शिवभक्त भी शिव का अंश है
शिव जी के भक्त का सम्मान, करने से शिव जी बहुत प्रसन्न होते है, क्योंकि शिव में और शिव भक्त में कोई अन्तर नहीं होता। शिव भक्त साक्षात् शिव रूप ही है।
हरिवंश पुराण एवं स्कन्द पुराण
में कहा है कि
जो लोग जीवन में शिवभक्तों का मन दुखाते हैं,
खिल्ली उड़ाते हैं, छल-कपट, धोखा और बेईमानी करते हैं, यह बहुत बड़ा पाप है,
इस पाप की सजा उनको और उनकी आने वाली पीढ़ी को भयंकर कष्ट भोगना पड़ते हैं।
कम उम्र में ही स्त्रियां विधवा हो जाती हैं,
धन का सर्वनाश हो जाता है। विवाह बिलम्ब
से होता है या अविवाहित रह जाते हैं।
सन्तति नष्ट हो जाती हैं अथवा बच्चों का जन्म नहीं होता।
शिव स्वरूप मन्त्रस्क,
धारणाच्छिव एव हि।
शिच भक्त शरीरे हि,
शिवे तत्परो भवेत्।।
पंचाक्षर महामन्त्र भगवान् शिव का मन्त्र रूप (मन्त्र विग्रह मूर्ति ) है। अत: पंचाक्षर मन्त्र को धारण करने वाला शिव ही हो जाता है। शरीर में शिव भक्ति होने से वह स्वयं शिव स्वरूप हो जाता है।
निरन्तर साधना करते रहने से साधक पर वैसा प्रभाव पडऩा एक मनोवैज्ञानिक क्रिया है। ऐसी ही स्थिति में साधक शिवोऽहं शिवोऽहं (मैं स्वयं शिव हूं, मैं स्वयं शिव हूं) का ध्यान और एहसास करने लगता है।
शिव भक्ता: क्रिया: सर्वा,
वेद सर्वक्रिया बिदु:।
यावद्यावच्छिवं मन्त्रं,
येन जप्तं भवेत् क्रमात्।।
जो शिव भक्त सम्पूर्ण वेद क्रियाओं को जानते हैं (और जो वेद-क्रियाओं को न जानने के कारण वेद-क्रियायें जानने वाले ब्राह्मणों से शिव पूजन की क्रियायें कराते हैं) वे जितन-जितने क्रम से शिव पंचाक्षर मन्त्र जपते हैं, उतना ही उतना उन्हें शिव सानिध्य प्राप्त होता जाता है। साधक के शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है, इसमें किसी संशय की बात नहीं है। शिव भक्त स्त्रियाँ स्वयं देवी का स्वरूप हो जाती हैं।
शिवलिंग को नाद रूप, शक्ति को बिन्दु रूप और पंचाक्षर मन्त्र के वर्ण स्वरूप को शिव मानकर इस प्रकार से एक दूसरे में आसक्त भाव से शिवलिंग का मन्त्र जप व पूजन करे।
पूजयेच्च शिवं शक्तिं,
स शिवा मूलभावनात्।
शिवभक्ताञ्छिवमन्त्र-,
रूपकाञ्छिवरूपकान्।।
वह साधक अपने ह्रदय की गहराई से शिव और शक्ति की पूजा करे। शिव भक्तों को शिव मन्त्र (नम: शिवाय) को साक्षात् शिव का स्वरूप मानकर पूजा करनी चाहिए।
षोडशैरूपचारैश्च,
पूजयेदिष्ट-माप्नुयात्।
येन शुश्रूषणाद्यैश्च,
शिवभक्तस्य लिड्गिंन:।।
यदि साधक की कोई सांसारिक कामना है तो शिव भक्त को चाहिए कि षोडशोपचार विधि से शिव की पूजा करे और शिव भक्तों की सेवा करे।
जो शिव भक्त इस प्रकार और भावना से शिवजी का पूजन करता है, वह स्वंय शिव शक्ति स्वरूप होकर पृथ्वी पर पुन: जन्म नहीं लेता।
शिव भक्त के शरीर का वर्णन
पंचाक्षर मन्त्र के लगातार जाप से नाभि से लेकर नीचे पैरों तक का भाग ब्रह्मा का, कण्ठ से लेकर नाभि तक विष्णु का भाग और शरीर का शेष रहा मुख, वह शिव लिंग अर्थात् मानव मस्तिष्क शिवलिंग स्वरूप हो जाता है। इस प्रकार शिव भक्त के शरीर के विभाग बताए गए हैं।
इसलिए शिव भक्त की मृत्यु के पश्चात् उसकी दाह क्रिया की गई हो अथवा न की गई हो, उस मृतक की पितृ क्रिया के रूप में पितरों की शान्ति के उद्देश्य से सभी के आदि पितर भगवान् शिव का माह में एक बार
अमृतम मधुपंचामृत से रुद्राभिषेक एवं पूजन करें शिव की पूजा के पश्चात् चराचर की आदि माँ भगवती की पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार पितृ पूर्वज व्यक्ति शिवलोक को प्राप्त होकर क्रम से मुक्त होकर परिवार पीढ़ी को प्रसन्नता, सम्पन्नता प्रदान करता है।
तस्माद्वै शिवभक्तस्य,
महिमानं वेक्ति को नर:।
शिवशक्यो: पूजनञ्च,
शिवभक्तस्य पूजनम्।।
विशेषज्ञो मुनीश्वरा:।।
अत: भगवान शिव और शिव भक्त की महिमा कौन जान सकता है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक शिव शक्ति अर्थात् भगवती शिवा का, शिवजी का और शिव भक्त का पूजन करता है, वह शिव को प्राप्त करता है।
महर्षि मुनिश्वर कहते हैं कि इस अध्याय का अर्थ वेद सम्मत हैं, जो इस अध्याय को पढ़ता है और शिव भक्तों को सुनाता है, वह शिवज्ञानी शिव के साथ रहकर आनन्दित होता है। वह पूर्णत: शिव की कृपा प्राप्त कर लेता है।
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