- नीम को सावधानी पूर्वक सेवन करें, तो यह अमृत से भी अधिक गुणकारी है नहीं, तो नीम हकीम खतरा ए जान जैसा ही मानो। इस लेख द्वारा नीम फायदा करेगा। नुकसान बिलकुल भी नहीं।
- आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार नीम को नई कोपल ही सबसे अधिक लाभकारी है। यह समय होता है- चैत्र-वैशाख यानि मार्च-अप्रैल-मई तक का महीना।
- शेष समय नीम के सेवन से पित्त और वात की वृद्धि होती है। जिन लोगों को दर्द, सूजन, चिड़चिड़ाना आदि की शिकायत हो, उन्हें नीम नहीं खाना चाहिए।
- नीम के बारे में भावप्रकाश निघण्टु में विस्तार से लिखा है।
कैडर्य्यः कटुकस्तिक्तः कषाय: शीतलो लघुः।सन्तापशोषकुष्ठास्रकृमिभू
कैडर्यः शीतलस्तिक्तः कटुश्च तुवरोलघुः।
जलनार्शः कृमिशूलघ्नः सन्तापविषनाशनः॥ शोफकण्डूभूतबाधानाशयेदिति कीर्त्तितः।
कैडर्य. ..इति दशेमानि कण्ठ्यानि भवन्ति।।
(शा. नि. गुडूच्यादि वर्ग, पृथ्ः और (रा. नि. प्रभद्रदि)
ज्योतिष में नीम का महत्व
- नीम सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य वर्धक ओषधि है। सनातन धर्म के नवीन वर्ष के दिन जिसे नवसंवत्सर भी कहते हैं। इस दिन नीम की कोपल, कालीमिर्च, सेंधानमक सभी समभाग की चने बराबर गोली साल भर के लिए एक साथ बनाने का वैदिक विधान है। क्योंकि सूर्य इस चैत्र मास में अपने गुरु की राशि मीन में गोचर कर रहे होते हैं।
- चैत्र माह के समय नीम के ओषधि गुण बहुत लाभकारी हो जाते हैं। इस स्वनिर्मित नीम गोली को पूरे साल सुबह खाली पेट सादे जल से सेवन करने से व्यक्ति पूरे वर्ष निरोगी रहता है।
- नीम युक्त ओषधि का सेवन करने से मधुमेह (डाइबिटीज), उदर विकार तथा ग्रन्थिशोथ (थायराइड) 6 माह में जड़ से मिट जाता है।
अथ निम्बः तस्य नामानि गुणोँश्चाह
निम्ब: स्यात्पिचुमर्दश्च पिचुमन्दश्च तिक्तकः।
अरिष्टः पारिभद्रश्च हिङ्गनिर्यास इत्यपि॥
निम्बः शीतो लघुग्रही कटुपाकोऽग्निवातनुत्’।
अहृद्यः श्रमतृद्कासज्वरारुचिकृमिप्रणु
- नीम के गुण लाभ- शीतवीर्य, लघु, ग्राही, पाक में कटुरसयुक्त, जठराग्नि को मन्द करने वाला, हृदय को अहितकर तथा वात, श्रम, तृषा, खाँसी, ज्वर, अरुचि, कृमि, व्रण, पित्त, कफ, वमन, कुष्ठ, हृल्लास तथा प्रमेह इन सभी रोगों का नाशक होता है।
अथ निम्बस्य पत्रफलयोर्गुणानाह
निम्बपत्रं स्मृतं नेत्र्यं कृमिपित्तविषप्रणुत्।
वातलं कटुपाकञ्च सर्वारोचककुष्ठनुत्॥
निम्बफलं रसे तिक्तं पाके तु कटुभेदनम्।
स्निग्धं लघूष्णं कुष्ठघ्नं गुल्मार्शः कृमिमेहनुत्॥
नीम’ की नई कोपल और पत्ते तथा फलों के गुण :
- नीम के नवीन पत्ते – नेत्र को हितकर, कृमि – पित्त-विष के नाशक, वातकारक, पाक में कटुरसयुक्त तथा सभी प्रकार की अरुचि और कुष्ठ को दूर करने वाले होते हैं।
नीम का फल या निंबोली–
- रस में तिक्त तथा पाक में कटु, मल का भेदन करने वाला, स्निग्ध, लघु, उष्णवीर्य कुष्ठ, गुल्म, बवासीर, कृमि तथा प्रमेह का नाशक होता है।
नीम या निम्बः कैडर्य्यः के कार्य
निम्बति सिञ्चति स्वास्थ्यम्, ‘णिवि सेचने’।
- अर्थात नीम की नई कोपल के सेवन से स्वास्थ्य बना रहता है।
कृत् इति पाठा – गुडूच्यादिवर्गः
- नीम के लगाये वृक्ष – इस देश के सभी प्रान्तों में पाये जाते हैं और सभी लोग इसको भलीभाँति जानते हैं।
- दक्षिण एवं म्यामार (बर्मा) के शुष्क जंगलों में यह जंगली स्वरूप में पाया जाता है। यह १३-१७ मी. ऊँचा, अनेक शाखा – प्रशाखाओं से युक्त, सघन और छायादार होता है।
- छोटी-छोटी टहनियों के अन्त में २०-३८ से.मी. लम्बे असमपक्षवत् पत्ते रहते हैं।
- नीम के पत्ते पत्रक – संख्या में १४- १९, विपरीत या एकान्तर, टेढ़े, भालाकार, ४-५ अंगुल लम्बे, १-२१, अंगुल चौड़े, नुकीले और दन्तुर होते हैं।
- वसन्त ऋतु में पुराने पत्ते गिर जाते हैं और नवीन पत्ते निकलने के साथ छोटे-छोटे सफेद रंग के सुगंधयुक्त फूलों के गुच्छे लगते हैं।
- नीम निंबोली या फल – करीब १२ मि.मी. खिरनी के समान लम्बाई लिये गोल होते हैं जिसमें एक-एक बीज होते हैं। बीजों को निम्बोली कहते हैं। इसकी छाल से एक स्वच्छ, चमकीला अम्बर के वर्ण का गोंद निकलता है।
नीम की छाल
- करीब १० मि.मी. मोटी, बाहर से भूरे-धूसर वर्ण की, खुरदुरी शल्कसम एवं फटी हुई तथा अन्दर से पीताभ, परतदार एवं मोटे रेशों से युक्त होती है। नीम की छाल, मूलत्वक्, पत्र, गोंद, फल, बीज, पुष्प, ताड़ी एवं तैल का चिकित्सा में व्यवहार किया जाता है।
नीम का रासायनिक संगठन –
- नीम के काण्डत्वक् में एक कड़वा पदार्थ मार्गोसीन (Margosine ), निम्बिडिन (Nimbidin, 0.5%), निम्बिन (Nimbin, C28 H40 O8, 0.03% ), निम्बिनिन् (Nimbinin C2, H3o Og), निम्बोस्टेरोल् एवं पुष्पों में पाये जाने वाले उड़नशील तैल की तरह एक उड़नशील तैल ये पदार्थ पाये जाते हैं। इसमें करीब ६% टॅनिन भी रहता है ।
- नीम के बाह्यत्वक् में टॅनिन अधिक रहता है तथा अन्तस्त्वक् में कड़वे पदार्थ पाये जाते हैं। इसके अन्तस्त्वक् का क्वाथ बनाना चाहिये।
- नीम के पत्तों में भी कड़वा पदार्थ रहता है जो छाल की अपेक्षा कम मात्रा में होते हुए भी जल में अधिक मात्रा में एवं जल्दी घुलता है।
- नीम के बीजों में ३१% तक एक तेल रहता है जो गहरे पीले रंग का, कड्डुवा, तीता एवं दुर्गन्धयुक्त होता है। इसमें करीब २% कड्डुवे पदार्थ रहते हैं जिनमें निम्बिन, निम्बिनिन, निम्बिडिन एवं तैल में घुलनशील एक द्रव निम्बिडोल (Nimbidol, 0.6% ) ये पाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त इस तैल में ओलिक् एसिड् (Oleic acid, 49-61.9%), लिनोलिक् एसिड् (Linoleic acid, 2.12-15%), पामिटिक् एसिड् (Palmitic acid, 12.62-15%), स्टियरिक् एसिड् (Stearic acid, 14.421.3%), ॲरॅचिडिक् एसिड् (Arachidic acid, 1.3-1.8% ) एवं लिंग्नोसेरिक एसिड् (Lignoceric acid, 0.74%) ये रहते हैं। इस तैल के साबुन बनाने लायक भाग से बचे हुए हिस्से में निम्बोस्टेरॉल रहता है।
- नीम तैल में 0.427% गंधक पाया जाता है। इसके तैल से अत्यन्त कडुआ एवं जल में घुलने वाला सोडियम् मार्गोसेट (Sodium margosate) नामक एक लवण बनाया गया है।
- नीम का तेल उष्ण, वातहर, प्रतिदूषक, व्रणशोधक, व्रणरोपक, उत्तेजक, केश्य, कृमिघ्न, कुठघ्न एवं रसायन है। निम्ब के सभी अङ्गों की अपेक्षा इसका तैल अधिक प्रभावशाली है।
- Neem Oil has anti-inflammatory, anti-fungal, and anti-bacterial properties, which help treat rashes, infections, ringworm, and other skin ailments.
- Applying Neem Oil to your hair regularly promotes more robust and healthier hair growth.
Primary Benefits
- Treats Rashes, Infections, and Ringworm, Reverses Wrinkles and Sagging Skin, Prevents Acne, Reduces Scars, Improves Scalp Health, Eliminates Dandruff and Helpful in Treating Eczema
Secondary Benefits
- Heals Wounds, Prevents Hair Falls, Strengthens the Roots and Reduces Itchiness on the Scalp
नीम के गुण और प्रयोग —
- नीम की अन्दर की छाल शीतल, कडुवी, पौष्टिक, नियतकालिक-ज्वरप्रतिबन्धक, ग्राही, त्वग्दोषहर, कृमिघ्न एवं रसायन है।
- सम्पूर्ण छाल अधिक ग्राही होती है। त्वचा पर निम्बत्वक् की क्रिया सोमल की तरह होती है। इसका ज्वरघ्न गुण सिंकोना की तरह है। इसकी मूलत्वक् कृमिघ्न (आन्त्रिक) मानी जाती है।
- नीम के पत्ते शोथघ्न, त्वचा के लिये उत्तेजक, त्वग्दोषहर, व्रणशोधक, व्रणरोपक, कृमिघ्न, प्रतिदूषक, यकृतोत्तेजक, कुष्ठहर एवं अधिक मात्रा में वामक होते हैं।
- सोशल मीडिया, गूगल आदि पर इस समय नीम हकीम-खतरे की जान की बाढ़ सी आई हुई है।
- भ्रम से बचें- सावधान इंडिया…गिलोय, तुलसी, नीम, करेला, लोंकी जूस, अश्वगन्धा, हल्दी, शतावर, शिलाजीत, अदरक, मुलेठी, सौंठ, बेलपत्र, सफेद मूसली, नीबू, प्याज लहसुन, गूडहल तथा गर्म पानी, आंवला आदि के अनेको फायदे बताकर मूर्ख बनाया जा रहा है।
- मधुमेह से पीड़ित लोग आज तक घरेलू चिकित्सा से ठीक नहीं हुए। जबकि 88 तरह के प्रमेह आयुर्वेद की चिकित्सा से निरोग किये जा सकते हैं।
- आयुर्वेद में समस्त औषधियों के अनुपान, मात्रा, सनी आदि का विशेष महत्व है। साथ ही कोई भी चीज अपनी तासीर के अनुरूप ही उपभोग करना हितकर रहता है।
- जैसे गिलोय को अमृत बताया है, लेकिन कच्ची गिलोय का काढ़ा ही लाभकारी है। इसकी मात्रा 5 ml से अधिक न हो। घर में बना हुआ ही लाभप्रद है।
- 200 से 300 मिलीग्राम हल्दी पाउडर और कच्ची हल्दी 1 से 2 ग्राम ही दूध के साथ उबालकर लेना हितकारी है। इससे ज्यादा लेने पर फेफड़ों के छिद्र बंद होने से उसमें दोष आ जाता है।
- लोगों ने लालमिर्ची का उपयोग पूरी तरह खाना बंद कर दिया है, जबकि लालमिर्च रक्त को साफ करने में विशेष लाभकारी है।
- आजकल त्वचा रोग, कील-मुहाँसे, काले निशान, चेहरे का बेरौनक होना, कर्कट रोग यानी केन्सर आदि बीमारियों को रोकने में सहायक है।
- कुछ ने समुद्री नमक पूर्णतः त्याग दिया है। ये केवल सेंधा नमक का ही सेवन कर रहे हैं। ध्यायं देंवें समुद्री या खड़ा नमक शरीर में रस की शुद्धि करता है, जिससे जोड़ों में लुब्रिकेंट और खून का संचार सुचारू बना रहता है।
- सुबह गर्म पानी पीना अत्यंत हानिकारक रहता है। अष्टाङ्ग ह्रदय ग्रन्थ में उल्लेख है कि मात्र भोजन के एक घण्टे बाद ही गर्म पानी लेने से पाचनतंत्र सुधरता है। चर्बी-मोटापा घटता है।
- बहुत लंबी कहानी है। आपको संक्षिप्त जानकारी ही दे रहे हैं।
- गूगल इत्यादि पर पड़े हुए लेख या ब्लॉग पढ़कर लगता है कि- लिखने वालों को आयुर्वेद का कतई ज्ञान नहीं है।
- लेखकों ने कभी किसी आयुर्वेदक ग्रन्थ का अध्ययन ही नहीं किया और अच्छी भाषाशैली में पूरी मनगढ़ंत कहानी बनाकर डाल दी।
- शरीर को नुकसान एवं बीमारी की सबसे बड़ी वजह यह है कि अधिकांश मनुष्य अलसी हो गया है। वह केवल सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर किसी भी चीज का बिना सोचे-समझे तथा लाभ-हानि का विचार किये बिना सेवन शुरू कर देता है।
- अगर लोगों को स्वस्थ्य रहना है, तो आयुर्वेद के कुछ प्राचीन शास्त्र, जो कि सत्य से लबालब हैं, इन्हें अपने घर में रखना चाहिए।
- विशेष रूप से भावप्रकाश निघण्टु घर-घर में होना चाहिए।
नीम के नुकसान—
- द्रव्यगुण विज्ञान ग्रन्थ एवं भेषजयसार मणिमाला ग्रन्थ के अनुसार नवसंवत्सर के अलावा नीम की पत्तियां तोड़कर खाने से जोड़ों में दर्द, सूजन, आमवात, ग्रंथशोथ, थायराइड जैसी समस्याओं की शुरुआत होने लगती है।
- पित्तदोषों की वृद्धि या पित्त का असन्तुलित होने का कारण भी वेसमय नीम खाना ही है।
- किस समय या मौसम में क्या खाएं , क्या न खाएं ऐसा बहुत सा ज्ञान आयुर्वेद शास्त्रों में लिखा है।
- आयुर्वेद के बहुत से प्राचीन वेद्याचार्य स्वास्थ्य सूक्तियां, दोहे आदि भी लिख गए है। आयुर्वेद की दोहावली के अनुसार पुराने लोग चलकर 100 वर्ष तक जीवित रहते थे।
- सूर्य प्रसन्नता, कृपा पाने के लिए नीम वृक्ष की पूजा का विधान भविष्यपुराण में मिलता है। नीम सूर्य का आराध्य वृक्ष है।
- मथुरा से 40 किलोमीटर दूर कोकिलावन में शनिदेव और भगवान श्रीकृष्ण ने नीम वृक्ष के नीचे ही बैठकर सूर्य की आराधना की थी। यहां शनि भगवान की स्वयम्भू प्रतिमा भी है। शनिचरी अमावस्या को यहां दुनिया का लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं। शनि के प्रकोप से बचने के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण तीर्थ है।
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