श्री यानि ज्ञान। श्री रहित जीवन अंधकार और अहंकार की तरफ ले जाता है। अपनी आत्मशक्ति के सर्वागीण विकास में अहंकार बाधा डालता है। अहंकार के शास्त्रमत अनेक भेद हैं- सत्ता का, शक्ति-सामर्थ्य का, सम्पत्ति का, ज्ञान का, सौन्दर्य का, कीर्ति का – कोई भी घमण्ड जीव को कभी उन्नति की और अग्रसर नहीं होने देता।
- कृष्ण से श्रीकृष्ण बनने के लिए उपरोक्त योग्यता की जरूरत है।श्री की शक्ति का मतलब है। जिसमें में यह सब गुण-लक्षण होने वही श्री कहलाने का अधिकारी है।
- श्री- का अर्थ- संस्कृत के सम्मानसूचक ‘श्री’ शब्द के अनेको पहलू व अर्थ है। ‘श्री’ अर्थात सौन्दर्य, अनिरुद्ध, सामर्थ्य, अलौकिक, बुद्धि, अपार, सम्पत्ति, लक्ष्मी, असीम गुणवत्ता आदि।
- श्री का एक अर्थ मकड़ी भी है, जो अपने बनाये जाल में खुद उलझ जाती है। मकड़ी की तरह मोह-माया में उलझे सबका यही हाल है।
श्री मकड़ी का मंदिर –
- श्रीकालाहस्ती का यह मंदिर राहु शिवालय के नाम से दक्षिण भारत के तिरुपति बालाजी से करीब 35 किलोमीटर दूर है। यहां कालसर्प की शांति के लिए राहुकाल में शिवलिंग रूपी राहु की पूजा की जाती है।
- दुनिया का कानून भी मकड़ी की तरह ही होता है, जिसमें छोटे कीड़े-मकोड़े रूपी लोग फसकर मर जाते हैं और बड़े जीव-जानवर रूपी लोग जाला काटकर बाहर निकल जाते हैं।
- आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि- श्री यानि मकड़ी ने भी शिवजी की घोर आराधना की थी। मकड़ी द्वारा खोजा गया करोड़ों वर्ष प्राचीन स्वयम्भू शिवालय यह वायु तत्व शिंवलिंग तिरुपति बालाजी मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है।
- यहां एक शिंवलिंग में मकड़ी का प्रकटन है। राहु की कृपा पाने तथा कालसर्प-पितृदोष की शांति के लिए यह शिंवलिंग दुनिया में अद्वतीय है। यहांचन्द्र-सूर्य ग्रहण के समय विशेष चन्दन इत्र की धारा से 24 घण्टे निरन्तर रुद्राभिषेक किया जाता है।
- श्री कुबेर की जन्मस्थली भी यहीं है। इस मंदिर की दिलचस्प बातें जानने के लिए अमृतमपत्रिका के पुराने लेख गुग्गल पर सर्च कर पढ़ें।
- कालिनेमि रचित सरोवर आश्रम को देख़ हनुमान जी की जल पीने की इच्छा हुई। हनुमान जी के सरोवर में प्रवेश करते ही अभिशापित अप्सरा ने मकड़ी के रूप में, उनका पैर पकड़ लिया।
- मकड़ी ने कालिनेमि का रहस्य बताते हुए हनुमानजी से कहा, ‘
मुनि न होई यह निशिचर घोरा। मानहुं सत्य बचन कपि मोरा॥
- ऐसा कहकर मकड़ी लुप्त हो गई। तुलसी बाबा ने कालिनेमि के आश्रम के विषय में नाम निर्देश तो नहीं किया है लेकिन परंपरागत जनश्रुति यही है कि बिजेथुआ महावीरन ही वह पौराणिक स्थल है, जिसका संबंध कालिनेमि, हनुमानजी व मकड़ी से है।
- बताया जाता है कि यहां मकड़ी कुंड सरोवर, हनुमानजी का भव्य मंदिर तथा उसमें दक्षिणाभिमुख प्रतिमा पुराने जमाने से स्थित है।
नाम के पहले श्री लगाने की भारतीय परम्पराएं….
- पहले समय में सम्बधी को 11 श्री, दामाद सहित इनके परिवार को 5 श्री लगाने का विधान था। घर परिवार में अपने पिता-पितामह, कुलदेवी-कुलदेवता के लिए 7 श्री, बड़े भाई को 3 श्री लगाकर ही विवाह आदि की सूचना देते थे।
श्रीपति को प्रणाम-
- इस सृष्टि का सर्वाधिक श्रीपति भगवान भोलेनाथ, श्रीहरि विष्णु और कुबेर को बताया है। प्रथ्वी लोक में श्री यानि अपनी बुद्धि-विवेक से जो इंसान अथाह लक्ष्मी का मालिक मतलब श्रीपति बन जाये, तो लोग उसके सम्मान में नाम के पहले श्री लगाने लगते है।
श्रीमती की माया…
- इन सबसे बड़ी होती है श्रीमती। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में केवल इनके लिए श्री और मति दोनों उपयोग होता है। इसका मतलब है- जिसके पास श्री यानी धन-लक्ष्मी एवं मति- मतलब बुद्धि-ज्ञान दोनों हों उसे श्रीमती कहा गया है। श्रीमती के बारे में पूरा एक व्यंग्य लेख अलग से दिया जाएगा।
- सन्त-महात्माओं के नाम के पहले श्री श्री 108 अथवा 1008, अनंत श्री आदि! लगाने का गणित-क्या है यह उपाधि?
- जाने धर्म की दुर्लभ बातें आइए जानते हैं इसके बारे में….
- पहले पुनश्चरण की परम्परा को पढ़े…(एक दम नवीन जानकारी)
- पुनश्चरण के लिए माला से जाप जरूरी है..
- रहस्योपनिषद के अनुसार पुनश्चरण का मतलब है जिस मन्त्र में जितने अक्षर हैं..उतने लाख जप से एक पुनश्चरण पूर्ण होता है। जैसे
!!ॐ नमःशिवाय!!
- मन्त्र में 5 अक्षर हैं, इसके 5 लाख जाप करने से एक पुनश्चरण पूरा हो जाता है।
वैदिक परम्परा है कि-
- एक पुनश्चरण होने के बाद ही कोई भी सन्त-महात्मा या कोई भी साधक एक श्री की उपाधि लायक हो जाता है। यदि किसी महात्मा का गुरु मन्त्र गायत्री है, जिसमें 24 अक्षर होते हैं। अतः गायत्री के 24 लाख जाप करने के बाद वह सन्त-महात्मा एक श्री लगाने का अधिकारी हो जाता है। अतः श्री श्री 108 का उपयोग करने वाले महात्मा को 108×5 लाख = 5 करोड़ 40 लाख बार
- !!ॐ नमःशिवाय!! जप करना आवश्यक है, तभी वह श्री श्री १०८ लगाने का अधिकारी है और अगर किसी सन्त का गायत्री गुरु मन्त्र है, तो 108×24 लाख= 25 करोड़ 92 लाख अर्थात 24 लाख माला का जाप 100 साल में पूरा हो पायेगा, तब वे सन्त श्री श्री 108 की उपाधि से विभूषित हो सकते हैं।
- मान लो- एक महात्मा की उम्र 110 वर्ष भी हुई औऱ 10 वर्ष की उम्र से जपना शुरू किया, तो भी एक साल में 24 हजार माला गायत्रीमंत्र का जप करना पड़ेगा। श्री श्री १००८ की उपाधि पाना है, तो इस जन्म में असम्भव है।
करवद्ध विनम्र निवेदन-
- तेरा साईं तुझमें है, ज्यादा धर्म के चक्कर में अपने कर्म खराब न करें। खुद ही सिद्ध पुरुष बने। एक माला लेकर बैठ जाये और पूरी एकाग्रता से जाप करें। आज नहीं, तो कल यह मन अचल हो ही जायेगा। एक दिन मन इतना लग जायेगा कि- माला छूट जाएगी और अजपा जप शुरू हो जाएगा।
- बिल्कुल परमहंस मलूकदास जी तरह आप भी कहने लगोगे-
मेरा भजन, अब शिव करे, मैं पाया विश्राम।।
- अर्थात आप ईश्वर को भी अपना भजन करने का आदेश दे पाएंगे।
मत भटको, न अटको और ना हीं
किसी से लटको। बस,अपने आपको
भोलेनाथ के चरणों में पटको।
- खुद ही खुदा बनने का अभ्यास आपको एक दिन निश्चित ही ईश्वर का एहसास कराकर बाबा विश्वनाथ से मिलवा देगा।
- हिन्दू धर्म का दुर्भाग्य यही है कि- ज्यादातर धर्म धारण करने वाले शातिर संतों ने धर्म को धन्धा बनाकर इंसान को भटका दिया और भगवान या किसी लायक नहीं छोड़ा।
- लोगों को भ्रमित कर पथ भ्रष्ट कर दिया। इससे ज्यादा कुछ लिखना अनावश्यक विवाद का कारण बन जायेगा। अभी और भी रहस्य शेष हैं जिसे आगे बताया जाएगा।
What is, ओम शंभूतेजसे नमः शिवाय में शंभू का क्या अर्थ होता है? के लिए Ashok Gupta का जवाब What is, ओम शंभूतेजसे नमः शिवाय में शंभू का क्या अर्थ होता है? के लिए Ashok Gupta का जवाब
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