सबका सार समझकर आप मोटापे से पार हो सकते हैं और समुद्र फेन से देह की दुर्गंध दूर करें।
- अभ्यायामदिवास्वप्रश्लेष्मलाहारसेविनः। मधुरोऽन्नरसः प्रायः स्नेहान्मेदो विवर्धते॥
मोटापा बढ़ने की वजह क्या है
- परिश्रम नहीं करने से, दिन में सोने से, कफकारक आहार के सेवन करने से प्रायः करके मधुर अन्न का रस स्नेह से मिलकर मैद को बढ़ाता है।
- हस्तलिखित पुरानी किताबें, पांडुलिपि और योगरत्नाकर, भैषज्य सार संग्रह, चरक आदि में अथ मेदोरोगनिदानम् के अंतर्गत मेदरोग यानि मोटापे के बारे में संस्कृत श्लोकों सब कुछ गहराई से लिखा हुआ है और मैदोरोग मोटापा निदान अध्याय में मोटापे की सरल चिकित्सा का भी उल्लेख है।
मेद साऽऽवृतमार्गस्वारपुष्यन्स्यन्ये न धातवः।
मेदस्तु चीयते तस्मादशक्तः सर्वकर्मसु।।
- अर्थात मैद की सम्प्राप्ति मेद यानि मोटापा बढ़ने के कारण सब धातुओं के मार्ग के आवृत हो जाने से दूसरे धातुओं (रस-रक्तादि) की पुष्टि नहीं होती है। केवल मैद ही बढ़ता है और मैद बढ़ने से मनुष्य सब कामों में अशक्त हो जाता है।
मोटापे के लक्षण
मेदस्विलक्षणम् – क्षुद्रश्वासतृषामोहस्वप्नकथन सादनैः।
युक्तः सुस्वेद दौगंन्ध्यैरल्पप्राणोऽल्पमैथुनः॥
- अर्थात बढ़े हुए मेद या मोटापे के लक्षणादि – एकाएक श्वास का अवरोध तथा अंग शिथिल होना, श्वास शीघ्र बार बार आना।
- भूख, प्यास, तृषा, मोह, निद्रा अधिक होना। क्षुधा लगना, स्वेद यानि पसीना अधिक आना, शरीर से दुर्गन्ध निकलना, शक्ति का क्षय या अल्प होना और मैथुन शक्ति अर्थात सेक्स पावर कम होना ये सव लक्षण मैद मोटापा के बहुत बढ़ जाने पर उपस्थित हो जाते हैं।
मेदस्तु सर्वभूतानामुद रेन्वस्थि तिष्ठति।
अत एवोदरे वृद्धिः प्रायो मेदश्विनो भवेत्।। (यो० उ०)
अर्थात मोटापा, मेद धातु प्रायः करके सब जीवों के उदर ओर अस्थि यानि हड्डी में ही स्थित होता है इसलिये मैदवियाँ का (प्रथम) उदर ही बढ़ता है ।
- मेदसाऽऽवृत मार्गरवारकोष्ठे वायुविशेषतः। चरम्सम्धुपयत्यग्निमाहारं शोषयस्यपि- तस्मात्स शीघ्रं जरयस्याहारं कस्यपि विकारांश्चाशनुने घोकांश्चिरकालव्यतिक्रमात्॥
- अर्थात मेद के बढ़ने से जठराग्नि की प्रदीप्तता – मेद के बढ़ जाने के कारण सब स्रोतों के आवृत हो बाने से विशेष कर कोष्ठ में चलती हुई वायु अग्नि को तीव्र कर देती है इससे उसका आधार पचकर सूखता रहता है ये आहार किया अन्न शीघ्र पच जाता है और फिर अन्न की हा होती है। इस इच्छा के समय अन्न नहीं मिलने पर दूसरे अन्य घोर विकार उत्पन्न हो जाते है।
पुसावुपद्रव करौ विशेषादग्निमाइतौ।
पुतौ हि वहतः स्थूलं वनं दावानलो यथा।।
- दुश्चिकित्स्यता – ये दोनों अग्नि और वायु विशेष कर उपद्रव करने वाले होते हैं और स्थूल ( मैदस्वी ) को इस प्रकार दहन करते है जिस प्रकार वन को दावाग्नि।
मेदस्यतीव संवृद्धे सहसैवानिलादयः।
विकारान्दारुगान्कृ’ वानाशयन्ध्याशु जीवितम्।
- अर्थात मैद के अश्यन्त बढ़ जाने से अकस्मात् वायु अत्यन्त कठिन विकारों ( रोगों ) को करके शीघ्र जीव को नष्ट कर देती है
स्थूल लक्षणम्
भेदोमांसातिवृद्धत्वाचलस्फिगुदरस्तनः।
अयथोपचयो’साहो नरोऽतिस्थूल उच्यते।।
- अतिस्थूल के लक्षण – अर्थात मैद तथा मांस के अधिक बढ़ जाने के कारण जिस मैदस्वी के नितम्ब, बदर और स्तन हिलते रहते हैं और उसे वृद्धि ( शरीर की स्थूकता वा मांस वृद्धि ) यथायोग्य नहीं होती है तथा यथोचित उत्साह नहीं होता है। ऐसे मनुष्य को ‘अतिस्थूल’ कहते हैं।
स्थूले स्युर्दुस्तरा रोगा विसर्पाः सभगन्दः।
उवरातिसार मेहा शःश्लीपदापत्रिकामलाः॥
अतिस्थूलता से उत्पन्न रोग-
- स्थूलता के कारण मनुष्य को विसर्प, भगन्दर, ज्वर, अतिसार, मैह, अर्श, श्कीपद, अपची और कामला आदि मयङ्कररोग हो जाते हैं।
- कृशलक्षणम्
शुष्कस्फिगुदरग्रीवो घमनीजालसन्ततः।
स्वगस्थि शोषोऽतिकृशः स्थूलपर्वा नरः स्मृतः।
- कृश के लक्षण – जिस मनुष्य के नितम्ब, उदर, गला, सूखे हुए हों, नस सब फैली हुई दिखाई देवे, त्वचा और अस्थियां सूखी हुई हों और पर्व स्थूल हो उसे ‘अतिकृश’ कहते हैं ॥ ९ ॥
अथ मेदोरोगचिकित्सा
चौद्वेणत्रिफलाकाथः पीतो मेदोहरः स्मृतः।
शीतीभूतं तथोष्णाम्बु मेदोहर वौद्संयुतम्॥
मोटापे की आयुर्वेदिक चिकित्सा – आंवला, बालहर्रा, बहेड़ा अर्थात त्रिफला चूर्ण समान लेकर काथ बनाकर शीतल कर उसमें मधु का प्रक्षेप देकर पान करने से मैद का नाश होता है और उष्ण कर शीतल किये जल में मधु मिला कर पान करने से भी मेह का नाश होता है।
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How To Use
- Consume a teaspoonful (1-3g) ofl Amrutam’s Triphala Churna each day with milk or as directed by your physician.
Benefits
- Triphala, in its literal sense, means ‘three fruits’. These are Amla, Bibhitaki and Haritaki.
- In Ayurveda, the combination of these fruits is known to promote overall well being.
- It has anti-inflammatory properties that aids digestion, normalizes blood pressure, and controls cholesterol.
- It is the best Ayurvedic remedy to treat indigestion, regulate blood levels, protect the liver and inhibit the growth of tumors.
How To Store
- Store in a cool, dry place away from natural sunlight.
Safety Instructions
- Do not exceed the recommended dose.
- Keep out of reach of children.
- त्रिफला चूर्ण तीन महीने खाली पेट सादे जल से लेने पर स्थूलता को नष्ट करता है और अग्नि को दीप्त करता है। एक माषा के प्रमाण की मात्रा से मधु और घृत के साथ मिलाकर चाटने से अत्यन्त स्थूलता को त्रिफला चूर्ण नष्ट करता है और अग्नि को बढ़ाता है
हरीतकी लोधमरिष्टपत्रचूतरवचो दाबिमवकलं च।
एषोऽङ्गरागः कथितोऽङ्गनानां जम्बाः कषायश्च नराधिपानाम्॥
- अर्थात हर्रा, कोष, नीम की पत्ती, आम की छाल, अनार की छाल, इनका अनुराग (उबटन ) विधि पूर्वक बनाकर लगाने से स्त्रियों के वर्ण की सुन्दरता बढ़ती है इसी प्रकार जामुन के काथ से राजाओं की सुन्दरता बढ़ती है।
फलत्रिकं त्रिकटुकं सतैललवणान्वितम्।
षण्मासादुपयोगेन कफमेदोनि लापहम्॥
- फलत्रिकादियोग — अँवरा, हर्रा, बहेड़ा, सोठि, पीपरि, मरिच, इनको सम माग लेकर चूर्ण कर तेल और नमक के साथ मिलाकर छै मास तक सेवन करने से कफ – मेद और वायु को नष्ट करता है।
गुडूचीभद्रमुस्तानां प्रयोगस्खैफलस्तथा
तक्रारिष्टप्रयोगश्च प्रयोगो माक्षिकस्य च।
- गुडूच्यादि योग—गुरुचि और नागरमोथा का चूर्णं वा त्रिफला का चूर्णं तक्रारिष्ट अथवा मधु के सेवन करने से मैदरोग नष्ट होता है।
नमकगुग्गुलुः –
ब्योषाग्निमुस्ता त्रिफला विडङ्गैर्गुग्गुलुं समम्।
खादन्सर्वाअद् व्याधीन्मेदः श्लेष्मामवातजान्।।
- नवक गुग्गुलु – सॉठि, पोपरिं, मरिच, चित्रकमूल, नागरमोथा, अंवरा, हर्रा, बहेड़ा और वाभीरंग समभाग लेकर चूर्ण कर जितना चूर्ण हो उसके समान भाग शुद्ध गुग्गुलु मिलाकर विधिपूर्वक वटी बनाकर सेवन करने से सब प्रकार के मैदोज कफज और आमवातज रोग नष्ट होते हैं।
शरीर से बदबू आती हो,
हितो मोचरसो युक्तश् चूर्णैरधि फेनजैः।
प्रलेपनं निहन्त्याशु देहदौगंन्ध्य मुस्कदम्।।
- अर्थात समुद्रफेन का चूर्ण मिलाकर लेप करना हितकर है। लेप और उदवर्तन – मोचरस यह देह की तीव्र दुर्गन्धि को शीघ्र नष्ट करता है।
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