- पहले ये समझ लें, कि भगवान को भी नहीं, नैवेद्य लगाया जाता है। विधि जानने के लिए इस लेख को अन्त तक पढ़ें।
- वायु तत्व का स्पंदन करने के लिए घंटा, या घंटी बजाने का विधान है। मुख्य वाय पांच हैं। जैसे व्यान वायु, उड़ान वायु, समान वायु, अपान वायु और प्राण वायु।
- ईश्वर को नैवेद्य अर्पित करने के बाद पांचों पवन वायु के लिए 5 बार घंटी बजाने हैं, ताकि हमारे द्वारा लगाया गया पदार्थ की खुशबू वायु के माध्यम से हमारे इष्ट और पितरों तक पहुंच सके।
- मान्यता है कि घर में निर्मित कोई भी खाद्य पदार्थ बनाकर ईश्वर के समक्ष रखने से अन्न का दोष निकल जाता है।
- भगवान को अर्पित किया कोई पदार्थ या अन्न, जल, मेवा, मिष्ठान को नैवेद्य कहा जाता है।
- नैवेद्य को हमेशा पान के पत्ते पर रखकर ही लगाना चाहिए। चढ़ाने के बाद यह प्रसाद कहलाता है और जब सबको बांटते या वितरित करते हैं, तो यह भोग हो जाता है।
- वैदिक हिंदू धर्म में ज्यादातर भक्तगण यही गलती करते हैं कि भगवान का नैवेद्य की जगह प्रसाद या भोग शब्द का उच्चारण करते हैं। इससे घर की बरक्कत जाती है।
- नैवेद्य, प्रसाद और भोग की यह जानकारी 17 प्राचीन वैदिक ग्रन्थ-भाष्यों से से ली गई है।
- अमृतमपत्रिका, ग्वालियर का विशेष अंक पूजन विधान जून 2009 से लिया गया है। इस ब्लॉग में यह भी जाने कि- पान के पत्ते पर ही क्यों लगाते हैं-
भोग-प्रसाद-नैवेद्य में अन्तर
- स्कंदपुराण के अनुसार- बिना मंत्रों के उच्चारण द्वारा ईश्वर को अर्पित किया गया नैवेद्य घर में दरिद्रता, तनाव देता है।
भ्रम मिटायें-समृद्धि पाएं….
- सर्वप्रथम तो आप भोग-प्रसाद और नैवेद्य में अंतर समझ लें। भारत में यह बहुत बड़ा भ्रम फैला हुआ कि भगवान को भोग या प्रसाद चढ़ाना है। यह शब्द अत्यन्त मलिनता युक्त है।
- पहली बात तो यह है कि वैदिक परंपरा में ईश्वर को नैवेद्य अर्पित करना बताया है। भोग या प्रसाद नहीं।
भोग-प्रसाद-नैवेद्य में अंतर –
- वैसे तो भोग कहना भगवान के लिए सही शब्द नहीं है। रुद्र सहिंता तथा व्रतराज ग्रन्थ के मुताबिक ईश्वर को नैवेेद्य अर्पित किया जाता है,
- नैवेद्य चढ़ाने के बाद प्रसाद रूप में जो सबको बांटते हैं और बाद में फिर, जो लोग या भक्त इसे ग्रहण कर सभी खाते हैं, उसे भोग कहा जाता है।
भोग शब्द न बोले, यह झूठन है-
- भोग झूठन शब्द है। कोशिश करें कि- ईश्वर को कुछ भी खाद्य-पदार्थ अर्पित करें, तो नैवेद्य कहना उचित होगा।
नैवेद्य अर्पित करने का प्राचीन वैदिक तरीका
- ईश्वर को नैवेद्य देते समय ये मन्त्र बोले, तभी नैवेद्य ग्रहण कर भोलेनाथ किसी भी योनि रूप में रह रहे हमारे पितरों, पितृमातृकाओं तथा मातृमात्रकाओं को नैवेद्य का कुछ अंश उन्हें प्रदान करते हैं, तो उनकी आत्मा प्रसन्नतापूर्वक हमें आशीर्वाद देती है। जिससे घर में सुख-समृद्धि, धन-धान्य एवं आरोग्यता की कमी नहीं रहती।
पान के पत्ते पर ही रखें। इसका भी रखे ध्यान
- नैवेद्य हमेशा पात्र के नीचे पान के पत्ते पर ही रखकर अर्पित करना चाहिए। नैवेद्य लगाते समय निम्नलिखित 5 मन्त्र अवश्य बोले अन्यथा ईश्वर या देवता इसे ग्रहण नहीं करते-
नैवेद्य अर्पित करने हेतु ५ मंत्रों का महत्व
- नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए एक एक निवाला अर्पित करते जाएं
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