नमःशिवाय मन्त्र के जप से
कैसे करें दसों इंद्रियों की शुद्धि….
नमः शिवाय पांच अक्षरों से बनने वाले इस महामंत्र को पंचाक्षर मंत्र भी कहते है। यह मंत्र प्रणव “ऊँ” का स्थूल रूप है। पंचतत्व से समाहित इस मंत्र के निरन्तर जाप से पांच कर्म इन्द्रिया और पांच ज्ञानइन्द्रियां जाग्रत रहती है। पूर्व तथा इस जन्म के पाप-शाप, दुःख-दारिद्र, शोक-रोग, लोभ-मोह तथा पतित-पापी जीवन संवर जाता है और भोलेनाथ
की शरण प्राप्त होती है। “नमः शिवाय” मंत्र में पांचों तत्व समान मात्रा में पाये जाते है।
न को नमस्कार….
नमःशिवाय मन्त्र में पहला अक्षर न शब्द का अर्थ नभ होता है। यह आकाश यानि गगनगामी है।
नभ का अर्थ है- वायु देवता, जो आकाश में विचरित है।आकाश गंगा- आकाश में स्थित एक नरक का नाम भी नभः है।
शब्दकोश में नभ के और भी अर्थ है जैसे आश्रय, आसमान, आकाश, सावन का महिना, मेघ जल आदि। भगवान विष्णु के प्रिय वाहन श्री गरूड़ जी का एक नाम “नभगेश” भी है, जिनकी अतिसूक्ष्म दूर-दृष्टि है, जो सूर्य को एक टक लगातार देख सकते है। आकाश में विचरने वाले सभी देवगण सूर्य, चंद्र ग्रह-नक्षत्र, वायु, बादल और पक्षी नभचर कहे जाते है।
नभस्य का अर्थ है-भाद्रपद यानि भरा हुआ। भादों के महीने में प्रकृति, पृथ्वी हरि कृपा और हरियाली से लबालब हो जाती है।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र इस नक्षत्र का स्वामी गुरू और उत्तराभाद्रपद
इसका स्वामी शनि है। श्रावण तथा भादौ मास में सृष्टि के सभी प्राणियों पर गुरू व शनि की पूर्ण कृपा बनी रहती है। इसलिए सावन का महीना परम गुरू भगवान शिव की साधना रूद्राभिषेक और अपने गुरू मंत्र के जाप हेतु सर्वश्रेष्ठ है।
भादौ मास में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दिन यदि शनिवार हो, तो अति शुभ होता है। इस दिन किसी शिवालय की रंगाई.पुताई, जीर्णोद्वार तथा साफ.सफाई घंटा, नाग और नंदी की स्थापना करने करवाने से एक वर्ष तक शनि ग्रह सभी अनिष्टों का नाश कर सहृदयता, समृध्दि एवं शुकुन प्रदान करते है।
श्रावण मास में श्रवण नक्षत्र के दिन रूद्राभिषेक कराने से सारे दुःख-दारिद्र, कष्ट मिट जाते हैं।
श्रवण का अर्थ होता है सुनना। इस महीने सूर्य कर्क राशि में होते हैं, जो चन्द्रमा की स्वग्रही राशि है। चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है। चन्दमा ने ही सन्सार के लोगों का मन चंचल और चलायमान बना रखा है। दुनिया की सारी मानसिक अशांति, मानसिक रोग, शारीरिक विकार तथा अप्रसन्नता का कारण चन्द्रमा ही है। अतः श्रावण मास में शिंवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने का विधान वैज्ञानिक है, ताकि चन्द्र का दुष्प्रभाव और मन की चंचलता कुछ हद तक कम हो सके।
सारा संसार शिव का प्रतिरूप हैं। महादेव का ही अंश है।
वेद मन्त्र उदघोष करते हैं-
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च हृदयात्सर्वमिदं जायते।।
अर्थात
महादेव के मन से चन्द्रमा, महादेव के चक्षु यानि आंखों से सूर्य, श्रोत्र यानि कानों से वायु और प्राण-हृदय से सम्पूर्ण जगत उत्पन्न हुआ।
सृष्टि की समस्त विष रूपी नकारात्मक ऊर्जा के मालिक महाकाल ही हैं। हमारे विष रूपी विकारों का नाश “नमःशिवाय” मन्त्र के निरन्तर जप से होने लगता है।
बाबा कल्यानेश्वर सबका कल्याण करते हैं, सबकी
प्रार्थना सुनते है। भगवान शिव सारे जीव जगत के वैद्यनाथ चिकित्सक भी हैं। सभी की नब्ज इन्ही के हाथों में है। ये बिना नब्ज पकड़े नरक से निकाल देते है।
न शब्द की विशाल नगरी.. .
देवनागरी वर्णमाला में त वर्ग त, थ, द, ध और न ये 5 शब्द होते हैं। “न” – इसका पांचवां वर्ण है। ‘न’ शब्द का उच्चारण स्थान दंत और नासिका है। बिना दांत के भोजन और बिना नाक के श्वास लेना असंभव है। सभी प्राणी जगत को भोजन और वायु ग्रहण करने की व्यवस्था शिव कृपा से ही संभव है।
“न” कि नियति
न से निर्मित नंगा शब्द का अर्थ शब्दकोश में शिव महादेव कहा गया है। जिसकी देह पर कोई वस्त्र न हो उसे निर्लज्ज बेहया नङ्गघडंग कहा है। वही सत्य शिव है। नंगघडंग शिव जब निर्लज्ज और बेहया हो जाते है तो सृष्टि में भूचाल प्रलय हो जाता है।
“नमः” को नमन…..
नमः का अर्थ है नमन, प्रणाम, नमस्कार, भेंट, समर्पण करने वाले लोग सदा नफा लाभ तथा फायदे में रहते है। नम अर्थात आर्द्र तरल व गीला होता है। शिव के इस स्वरूप का ध्यान करने वाले महासागर की तरह शांत होते है। शिव को सदा तर गीला रखने के कारण शिंवलिंग पर जल धारा अर्पित करने की प्राचीन परम्परा है।
जल का जलजला….
जल जीवन शक्ति है। शिवलिंग पर जल अर्पित करने का भाव यही है कि शिव मैंने अपना जीवन आपको अर्पण कर दिया है। अब जैसी तेरी इच्छा। ग्रामीण क्षेत्रों में यह भजन सुनकर आत्मा आत्म विभोर हो जाती है। गांवों के ग्रामीण गाते हैं कि…
अब छोड़ दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में!
हर जीत तुम्हारी हाथों में,
हर हार तुम्हारी हाथों में!!
इन गीत-भजनों से अंर्तमन की गंदगी तन से गल-गल कर निकल जाती है।
न से नमक की नम्रता…
संसार में सभी को सुन्दरता, लावण्य, सलोनापन प्रदान करने वाला सबसे महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ नमक एक प्रकार से ईश्वर की नकारात्मक शक्ति का प्रतीक है। नमक दुःख है, तो मीठा सुख है।
नम्र-विनम्र नरम भाव से कर्म करने वाले नागरिक की अक्सर
आंखे नम हो जाती हैं, जब उसे दुनिया में बहुत कठोर और नीच लोगों से पाला पड़ता है। नश्वर शरीर की रक्षा करने वाला शिव ही है।
नमक से निदान और नुकसान…
नमक न खाने वाला प्राणी जहरीला होता है। ज्यादा नमक खाने से हड्डियां गलने लग जाती हैं। रक्त प्रवाह की कमी, रक्तचाप का कम होना तथा बीपी लो होने में नमक अधिक मात्रा में देने से रोगी स्वस्थ हो जाता है। नमक के अधिक सेवन से रक्तचाप बढ़ जाता है यानि बीपी में वृद्धि हो जाती है, जिससे हृदयघात एवं लकवा हो सकता है।
नमक रखने के पात्र को नमक दान और जहां नमक निकलता है या प्राकृतिक रूप से निर्मित होता है उसे नमक सार कहते है। स्वामी मालिक अर्थात शिव से द्रोह छल करने वाला नमकहराम कहा जाता है। तुलसी दास ने लिखा है कि-
“शिवद्रोही मम दास कहावा”!
लेकिन कटनी जिले के अंतर्गत विजयराघवगढ़ ग्राम से
कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित कैमोर नामक स्थान पर भारत की सुप्रसिद्ध और सबसे पुरानी एसीसीACC सीमेंट फैक्टरी है। यहां एक राम कथा चल रही थी। रामकथा वाचक अपने प्रवचन में सुना रहे थे कि संसार में जितने भी शिव द्रोही है वे ही मेरे भक्त हैं।
शिव को मानने वाले राम भक्त नहीं हो सकते। कभी.कभी झूठी प्रसंशा के खातिर कथा वाचक उटपटांग बोलकर भक्तों को भ्रमित कर देते है।
नमक के बिना नमकीन व्यंजन या पकवान भोजन का निर्माण असंभव है। उज्जैन के विक्रम घाट में साधनारत एक अघोरी ने बताया कि जीवन में आराम, हराम, विराम, विषराम, या
विश्राम बेकाम की कामना है तो तुलसीदास के राम को उच्चारण करें। अग्नि तत्व की जागृति पूर्ति शरीर शुध्दि सुख.समृध्दि की इच्छा हो तो नाभि च्रक को जागृत करने वाले अग्नि तत्व का बीज मंत्र “रं” का मनसा जाप करें। हानि को लाभ में, मृत्यु को जीवन में और दुःख को सुख में पूर्व जन्म के पाप-प्रारब्ध के पुर्नमूल्यांकन तथा बार.बार की मृत्यु से मुक्ति एवं संसार की समस्त एैश्वर्य की कामना हो तो केवल शिव की साधना करें। सदा !!ॐ नमः शिवाय!! मंत्र का इतना जाप करें कि यह अजपा हो जावे।
दुर्भाग्य को दूर भगाएं शिव…
■ भगवान शिव दुर्भाग्य को दूर करते हैै, तो
■ माँ भगवती भाग्य को जगा देती है।
■ श्री गणेश गरीबी दूर करते है!
■ श्री कृष्ण और कार्तिकेय का स्मरण कष्ट निवारक है।
■ नंदी जीवन में नयापन और नम्रता लाते है।
■ नाग नवग्रहों की वक्रता नाश करते है।
■ महाकाली काल की काली छाया को उजयाली कर जीवन को लाल एवं लाली बना देती है।
■ शिव का त्रिशुल तीन शूलों, त्रिदोषों का नाशकर्ता है।
■ शिव के सिर पर सधा चन्द्र चंचलता का नाश कर साधक को स्थिरता प्रदान करता है।
■ शिव के हाथ में डमरू दम-दम भरी घूटन से मुक्त करता है।
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