मीडिया, मार्केटिंग तथा पत्रकारिता से जुड़े लोगों को इनका स्मरण करना चाहिए।
वायु मार्ग द्वारा तीनों लोको का भ्रमण
करने वाले ब्रह्मर्षि नारदजी की जन्म जयन्तीहर साल ज्येष्ठ मास में शुक्ल
पक्ष की द्वितीय तिथि को ज्येष्ठा नक्षत्र
को होती है।
जयन्ती के दिन भगवान श्रीकृष्ण
को बासुंरी तथा श्री हरि विष्णुजी
को स्वर्ण या वस्त्र भेंट करने से व्यक्ति
के सभी मनोकामना-मनोरथ
अतिशीघ्र सिद्ध होते हैं।
पत्रकारिता के प्रथम जनक…
कल्यणकारी समाचारों का आचार
करने वाले नारद जी सृष्टि के पहले
पत्रकार थे।
भारत के प्रथम समाचार पत्र
उदन्त मार्तंड के प्रकाशन के लिए
सम्पादक के रूप में पंडित जुगलकिशोर
शुक्ल ने देवर्षि नारद का जन्म तिथि प्राचीन शास्त्रों से खोजकर ज्येष्ठ शुक्रल द्वितीय का चयन किया।
श्री शुक्ल जी ने इस दिन समाचार पत्र के पहले अंक में आनंद व्यक्त करते हुए लिखा था कि -परम सौभाग्य है कि नारदजी की जन्म तिथि पर यह प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्व विधालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद जी मिश्र ने अपने एक आलेख में नारदजी को ब्रह्मांड प्रथम पत्रकार लिखा है।
पत्रकार, विपणन, टेलीविजन की खबर
क्षेत्र के व्यक्तियों को आदि पूर्वज का स्मरण
करने से सफलता जल्दी मिलती है।
नारदजी पथ प्रदर्शित करते हैं।
जिसमें लोकहित है उसी ज्ञान प्रकाश आलोक का अनुभव करने लगते हैं।
जो शिव को बिसरा देगा,
तो मुक्ति कैसे पायेगा….
इनके द्वारा लिखे ग्रन्थ ज्ञान का अपार
भंडार हैं। नारद भक्ति सूत्र में लिखा है-
!!तल्लक्षणानि वच्यन्ते नाना मत भेदात!!
अर्थात-
सभी के मतों में विभिन्नता ही अनेकता
का कारक है। विचारों में भिन्नता का मतलब किसी द्वेष या दुश्मनी नहीं होती। कमी निकालने वाले का सदैव सम्मान करें।
यही पत्रकारिता का मूल सम्मान है।
एक और नारद सूत्र भी महत्वपूर्ण है–
!!तद्विहीनं जाराणामिव!!
अर्थात-
वास्तविकता यानि पूर्णसत्य की अनुपस्थिति
पत्रकारिता में स्वयं और सबके लिए घातक होती है। आधी अधूरी जानकारी से पाठकों का विश्वास क्षीण होता है। भरोसा टूटता है।
बिना सन्दर्भ के, बिना किसी ग्रन्थ पुराणों के सहारे लिखे गए लेख मनगढ़ंत कहानी-किस्से एवं भ्रमित करने वाली जानकारी देने से भविष्य नहीं संवरता। अच्छे-सच्चे पत्रकार को कभी भी आधी अधूरी जानकारी देना चाहिए, इसे महापाप बताया है। इसके घातक परिणामों से डरना चाहिए।
!!दुःसंग: सर्वथैव त्याज्य:!!
अर्थात-
प्रत्येक पत्रकार को दूध का दूध, पानी का पानी करना उसका कर्तव्य व अधिकार है।
हमें हर हाल में बुराई तुरन्त त्याग देना चाहिए।
पत्रकार या मीडिया को गलत ज्ञान का प्रतिपालन, प्रचार-प्रसार और प्रकाशन
नहीं करना चाहिए। श्रीमननारायण
बहुत दुःखी होते है।
यदि नारद रचित प्राचीन पुस्तकों का अध्ययन-अनुसंधान किया जाए, तो सही मायने में पत्रकारिता के गुणों का ज्ञान
हासिल होगा। पाप-पुण्य से भी बचे रहेंगे।
श्री नारद जी सदैव लोककल्याण के लिए ही संवाद सृजन कर न्यूज़ बनाते थे।
भटके, तो अटके…..
नारद सहिंता में कहा है कि सवांददाता
की कोशिश हो- हम भटकाव व फिसलन
से बचकर प्रसिद्धि पा सके।
पत्रकरिता का दूसरा इंस्टिट्यूट नागपुर में खोला गया जो कि एक ईसाई
कॉलेज था जिसमें पत्रकारिता के नकारात्मक गुण सिखाये गए।
इसने मीडिया को पथ भ्रष्ट कर भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया। नारद उपपुराण में एक श्लोक के मुताबिक भविष्य में कोई मीडिया पर विश्वास नहीं करेगा। ऐसी स्थिति बनने लगेगीं।
पत्रकारिता के पितामह ब्रह्मर्षि नारदजी परम नारायण विष्णु भक्त थे और आज के पत्रकार महा नास्तिक हो चुके हैं।
इन्होंने भारत में भारतीय परम्पराओं का विरोध एक फैशन बना दिया है। यह वह वर्ग है, जो भारतीय संस्कृतियों के विरोध में संग्लन है। जिसमें हिन्दू वर्ग के पत्रकारों की संख्या ज्यादा है।
भगवा को कलंकित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जितनी कट्टरता से मुस्लिम धर्म को अपनाया जाता है, उससे लगता है अन्य कोई धर्म ऐसा नहीं बचा है।
मैं बदनाम हो गया.…
किसी-किसी को नारदजी के क्रियाकलापों तथा नाम से चिड़ भी होती है। इनका मूल उद्देश्य था धर्म से जोड़ना। जब कभी देव या दैत्य कोई भी अधर्म की तरफ गया तुरन्त एक समस्या खड़ी कर दी।
आज के पत्रकार आंकलन करें कि उनका कर्म कैसा होना चाहिए। दुनिया में बहुत पत्रकार ऐसे हैं जिन्होंने अपने स्वार्थ या झूठे स्वाभिमान के चलते अनेक सात्विक सही लोगों को बदनाम कर उनका जीवन तबाह कर दिया। दुष्परिणाम उनको भी भोगना पडेंगे, जो असत्य फैलाकर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं।
नारदजी जैसे नेक के किस्से अनेक….
【१】नारद देवलोक के एक प्रसिद्ध दिव्य ऋषि जिनको देवत्व प्राप्त था। ये ब्रह्माजी के 10 मानस पुत्रों में से एक थे, जो जंघा से उत्पन्न हुए बताते हैं।
【२】यह आज भी वेदों के संदेशवाहक हैं। इनका मुख्य काम है देवताओं के सन्देश मनुष्यों तक और मानवों के दुःख-दर्द देवों तक पहुंचाते हैं।
【३】ये कलह करने के कारण कलह-प्रिय
कहलाते हैं।
【४】वीणा का अविष्कार इन्ही ने किया था।
【५】सृष्टि में आचार सहिंता के पहले प्रेणेता हैं।
【६】जिस ग्रन्थ का नाम नारद स्मृति है।
तीर्थव्रत महापर्व में इन्हें झगड़ा करने वाला देवपुरुष बताया है।
【७】ब्रह्मवैवर्त पुराण के एक श्लोक के अनुसार शिवजी के स्वसुर राजा दक्ष ने नारद को अविवाहित होने का शाप दे दिया था।
क्योंकि दक्ष पुत्रों को भ्रमित कर मोह-माया से दूर रहने का ज्ञान दिया था।
【८】नारद जी ने ही ध्रुव और प्रह्लाद को ज्ञान देकर भक्ति मार्ग की ओर उन्मुख किया था।
【९】श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है! मैं ऋषियों में देवर्षि नारद हूं।
【१०】विवाह की वैदिक परम्परा के आविष्कारक भी नारद जी ही थे।
【११】ब्रह्मर्षि नारद की का स्मरण-ध्यान से ज्ञान में असाधारण वृद्धि होती है। मार्केंटिंग और मीडिया से जुड़े लोगों व व्यवसायियों को इनकी भक्ति जरूर करना चाहिए।
【१२】नारद सहिंता, नारद सूत्र, नारद उपपुराण इनके रचित शास्त्र हैं।
【१३】नारद जी ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जन्मे।
इस बार नारद जयंती 9 मई 2020 को
ज्येष्ठ मास, द्वितीय तिथि है
【१४】 देवर्षि नारद को सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु का अनन्य उपासक माना गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वह हर वक्त “नारायण-नारायण” का जाप करते रहते हैं।
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