मसालों का उपयोग शरीर के लिए
जरूरी है।
मसालों के सेवन से नहीं होता अल्सर...
मसाले पेट के लिए बहुत लाभकारी होते हैं।
देशी दवाओं की पुरानी किताबों….जैसे-
¢ जंगल की बूटी,
¢ आयुर्वेदिक निघण्टु
¢ भावप्रकाश निघण्टु
¢ भेषजयरत्नावली
आदि आयुर्वेदिक ग्रंथों में
सभी मसालों को उदर के हर रोग
को ठीक करने में अत्यंत हितकारी बताया है।
√ जीरा, √ सौंफ, √ अजवायन, √ हल्दी,
√ लालमिर्च, √ धनिया, √ कालीमिर्च,
√ मेथी, √ दालचीनी, √ जावित्री,
√ तेजपत्ता, √ लौंग, √ इलायची,
√ लौंजी, √ राई और √ नमक
आदि अनेक मसाले ….● यकृत, ● आन्त
● गुर्दा यानि किडनी, ● कब्ज, ● दस्त,
● ह्रदय तथा ● पेट के सभी रोगों को
दूर करने में उपयोगी हैं।
【】हल्दी बेहतरीन एंटीबायोटिक है।
【】जीरा रोगप्रतिरोधक क्षमता वृद्धि दायक है।
【】लालमिर्च कर्करोग अर्थात केन्सर निरोधी है।
【】सौंफ वायु-विकार नाशक है।
【】कालीमिर्च ह्रदय की रक्षक है।
【】दालचीनी खून साफ रखती है।
【】जावित्री रक्त का प्रवाह नियमित
बनाती है।
【】धनिया लिवर की सर्वश्रेष्ठ ओषधि है।
【】लौंग कृमिनाशक है।
【】इलायची सडनरोधी होती है।
अंग्रेजी चिकित्सा कारोबारियों तथा वैज्ञानिकों ने जान बूझकर यह भ्रम फैलाया कि…
अधिक मसालेदर, चटपटा तथा तीखा भोजन करने से पेट का अल्सर यानि जख्म होता है।
तेज मसाले शरीर के लिए हानिकारक
होते हैं। यह सच नहीं है…..
आयुर्वेद एव प्राकृतिक
चिकित्सा शास्त्रों के मुताबिक सभी मसाले हमारे तन-मन के लिए अमृत है।
सच्चाई तो यह है कि…..
अल्सर का मूल कारण – वायरस, प्रदूषण, पोलूसन और दुषित वायु है।
उदर की रक्षा के लिए मसालों की विशेष आवश्यकता है।
पुराना खानपान….
पुरानी धारणा के हिसाब से पहले समय
में पुराने लोग सभी मसालों को सिल-लुढिया
पर पीसकर सब्जी बनाकर खाते थे, जो बहुत चटपटी और तीखी हुआ करती थी। अधिक मसालों के सेवन से वे, बुजुर्ग हमेशा स्वस्थ्य-तन्दरुस्त रहते थे। 80-90 वर्ष की उम्र में भी उनकी आंखे, हृदय पेटादि सब ठीक रहते थे। उन बड़े-बूढों केनियम-धर्म भी प्रकृति के अनुसार होते थे।
इस लेख में पेट के सभी रोगों की
जानकारी दी जा रही है……
क्या होता है पेप्टिक अल्सर–
छोटी आँत की ऊपरी साथ पर बनने वाले छाले होते हैं। यह पानी बहुत कम पीने, पेट साफ करने वाली दवाओं,चूर्ण, टेबलेट आदि के अधिक सेवन से और बहुत लंबे समय तक कब्ज की शिकायत होने तथा वायु प्रदूषण के कारण होते हैं।
अल्सर के लक्षण :
कई लोगों को बार-बार खट्टी डकार आने की समस्या रहती है। यह पेट के अल्सर का एक लक्षण भी हो सकता है…रहें सम्भलकर
गैस्ट्रिक अल्सर पाचन तंत्र के अस्तर यानी पर्त पर घावों या जख्मों को कहा जाता है।
ये अम्ल (एसिड) की अधिकता के कारण आमाशय या आंत में होने वाले घाव के कारण होते हैं। अल्सर अधिकतर ड्यूडेनम (आंत का पहला भाग) में होता है। शरीर का दूसरा सबसे बड़ा मूल भाग पेट है (आमाशयअल्सर)। पैप्टिक अल्सर के कई कारण हो सकते हैं
अल्सर कुछ अंग्रेजी दवाओं के निरंतर प्रयोग, जैसे सिर दर्द, हाथ-पैर दर्द या अन्य दर्द निवारक दवाओं के सेवन से भी हो सकता है।
इसका सही समय पर इलाज न हो, तो ये जख्म में बदल जाते हैं।
आयुर्वेद के अनुभवी वेद्याचार्यों
महर्षि चरक, वैद्य नियतावन, वैद्य सारंगधर एवं अभी-अभी नई खोज करने वाले अमरीका के गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट डॉ मैथ्यू बेकचोल्ड (एम.डी.) के उदर रोग अनुसंधान से पता चला है कि….. मसालेदार भोजन से अल्सर नहीं होता है, बल्कि कब्ज का नाश होता है। मसाले पर्याप्त मात्रा में खाएं जावें, तो पेट साफ रहता है और पेट की बीमारियों से बचाव होता है।
अल्सर के लिए जीवाणु है जिम्मेदार-
अल्सर के लिए हेलिकोबेक्टर पाइलोरी
जीवाणु जिम्मेदार है। यह पेट में संक्रमण
फैलाने में सहायक है।
अल्सर कैसे विकसित होता है-
भोजन पचाने वाला अम्ल यानि एसिड अमाशय या आँत की दीवारों को आँतकी बनकर नुकसान पहुंचाने लगता है।
अम्ल/,एसिड तथा पेट द्वारा बनाये गये अन्य रस पाचन पथ के अस्तर को जलाकर अल्सर होने में योगदान करने लगता है। यह तब होता है जब शरीर बहुत ज्यादा अम्ल बनाता है या पाचन पथ का अस्तर किसी वज़ह से क्षतिग्रस्त हो जाए।
@ पेट साफ करने वाली दवाओं के अधिक सेवन से अल्सर की तकलीफ या पेट में जख्म बनने लगते हैं।
@ रहन-सहन, खानपान में थोड़ी सावधानी बरतकर बच सकते हैं अल्सर से….
@ आयुर्वेदिक पुस्तकों में रात्रि को ज्यादा मसालेदार भोजन का निषेध है।
@ रात्रि में दही का सेवन कदापि न करें।
@ रात्रि में हल्का भोजन लेवें।
@ रात्रि में सोने से पहले 2 या 3 ग्लास पानी पियें।
@ सुबह उठते ही एक या सवा लीटर सदा जल जरूर पीना चाहिए।
@ जो लोग प्रातः उठते ही जल ग्रहण नहीं करते, वे अक्सर कोई न कोई बीमारी से घिरे रहते हैं।
पेट खराब की पहचान क्या है...
ओंठ पर पपड़ी, छाले, ओंठों पर
रूखापन हो सकता है…..
# बहुत लंबे समय तक पेट साफ नहीं है या
# कब्ज की शिकायत है अथवा
# पाचनतंत्र बिगड़ा हुआ है,
# पेट में अंदरूनी सूजन व तकलीफ है, तो # ऐसे लोगों को हमेशा बुखार बना रहता है, # उन्हें कोई भी संक्रमण/वायरस तुरन्त पकड़ता है।
होंठों के आस-पास बुखार के छाले हर्पस सिम्प्लेक्स वायरस के कारण होते हैं।
चोट, सूक्ष्मजीवों से संक्रमण, विषैली औषधियां, कैंसरयुक्त और गैर-विशिष्ट प्रक्रियायें…. एक बार निर्मित हो जाने पर, जलन तथा संक्रमण के द्वारा ओंठों पर छाला बना रहता है।
पेट की लगातार खराबी और कब्ज से हो सकता है..मुख में छाले यानि माउथ अल्सर-क्या हैं लक्षण....
माउथ अल्सर एक ऐसा रोग है, जिसके लक्षण आसानी से आपको दिखने लगते है। जैसे कि मुंह, मसूढ़े, होठों या मुंह में अन्य जगह सफेद घाव हो जाना। कई बार इससे खून निकलने लगता है या फिर खाने में समस्या होती है।
पुरानी कहावत थी कि….
एक बार जाए योगी
दो बार जाए निरोगी
तीन बार जाए भोगी
चार बार जाए रोगी
उन विद्वान बुजुर्गों का अनुभव था कि-
यदि पूरे दिन में व्यक्ति केवल एक बार
फ्रेश होने जाता है वह पूरी तरह योगी
जैसा स्वस्थ्य और आत्मविश्वास से भरा है।
() दो बार जो मल विसर्जन करता है वह
एक प्रकार से निरोगी है, उसे अधिक रोग नहीं सताते।
(()) तीन बार जाने वाला भोगी होता है यानि
कभी भी कुछ भी खाते रहना, बेसमय सोना,
आदि।
(()) चार बार लैट्रिन जाने वाला प्राणी निश्चित रूप से रोगी होता है। ऐसे रोगियों को केवल अमृतम का जिओ गोल्ड माल्ट तीन महीने तक नियमित खाना चाहिए।
पेट के होने वाले विकारों के सिम्टम्स…
【】उदर के अंदर किसी प्रकार के जख्म या दर्द का एहसास होना तथा आंतों में जलन की शिकायत होना।
【】आँतों में रूखापन आना।
【】एक बार में पेट साफ न होना।
【】 पेट में सूजन, सीने में जलन एवं गैस की समस्या हमेशा बनी रहना।
【】पेट के ऊपरी भाग में हल्का सा दर्द एवं जलन होना एवं गर्म पेय पदार्थ या ठंडा पीने के पश्चात असहजता का अनुभव होना।
【】मल में खून आना, ज्यादा बदबू आना या मल का रंग गहरा होना।
【】 हमेशा सर्दी-खांसी बनी रहना। खांसी होने पर खून आना या खून की उल्टी होना।
【】दिनोदिन वजन का कम होते जाना और भूख न लगना।
आदि अनेक रोग एवं उदर विकार की श्रेणी में
आते हैं। आयुर्वेद में उदर को रोगों का सागर बताया है। समय-समय पर इसकी सफाई
आयुर्वेदिक ओषधियों जैसे-
जिओ गोल्ड माल्ट,
अमृतम गोल्ड माल्ट,
कीलिव माल्ट…. का सेवन करते हुए करना जरूरी है। अमृतम की इन दवाओं के तीन महीने तक लेते रहने से करीब ११० तरह के पेट की तकलीफें दूर हो जाती हैं।
पेट का एक खतरनाक गृहिणी रोग….
गृहिणी रोग अर्थात इंफ्लेमेटरी बोवेल सिंड्रोम
(IBS) यह रोग किसी भी उम्र में बच्चों, स्त्री-पुरुष एवम बुजुर्गों को हो सकता है ।
यह एक ऐसा उदर रोग है
जिसका कोई निश्चित कारण नही है।
क्या है गृहिणी रोग–
पाचाशय में विभिन्न प्रकार की किण्वक(enzymes) एंजाइम का समूह
मौजूद है, जो खाए हुए अन्न का पाचन
करता है। इसी को आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक सहिंता, आष्टांग हृदय में जठराग्नि भी कहा गया है। यह उदर की मुख्य अग्नि है। इस पाचाशय का कार्य एक तरफ से भोजन को ग्रहण करना है और दूसरी ओर से ना पचने वाले तत्वों का निष्कासन करना है, लेकिन यह पाचन तंत्र शक्ति विहीन हो जाए, तो यह बिना पचे हुए खाने को ही बाहर निकालने लग जाती है ।
इस कारण उदर यानि पेट अनेक विकारों से
घिरकर पूरे पाचन तन्त्र में अनेक समस्याएँ
और बीमारियां पैदा कर देता है। जिनमें से एक आई बी एस (IBS) अर्थात गृहिणी रोग है।
क्या नुकसान हो सकता है शरीर को….
◆ इस पेट रोग से आँतों की गति क्रियाहीन
होकर असामान्य सी हो जाती है ।
इस कारण खाना नहीं पचता।
◆ पेटदर्द, कब्जियत, बार-बार कब्ज (constipation) रहता है।
◆ मुँह सूखना, गर्मी, बहुत प्यास लगना,
◆ झुनझुनाहट, वायु (गेस) का न निकलना,
◆ खाना खाते ही पेट फूलना,
◆ काम (sex) के प्रति अरुचि होना,
◆ महिलाओं की माहवारी बिगड़ना,
◆ स्त्रीरोग, प्रदररोग, सफेद पानी की शिकायत ◆ शौच (लेट्रिन) में बहुत समय लगना,
◆ दस्त साफ न होना, बेचेनी,
उल्टी जैसा मन होना,
◆ पेचिश अथवा अंतडियों में तनाव उत्पन्न हो जाता है।
गृहिणी/आईबीएस रोग एवं उनके लक्षण….
■ इस रोग में पाचक तंत्र में क्रम से बारी-बारी से रोगी को कभी कब्जियत और कभी पेचिश हो जाती है ।
■ प्रेशर नहीं आने से एक बार मे पेट साफ नहीं होता।
■ मल में चिकनाहट आती है। लगातार
■ भूख न लगने से भोजन के प्रति इच्छा
खत्म हो जाती है ।
■ खून का बनना कम हो जाता है ।
■ खून (हीमोग्लोबिन) की कमी,
■ शरीर का सफेद या पीला होना।
गृहिणी/आईबीएस रोग के कारण –
आयुर्वेदिक ग्रन्थ काय चिकित्सा के अनुसार गृहिणी रोग के मरीजों को यकृत रोग, पाण्डु रोग यानि खून की कमी उत्पन्न होकर किडनी व आंतों को क्षति होने लगती है।
■ इस रोग में रोगी को प्यास अधिक लगती है।
■ मुँह स्वादहीन, रसहीन होकर, कुछ भी खाने का मन नहीं करता। सब स्वादरहित लगता है ।
■ आँखों के सामने अंधेरा छा जाना ।
■ पैरों में सूजन,
■ अंतडियों के उपरी अथवा निचले भाग में विभिन्न रूप से वायु गेस का बार-बार बनना आदि विकार होते रहते हैं ।
■ सिरदर्द, कमरदर्द, हाथ-पैर, गर्दन,जोड़ों अथवा छाती में दर्द,
■ आलस्य, किसी भी कार्यादि में ध्यान नहीं लगना इत्यादि गृहिणी रोग के लक्षण
बताए गये हैं ।
¶¶- कब्जियत-प्रधान वाला रोगी–
? इनको जीवनभर कब्ज की परेशानी बनी रहने से तन भारी रहता है । हमेशा शरीर के जोड़ों में तीब्र वेदना होती रहती है। ये वातज रोगी कहे गए हैं।
नुकसान….
? ढंग से सेक्स नहीं कर पाने से स्वयं को कमजोर व अक्षम मानने लगते हैं ।
¶¶- यदि महिला वातज गृहिणी रोग यानि आईबीएस से पीड़ित हो, तो प्रदर रोग से भी खतरनाक सोमरोग स्त्री को घेर लेते हैं ।
प्रदररोग तथा सोमरोग के बारे में विस्तार
से जानने के लिये पिछले लेख ब्लॉग पढ़े ।
¶¶- पित्तज गृहिणी प्रधान वाला रोगी -पेचिश से पीड़ित होता है। इन्हें कभी दस्त बंधकर नहीं आता। एक बार में पखाना साफ नहीं होता। इस कारण कम उम्र में ही इनकी कामवासना कम या खत्म हो जाती है।
■ सेक्स की उत्तेजना नहीं रहती ।
■ ऊर्जाहीन शिथिल हो जाते हैं।
■ याददाश्त कमजोर हो जाती है ।
■ जीवन भर इन्हें कोई न कोई विकार सताते हैं ।
महिलाएँ पीड़ित हों, तो.
पित्तज गृहिणी प्रधान वाली स्त्रियां सदैव शरीर के प्रति शंका से घिरी रहती है। इन महिलाओं को हमेशा यह भय सताता है कि उन्हें कोई रोग न हो जाए।
■ कम उम्र में ही सुन्दरता कम होती जाती है।
■ इनका मासिक धर्म कभी भी समय पर खुलकर नहीं आता है और कभी तो इतना आता है कि 8-दिन बन्द नहीं होता ।
■ खून की कमी होकर बहुत कमजोरी महसूस करने लगती हैं ।
■ अपनी सुन्दरता व खूबसूरती के प्रति सजग रहती हैं।
■ तत्काल लाभ के चक्कर में
बार-बार चिकित्सक (डॉक्टर) तथा चिकित्सा
पध्दति बदलती रहती हैं, इस कारण ये रोगों से घिरती चली जाती हैं।
■ इन्हें नियमित
अमृतम नारी सौन्दर्य माल्ट
का सेवन करना चाहिये। यह अनेक स्त्रीरोग नाशक, सुन्दरता दायक, बेहतरीन सप्लीमेंट के रूप में यह आवश्यक प्रोटीन व
पोषक तत्वों की पूर्ति करने में
लाजवाब आयुर्वेदिक हर्बल ओषधि है।
क्या है कोलाइटिस :
पेट की एक खतरनाक बीमारी
जाने – इस रोग के 5 लक्षण
आंत की सूजन, जलन या दूसरी तरह की तमाम बीमारियों को कोलाइटिस कहते हैं।
लंबे समय से चल रहा आंतों का एक रोग जिससे पाचन तंत्र, उदर और आँतों में सूजन आती है
प्रमुख लक्षणों में गुदा से रक्त बहना,
खूनी दस्त, पेट में ऐंठन और दर्द शामिल है।
【1】बुखार – अचानक तेज गर्मी और फिर बुखार हो जाना भी कोलाटिस का सामान्य लक्षण है।
【2】दस्त – सामान्य दस्त के अलावा शौच में खून आना भी कोलाइटिस के लक्षणों में शामिल हैं। इससे पीड़ित रोगी को दस्त यानि बार-बार शौच के लिए जाना पड़ सकता है।
【3】पानी की कमी – शरीर में पानी की कमी हो जाती है, ऐसे में रोगी को
अधिक से अधिक पानी और ग्लूकोज पिलाया जाता है।
【4】वजन कम होते जाना – कमजोरी के अलावा शरीर में पोषक तत्वों की कमी और वजन का घटना भी इसके लक्षण हैं।
【5】पेट में दर्द रहना – अक्सर पेट के बाएं हिस्से में दर्द का बना रहना और ऐंठन होना इसका प्रमुख दोष है।
【6】कोलाइटिस से पीड़ित व्यक्ति के लिए समय के साथ बड़ी आंत की परत की सतह पर कोशिकाएं मर जाती हैं, जिसका दुष्परिणाम पेट में अल्सर, मवाद/पस, श्लेष्म और रक्त निकलना आदि है।
पेट या आँतों का यह रोग एक तरह की कोलाइटिस बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी (प्राणिजगत् के अनेक जीवाणु मानव शरीर में प्रविष्ट हो, उसमें वास करते हुए उसे हानि पहुँचाते, या रोग उत्पन्न करते हैं।)के अतिक्रमण से होती है। अगर कोलाइटिस की वजह सालमोनला या कोई दूसरा बैक्टीरिया है तो इससे निजात पाने के लिए “जिओ गोल्ड माल्ट“ एक बहुत सहायक आयुर्वेदिक ओषधि है
जिओ माल्ट से ठीक होने में लगने वाला समय —
आमतौर पर नये कोलाइटिस रोग में बच्चों को 1-1 चम्मच दो बार जिओ गोल्ड माल्ट 10 से 15 दिन और बड़ों को 2-2 चम्मच दो से तीन बार नियमित सेवन करने से लाभ होता है। हालांकि, पुराने कोलाइटिस से ग्रस्त रोगियों को इस बीमारी से ठीक होने में 3 से 4 सप्ताह लग सकते हैं।
जिओ माल्ट के
नियमित सेवन से आपकी इम्युनिटी पॉवर
बहुत स्ट्रांग हो जाता है।
कोलाइटिस और पेट की तकलीफों का
100% आयुर्वेदिक इलाज है।
भोजन से ही सब प्रयोजन सिद्ध होते हैं
खाना, खाने का मतलब केवल पेट भरने से नहीं होता। भोजन अच्छी तरह से हजम हो जाए। किसी तरह का कोई अपचन न हो, पेट में कोई तकलीफ न हो यह बहुत जरूरी है।
जिओ गोल्ड माल्ट ….यह आयुर्वेद की एक ऐसी अद्भुत ओषधि है जो
गुलकन्द से निर्मित है। पेट के रोगों को
ठीक करने हेतु गुलकन्द से अच्छी
दूसरी कोई ओषधि नहीं है।
जिओ गोल्ड माल्ट
यकृत (लिवर) जिगर के रोग, उदर रोग के कारण तिल्ली, पेट वृद्धि, जलोदर, शरीर में सूजन, अनेक उदर से उपजे ऊधम (विकार) शांत करने में पूरी तरह सहायक है। इसमें
• गुलकन्द, • आमला मुरब्बा, • करोंदा,
• मुनक्का, • काली किसमिस, • गुलाब फूल, • अंजीर, सौंठ, • मुलेठी, • शंख भस्म,
• अमलताश गूदा, और सभी महत्वपूर्ण
मसालों का अनुपातिक मिश्रण है।
उदर के विकार, जीवन में हाहाकार
मचा देते हैं।
उदर व्याधि, जीने की शक्ति आधी कर देता है, जो शरीर की बर्बादी का कारण है। इस व्याधि और बर्बादी से बचने के लिए
जिओ गोल्ड माल्ट सम्पूर्ण चिकित्सा है।
इसके जीवन भर लेने से कभी कोई नुकसान या साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है। यह पूर्णतः निरापद है। जिओ गोल्ड माल्ट के बहुत से साइड बेनिफिट्स है, जो उपयोग करने के बाद ही पता लगते हैं।
यदि निम्नलिखित तकलीफ है, तो
जिओ गोल्ड माल्ट तीन महीने तक लगातार जरूर लेवें….
हमेशा आलस्य बने रहना,
समय पर काम नहीं करना,
किसी भी काम में मन न लगना,
जल्दी थकान होना, हांफना,
चक्कर आना,
बहुत अधिक गर्मी लगना,
बेचेनी, घबराहट,
बार-बार बीमार होना,
आवँ,(एमोबेसिस)
खून (हेमोग्लोबिन) कम होना
भूख,एवम ताकत की कमी
आदि बीमारियां उदर से ही जन्म लेती है ।
जिओ गोल्ड माल्ट …उपरोक्त उदररोग
का शर्तिया इलाज है।
बार-बार कब्ज होना, पेट खराब रहना,
पुरानी कब्जियत, दस्त साफ न होना,
लेट्रिन में अधिक समय लगना,
काफी समय तक पेट साफ न होने के कारण आंतों की कमजोरी, खुश्की,आंतों में छाले, आंतों में सूजन,
हमेशा सिर में भारीपन,
सिरदर्द, भय-भ्रम, चिन्ता, तनाव,
बार-बार या हमेशा क्रोध आना,
बहुत ही ज्यादा मानसिक अशांति,
बी.पी. की शिकायत रहना एवम
हृदय रोग आदि विभिन्न बीमारियों का कारण पेट ही है। इनसे पीड़ित प्राणी को
जिओ गोल्ड माल्ट का नियमित सेवन करना चाहिये ।
परिश्रम की कमी से पाचन क्रिया में गड़बड़ी,
उदर कृमि, मन्दाग्नि, विषाग्नि, व तिक्षणाग्नि
वात-कफ-पित्त त्रिदोष, तथा खांसी- जुक़ाम
शिथिलता, हाथपैर शून्य होना रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जिओ गोल्ड माल्ट शरीर में विशेष ऊर्जा प्रदान कर उदर औऱ तन को निरोग कर देता है ।
जिओ गोल्ड माल्ट विटामिन,प्रोटीन, केल्शियम, व अन्य मिनरल की पूर्ति कर उदर के सभी ज्ञात-अज्ञात विकारों को शांत करने में बहुत ही प्रभावकारी है ।
ज्यादा गर्मी या तपन, आँखों, तलवों, सीने, छाती एवम पेशाब की जलन,. पेशाब कम या बार-बार आना,कमी, गुदा, गुर्दे व त्वचा रोग जिओ गोल्ड माल्ट के सेवन से तत्काल दूर होते हैं ।
जिओ गोल्ड माल्ट-वृद्धावस्था के कारण आई शिथिलता, कमजोरी, कम्पन्न तथा सेक्स समस्या जेसे रोग होने से बचाता है ।
बच्चे,बड़े, बुजुर्ग,महिलाओं, सभी उम्र वालों के लिये यह उपयोगी है ।
आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम दवा है ।
बिना किसी रोग के पूरे वर्ष
हमेशा लिया जा सकता है।
बहुत स्वादिष्ट होने से इसे परांठे या रोटी में
लगाकर खा सकते हैं ।
जिओ गोल्ड माल्ट 1 या 2 चम्मच दूध में मिलाकर लेने से तुरन्त असर दिखाता है ।
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