फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि को रात 12 बजे मध्यरात्रि बेला में एक बार कैलाश पर्वत पर नटराज भगवान् ने नृत्य की समाप्ति पर लय-ताल के रूप में चौदह बार अपना डमरू बजाया, ताकि सनकादि सिद्ध, ऋषि मुनि एवं सृष्टि के सभी देवों व मनुष्यों आदि का उद्धार हो सके।
नटराज राजो, ननाद ढक्वानवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धानेतविर्मशं शिवसूत्र जालम्
- डमरू से जो ध्वनि निकली उसी से सन्सार की सभी भाषा बनी…डमरू बजाने से जो चौदह ध्वनियाँ निकालीं, वही व्याकरण के मूल स्वरूप चौदह सूत्र हुए। वे सूत्र इस प्रकार हैं-
(1) अइउण,
(2) ऋलुक,
(3) एओङ,
(4) ऐऔच,
(5) हयवरट्,
(6) लण्,
(7) ञमङणनम्,
(8) झभञ्,
(9) घढधष,
(10) जबगडद,
(11) खफछठयचटतव
(12) कपय,
(13) शषसर,
(14) हल्।
इन्हीं चौदह सूत्रों से संस्कृत भाषा का व्याकरण, संगीत तथा नृत्य की विधाएँ निर्मित हुईं।
- व्याकरण को पढ़ाने के लिए शेषनाग ने लिया अवतार…
संसार में पाणिनीय व्याकरण की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए शेषनाग ने पतञ्जलि के रूप में अवतार लिया था। इस लेख में इनका विशेष विवरण ईश्वरोवाचा उपनिषद, शंकर भाष्य आदि में प्रस्तुत है।
इन 14 सूत्रों का प्रतिदिन स्मरण, जप करने से बुद्धि शुद्ध और तेज होती है। प्रतिदिन एक माला जपने से अथाह धन की वृद्धि होने लगती है।
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