सितोपलादि चूर्ण बढ़े हुए पित्त को शांत करता है। इसके प्रयोग से काफी लाभ होता है।
अन्य अनेक फायदे ओर भी हैं-जाने…
भूख बढ़ाता है। जिन लोगों को भोजन से अरुचि हो जाती है, वे इसे अमृतम मधु पंचामृत के साथ रोज सुबह खाली पेट लेवें, तो भूख खुलकर लगने लगती है।
इसकी विशेषताओं की वजह से अमृतम के अनेक उत्पादों में सितोपलादि चूर्ण के घटक द्रव्य मिलाए जाते हैं।
इसमें वंशलोचन, इलायची मुख्य घटक है।
भेषजयरत्नावली आयुर्वेदिक शास्त्र के मुताबिक इसे घर में भी बनाया जा सकता है-
सितोपलादि चूर्ण बनाने के लिए मिश्री 17 तोला, बंशलोचन 8 तोला, पिप्पली 4 तोला, छोटी इलायची के बीज 2 तोला, और दालचीनी 1 तोला लेकर सबको कूट और पीस कर चूर्ण बना ले।
सितोपलादि चूर्ण की समस्त ओषधियाँ अमृतम च्यवनप्राश में मिलाई जाती हैं।
Tb यानि क्षय रोग के मरीजों को इसे
नियमित सेवन करना हितकारी होता है। इसे अमृतम गोल्ड माल्ट में मिलाकर यदि तीन महीने तक खिलाया जाए, तो यह फेफड़ों को अंदरूनी ताकत देकर खून की वृद्धि करने लगता है।
सितोपलादि चूर्ण खांसी, क्षय, हाथ और पैरों की जलन, अग्निमांद्य यानि एनोरेक्सिया, पसलियों का दर्द, अरुचि, ज्वर आदि विकारों में अत्यंत कारगर है।
चूर्ण बढ़े हुए पित्त को शांत करता है,
कफ को मिटाने में बहुत लाभकारी है।
भोजन में रूचि उत्पन्न कर, जठराग्नि को तेज करता है और साथ ही पाचक रस को उत्तेजित कर भोजन को पचाता है। पित्त वृद्धि के कारण कफ सूख कर छाती में जम गया गया हो, मुँह से कफ के साथ रक्त आना, साथ-साथ थोड़ा ज्वर का रहना(यह ज्वर विशेषकर रात में बढ़ता हैं), ज्वर रहने के कारण शरीर निर्बल और दुर्बल हो जाना आदि उपद्रवों में इस चूर्ण का उपयोग किया जाता है।
ओनली ऑनलाइन उपलब्ध है।
पैकिंग-400 ग्राम कांच जार में
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