Mother में से M हटा दो, तो
सारा सन्सार Other हो जाता है।
अमृतम पत्रिका से साभार
माँ का मान इतना क्यों है?…
■ जगत-जननी माँ जगदंबा जमीन
का जहर और वजन धारण करने
के कारण पूज्यनीय है।
■ माँ अन्नपूर्णा सम्पूर्ण चराचर जगत को
अन्न-धान्य और अन्य सुख देने से धन्य है।
कभी चाउमीन, मैगी,
कभी पिज्जा खाया।
पर माँ के हाथ की रोटी
से ही पेट भर पाया।
■ विषम परिस्थितियों में जो विष हर ले,
उस माँ वैष्णो को बारम्बार याद करते हैं।
■ महाकाली-कंकाली ने एक महामूर्ख को महाकवि कालीदास बना दिया।
■ माँ शीतला सबको शीतलता प्रदान
करती है। कैंसर, त्वचा-रोगों की यह
सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक है।
■ माँ करौली सबकी औली-झोली
भरने की वजह से मशहूर है।
■ माँ दुर्गा मानव शरीर के नव छिद्र
जैसे- दोनों, आंख, कान, नाक, मुख, नाभि और गुदा इन 9 दुर्गों की रोगों से
रक्षा करती है।
कला-कौशल वृद्धि के लिए श्रीराम की
माँ कौशल्या स्मरणीय हैं।
जब कागज पर लिखा
अपनी माँ का नाम।
कलम अदब से बोल
उठी हो गए चारों धाम।।
महादेव भी जब नतमस्तक हो गए…
पूर्णिमा अर्थात सृष्टि में बस!
माँ ही पूर्ण है
जब महाकाल को भी 16 तिथियों
से एक पूर्णिमा का दिन माँ
के लिए बनाना पड़ा।
श्रीमद देवी भागवत में वर्णन है कि-
माँ महाकाली के परोपकार के कारण
एक बार महाकाल को भी चरणागत
होना पड़ा था।
बुरे हालातों में भी
तस्वीर बदल देती है।
मात्र माँ बच्चों की
तकदीर बदल देती है।।
नौ देवियों को नमन्....
ना आसमां होता… ना जमीं होती,
अगर माँ तुम ना होती
● शैलपुत्री शरीर के सेल रिचार्ज करती है।
● ब्रह्मचारणी ब्रह्म स्थल अर्थात मस्तिष्क को चलायमान रखती है।
● चन्द्रघण्टा हमारे कंठ रूपी घण्टे को
क्रियाशील बनाये रखती है, जिससे हम
बोल पाते हैं।
● कुष्मांडा का मतलब देह की सूक्ष्म
ऊर्जा को संतुलित कर स्वस्थ्य रखना।
● स्कंदमाता ये कार्तिकेय (भूमि मालिक)
की माँ हैं। इन्ही के लिए महर्षि मार्केंडेय
ने दुर्गा शप्तशती में लिखा है-
सर्व मङ्गल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके
● माँ कात्यायनी धर्म, अर्थ, काम मोक्ष का पालन कराती है।
● कालरात्रि यानि बुरे समय की रक्षक है।
● महागौरी– आत्मा को कलंकित होने से बचाती है।
● माँ सिद्धिदात्री हर माँ चाहती है कि मेरा पुत्र अष्टसिद्धियों से परिपूर्ण हो जाये।
एक माँ ही है, जो नटराज को भी नवा सकती है। इसमें शक्ति का भंडार है। यदि शक्त हो जाये, तो सृष्टि का सर्वनाश कर सकती है।
ध्यान रखे माँ कभी अनपढ़ नहीं होती….
बिना मेरे कितने दिन
गुजारे, माँ गिन लेती है।
भला कैसे कह दूं कि
माँ अनपढ़ है मेरी।।
माँ बताती है कि-
कर्म करो फल का क्या है
बाजार में मिल जाएंगे!
दिल के रिश्तो की यह
गहराइयां तो देखिए,
चोट लगती है हमें और
माँ को दर्द होता है।
पढ़ते रहें अमृतम पत्रिका
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