मन्त्र कैसे सिद्ध किये जाते हैं?

  • तमोगुण तथा रजोगुण से भरा मन ही दुर्मन कहा जाता है। मन्त्र जाप से सतोगुण में वृद्धि होती है। अवसाद या डिप्रेशन मिटता है।
    • बिना विधान के जपे मन्त्र भूत पूजा कही जाती है। बिना गुरु-मुख का मन्त्र जाप फलीभूत नहीं होता।
  • अतः आप जो मन्त्र अपनी किसी कामना पूर्ति के लिए जपना चाहते हैं वह मन्त्र ही उससे लेवें, जिसे गुरु बनाना है। यदि आपको कोई मन चाहा गुरु नहीं मिल रहा, तो भगवान शिव को गुरु मानकर उनकी ओर से गुरु मन्त्र ग्रहण कर लें।
  • स्कंदपुराण के अनुसार ब्राह्मणों के लिए शास्त्रीय विधान है कि बिना सन्ध्या किये हुए, उनका कोई जप, पाठ आदि सफल नहीं होता। बिना संध्या के वयः शुद्र से भी बदतर है।
  • मंत्र जाप में विधानों का महत्त्व…सर्वप्रथम स्नान करें। स्नान की आवश्यकता प्रातःकाल स्नान करने से मनुष्य शुद्ध होकर जप, पूजा-पाठ इत्यादि सभी कार्यों को करने योग्य हो जाता है।

दक्ष स्मृति में कहा गया है-

अत्यन्तमलिन:कायो,नवच्छिद्रसमन्वितः।

स्रवत्येष दिवारात्रौ ,प्रात:स्रानं विशोधनम्॥

  • अर्थात नौ छिद्रों वाले अत्यन्त मलिन शरीर से दिन-रात गंदगी निकलती रहती है ; इसलिए नित्य प्रातःकाल स्नान करने से दिन भर की अशुद्धि निकल जाती है।
  • आप जिस जल से स्नान करें, उसमें इन सात नदियों का आवाहन कीजिए और भावना कीजिए कि इन सातों पवित्र नदियों के जल से आप स्नान कर रहे हैं –

मन्त्र- गङ्गा च यमुना चैव, गोदावरि सरस्वती।

नर्मदा सिन्धु कावेरी,जलेऽस्मिन् सिलिधिं कुरु।।

  • विशेष- इस मन्त्र से इन सातों नदियों के स्नान का फल तो मिलता ही है, राष्ट्रीय भावना भी पुष्ट होती है।
  • भूमिशुद्धीकरण जिस स्थान पर बैठकर जप करना है, वह स्थान यदि पक्का है, तो पहले से ही धो लें और यदि कच्चा है, तो गाय के गोबर से लीप लें। एक बार का लिपा कच्चा स्थान ४-५ दिन काम देगा। पक्का स्थान नित्य पोंछे या धोयें ।
  • आसन – कुश, कम्बल, मृगचर्म, रेशम व व्याघ्रचर्म का आसन जप के लिए शुद्ध बताया गया है। इससे मन की एकाग्रता आती है। पुत्रवान् गृहस्थों के लिए मृगचर्म के शि उपयोग निषेध है।

“मृगचर्म प्रयत्नेन, वर्जयेत पुत्रवान् गृही।”

जल से आचमन भी करें।

शिखा बन्धन -चोटी में गाँठ लगाना। सिर में चोटी के नीचे सहस्रार चक्र होता है। चोटी में गाँठ लगाने से सहस्रार चक्र नियन्त्रित होता है। मन्त्र सहित आचमन करने से शरीर के शि अन्दर की शुद्धि होती है।

विशेष- पूजा-जप आदि कार्य भावना प्रधान होते है और जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरति देखी तिन तैसी!

  • संकल्प एक निश्चित प्रतिज्ञा होती है। प्रतिज्ञा करके मन नियन्त्रित होता है कि उसे इतना जप करना ही है। लाभ-इससे बैठने का स्थान कीटीणु रहित होकर शुद्ध हो जाता है।
  • पूजा से पूर्व प्राणायाम – इस क्रिया का लाभ सर्व विदित है। यह प्राण-वायु का व्यायाम है । मन्त्र जप करने पर प्राणवायु का प्रवाह मन्त्र की ओर हो जाता है, जिससे मन्त्र सफलता सुनिश्चित होती है।
  • न्यास करें… न्यास का अर्थ है रखना या स्थापित करना। इस क्रिया में मन्त्रों को शरीर के उन अंगों पर स्थापित किया जाता है। इससे शरीर मन्त्रमय हो जाता है।
  • इस मन्त्र का ध्यान करते हुए माथे पर तीन लकीरों वाला त्रिपुण्ड लगाएं..
  • मा नस्तोके तनये मा नऽआयुषि मा नौ गोषु मा नोऽअश्वेषु रीरिषः। मा नो वीरान् रुद्र भामिनो वधीहविष्मन्तःसदमित्त्वा हवामहे।।

अगर तिलक लगाना हो तो इस मन्त्र को बोलें

  • आदित्या वसवोरुद्रा, विश्वेदेवामरुद्गणाः। तिलकं ते प्रयच्छन्तु, धर्मकार्थ-सिद्धये ।।

4.6 हज़ार बार देखा गया

28 अपवोट देखें

3 शेयर देखे गए7 में से 1 जवाब

अपवोट करें

28

1

3

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *