कामशक्ति बढ़ाने के उपाय :—-

श्वास, भोजन तथा निद्रा के बाद चौथा महत्त्व काम का है । निद्रा के बारे में अन्य स्थान पर बताया जा चुका है ।

यह पुस्तक कार्य के संसार से हमारे संबंधों की व्याख्या करती है।

निन्द एक ऐसा विराम है जो अस्थायी रूप से सांसारिक गतिविधियों से हमें अलग कर देता है।

यह पहले खण्ड में विस्तार से बताया जा चुका है कि त्रिदोष शरीर के भौतिक एवं मानसिक कार्यों को नियंत्रित करते हैं ।

त्रिदोषों के सारभूत पदार्थों को धातुए कहा जाता है।

धातुएँ सात होती हैं, इनमें शुक्र धातु का संबंध सहवास-क्रिया, काम संबंधी स्राव, प्रजनन तथा अन्य संबंधित कार्यों से होता है।

हाल ही में प्रकाशित संस्कृत की एक आयुर्वेदिक पुस्तक में इस धातु का वर्णन इस प्रकार किया गया है “बचपन में शुक्र धातु अभिव्यक्त नहीं होती तथा वृद्धावस्था में सूख जाती है ।

खिले हुए फूल की तरह यह युवावस्था में परिपूर्ण होती है । यह मासिक धर्म में बनती है । इसका मुख्य उद्देश्य ऐंद्रिक सुख, आनन्दप्रियता और गर्भधारण-क्रिया का सम्पादन करना है।

” जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि समग्र दृष्टिकोण से सब कुछ एक-दूसरे से संबंधित तथा जुड़ा हुआ है ।

स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क के लिए यह आवश्यक है कि त्रिदोष संतुलन में रहें तथा सभी धातुएँ ठीक से कार्य करें ।

एक गड़बड़ी या रोग दूसरी गड़बड़ी या रोग को जन्म दे सकता है। यदि ठीक से ध्यान न दिया जाए तो…

व्यक्ति स्वास्थ्य-समस्याओं के विषाक्त जाल में फंस जाता है । आयुर्वेद के अनुसार इच्छाओं की पूर्ति न हो पाना तथा इच्छा के विरुद्ध जीवन जीने पर विवश होना मानसिक रोगों को जन्म देता है ।

परन्तु इसका अर्थ यह कदापि न लिया जाए कि आत्म-नियंत्रण और प्रतिबंधता का जीवन में कोई स्थान नहीं है, इसके विपरीत आयुर्वेदिक परम्परा इन्द्रिय-निग्रह पर बहुत जोर देती है ।

अनेक मामलों में यौन-सुख की तुलना भोजन और पौष्टिक तत्त्वों से की जा सकती है। भोजन में किसी पदार्थ को कम अथवा अधिक लेने से असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है और रोग हो जाता है ।

बहुत कम खाने से अपौष्टिकता की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं या फिर रोग जन्म ले सकता है । यदि अधिक खाया जाए तो दूसरी तरह के रोग घेर लेते हैं ।

अतः संतुलन रखने वाला मध्य मार्ग ही अपनाया जाना चाहिए । यही बात काम-पूर्ति पर लागू होती है।

उपलब्ध पदार्थों से प्रयत्न व लगन द्वारा अपनी रुचि के विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट भोजन तैयार किए जा सकते हैं।

दूसरी ओर परिश्रम और लगन के अभाव में कोई व्यक्ति उन्हीं पदार्थों से अरुचिकर और कुपाच्य भोजन तैयार कर सकता है ।

स्वादिष्ट भोजन करने से संतुष्टि और सुख प्राप्त होगा । संतुलित तथा भली भांति तैयार किया गया भोजन शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करेगा

जबकि अस्वादिष्ट व असंतुलित भोजन अतृप्ति और अपच का कारण बनेगा । यही बात यौन-सुख पर लागू होती है। अब खाने की पर विचार कीजिए ।

तनाव की स्थिति में जल्दी-जल्दी निगला गया भोजन लाभकारी होने के स्थान पर हानिकारक होता है । जब यही भोजन शान्तिपूर्ण मुद्रा में चबा- चबाकर किया जाता है

तो शक्ति और ऊर्जा प्रदान करता है । यही बात यौन-सुख पर लागू होती है। सैक्स का आनंद रति-क्रिया की विधि या शैली पर निर्भर करता है।

दोनों ही मामलों में जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है-वह है भावना । इच्छा और अनुभूति को मिलाकर भावना बनती है। चाहे भोजन तैयार करने का काम हो,

भोजन करने का या फिर काम-संबंध का, इनमें भावना की भूमिका इतनी महत्त्वपूर्ण होती है कि यह हर कार्य में जान डाल देती है।

भोजन शरीर का पुनर्निर्माण करता है तथा उसे अभिनव शक्ति प्रदान करता है । काम- वासना उसे प्रजनन-क्षमता देती है।

भोजन करना एक सामाजिक कार्य है तथा इसे मिल-बॉटकर किया जाता है । काम-वासना के लिए सम्पूर्ण सहभागिता और निकटता आवश्यक है।

यौन-समागम को जो वस्तु भोजन करने की क्रिया से

बिलकुल अलग व अद्वितीय बनाती है, वह है प्रगाढ़ आनंद का क्षण।यह आंतरिक प्रसुप्त ऊर्जा को जगाता है

और रति-क्रियारत दोनों व्यक्ति एक क्षण के लिए बाहरी (दृश्यमय संसार) दुनिया से अंदर की दुनिया (अविनाशी आत्मा) में लीन हो जाते हैं ।

मस्तिष्क को प्रशिक्षित कर व्यक्ति शांति के इस अकूत आनंदमय क्षण की अवधि बढ़ा सकता है और ब्रह्मांडीय व्यापकता के साथ सीधा जुड़ सकता है।

हमारी अनन्त ऊर्जा जो हमारे जीवन का आधार है, ब्रह्मांडीय ऊर्जा का ही एक अंश है । दृश्यमान संसार से हटकर तथा ब्रह्मांडीय व्यापकता से सीधे जुड़कर हमारी शक्ति का विस्तार हो जाता है

और हमें एक अतीन्द्रिय दृष्टि प्राप्त हो जाती है । काम-वासना का जन्म शारीरिक आकर्षण, निकटता और सहभागिता से होता है ।

यद्यपि शारीरिक मिलन के माध्यम से ऐन्द्रिक अनुभूति को पार कर हम क्षणिक आनंद तक पहुंचते हैं। यह आनंद अनंत की एक झलक मात्र है।

इस उद्देश्य को प्राप्त करने के निश्चय के साथ ही उन भावनाओं को उलाँघकर जो हमारे जीवन के साथ सैक्स-संदर्भ में जुड़ी हैं

तथा विपरीत सैक्स के मिलन को पवित्र मानकर व्यक्ति रति-सुख को ब्रह्मांडीय अलौकिक सुख में बदल सकता है।

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आप यह अनुभव कर सकते हैं कि यौन-सुख उस क्षणिक ऐन्द्रिक सुख से कहीं बढ़कर हे जिस पर विभिन्न प्रकार के सामाजिक प्रतिबन्ध लग हुए है।

आत्मा स्वभाव से मुक्त है, इसी प्रकार ब्रह्मांड भी मुक्त है ।

यदि हम अब तक प्राप्त सभी वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास-जनित ज्ञान एवं सामर्थ्य का सहारा लें तब भी प्रकृति की शक्तियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते ।

हम समय को रोक नहीं सकते।

धरती को यह नहीं कह सकते कि वह सूर्य की परिक्रमा करते समय अपनी गति कम या आधिक कर दे।

सूर्य को यह नहीं कह सकत कि वह तब उदय हो जब हम चाहिए जो प्रकृति से एक वरदान के रूप में हमें मिली है। गाहे ।

हमें इस सत्य को अनुभव करना चाहिए तथा अपनी अनन्त स्वतंत्रता का आनंद लेना काम संबंधी तथ्य बताते समय मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं

कि लोग यह न समझ बैठे कि में पश्चिमी दुनिया के ‘स्वतंत्र सैक्स’ पर जोर दे रही हूँ।

यह एक अतिवादी पहलू है जिसने भयानक सामाजिक समस्याएं खड़ी की हैं ।

स्वाधीनता से मेरा अभिप्राय काम-सुख संबंधी उस सहज स्वाधीनता से है…

जिसमें हम अपने-आपको पूरी तरह अभिव्यक्त कर पाएँ जो ब्रह्मांडीय लय के साथ एकाकार होने

तथा अनन्त ब्रह्मांडीय गतियों के साथ तालमेल स्थापित करने के लिए आवश्यक है ।

यह तभी सम्भव है जब हम अपने आप पर स्वयं लादे गये प्रतिबंधों को हटा दें।

हमारे अंदर जो अनन्त प्रकाश है, उसके ऊपर पड़े अज्ञान के अंधकार-जनित पर्दे को हटा दें।

अपने अंदर के प्रकाश को अनुभव करना तथा ज्ञानमय जीवन जीना हम पर है ।

सोचने और निर्णय करने की हमारी योग्यता या शक्ति (बुद्धि) ही हमारी स्वतंत्रता है।

आत्मा की प्रकृति के साथ अपने अस्तित्व का अनुकूलन करने में हम इस स्वतंत्रता का उपयोग कर सकते हैं

जो बिलकुल स्वतंत्र और शाश्वत है।

मैं जानती हूँ कि ‘फास्ट फूड’, ‘सुपरसॉनिक यातायात तथा उपग्रह-संचार प्रणाली’ के युग में पाठक कोई ‘बना-बनाया’ आयुर्वेदिक सूत्र चाहते हैं

जो उन्हें अधिक काम संबंधी आनंद दे सके। परन्तु आपको यह ज्ञान होना चाहिए …

कि समग्र चिकित्सा-प्रणाली में जो कि वास्तव में हितकर जीवन-पद्धति ही है, कोई ऐसी गोली उपलब्ध नहीं है

जिसे निगलते ही परेशानी दूर हो जाए। यह पद्धति रोग के लक्षणों को समाप्त करने में विश्वास नहीं करती।

इस पद्धति के अनुसार समूची प्रकृति एक औषधिशाला है तथा यहाँ मिलने वाली सबसे कारगर गोली यह है ..

कि हम वस्तुओं के प्राकृतिक क्रम के साथ तादात्म्य स्थापित करने का सूत्र सीख लें ।

इस विवरण का एकमात्र उद्देश्य यह है कि आप थोड़ा-सा रुकें, अपने-आपमें स्थित हों और शान्त क्षण में ठहर जाए ।

शान्ति के इसी क्षण को काम शक्ति के माध्यम से बढ़ाने…

का आपको अभ्यास करना है।

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