाग फन के आकार के क्यों होते हैं।
- इस बारे में अलग लेख में बताया जाएगा।
- चावल को अक्षत भी कहते हैं…
- एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त के सेवन करने जैसा माना जाता है।
- मेधा हमारे ज्ञान, विवेक को भी कहते हैं। इसलिए ग्यारस के दिन चावल के भक्षण से बुद्धि भ्रष्ट कमजोर होने लगती है। जिससे हमारे निर्णय सटीक नहीं बैठते।
- ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया है कि- ब्रह्माजी के पसीने से एक बूंद गिरी, तो विशाल दांव बन गया और महादेव ..
- कि भक्ति कर महाशक्ति शाली होकर उत्पात मचाने लगा, तब भोलेनाथ ने उसे शिवलिंग रूप अक्षत में वास करें।
- साथ में यह भी कहा कि तुम्हारे पाप के कारण, तुम ग्यारस तिथि को कीड़े के रूप चावल में रहोगे।
- इसलिए ऐसा मानते हैं कि ग्यारस के दिन चावल का सेवन कीड़े के खाने के बराबर हैं।
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- यह परंपरा उत्तर भारत में ज्यादा है, क्योंकि यहां वैष्णव सम्प्रदाय को मानने वाले ज्यादा है।
- यह भगवान विष्णु की धरती है। दक्षिण को सदाशिव भूमि मानते हैं।
- महर्षि अगस्त्य ने इस शाप को दूर कर दिया था।
- दक्षिण में परम्परा है कि- शिवालय के दर्शन के बिना अन्न का दाना तक नहीं खाते।
- दक्षिण में गेहूं से भी करते हैं परहेज…क्यों?…
- दक्षिण भारत में गेहूं न खाने के पीछे मान्यता यह है कि-गेहूं का आकार योनि की तरह होता है।
- इसके उपभोग से आलस्य-प्रमाद, सुस्ती तथा सेक्सुअल विचार आते हैं।
- व्रतराज ग्रन्थ के मुताबिक…. ग्यारस को चावल के सेवन से मानसिक अशांति होती है। अवसाद यानि डिप्रेशन आने लगता है।
- शरीर में आलस्य बना रहता है। अकर्म के कारण के कारण भाग्योदय में रुकावट होती है।
- अतः ग्यारस का उपवास सभी सनातन धर्मियों को जरूर करना चाहिए। यह शरीर को स्वस्थ्य बनाये रखता है।
पितृदोष का शर्तिया उपाय…
- यदि पितृदोष है, तो 11 बार ग्यारस के व्रत करके अपने पितृ-पूर्वजों को अर्पित करें।
- इससे जीवन में अपार सफलता मिलने लगती है। यह आजमाया हुआ उपाय है।
- निराहार व्रत का सर्वाधिक महत्व है।
- चावल की चर्चा…
- दरअसल शास्त्रों में चावल को अक्षत कहा गया है। हम पूजा में चावल शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यह गलत है।
- अक्षत का अर्थ है, जो क्षत न हों अर्थात टूटे हुए न हों।
- दूसरी बात यह है कि यह धान्य कही जाती है।
- धन-धान्य की वृद्धि के लिए महीने में दोनों ग्यारह या एकादशी तिथि को चावल न खाने की सलाह दी जाती है।
- शिवतन्त्र, स्कंदपुराण एवं द्रव्यगुण सहिंता किताबों के अनुसार चावल का स्वरूप शिवलिंग की तरह होता है।
- एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है।
- ये भोलेनाथ के परम भक्त और मुख्य गण कहे जाते हैं।
- भगवान विष्णु के हाथ में स्थित सुदर्शन चक्र इन्हें महादेव की भक्ति से ही वरदान स्वरूप मिला था।
- सार यही है कि श्रीहरि विष्णु के कारण अपने आराध्य महाकाल के रूप में शिवलिंग स्वरूप चावल न खाने की परम्परा चल पड़ी हो।
- वैसे देखा जाए, तो दक्षिण भारत में ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब चावल न खाते हों। शास्त्रों की बाते पूर्णतः सत्य ही होती हैं।
- यदि यह मान्यता चली आ रही है, तो शायद इसमें कोई हानि नहीं होगी। एक दिन चावल न खाकर अपने पूर्वजों-,पितरों को प्रसन्न करें
- हमारे यहां भी बिगत 90 वर्षों से एकादशी या ग्यारस को चावल नहीं खाते हैं।
- अपने पितरों के निमित्त पूरा परिवार उपवास भी रखता है।
और कुछ जानकारी कहीं से मिली, तो विस्तार से बताएंगें।
एक बात और ध्यान रखें कि ईश्वर को नैवेद्य अर्पित करते हैं ….न कि प्रसाद या भोग। क्यों? यह जानने के लिए अमृतमपत्रिका गूगल पर सर्च करें।
बिहार राज्य के शेखपुरा ज़िला सामस ग्राम में नवादा रोड पर बरबीघा से 5 किमी दक्षिण की ओर बिहार शरीफ से 25 किमी दूर भगवान विष्णु की 1100 वर्ष प्राचीन प्रतिमा बहुत ही अद्भुत है।
- मूर्ति पर जिस प्रकार की लिपि उत्कीर्ण यानि खुदी हुई है। ऐसा मानते हैं कि यह खजाने का बीजक है।
- मूर्ति की वेदी पर प्राचीन देवनागरी में अभिलेख !!!!ॐ सूत्रधारसितदेव:’ उत्कीर्ण है! ऐसा बताते हैं।
- यह विष्णु मूर्ति देवी रूप में है। देवी एकादशी के दिन यहां लाखों लोग दर्शन करते हैं।
- भगवान श्रीहरि की इस विग्रह के दांए व बांए दो और छोटी मूर्तियां हैं।
- ये मूर्तियां शिव-पार्वती की हैं या शेषनाग और उनकी पत्नी हैं। पता नहीं लग रहा।
- सामस गांव व उसके पास गांवों में खुदाई के दौरान बड़ी संख्या में 1992 में तालाब की खुदाई के समय मूर्तियां मिलीं।
- ये सब सामस गांव के जगदंबा मंदिर में ही रखी गई हैं।
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